उत्तर कोरिया के परमाणु मिसाइल कार्यक्रम को अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया की तमाम सरकारें अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा मानती आई हैं, और इस ख़तरे से निपटने के लिए कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त करने का प्रयास करती रही हैं. जब से जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं, तब से अमेरिका, जापान, और दक्षिण कोरिया ने आपस में एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे वो उत्तर कोरिया की चुनौती से मिलकर निपट सकें.
16 अप्रैल 2020 को सुगा योशिहिडे की अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ शिखर वार्ता हुई थी. इस सम्मेलन में भी उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों के ख़ात्मे का विषय प्रमुखता से उठा था. इससे पहले 3 फरवरी 2021 को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून के साथ टेलीफ़ोन पर बातचीत के दौरान, जो बाइडेन ने उत्तर कोरिया को परमाणु हथियारों से विहीन करने के विषय पर नज़दीकी सहयोग करने पर सहमति जताई थी. इसके साथ साथ उन्होंने उत्तर कोरिया की चुनौती से निपटने के लिए अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान के बीच त्रिपक्षीय सहयोग को बढ़ाने की ज़रूरत को भी स्वीकार किया था.
किम जोंग उन को लगता है कि परमाणु हथियार होने से देश के अधिकारियों और उत्तर कोरिया की जनता की उनके प्रति वफ़ादारी सुनिश्चित होती है, और इससे उन्हें देश पर अपना शिकंजा कसने में भी मदद मिलती है.
जब 2 अप्रैल 2021 को अमेरिका के मेरीलैंड राज्य के एनापोलिस शहर में जापान के राष्ट्रीय सुरक्षा सचिवालय के महासचिव शिगेरू किटामारू ने अपने दक्षिण कोरियाई और अमेरिकी समकक्षियों, सुह हून और जेक सुलीवन के साथ बातचीत की थी, तो इन वार्ताओं के दौरान भी उत्तर कोरिया को परमाणु शक्ति विहीन करने के विषय पर प्रमुखता से से चर्चा हुई थी. एनापोलिस में तीनों ही देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों ने उत्तर कोरिया के परमाणु शक्ति विस्तार को सघन त्रिपक्षीय सहयोग के माध्यम से रोकने पर सहमति ज़ाहिर की थी.
किम जोंग उन का समीकरण
हालांकि, इस समय उत्तर कोरिया अपने सैन्य परमाणु कार्यक्रम को लेकर महत्वाकांक्षी रुख़ अपनाए हुए है. कोरिया की वर्कर्स पार्टी की आठवीं पार्टी कांग्रेस (5 जनवरी से 12 जनवरी 2021) के दौरान, उत्तर कोरिया के तानाशाह किम ने ‘देश की परमाणु शक्ति के गठन को पूर्ण करने’ का देश के इतिहास की सबसे महान उपलब्धि के रूप में बखान किया था.
किम जोंग उन ने घोषणा की थी कि उत्तर कोरिया ने हाइड्रोजन बम बनाने का एक कार्यक्रम पहले ही पूरा कर लिया है और उसने एक अंतर महाद्वीपीय (इंटर-कॉन्टिनेंटल) मिसाइल का भी सफल परीक्षण कर लिया है. किम ने छोटे और मारक परमाणु हथियार विकसित करने की योजना की भी घोषणा की थी. इस योजना के तहत पनडुब्बी और ज़मीन से दाग़ी जा सकने लायक़ अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBMs), ज़मीन के भीतर से लॉन्च किए जा सकने वाले छोटे मारक परमाणु हथियारों, आवाज़ से भी तेज़ गति से उड़ान भरने वाले हथियारों, परमाणु शक्ति से चलने वाली पनडुब्बियां, पनडुब्बियों से दाग़ी जा सकने वाली बैलिस्टिक मिसाइलें, सैन्य जासूसी सैटेलाइट और उच्च स्तर के निगरानी वाले ड्रोन विकसित करने की योजना का भी एलान किया था. किम ने देश की ‘रक्षा के उद्देश्य’ से और परमाणु हथियार विकसित करने की ख़्वाहिश भी ज़ाहिर की थी.
उत्तर कोरिया द्वारा अपने परमाणु हथियार नष्ट करने की कोशिशों का विरोध करने की वजह का आकलन करना मुश्किल नहीं है. किम जोंग उन को लगता है कि परमाणु हथियार होने से देश के अधिकारियों और उत्तर कोरिया की जनता की उनके प्रति वफ़ादारी सुनिश्चित होती है, और इससे उन्हें देश पर अपना शिकंजा कसने में भी मदद मिलती है. परमाणु हथियारों को लेकर किम का एक आकलन ये भी है कि परमाणु हथियारों ने दुनिया की इकलौती सुपर पावर अमेरिका को उत्तर कोरिया के ऊपर किसी तरह की सैन्य कार्रवाई के बारे में सोचने से भी रोका हुआ है. इसके साथ साथ, परमाणु क्षमता वाली मिसाइलों से उत्तर कोरिया को अपने पड़ोसियों यानी जापान और दक्षिण कोरिया के ऊपर बढ़त भी मिली हुई है.
इस बात के तमाम दस्तावेज़ मौजूद हैं कि जापान हमेशा से ही उत्तर कोरिया से ये अपेक्षा करता रहा है कि वो अपनी कम और मध्यम दूरी वाली मिसाइलों के परीक्षण पर रोक लगा दे.
एक बात ये भी है कि उत्तर कोरिया के पास इस समय अपने परमाणु हथियारों का कोई और विकल्प भी नहीं है. ज़मीनी हक़ीक़त ये कि उत्तर कोरिया अब अपने पुराने सहयोगी देशों रूस और चीन से ये उम्मीद नहीं कर सकता कि वो उसके रक्षा संसाधनों के आधुनिकीकरण में मदद करेंगे. रूस और चीन के दक्षिण कोरिया से अच्छे संबंध होने, और उत्तर कोरिया की मदद करने पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंध लगने की आशंका के हवाले से दोनों ही देशों ने उत्तर कोरिया को आधुनिक हथियार उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया है. ऐसी परिस्थितियों में उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों की मदद से बड़े सस्ते में अपनी हिफ़ाज़त का इंतज़ाम कर पाता है. वर्ल्ड मिलिट्री एक्सपेंडिचर ऐंड आर्म्स ट्रांसफर 2019 रिपोर्ट के अनुसार, आज उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया की तुलना में उसके दसवें हिस्से के बराबर रक़म ही अपनी सेनाओं पर ख़र्च करता है. उत्तर कोरिया का वार्षिक सैन्य व्यय लगभग 3.6 अरब डॉलर सालाना है; ये रक़म उसके सकल वार्षिक उत्पाद का 13.4 से 23.3 प्रतिशत के बराबर बैठती है. उसकी तुलना में दक्षिण कोरिया हर साल सेनाओं पर क़रीब 34.8 अरब डॉलर ख़र्च करता है और ये रक़म उसकी कुल GDP का महज़ 2.6 फ़ीसद ही है.
आगे का रास्ता क्या है?
इन ज़मीनी सच्चाइयों को देखते हुए कोई भी अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया को यही सलाह देगा कि वो मिलकर एक ऐसी बेहतर रणनीति बनाएं, जो उत्तर कोरिया की चुनौती से निपटने में असरदार साबित हो. वो ऐसी व्यवस्थाएं विकसित कर सकते हैं, जिससे किम जोंग उन की हुकूमत को सुरक्षा का अधिक भरोसा दे सके. तभी वो अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को छोड़ने को राज़ी होंगे. अमेरिका ने हाल के दशकों में बराक ओबामा और डॉनल्ड ट्रंप के शासन काल में, उत्तर कोरिया से जो वार्ताएं की हैं, उनके अनुभव बताते हैं कि उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगाने की कूटनीति बिल्कुल भी काम नहीं करती है.
ऐसे में बेहतर शायद ये होगा कि तीनों देश ख़ुद ही आपस मिलकर उत्तर कोरिया को बेहतर संबंधों का ऐसा प्रस्ताव दें, जिसमें प्रतिबंधों से रियायत का विकल्प भी शामिल हो. इन प्रस्तावों की मदद से वो उत्तर कोरिया को अपने परमाणु हथियारों का और विकास करने से रोकने और परमाणु हथियारों का अपना ज़ख़ीरा कम करने को राज़ी करने की कोशिश करें. ऐसा विकल्प अपनाना सभी संबंधित पक्षों के लिए जीत होगी. इसके ज़रिए किम जोंग उन की सरकार को भी उत्तर कोरिया की सुरक्षा की पर्याप्त गारंटी मिल सकेगी.
जब किम जोंग उन ने अपने देश को कोरोना वायरस से बचाने के लिए सीमाओं पर सख़्त पाबंदियां लगाईं तो उससे हालात और भी बिगड़ गए हैं. ऐसे में अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया आगे बढ़कर उत्तर कोरिया की आर्थिक मदद कर सकते हैं.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के साथ शिखर वार्ता के दौरान किम जोंग उन ने पहले ही योंगब्योन में अपने परमाणु केंद्र को ख़त्म करने पर चर्चा करने का प्रस्ताव रखा था. इसके बदले में किम जोंग उन, अमेरिका से भी इसी से मिलते जुलते क़दम की अपेक्षा कर रहे थे. उत्तर कोरिया ने अपने बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षण पर भी रोक लगाने पर सहमति जताई थी. प्रासंगिक रूप से ऐसा प्रस्ताव जापान के लिए भी मुफ़ीद होगा. जापान की मुख्य चिंता उत्तर कोरिया की कम दूरी की मिसाइलों का परीक्षण ही है. इस बात के तमाम दस्तावेज़ मौजूद हैं कि जापान हमेशा से ही उत्तर कोरिया से ये अपेक्षा करता रहा है कि वो अपनी कम और मध्यम दूरी वाली मिसाइलों के परीक्षण पर रोक लगा दे. वर्ष 2002 में उस समय जापान के प्रधानमंत्री रहे जुनीचिरो कोईज़ुमी ने उत्तर कोरिया के चेयरमैन किम जोंग इल से इस बात पर भी सहमति हासिल कर ली थी कि वो मिसाइल लॉन्च करने पर प्रतिबंध लगा देंगे. उत्तर कोरिया को परमाणु हथियारों से मुक्त करने में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जाए-इन भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं. उत्तर कोरिया में राष्ट्रपति मून जाए-इन का काफ़ी सम्मान किया जाता है. यहां ये याद दिलाना उचित होगा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उनके बीच गर्मजोशी भरे निजी संबंध विकसित कराने में मून जाए-इन ने अहम भूमिका निभाई थी. इसी के बाद दोनों नेताओं के बीच परमाणु निशस्त्रीकरण पर शिखर वार्ता संभव हो सकी थी. अप्रैल 2018 में मून जाए-इन के साथ अपने शिखर सम्मेलन के दौरान किम जोंग उन, ‘कोरियाई प्रायद्वीप के परमाणु निशस्त्रीकरण का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए काम करने’ को राज़ी हुए थे. आज उत्तर कोरिया को इस बात से ख़ुशी होगी कि, जब संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका और उसके साथी देश, उत्तर कोरिया में मानव अधिकारों की स्थिति का सवाल उठाते हैं तो, मून जाए-इन के नेतृत्व वाली दक्षिण कोरिया की सरकार, इस बारे में कोई भी बयान देने से परहेज़ करती है.
ये सही मौक़ा है
इस समय उत्तर कोरिया के परमाणु निशस्त्रीकरण को लेकर होने वाली बातचीत को आगे बढ़ाने का उचित मौक़ा है. ऐसा लगता नहीं है कि उत्तर कोरिया की किम सरकार, अमेरिका के साथ दोबारा बातचीत शुरू करने के सुझाव को ख़ारिज करने के मूड में है. हाल ही में किम की हुकूमत ने जो बाइडेन प्रशासन को मान्यता दी है. जो बाइडेन द्वारा उत्तर कोरिया के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाने के बयान की कड़ी आलोचना के बाद भी, उत्तर कोरिया ने ऐसा कोई क़दम नहीं उठाया है, जिससे अमेरिका से उसके संबंध और भी ख़राब हों. उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु कार्यक्रम को भी आगे बढ़ाने से गुरेज़ किया है और अपने परमाणु व लंबी दूरी की मिसाइलों के परीक्षण पर भी ख़ुद ही अघोषित पाबंदी लगाने का पालन कर रहा है.
संभव है कि इस समय उत्तर कोरिया अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर गंभीर रूप से चिंतित है. उस पर लगाए गए प्रतिबंधों के चलते, पिछले कई वर्षों से उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था को भारी नुक़सान पहुंचा है. हाल ही में जब किम जोंग उन ने अपने देश को कोरोना वायरस से बचाने के लिए सीमाओं पर सख़्त पाबंदियां लगाईं तो उससे हालात और भी बिगड़ गए हैं. ऐसे में अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया आगे बढ़कर उत्तर कोरिया की आर्थिक मदद कर सकते हैं. इससे आख़िरकार उत्तर कोरिया भी परमाणु हथियारों के ख़ात्मे को लेकर तीनों देशों की चिंताओं पर विचार करने में दिलचस्पी लेगा.
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