Author : Ninupta Srinath

Published on Sep 12, 2023 Updated 0 Hours ago
कारोबार के टिकाऊ तौर-तरीक़े: अनिवार्य आवश्यकताएं और सटीक रास्ते

पिछले अनेक दशकों से जारी इंसानी गतिविधियों का जलवायु परिवर्तन में बड़ा हाथ रहा है. जलवायु परिवर्तन पर IPCC की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि मानवीय क्रियाकलापों के कारण 1.1 डिग्री सेल्सियस ग्लोबल वार्मिंग से पृथ्वी की जलवायु में अभूतपूर्व परिवर्तन आया है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने जलवायु परिवर्तन के चलते सालाना नुक़सान के 1.3 खरब अमेरिकी डॉलर (वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 0.2 प्रतिशत) के स्तर पर रहने का अनुमान लगाया है. इससे इंसानी तकलीफ़ें बढ़ रही हैं, साथ ही आर्थिक और पर्यावरणीय मोर्चे पर ज़बरदस्त नुक़सान हो रहा है. हाल के अध्ययनों का पूर्वानुमान है कि जलवायु परिवर्तन के व्यापक प्रभाव और ज़्यादा तीखे होंगे. इससे रोकथाम और अनुकूलन (adaptaion) की तात्कालिक ज़रूरत रेखांकित होती है. 

ग्लोबल वार्मिंग को रोकने को लेकर बढ़ती जागरूकता और वैश्विक प्रतिबद्धता के बीच कारोबार जगत अब धीरे-धीरे सिर्फ़ मुनाफ़ाख़ोरी से आगे निकलकर सामाजिक-पर्यावरणीय प्रभाव बनाने की ओर बढ़ रहे हैं. 

ग्लोबल वार्मिंग को रोकने को लेकर बढ़ती जागरूकता और वैश्विक प्रतिबद्धता के बीच कारोबार जगत अब धीरे-धीरे सिर्फ़ मुनाफ़ाख़ोरी से आगे निकलकर सामाजिक-पर्यावरणीय प्रभाव बनाने की ओर बढ़ रहे हैं. आधुनिक उद्यम पूरी चेतना के साथ सतत और टिकाऊ विकास के तीन आंतरिक पहलुओं (आर्थिक/मुनाफ़े, सामाजिक/आम लोग, और पर्यावरण/पृथ्वी) को संतुलित करने पर ध्यान टिका रहे हैं. वो अपने कारोबारी अभ्यासों में विभिन्न पर्यावरणीय मानकों और पर्यावरणीय, सामाजिक, शासन (ESG), और कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (CSR) ढांचों को अपनाकर चुनौतियों पर क़ाबू पाने की कोशिशें कर रहे हैं. कारोबारी संस्थाएं नेट-ज़ीरो संगठन बनने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर रुख़ कर रही हैं. साथ ही एक साझा उद्देश्य की दिशा में काम करने के लिए कर्मचारियों, ग्राहकों, आपूर्तिकर्ताओं और अन्य स्टेकहोल्डर्स के साथ अपने अंतर-संबंधों (interrelationship) में मज़बूती ला रहे हैं. 

हाल ही में IBM द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में शामिल शीर्ष की 10 अर्थव्यवस्थाओं के 51 प्रतिशत प्रतिभागियों (बिज़नेस लीडर्स और CEOs) ने पर्यावरण के मोर्चे पर स्थिर और टिकाऊ तौर-तरीक़ों की अहमियत की वक़ालत की है. इनमें अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम (UK), भारत, फ्रांस, इटली, कनाडा और दक्षिण कोरिया के प्रतिभागी शामिल हैं. हालांकि ESG और CSR ढांचों के माध्यम से टिकाऊ तौर-तरीक़ों की ओर बढ़ना चुनौतियों भरा है. कारोबारी अभ्यासों को शुरू करने की ऊंची आर्थिक लागत के ख़िलाफ़ निर्णायक रूप से न्यूनतम सीमाएं तय करना इन्हीं में से एक है. 

भारतीय संदर्भ में बात करें तो देश के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के उत्तरदायी कारोबार संचालन पर राष्ट्रीय दिशानिर्देश भारत के कॉरपोरेट दायरे में कारोबार के स्थायी तौर-तरीक़ों को बढ़ावा देने के लिए नियमन और रूपरेखाएं तैयार करने की वक़ालत करते हैं.

इसके अलावा, टिकाऊ तौर-तरीक़ों को ज़्यादा से ज़्यादा अपनाने की क़वायदों से उपभोक्ताओं पर बोझ पड़ता है. उन्हें सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार उत्पादों के लिए ऊंची क़ीमतों का भुगतान करना पड़ता है. मिसाल के तौर पर IBM के सर्वेक्षण में शामिल 49 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने टिकाऊ या सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार उत्पादों के लिए ज़्यादा भुगतान करने की जानकारी दी. हालांकि इस तरह की उपभोक्ता कार्रवाई कई मापदंडों पर निर्भर करती है: जैसे वो कहां रहते हैं, उनकी आय का स्तर क्या है और वो कितने जागरूक हैं. बहरहाल, निम्न आय वर्ग से ताल्लुक़ रखने वाले उपभोक्ताओं की एक बढ़ती तादाद ने भी टिकाऊ उत्पादों के लिए अधिक रकम का भुगतान करने की ओर अपना झुकाव दिखाया है. इससे दूरदर्शी ब्रांडों को उपभोक्ता व्यवहार में आए इन रुझानों का लाभ उठाने का मौक़ा मिलता है. 

कंपनियों की प्रतिक्रिया क्या है

होम फर्नीचर के क्षेत्र में विश्व की अग्रणी कंपनी IKEA ने कारोबार के टिकाऊ अभ्यासों को अपनाने के लिए जलवायु वित्त को प्राथमिकता दी है. IKEA ने अपनी गतिविधियों से जलवायु पर पड़ने वाली छाप यानी फुटप्रिंट्स में 5 प्रतिशत की कमी कर ली है. 2021 में ये आंकड़ा 2.72 करोड़ टन था जो 2022 में घटकर 2.58 करोड़ टन पर आ गया. इसके अलावा कंपनी ने अपनी पूरी आपूर्ति मूल्य श्रृंखला में पैदा बाहरी वायु प्रदूषण का भी ख़ुलासा किया है. IKEA ने अपने खाद्य खंड में पेड़-पौधों पर आधारित भोजन का 50 प्रतिशत हिस्सा सुनिश्चित कर दिया है. साथ ही अपनी मूल्य श्रृंखला में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने का वादा भी किया है.  

NIKE ने टिकाऊ कारोबारी अभ्यासों को शामिल करने के लिए इसी तरह के प्रयास किए हैं. कंपनी की ESG रिस्क रेटिंग 19.6 यानी बहुत कम जोख़िम वाली है. ये उद्योग के हिसाब से ESG के विशिष्ट प्रमुख जोख़िमों के प्रति इसके ख़ुलासों की माप करती है. साथ ही ये भी बताती है कि कंपनी इसका प्रबंधन कैसे करती है. 

भारतीय संदर्भ में बात करें तो देश के कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के उत्तरदायी कारोबार संचालन पर राष्ट्रीय दिशानिर्देश भारत के कॉरपोरेट दायरे में कारोबार के स्थायी तौर-तरीक़ों को बढ़ावा देने के लिए नियमन और रूपरेखाएं तैयार करने की वक़ालत करते हैं. इसमें इस बात को अनिवार्य किया गया है कि कारोबारों द्वारा उपयोग की जाने वाली तकनीक और प्रक्रियाएं संसाधन-कुशल और कम कार्बन वाली होनी चाहिए. इसके अलावा दिशानिर्देशों से साफ़ है कि कारोबारों को प्राकृतिक पर्यावरण और उसके स्टेकहोल्डर्स पर अपने संचालनों के प्रभाव के लिए ज़िम्मेदार और पारदर्शी होना चाहिए. भारत में कंपनियों को पृथ्वी के सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक और पर्यावरणीय के साथ-साथ पारिस्थितिकी से जुड़े पहलुओं पर पड़ने वाले किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को न्यूनतम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. 

इलेक्ट्रिक वाहन (EV) का निर्माण करने वाली बेंगलुरु स्थित स्टार्ट-अप कंपनी एथर एनर्जी ने इलेक्ट्रिक वाहन की ओर आगे बढ़ने के लिए एक एकीकृत द्वि-आयामी दृष्टिकोण लागू किया है. इसके लिए स्क्रैच से चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर नेटवर्क का निर्माण करने के साथ-साथ स्थानीय, टिकाऊ आपूर्ति श्रृंखलाएं विकसित करने पर ध्यान दिया गया है. इस प्रकार कंपनी ने मुख्य रूप से व्यावसायिक रणनीति के दो पहलुओं पर ज़ोर दिया है, जिनमें उच्च गुणवत्ता वाले, कुशल और टिकाऊ उत्पादों का निर्माण और प्रचलन से बाहर हो गए उत्पादों का दोबारा उपयोग और रिसायक्लिंग की क़वायद शामिल हैं. 

हरित परिवर्तन के रास्ते में चुनौतियों से जूझ रहे व्यवसायों के लिए ग़ैर-लाभकारी संस्थाओं के साथ समूह बनाना एक व्यवहार्य समाधान साबित हो सकता है.

हालांकि, ऐसे प्रयासों के बावजूद चुनौतियां बरक़रार हैं. जलवायु परिवर्तन किसी कारोबार की पूरी आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित करता है. इसके साथ संक्रमण से जुड़े जोख़िम और घटना-संचालित, तीखे और दीर्घकालिक भौतिक जोख़िम भी आते हैं. इनमें पर्यावरणीय कारक (जैसे पानी की कमी), आपूर्ति की सुरक्षा (विक्रेताओं की ग़ैर-विश्वसनीयता), रसद (गोदाम और कोल्ड स्टोरेज परिवहन), उत्पादों की बदलती मांग (उपभोक्ताओं की पसंद और प्राथमिकताओं के आधार पर), सामाजिक कारक (सांप्रदायिक अशांति), ख़ुद कार्यबल (कर्मचारी हड़ताल), और व्यवसाय की लाभदायकता शामिल हैं.  

आपूर्ति श्रृंखला की अगुवाई करने वाले, जलवायु अनुकूलन के लिए सारतत्व की भावना पैदा करके इस क़वायद को काफ़ी आगे बढ़ा सकते हैं. इस कड़ी में जोख़िम प्रबंधन और आकस्मिक मॉडलिंग का भरपूर लाभ उठाकर, और कारोबार के लिए जोख़िमों और अवसरों की निरंतरता के लिए कार्यों का मिलान करके (उदाहरण के लिए, ताक़त-कमज़ोरी-अवसरों-ख़तरों की रूपरेखाओं के माध्यम से) भी आगे बढ़ा जा सकता है. हरित परिवर्तन के रास्ते में चुनौतियों से जूझ रहे व्यवसायों के लिए ग़ैर-लाभकारी संस्थाओं के साथ समूह बनाना एक व्यवहार्य समाधान साबित हो सकता है. ख़र्चों को साझा करने, CSR के दायरे को व्यापक बनाने और एक-दूसरे के अनोखे कौशलों और क्षमताओं का दोहन करने से किसी उद्यम की उत्पादक, आवंटनीय (allocative) और गतिशील दक्षता में बढ़ोतरी हो सकती है.

कारोबार के टिकाऊ तौर-तरीक़ों में परिवर्तन के लिए उपभोक्ताओं और उत्पादकों द्वारा सामूहिक प्रयासों की दरकार होती है. मिसाल के तौर पर स्वच्छ और हरित परिवहन के लिए EV का उत्पादन और संचालन, वैधानिक और कारोबारी दायरों में पर्यावरण-केंद्रित अधिकारों को बढ़ावा देते हैं. 

चुनौतियों पर क़ाबू पाना

वैसे तो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए हरित परिवर्तन आवश्यक हैं, लेकिन इनके साथ कई नुक़सान भी जुड़े हैं. इन प्रतिकूलताओं में बढ़े हुए निवेश की आवश्यकता और उत्पाद की उच्च क़ीमतों से लेकर टेक्नोलॉजी संबंधी मुद्दों और दावों की विश्वसनीयता पर संदेह शामिल हैं. आगे सुझाए गए क़दम इन चुनौतियों पर क़ाबू पाने में मदद कर सकते हैं: 

  1. हरित परिवर्तन की फाइनेंसिंग: कारोबारी संगठन हरेक वित्तीय वर्ष के लिए अनिवार्य तौर पर CSR और/या ESG गतिविधियों के लिए अलग बजट आवंटित कर सकते हैं. समर्पित बजट आवंटन सिर्फ़ नियामक और क़ानूनी अनुपालन के साथ ही संभव है. इससे संगठनात्मक और स्टेकहोल्डर्स के स्तर पर टकराव हो सकता है. बैलेंस शीट्स पर दिखाई देने वाले प्रयास भी कंपनियों को अधिक हरित निवेश आकर्षित करने, एक सुखद चक्र तैयार करने और टिकाऊ कारोबारी अभ्यासों के लिए दीर्घकालिक प्रतिबद्धता को कारगर करने में सक्षम बनाएंगे. 
  2. मूल्य वृद्धि को जायज़ ठहराना: जैसा कि IBM सर्वेक्षण से पता चला है, विकासशील देशों में भी लोग धीरे-धीरे जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होते जा रहे हैं. अब वो टिकाऊ उत्पादों पर अधिक ख़र्च करने को तैयार हैं. सोशल मीडिया मार्केटिंग के उभार के साथ चतुराई भरी, लेकिन नैतिकतापूर्ण मार्केटिंग तौर-तरीक़े इस उपभोक्ता आधार का और विस्तार कर सकते हैं. जलवायु को लेकर जागरूक उपभोक्ता, सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार उत्पादों के लिए अधिक क़ीमतों का भुगतान करने को तैयार होंगे. 
  3. टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर बाधाओं पर क़ाबू पाना: वैसे तो काग़ज़ पर काम करने की पुरानी पद्धति अब भी प्रचलित और उपयोगी है, लेकिन टेक्नोलॉजी अब लाख गुणा आगे बढ़ चुकी है, जिसकी मदद से धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार से बचा जा सकता है. हरित होने के लिए उचित सुरक्षा उपायों के साथ टेक्नोलॉजी पर अधिक व्यापक निर्भरता की आवश्यकता है. 
  4. हरित क़वायदों में धोखाधड़ी (greenwashing) से जुड़ी चिंताओं का समाधान: संगठनों को ब्रांड जागरूकता और भावनात्मक मार्केटिंग पर ज़ोर देना चाहिए. इससे वो अपने सतत और टिकाऊ अभ्यासों के बारे में उपभोक्ताओं को संतुष्ट कर पाएंगे. उपभोक्ताओं को समझाने के लिए समय, प्रयास और मल्टी-स्टेकहोल्डर जुड़ाव की दरकार होगी, इससे आख़िरकार समन्वय और व्यावसायिक तालमेल में बढ़ोतरी होगी.  

विश्व के ज़्यादातर कारोबारों में परंपरागत स्वरूप के लाभ कमाने वाले, राजस्व पैदा करने वाले और संतोषजनक कारोबारी मॉडलों का उपयोग किया जाता है. इन व्यवसायों में टिकाऊ और स्थायी कारोबारी अभ्यासों को शामिल करने के लिए अभी एक लंबा रास्ता तय करना बाक़ी है. सार्वभौमिक व्यवसाय स्थिरता की दिशा में क़दम बढ़ाने के लिए अनेक किरदारों वाले दृष्टिकोण और क़ानूनी प्रवर्तन की ज़रूरत होगी. इसके साथ-साथ अनुकूल सरकारी नीतियों के समर्थन से नियामक अनुपालना आवश्यकताएं भी ज़रूरी होंगी. डिफॉल्टरों के लिए कड़ी सज़ा और विशिष्ट प्रोत्साहनों की भी समान रूप से दरकार होगी. 


निनुप्ता श्रीनाथ ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में इंटर्न हैं

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