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Published on Apr 15, 2024 Updated 0 Hours ago

अपनी आर्थिक सुरक्षा की रणनीति का यूरोपीय संघ ने जो नया अपडेट जारी किया है, उसका मक़सद ख़ुद को एक भू-राजनीतिक और साथ ही साथ भू-आर्थिक समूह के तौर पर पेश करना है.

अपनी आर्थिक सुरक्षा रणनीति में अपडेट करके एक नए युग के लिए तैयार है यूरोपीय संघ?

जनवरी के आख़िर में यूरोपीय संघ (EU) ने अपनी आर्थिक सुरक्षा की रणनीति का अपडेट जारी किया. इसमें 27 देशों वाले समूह की आर्थिक सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए पांच नई पहलों को रेखांकित किया गया है. ये अपडेट EU द्वारा 20 जून 2023 को जारी आर्थिक सुरक्षा की रणनीति की बुनियादों को ही आगे बढ़ाने वाला है.

यूरोप की आर्थिक सुरक्षा रणनीति की उत्पत्ति

कोविड-19 महामारी की वजह से जब आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हुईं, तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा गईं. ख़ास तौर से दुर्लभ खनिज तत्वों जैसे अहम कच्चे सामानों की उपलब्धता ने गहरा असर डाला था. इस वजह से व्यापारिक संबंधों एक बुनियादी कमज़ोरी यानी चीन पर बहुत अधिक निर्भरता खुलकर उजागर हो गई थी. यूरोपीय संघ के बारे में तो ये बात ख़ास तौर से सही साबित हुई, क्योंकि चीन के साथ उसके व्यापारिक संबंध पहले भी अहम थे और अब भी हैं, जिसमें EU को उल्लेखनीय रूप से व्यापार घाटा हो रहा है. इसके अलावा, 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत और EU के देशों की रूस के ऊर्जा संसाधनों पर बहुत अधिक निर्भरता ने भी संघ की कमज़ोरियों को रेखांकित किया था. यही नहीं, लगातार बदलते तकनीकी मंज़र ने यूरोपीय संघ के नीति निर्माताओं को मजबूर किया कि वो फौरी क़दम उठाएं, जिससे तकनीक की होड़ में EU पीछे रह जाए, क्योंकि ज़ाहिर था कि ऐसा होगा, तो इसके आर्थिक परिणाम भी निकलेंगे. तब तक, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप द्वारा चीन से दूरी बनाने’ (decoupling) का जुमला काफ़ी चलन में चुका था. हालांकि, बाद में इसे और हल्का करके जोखिम कम करने (de-risking) में तब्दील किया जा चुका है. ऐसे में यूरोपीय संघ को अपनी आर्थिक सुरक्षा पर एक नज़र डालने की ज़रूरत पड़ी, ताकि वो आने वाले समय में किसी भी आर्थिक झटके से निपटने के लिए ज़्यादा  महफ़ूज़ हो.

लगातार बदलते तकनीकी मंज़र ने यूरोपीय संघ के नीति निर्माताओं को मजबूर किया कि वो फौरी क़दम उठाएं, जिससे तकनीक की होड़ में EU पीछे न रह जाए, क्योंकि ज़ाहिर था कि ऐसा होगा, तो इसके आर्थिक परिणाम भी निकलेंगे.

जून 2023 में जारी आर्थिक सुरक्षा रणनीति में क्या था?

EU की जून 2023 में आई आर्थिक सुरक्षा की रणनीति, तीन स्तंभों पर आधारित थी: यूरोपीय संघ की प्रतिद्वंदिता की क्षमता को बढ़ावा देना; EU के भीतर आर्थिक सुरक्षा के जोखिमों को रोकना; और, आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समान विचारधारा वाले देशों के साथ तालमेल करना. इस रणनीति में ऐसे चार ख़तरों की पहचान की गई थी, जिनका EU को फ़ौरी तौर पर सामना करना पड़ रहा था; आपूर्ति श्रृंखलाओं का लचीला होना; अहम मूलभूत भौतिक और साइबर ढांचे की सुरक्षा; तकनीकी सुरक्षा और तकनीक की चोरी; और, आर्थिक निर्भरता को हथियार बनाकर आर्थिक दबाव डालना. अगर हम इन चारों चुनौतियों को देखें, तो इसमें कोई शक नहीं रह जाता कि ये जोखिम सीधे सीधे रूस और चीन की की तरफ़ इशारा कर रहे थे. इस रणनीति में इस बात को भी रेखांकित किया गया था कि इन जोखिमों से जिस तरह से निपटना है, उससे EU द्वारा खुली अर्थव्यवस्था के लाभहासिल करने में कोई बाधा नहीं आनी चाहिए.

इस रणनीति में इस बात का ज़ोर देकर ज़िक्र किया गया था कि यूरोपीय संघ ने वो कौन से बड़े क़दम उठाए हैं, जो उसकी आर्थिक सुरक्षा को मज़बूत करने वाले हैं. इनके उदाहरणों में नेक्स्टजेनरेश EU, यूरोपीय संघ की औद्योगिक रणनीतिक, क्रिटिकल रॉ मैटेरियल एक्ट, यूरोपियन चिप्स एक्ट और EU के दबाव विरोधी क़दम भी शामिल हैं.

ताज़ा अपडेट

इस रणनीति का ताज़ा अपडटे 2023 की रणनीति को ही आगे बढ़ाने वाला है. इसमें पहले जारी की गई रणनीति को मज़बूत बनाने के लिए की गई पांच नई पहलों को सामने रखा गया है. पहला, EU में आने वाले विदेशी निवेश की और बारीक़ी से पड़ताल करने का प्रस्ताव है. संघ की सुरक्षा और व्यवस्था को सुरक्षित बनाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, ये कहा गया है कि सारे सदस्य देशों को विदेशी निवेश की पड़ताल की ऐसी व्यवस्था अपनानी चाहिए, जिसका देशों के अपने नियमों के साथ टकराव हो. जांच पड़ताल की इस पहल का एक मक़सद ये भी है कि यूरोपीय संघ की उन कंपनियों द्वारा किए जाने वाले निवेश की भी जांच हो, जिनका नियंत्रण किसी और देश के हाथ में हो. दूसरा, ASML के मामले, जिसमें अमेरिका ने नीदरलैंड की सरकार पर चीन को सेमीकंडक्टर के निर्माण की मशीनरी का निर्यात सीमित करने का दबाव बनाया था, का अनुकरण करते हुए, यूरोपीय संघ ने एक नई पहल लागू की है, जिसमें निर्यात पर नियंत्रण को लेकर पूरे EU के बीच तालमेल हो, ख़ास तौर से दोहरे इस्तेमाल वाले सामानों को लेकर. तीसरा, बाहर किए जाने वाले निवेश की पड़ताल, ताकि उनसे EU को नुक़सान हो या फिर अंतरराष्ट्रीय शांति पर नकारात्मक प्रभाव पड़े (इसमें अहम तकनीकों के निर्यात पर विशेष ज़ोर दिया गया है). अब तक ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जो बाहरी निवेश और उनसे यूरोपीय संघ की आर्थिक सुरक्षा को होने वाली संभावित क्षति पर नियंत्रण रखे. इस मामले में यूरोपीय आयोग ने EU से बाहर जाने वाले निवेश की पड़ताल के लिए जांच परख की एक व्यवस्था बनाने के मक़सद से एक श्वेत पत्र भी जारी किया है, जिसमें ऐसी व्यवस्था बनाने के लिए ज़रूरी विश्लेषण पर चर्चा की गई है. इस मामले में प्रक्रिया दो तरह की होगी: सभी भागीदारों से तीन महीने तक सलाह मशविरा करना, और बाहर को जाने वाले निवेश की सदस्य देश द्वारा अगले बारह महीने तक निगरानी करना. इसके आधार पर एक साझा जोखिम मूल्यांकन रिपोर्टतैयार की जाएगी और फिर इसके आधार पर ये फ़ैसला किया जाएगा कि कोई नीतिगत क़दम उठाने की ज़रूरत है या नहीं. चौथा, दोहरे इस्तेमाल वाली तकनीकों के रिसर्च और विकास (R&D) में सहयोग को बढ़ावा देना. इस मामले में एक श्वेत पत्र पहले ही जारी किया जा चुका है. अब, यूरोपीय आयोग ने सार्वजनिक सलाह मशविरे की शुरुआत भी कर दी है. इस मामले में यूरोपीय संघ का लक्ष्य उभरती हुई उन्नत तकनीकों के मामले में अग्रणी बनना है. पांचवां, सेक्टर और सदस्य देशों के स्तर पर, EU ने रिसर्च की सुरक्षा को मज़बूत करने की वकालत की है. यूरोपीय संघ के निर्देशन में इसके सदस्य देशों को ऐसी तकनीकों की चोरी रोकने में मदद की जाएगी, जिन्हें आगे चलकर ख़ुद EU के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किए जाने की आशंका है. इसकी वजह यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की ये बढ़ती हुई आशंका है कि यूरोप से उन्नत तकनीकों को चोरी करके चीन जैसे देशों को भेजा जा रहा है.

जांच पड़ताल की इस पहल का एक मक़सद ये भी है कि यूरोपीय संघ की उन कंपनियों द्वारा किए जाने वाले निवेश की भी जांच हो, जिनका नियंत्रण किसी और देश के हाथ में हो. 

अपडेट का मूल्यांकन

जनवरी में यूरोपीय संघ ने जो अपडेट जारी किया है, इसका लक्ष्य ख़ुद को एक भू-राजनीतिक समूह के साथ साथ एक भू-आर्थिक गुट के तौर पर भी प्रस्तुत करना है. अब वो ज़माने चले गए, जब EU ख़ुद को विशुद्ध रूप से एक ऐसे आर्थिक समूह के तौर पर पेश करता था, जिसके लिए व्यापार सर्वोपरि था. वैसे तो EU की इस रणनीति का मक़सद रूस और चीन पर निशाना साधना है. पर, 2023 के मूल रणनीतिक दस्तावेज़ में केवल रूस (जो यूरोप की सुरक्षा संबंधी फिक्र का मुख्य कारण है) का ज़िक्र किया गया है. वहीं, जनवरी में जारी अपडेट में किसी भी देश का नाम नहीं लिया गया है. इससे, EU डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल और उनकी निश्चितताओं और अनिश्चितताओं की आशंका से निपटने के लिए तैयार है.

निर्यात पर नियंत्रण की आपसी समन्वय वाली व्यवस्थाओं पर ज़ोर देने के पीछे, अमेरिका द्वारा दबाव बनाने की ASML मामले जैसी घटना को दोहराए जाने से बचना है. EU से बाहर जाने वाले निवेश की जांच भी एक दिलचस्प पहल है. लेकिन, इस मामले में यूरोपीय संघ कितना बड़ा क़दम उठा पाता है, ये तो 2025 की गर्मियों में ही जाकर मालूम हो सकेगा. रिसर्च और विकास और तकनीक की चोरी जैसे मामलों में की गई पहल, EU द्वारा भू-राजनीति के मौजूदा दौर में किए गए गंभीर प्रयास हैं.

ये कहा जा सकता है कि यूरोपीय संघ ने अपनी आर्थिक सुरक्षा की रणनीति और उसका अपडेट जारी करके,, ख़ुद को अमेरिका और चीन दोनों से अलग करके पेश किया है

ये कहा जा सकता है कि यूरोपीय संघ ने अपनी आर्थिक सुरक्षा की रणनीति और उसका अपडेट जारी करके,, ख़ुद को अमेरिका और चीन दोनों से अलग करके पेश किया है, और आज की दुनिया में वो अपना अलग रास्ता चुनना चाहता है. EU की शब्दावली में आर्थिक सुरक्षा के जुमले को पेश करके संघ ने अपनी पहचान में क्रांतिकारी बदलावलाने का काम किया है. क्योंकि, इसकी प्रस्तावना ही ऐसा हथोड़ा है, जिनसे यूरोपीय संघ ने व्यापार नीति (EU की क्षमता) और राष्ट्रीय सुरक्षा (सदस्य देशों की क्षमता) के अब तक चले रहे तौर तरीक़ों के विभेद की दीवार गिरा दी है. जहां तक यूरोपीय आयोग और सदस्य देशों की क्षमताओं को आपस में साझा करने का सवाल है, तो आने वाले समय में यूरोपीय संघ के कामकाज पर इसके दूरगामी प्रभाव देखने को मिल सकते हैं

अब आगे क्या?

आज दुनिया में जो उथल-पुथल मची है, उसको देखते हुए यूरोपीय संघ के लिए ऐसा क़दम उठाना ज़रूरी हो गया था. इस साल EU के चुनाव के साथ साथ अमेरिका में भी राष्ट्रपति का चुनाव होना है. इनके नतीजे ही ये तय करेंगे कि यूरोपीय संघ अपनी आर्थिक सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए कैसे क़दम उठाएगा. चूंकि, इस रणनीति के बहुत से प्रावधान बाध्यकारी नहीं, बल्कि सिर्फ़ सलाह की शक्ल में बताए गए हैं. ऐसे में सदस्य देशों को इन पर राज़ी करना ही अपने आप में बड़ी चुनौती होगी. बाध्यकारी नियम, दंड या प्रोत्साहन होने (ये de-risking की एक चिंता पहले से ही है) की वजह से कंपनियों को EU के लक्ष्यों के हिसाब से कारोबार करने के लिए राज़ी करने की चुनौती भी होगी. इस रणनीति को लागू करने के लिए पैसे जुटाना भी एक अहम चिंता होगी. यूरोपीय संघ ने पासा तो फेंक दिया है. अब आने वाला समय ही बताएगा कि उसका ये दांव कैसा पड़ता है.

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