Author : Ramanath Jha

Expert Speak Urban Futures
Published on Jun 21, 2024 Updated 0 Hours ago

ये सही है कि निगरानी टेक्नोलॉजी का काफी सकारात्मक परिणाम भी देखने को आया है लेकिन, इसकी वजह से लोगों की निजता में हो रहे दख़ल को लेकर काफी सवाल खड़े हो रहे हैं.

शहरों में निगरानी वाले कैमरे: प्राइवेसी पर ख़तरा?

हमारे रोज़मर्रा के जीवन में टेक्नोलॉजी अपनी व्यापक उपस्थिति को लगातार बढ़ाते जा रही है. ऐसा ही एक क्षेत्र है घरों, दफ़्तरों, व्यापार, सड़कों, एवं सार्वजनिक स्थलों पर क्लोज़ सर्किट टेलीविज़न यानी (सीसीटीवी) द्वारा की जाने वाले वीडिओ निगरानी. इस नतीजा ये हो रहा है कि शहरी जीवन और यहां के सार्वजनिक जगहों के प्रबंधन में टेक्नोलॉजी की भूमिका काफी बढ़ती जा रही है, या यूं कहें कि वो मुख्य होती जा रही है. लेकिन, इसका एक कमज़ोर पक्ष भी है और वो ये कि इन सीसीटीवी के द्वारा लगातार की जाने वाली निगरानी के कारण नागरिकों के निजी जीवन और स्पेस में टेक्नोलॉजी का दखल बढ़ता जा रहा है. जो लोगों की स्वतंत्रता एवं निजता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है. 

 सीसीटीवी के द्वारा लगातार की जाने वाली निगरानी के कारण नागरिकों के निजी जीवन और स्पेस में टेक्नोलॉजी का दखल बढ़ता जा रहा है. जो लोगों की स्वतंत्रता एवं निजता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है. 

निजी जगहों पर निगरानी कैमरों के बढ़ते उपयोग में वृद्धि की प्रवृत्ति देखी जा रही है. ज्यादा से ज्यादा घरों में लोग सुरक्षा कैमरा इंस्टॉल  करा रहे है. वैश्विक तौर पर, पहले 122.1 मिलियन ऐसे घर थे जो की सुरक्षा कैमरा इस्तेमाल में ला रहे थे, जिनका वर्ष 2027 तक बढ़कर 180.7 मिलियन घरों तक विस्तार कर लिये जाने का अनुमान है. उन परिवारों के लिए, जहां घर के सभी सदस्य काम करने के लिए बाहर जाते हैं, वहाँ घर एवं संपत्ति की सुरक्षा के लिए ये सिक्योरिटी  कैमरे, एक ऐसा साधन है जो बगैर किसी बाधा के लगातार उनके घर और संपत्ति की निगरानी करता है. 

इंट्रूडर या घुसपैठिया अलार्म से लैस सीसीटीवी कैमरा, और भी बेहतर काम करते हैं, और उल्लेखनीय तौर पर घरों की सुरक्षा को और भी बेहतर बनाते हैं. इसके अलावा, सीसीटीवी में मुहैया कराई गई “लाइव फीड ऐप” से खासकर, जब कोई दंपत्ति अपने बच्चों को अकेले छोड़ कर काम पर आते हैं, उनकी अनुपस्थति में, बच्चों एवं घर की देखभाल करने वाले हाउस हेल्प पर नज़र रखने में सहायक साबित होता है. इसमें कोई शक नहीं है कि, घर से लगातार जुड़े रहने से, कामकाजी दंपत्ति को काफी मानसिक शांति मिलती है. 

बिल्कुल घर की ही तरह से, दुनियाभर के दफ़तरों और व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी अपने कैंपस और परिसर व उसकी संपत्ति की निगरानी एवं सुरक्षा के लिए इस प्रकार की तकनीकी सहायता पर अधिक से अधिक आश्रित होते जा रहे हैं. किसी भी व्यावसायिक प्रतिष्ठान में, चतुराई पूर्वक तैयार किया गया सीसीटीवी सिस्टम, वास्तविक समय के आधार पर व्यापक कवरेज प्रदान करता है, जिसे दुनिया के किसी भी कोने में रहते हुए, सरलतापूर्वक देखा जा सकता है. बढ़ी हुई एवं बेहतर सुरक्षा के अलावा, कम बीमा लागत एवं ज़रूरत पड़ने पर, दुराचार सरीखी घटनाओं के मामले में बेहतर गुणवत्ता साक्ष्य के अलावा, कर्मचारियों के व्यवहार आदि की निगरानी ने कंपनियों, दफ़्तरों, रेस्तरां, और कॉल सेंटरों जैसे कार्यस्थलों में, स्टाफ की गुणवत्ता को और भी बेहतर किया है. इस प्रकार की निगरानी व्यवस्था को हेल्थकेयर सुविधाओं और स्कूलों आदि में भी स्थापित किया गया है. इस प्रकार की निगरानी सुविधाओं की मदद से, बेहतर प्रदर्शन के अलावा भी कई अन्य स्तर पर सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं.

 

बढ़ती निगरानी 

सड़कों की सुरक्षा निगरानी के लिये इस्तेमाल में लाए जा रहे ये निगरानी कैमरा तो और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण है एवं इस लेख में चर्चा का प्रमुख विषय है. सड़क पर लगाये गये कैमरे एक प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं जिसे स्वचालित डेटा संग्रह के उद्देश्य से सड़कों पर रणनीतिक रूप से लगाया जाता है. इसमें कोई शक नहीं है कि, सड़कों पर लगे ये कैमरे एक अवरोध की तरह से काम करते हैं. ये किसी संभावित गलत या आपराधिक कार्य करने वाले व्यक्ति को, अपनी सीमा लांघने से रोकते हैं और अपराधियों को ग़ैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने से बचने की चेतावनी देते है. ये सार्वजनिक जगहों को और भी बेहतर एवं सुरक्षित बनाते है. 

इसके अलावा, ये सड़कों पर हो रही घटनाओं को रिकॉर्ड करके सुरक्षित संग्रहित करने का भी काम करत हैं ताकि ज़रूरत पड़ने पर इसकी समीक्षा की जा सके. चूंकि, साक्ष्य के तौर पर, इकट्ठा किये गये विज़ुअल्स या साक्ष्य, सबसे ठोस प्रमाण होते हैं, इसलिए यह किसी अपराध के समाधान के लिए एवं अपराधी को दोषी ठहराने एवं सजा दिला पाने में काफी सहायक सिद्ध होता है. सीसीटीवी ना केवल किसी अपराधी की पहचान करने में बल्कि, अपराध स्थल पर मौजूद गवाह की पहचान करने में भी सहायक साबित होता है. अपराध रोक पाने में कैमरों की उपयोगिता एवं उसकी प्रामाणिकता के संबंध में किए गए अध्ययन द्वारा ये निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि लगभग 65 प्रतिशत मामलों में सीसीटीवी द्वारा मिले सबूत काफी मददगार साबित हुए हैं और वो ड्रग्स, हथियार रखने, एवं धोखाधड़ी जैसी घटनाओं को छोड़कर, अन्य सभी तरह के अपराधों की पहचान करने में काफी सहायक साबित होते हैं. एक तरफ जहां, आपराधिक घटनाओं के चश्मदीद गवाह कई दफा पक्षपाती हो सकते हैं एवं हमेशा सच्चाई सामने नहीं ला पाते है, वहीं कई बार, उपलब्ध वीडियो रिकॉर्ड भी साफ नहीं होते हैं, लेकिन वे पक्षपाती तो कभी नहीं होते. इसलिए इस प्रकार के सबूतों की विश्वसनीयता, अमूमन संदेह से परे होते हैं या उनपर शक नहीं किया जाता है.

सड़क पर लगाये गये कैमरे एक प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं जिसे स्वचालित डेटा संग्रह के उद्देश्य से सड़कों पर रणनीतिक रूप से लगाया जाता है. इसमें कोई शक नहीं है कि, सड़कों पर लगे ये कैमरे एक अवरोध की तरह से काम करते हैं.

चूंकि कैमरा 24 घंटे अपनी ड्यूटी पर सजग तैनात एवं तत्पर रहते है, तो हर उस स्थिति में, चाहे सड़कें कितनी ही वीरान और सुनसान अथवा भीड़ भाड़ वाली क्यों ही न हो, इसके बावजूद, सड़क पर चलने वाले लोगों को सुरक्षित होने का एक मनोवैज्ञानिक बोध कराती है. इनकी चौबीसों घंटे की उपस्थिति और सजगता किसी भी सूरत में, बेहतर से बेहतर मानव उपस्थिति से, इसकी तुलना नहीं की जा सकती है. सतत् उपस्थिति के अलावा, जो एक और फायदा है वो ये कि, इन कैमरों को हर उस जगह और बिल्कुल ऐसे आदर्श कोणों पर लगाया जा सकता है कि सबसे स्पष्ट और नज़दीकी तस्वीरें दिखा सकें. इसके अलावा, इनकी निगरानी किसी एक निर्धारित केन्द्रीय जगह से की जा सकती है. कई शहरें तो अपने यहाँ एआई-सक्षम कैमरों (एआई तकनीक़) का इस्तेमाल करती हैं, जो यातायात प्रबंधन में, रियल टाइम डेटा संग्रहण के द्वारा संवेदनशील सहयोग मुहैया कराती है. इसके अलावा इन कैमरों से यातायात निगरानी के दौरान लाल बत्ती की अवहेलना करने की घटना, तेज़ गति से गाड़ियों को चलाना, स्टॉप संकेतों को न मानना, व खतरनाक लेन को लापरवाही पूर्वक काटना जैसे होने वाले अपराधों को पकड़ने जैसी अतिरिक्त सुविधा भी देते हैं. 

हवाईअड्डों, रेलवे स्टेशन, स्टेडियम, और विशाल भीड़-भाड़ वाली जगहों के उचित नियंत्रण आदि में सड़क निगरानी कैमरे समान रूप से काफी ज़रूरी हैं. कैमरा इन जगहों पर किसी भी प्रकार की सुधारात्मक उपायों की त्वरित अनुमति देते हैं और भगदड़ जैसी अकस्मात होने वाली दुर्घटनाओं को होने से रोकते हैं. यातायात एवं परिवहन में भी, ये यात्रियों की आवाजाही  पर भी नज़र रखते हैं और निर्णय लेने वाले विशेषज्ञ अधिकारियों को भीड़ कम करने एवं सुगम यातायात व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये अमूल्य डेटा मुहैया कराते हैं. चंडीगढ़ में कराये गए एक अध्ययन से पता चलता है कि सड़कों पर लगे कैमरों की वजह से, परिवहन की टिकटों में काफी बढ़त देखी गई है. इनकी मदद से सरकारी कर्मचारियों के निष्क्रिय अथवा सक्रिय (किराया या रिश्वत मांगने) जैसी असामाजिक और ग़ैर-पेशेवर गतिविधियों को भी पकड़ा जा सकता है. सारांश में, एक तरफ जहां इस तरह के दूरस्थ या रिमोट से निगरानी करने वाली तकनीक़, ज़मीन पर किये जा रहे कामों की जगह नहीं ले सकती है और एक पूर्ण विकल्प नहीं बन सकती है, वहीं ये एक बेहतरीन पूरक साधन ज़रूर साबित हो सकती है. 

हवाईअड्डों, रेलवे स्टेशन, स्टेडियम, और विशाल भीड़-भाड़ वाली जगहों के उचित नियंत्रण आदि में सड़क निगरानी कैमरे समान रूप से काफी ज़रूरी हैं. कैमरा इन जगहों पर किसी भी प्रकार की सुधारात्मक उपायों की त्वरित अनुमति देते हैं और भगदड़ जैसी अकस्मात होने वाली दुर्घटनाओं को होने से रोकते हैं.

सड़कों और व्यावसायिक जगहों की लगातार निगरानी हमारी दिनचर्या का एक अहम हिस्सा बनता जा रहा है, लेकिन ये लोगों के जीवन के तौर-तरीकों में उभरते खतरों के बारे में भी सवाल खड़े करता है. बड़े स्तर पर देखा जाये तो निगरानी का ये पूरा उपक्रम आम लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं गतिविधियों पर काफी गंभीर प्रभाव डालता है. ऑरवेलियन थ्योरी के मुताबिक इस बात का भय ज़ाहिर किया जा रहा है कि सीसीटीवी निगरानी के ज़रिये, लगातार लोगों पर निगरानी या नज़र रखने की प्रक्रिया कहीं न कहीं लोगों के साथ वर्चुअल तरीके से बुरा व्यवहार करने या होने का रास्ता खोलती है. सीसीटीवी के प्रभाव और जनता के निजी स्पेस की रक्षा के बीच एक उचित संतुलन को लेकर राजनीतिक बहस भी छिड़नी शुरू हो गयी है.

निगरानी प्रौद्योगिकी अपने प्रसार के क्षेत्र में दिनों-दिन बेहतर एवं व्यापक होती जा रही है, निजता (गोपनीयता) में दख़ल अथवा आक्रमण के संबंध में उठ रहे सवाल अब काफी प्रासंगिक हो गये हैं. इस बात में कोई शक नहीं है कि सार्वजनिक स्थलों पर होने वाली  निगरानी ने लोगों के जीवन के निजी क्षणों और जगहों को भी काफी सीमित कर दिया है. जिस वक्त से कोई व्यक्ति अपने घर की दहलीज़ से कदम बाहर सड़क पर निकालता है, तब से लेकर जबतक वो व्यक्ति चाहे वो महिला हो या पुरुष घर वापिस नहीं आ जाता है, उस वक्त़ तक वो पूरी तरह से कैमरे की सख्त़ निगरानी में रहता है. चाहे कोई पार्क में किसी मित्र से बातचीत कर रहा हो, समूह में चुटकुले सुना रहा हो या किसी विषय पर अपनी राय साझा कर रहा हो – इस बात की पूरी संभावना है कि ये सारी घटनाएं या बातचीत, एक सार्वजनिक संपत्ति बन जाती है. उन्नत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एवं औज़ारों या उपकरणों की लागत में नाटकीय गिरावट के साथ, आज के समय में छोटे व अच्छी क्वॉलिटी वाले उपकरणों लगाना काफी आसान है जो पूरी तरह से छिपे होते हैं और आसानी से लोगों की नज़र में नहीं आते हैं और रियल टाइम में घटने वाली घटनाओं को रिकॉर्ड और कंप्यूटर पर बड़ी ही आसानी से कभी भी और कहीं भी ट्रांसमिट कर सकते हैं. 

इन निगरानियों का लोगों के मन मस्तिष्क पर काफी ‘गहरा प्रभाव’ पड़ सकता है.  जिसके परिणामस्वरूप मानव व्यवहार में परिवर्तन आ सकता है, और लोग व्यक्तिगत सुरक्षा के मद्देनज़र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या शांतिपूर्ण विरोध जैसे बुनियादी अधिकारों के प्रयोग से बचने का निर्णय ले सकते हैं. इसके अलावा, इस बात की भी डर या चिंता है कि सार्वजनिक निगरानी, सामाजिक भेदभाव को बनाए रखने में भी सहायक बन सकती है. जब अल्गोरीदम को पक्षपातपूर्ण डेटा से फीड कर दिया जाता है, तो वो डेटाओं के भीतर के पूर्वाग्रह को और मज़बूत करने का काम कर सकते हैं और ऐसे में जब इस संबंध में कानून बनाये या लागू किये जाएंगे तो मुमकिन है कि वो अनुचित विसंगतियों को बढ़ावा देंगे.  

 

आगे की राह 

इसलिए, एक तरफ जहां सार्वजनिक स्थानों पर होने वाली निगरानी से काफी सकारात्मक बातें सामने आती है, वहीं, निजी डेटा का एक काफी बड़ा संग्रह पुलिस प्रशासन को उपलब्ध हो जाता है. और इस बात का दावा बिल्कुल भी नहीं किया जा सकता है कि इन डेटाओं का इस्तेमाल कभी भी व्यक्तियों अथवा उत्पीड़न के शिकार लोगों के लिए नहीं किया जाएगा. सरकार ने निगरानी कैमरों और प्रशासन की प्रणालियों के बीच गोपनीयता से संबंधित खाई की पहचान की है जिसका नतीजा अवांछनीय निजता के उल्लंघन के रूप में हो सकता है. इसलिए, ऐसी गोपनीय डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित कानून का होना काफी आवश्यक हो जाता है. 

सार्वजनिक प्राधिकरणों को चाहिए कि डेटा संग्रह एवं उनके किसी प्रकार के उल्लंघन से बचने के लिए, सरकारी एवं सुरक्षा एजेंसियों के लिए नीतिगत दिशा-निर्देशों को लागू किया जाए. जुर्माने से संबंधित एक काफी महत्वपूर्ण सलाह ये भी रही है कि निजी डेटा से छेड़छाड़ अथवा गलत इस्तेमाल करने की स्थिति में, पीड़ित व्यक्ति को भारी भरकम जुर्माना दिये जाने का प्रावधान होना चाहिए. ऐसे सभी व्यक्तिगत अथवा निजी डेटा जिसकी कोई ज़रूरत नहीं है, उनको तुरंत नष्ट कर दिया जाना चाहिए. एक तरफ जहां चंद लोकतांत्रिक देश गोपनीयता कानून के विस्तार की ओर कदम बढ़ा रहे हैं, वहीं छोटे-छोटे व्यवसायी और निजी उद्यम कर रोजी रोटी कमाने वाले लोग, सबसे अधिक अनियंत्रित होते दिख रहे हैं. ये स्पष्ट है कि तकनीकी प्रगति, सार्वजनिक निगरानी, और गोपनीयता कानून के बीच आने वाले समय में चूहे और बिल्ली का खेल सतत् जारी रहने वाला है.   

 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.