Published on Jun 11, 2022 Updated 0 Hours ago

यूक्रेन की सेना की ताक़त को बढ़ाने में एलोन मस्क की कंपनी स्टारलिंक सैटेलाइट नेटवर्क ने किस तरह महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.

यूक्रेन की सेना का स्टारलिंक इंटरनेट सर्विस से गठजोड़: भारत के लिए क्या है इसके मायने?

यूक्रेन पर रूस की सेना के मौजूदा हमले के दौरान यूक्रेन की सेना के प्रदर्शन पर काफ़ी ध्यान दिया गया है. इसमें किसी तरह का शक नहीं है कि यूक्रेन के बलों ने बहादुरी और काफ़ी असरदार तरीक़े से रूस की बेहद मज़बूत सैन्य शक्ति से लड़ाई की है. लेकिन रूसी बलों को पस्त करने की उनकी क्षमता अमेरिका के नेतृत्व वाले नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (नेटो) की वित्तीय और सैन्य मदद के बिना नहीं हो सकती थी. पश्चिमी देशों से मिली खुफ़िया जानकारी का यूक्रेन के द्वारा असरदार इस्तेमाल युद्ध के मैदान में यूक्रेन के बलों की कामयाबी के बारे में महत्वपूर्ण रूप से बताता है. लेकिन कम ही लोगों ने युद्ध के मैदान में यूक्रेन की सेना के प्रदर्शन की सफलता में प्राइवेट सेक्टर जैसे कि  एलन मस्क के स्टारलिंक सैटेलाइट नेटवर्क के योगदान की भूमिका के बारे में बताया है. 

पश्चिमी देशों से मिली खुफ़िया जानकारी का यूक्रेन के द्वारा असरदार इस्तेमाल युद्ध के मैदान में यूक्रेन के बलों की कामयाबी के बारे में महत्वपूर्ण रूप से बताता है. लेकिन कम ही लोगों ने युद्ध के मैदान में यूक्रेन की सेना के प्रदर्शन की सफलता में प्राइवेट सेक्टर जैसे कि एलन मस्क के स्टारलिंक सैटेलाइट नेटवर्क के योगदान की भूमिका के बारे में बताया है.

यूक्रेन की सरकार के द्वारा आधिकारिक रूप से स्टारलिंक की इंटरनेट सेवा के लिए स्पेसएक्स से अनुरोध से भी पहले प्राइवेट क्षेत्र की इस विशाल अंतरिक्ष कंपनी ने यूक्रेन को इंटरनेट सेवा मुहैया कराने की तैयारी शुरू कर दी थी. लेकिन हमें इस बात को भूलना और नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए कि मौजूदा युद्ध के शुरुआती चरणों में रूस यूक्रेन के साथ-साथ यूरोप के सैटेलाइट कम्युनिकेशन (सैटकॉम) टर्मिनल को रोकने में सफल रहा था. जब रूस ने 24 फरवरी 2022 को यूक्रेन पर आक्रमण की शुरुआत की थी तो वो हज़ारों KA-SAT सैटकॉम टर्मिनल को नाकाम बनाने में सफल रहा था. उन्होंने कई यूरोपीय देशों जैसे कि जर्मनी, यूक्रेन, ग्रीस, पोलैंड, और हंगरी में काम करना बंद कर दिया. जर्मनी की ऊर्जा उत्पादक कंपनी एनरकॉन ने तो ये तक स्वीकार कर लिया कि उसके 5,800 पवन ऊर्जा टरबाइन, जिन्हें मध्य यूरोप में स्थित एक सैटकॉम कनेक्शन से रिमोट के ज़रिए चलाया जाता है, का सुपरवाइज़री कंट्रोल एंड डाटा एक्विज़िशन (स्काडा) सर्वर से संपर्क टूट गया है. जो-जो देश रूस के इस हमले का शिकार बने उन्होंने ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवा को भी खो दिया. 

वैसे तो शुरू में यूटेलसैट, जो कि वायासैट की मूल कंपनी है, को लगा कि ये साइबर हमला है लेकिन वो इसकी पुष्टि नहीं कर पाई. कमांडर जनरल मिचेल फ्रीडलिंग ने तस्दीक की कि साइबर हमले की वजह से ये रुकावट आई थी. ये एक सामान्य डिस्ट्रीब्यूटेड डिनाइल ऑफ सर्विस (डीडीओएस) अटैक नहीं था. इसका नतीजा विशाल क्षेत्र में फैले हज़ारों टर्मिनल के स्थायी रूप से ख़राब होने के रूप में सामने आया. फ्रीडलिंग ने स्वीकार किया कि साइबर हमले की वजह से टर्मिनल की “मरम्मत” नहीं की जा सकती. युद्ध के शुरुआती चरण में यूरोप के सैटकॉम के ख़िलाफ़ रूस ने इस तरह के पंगु करने वाले साइबर हमले को कैसे अंजाम दिया? इंटरनेट इस हमले का अकेला ज्ञात शिकार नहीं है, इसके कई और निशाने भी हैं. मिसाल के तौर पर, एक सैटकॉम नेटवर्क के किसी भी ज़मीन आधारित हिस्से पर हमला किया जा सकता है. वास्तव में यूटेलसैट के सैटकॉम के ख़िलाफ़ साइबर हमले का निशाना पहले यूक्रेन आधारित टर्मिनल था जो बाद में पूरे यूरोप के टर्मिनल में फैल गया. वैसे इस हमले का समुद्र, अंतरिक्ष और उड्डयन क्षेत्र पर असर नहीं पड़ा. ये संभव है कि रूस ने ज़ीरो-डे (जब सिस्टम विकसित करने वाले को फौरन पता चला हो कि कमी क्या है यानी उसके पास उसे ठीक करने का वक़्त नहीं है) का फ़ायदा उठाया लेकिन नुक़सान को देखते हुए कम-से-कम एक जानकार के द्वारा विकसित की गई एक बेहद विश्वसनीय थ्योरी ये है कि या तो एक नेटवर्क ऑपरेशन सेंटर (एनओसी) या यूक्रेन के आसमान के ऊपर सैटेलाइट से स्पॉट बीम के ग्राउंड स्टेशन इस हमले का वास्तविक निशाना थे, जिससे पूरे यूरोप में काफ़ी ज़्यादा नुक़सान होता. सैटकॉम तक यूक्रेन की पहुंच ख़त्म होने का मतलब ये था कि तोपखाने से हमले की उसकी क्षमता का बेअसर हो जाना जिससे कि मजबूर होकर यूक्रेन को दूसरी जगह मदद के लिए जाना पड़ा. 

वास्तव में यूटेलसैट के सैटकॉम के ख़िलाफ़ साइबर हमले का निशाना पहले यूक्रेन आधारित टर्मिनल था जो बाद में पूरे यूरोप के टर्मिनल में फैल गया. वैसे इस हमले का समुद्र, अंतरिक्ष और उड्डयन क्षेत्र पर असर नहीं पड़ा.

यही वो वक़्त था जब  एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स यूक्रेन की मदद के लिए आगे आई. यूक्रेन की तरफ़ से औपचारिक तौर पर यूक्रेन के जीआईएस तोपखाने के लिए स्पेसएक्स से उसकी स्टारलिंक सेवा के बारे में संपर्क साधा गया जिसने युद्ध से पहले की तरह सैटकॉम सेवा बहाल करने में मदद की. 

महत्वपूर्ण बात ये है कि अमेरिकी सरकार का सैटेलाइट डाटा और मानक सैन्य तोपखाना कमांड और कंट्रोल भी यूक्रेन की सेना के आर्टिलरी ऐप सॉफ्टवेयर और स्टारलिंक के लिए जीआईएस आर्टिलरी के मेल से मुक़ाबला करने में असमर्थ था. युद्ध में यूक्रेन की मदद के लिए स्टारलिंक का इससे भी महत्वपूर्ण योगदान न सिर्फ़ रूस के सैटेलाइट को असमर्थ करने में था बल्कि अंतरिक्ष आधारित स्टारलिंक की इंटरनेट सेवा ने ज़मीनी बुनियादी ढांचे के साथ पूरी तरह मिलकर हाई बैंडविड्थ डाटा भी ट्रांसमिट किया. स्टारलिंक की तरफ़ से चालू ईमेल सेवा ने यूक्रेन के बलों को एक-दूसरे से संवाद करने में मदद की. इसके बाद रूस के उपकरण किसी इलेक्ट्रॉनिक संकेत की लगभग अनुपस्थिति में यूक्रेन के निशानों को तलाशने, उन्हें खोजने मे सफल नहीं रहे हैं. 

आगे आने वाले समय में इसका व्यापक अर्थ है. अगर कोई प्राइवेट अंतरिक्ष कंपनी जैसे कि   एलन मस्क की स्पेसएक्स अमेरिकी सरकार के मुक़ाबले बेहतर सैटकॉम सेवा मुहैया करा सकती है, जो कि स्पेसएक्स ने किया भी, और उसको पकड़ा नहीं जा सकता है तो ये स्थिति सरकार के नियंत्रण से दूर प्राइवेट कंपनियों की तरफ़ शक्ति के संतुलन की घोषणा करती है क्योंकि ऐसी हालत में अमेरिकी सरकार की सैटेलाइट सेवाओं का क्या उपयोग होगा? अगर सरकारी सैटकॉम को बेकार बना दिया जाता है तो क्या सरकारों को प्राइवेट सैटकॉम ऑपरेटर जैसे कि स्पेसएक्स से संपर्क करने की ज़रूरत होगी? क्या एक निजी स्वामित्व वाला बड़े आकार का सैटेलाइट समूह युद्ध के मैदान में हार और जीत का फ़ैसला कर सकती है? या युद्ध ज़्यादा लंबा खिंचने वाले हो जाएंगे? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब इस वक़्त देना मुश्किल है.वैसे चीन अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा पर स्टारलिंक के असर और स्पेसएक्स के स्वामित्व वाले सैटेलाइट के बड़े समूह को लेकर काफ़ी चिंतित हो गया है. स्टारलिंक को एक ख़तरे के रूप में देखा जाता है जो कि चीन और अमेरिका के बीच युद्ध की हालत में अमेरिकी सेना की मदद कर सकती है. आम तौर पर अमेरिकी सरकार प्राइवेट अंतरिक्ष कंपनियों जैसे कि स्पेसएक्स को क़ानून के दायरे में लाने के लिए क़दम उठा सकती है या कम-से-कम उसे सरकार की मदद करने के लिए मजबूर कर सकती है. 

स्टारलिंक को एक ख़तरे के रूप में देखा जाता है जो कि चीन और अमेरिका के बीच युद्ध की हालत में अमेरिकी सेना की मदद कर सकती है. आम तौर पर अमेरिकी सरकार प्राइवेट अंतरिक्ष कंपनियों जैसे कि स्पेसएक्स को क़ानून के दायरे में लाने के लिए क़दम उठा सकती है या कम-से-कम उसे सरकार की मदद करने के लिए मजबूर कर सकती है.

अंत में, बेहद महत्व का एक और मुद्दा भारत के द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षा में छोटे सैटेलाइट (एसएमसैट) के समूह का विकास और शुरुआत है. रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में किसी ज़मीनी बुनियादी ढांचे के बिना स्टारलिंक के सैटेलाइट समूह ने जो क्षमता दिखाई है वो युद्ध के समय में भारतीय सशस्त्र बलों के कमांड को मज़बूत करने, नियंत्रण, कंप्यूटर, संचार, खुफिया जानकारी, निगरानी और टोह की क्षमता में एसएमसैट समूहों के द्वारा निभाई जा सकने वाली महत्वपूर्ण भूमिका की याद दिलाती है. इस भूमिका को लेखक ने एक अलग विश्लेषण में व्यापक रूप से समझाया है. 

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