भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त मिलिंदा मोरागोदा को टाइम्स ऑफ इंडिया ने ये कहते हुए उद्धृत किया कि “भारत के लिए जो सुरक्षा ख़तरा (Security threat) है वो श्रीलंका (Sri Lanka) के लिए भी ख़तरा है”. उसी दिन द हिंदू ने ये ख़बर छापी कि किस तरह तमिलनाडु की तटीय पुलिस का खुफिया विभाग संकीर्ण पाल्क स्ट्रेट के पार श्रीलंका के उत्तरी प्रांत में चीन की बढ़ती मौजूदगी को लेकर बेचैन है.
द हिंदू की रिपोर्ट में एक तरह से भारत पर चीन के ख़तरे में एक नये तत्व को पेश किया गया है और इसलिए श्रीलंका के उच्चायुक्त के एलान के मुताबिक़ श्रीलंका के लिए भी ये एक ख़तरा है. ये श्रीलंका की नौसेना के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा को पार करने वाले भारतीय मछुआरों की लगातार और नियमित गिरफ़्तारी/हमले के अलावा है जिसे दोनों देशों की राष्ट्रीय सरकारों के द्वारा स्वीकार किया जाता है और जिसको लेकर ख़ास तौर पर भारत ने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है.
मोरागोदा ने ये कहा कि “बुनियादी सिद्धांत ये है कि हम इस बात में यकीन करते हैं कि जो भारत के लिए एक सुरक्षा ख़तरा है वो हमारे लिए भी एक सुरक्षा ख़तरा है और हम मानते हैं कि भारत भी इसी तरह से सोचता है”. इस तरह मोरागोदा ने श्रीलंका की एक दशक पुरानी सुरक्षा से जुड़ी समझ को दोहराया है जिस पर श्रीलंका की एक के बाद एक सरकारों ने सर्वसम्मति बनाई है.
टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी ख़बर में मोरगोदा को ये कहते हुए उद्धृत किया है कि “हमारी सुरक्षा चिंताएं पूरी तरह से भारत के अनुसार हैं”. मोरागोदा ने ये कहा कि “बुनियादी सिद्धांत ये है कि हम इस बात में यकीन करते हैं कि जो भारत के लिए एक सुरक्षा ख़तरा है वो हमारे लिए भी एक सुरक्षा ख़तरा है और हम मानते हैं कि भारत भी इसी तरह से सोचता है”. इस तरह मोरागोदा ने श्रीलंका की एक दशक पुरानी सुरक्षा से जुड़ी समझ को दोहराया है जिस पर श्रीलंका की एक के बाद एक सरकारों ने सर्वसम्मति बनाई है.
नवंबर 2020 में कोलंबो सुरक्षा कॉन्क्लेव (CSC) का गठन आसानी से दिमाग़ में आ जाता है. CSC 1991 में शुरू भारत-मालदीव द्वि-वार्षिक कोस्ट गार्ड दोस्ती अभ्यास का विस्तारित रूप है और श्रीलंका इस पर दशकों पुराने जातीय युद्ध के ख़त्म होने पर 2011 में सहमत हुआ था. CSC का गठन होने पर श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में इसका सचिवालय बना और मॉरीशस इसका पूर्णकालिक सदस्य बना. बांग्लादेश और सेशेल्स पर्यवेक्षक देश के रूप में इसमें शामिल हुआ.
चीन को ख़ुश करना
अगर CSC ग़ैर-परंपरागत सुरक्षा में सहयोग के लिए एक क्षेत्रीय मंच है तो पहले के विषय ‘समुद्री सुरक्षा सहयोग’ से 2020 में ‘समुद्री एवं सुरक्षा सहयोग’ में इसका बदलाव बहुत कुछ कहता है. अगर कुछ विशेष नहीं तो ऐसा लगता है कि इसमें परंपरागत क्षेत्रों में भी व्यापक सहयोग को खारिज नहीं किया गया है. अगर संकेत नहीं तो उम्मीदें ये हैं कि CSC आने वाले समय में सदस्य देशों के बीच एक औपचारिक रक्षा सहयोग समझौते का रास्ता तैयार कर सकता है.
जब हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सैन्य महत्वाकांक्षाओं की बात आती है तो श्रीलंका अक्सर चीन को ख़ुश करने की कोशिश में लगा रहता है जिससे भारत बहुत ज़्यादा परेशान होता है. इससे CSC के भविष्य पर भी सवाल खड़े होते हैं क्योंकि दूसरे सदस्य राष्ट्र भी हैं जिनके दृष्टिकोण का पता लगाने की आवश्यकता हो सकती है.
श्रीलंका के इस दावे में सच्चाई है कि सुरक्षा के मामले में उसका समझौता केवल भारत से हो सकता है, चाहे चीन से शुरुआत करके दूसरे देशों की विकास से जुड़ी भागीदारी कुछ भी हो. हालांकि अतीत में भारत की चिंताएं उस वक़्त सही साबित हुईं जब चीन का युवान वांग-5 रिसर्च/जासूसी जहाज़ चीन के द्वारा नियंत्रित हंबनटोटा बंदरगाह के दौरे पर आया था. भारत की चिंताओं से इनकार नहीं किया गया था.
जब हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में सैन्य महत्वाकांक्षाओं की बात आती है तो श्रीलंका अक्सर चीन को ख़ुश करने की कोशिश में लगा रहता है जिससे भारत बहुत ज़्यादा परेशान होता है. इससे CSC के भविष्य पर भी सवाल खड़े होते हैं क्योंकि दूसरे सदस्य राष्ट्र भी हैं जिनके दृष्टिकोण का पता लगाने की आवश्यकता हो सकती है.
हाल के दिनों में सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया गया है कि भारत और अमेरिका- दोनों देशों ने हंबनटोटा या बंदरगाह के आस-पास के समुद्र में चीन के नौसेनिक जहाज़ों के लिए ईंधन भरने की सुविधा को लेकर श्रीलंका के सामने चिंता जताई है. अगर ये बात सही है तो इससे युवान वांग-5 प्रकरण के संस्थागतकरण को स्थायित्व मिलता है. इसलिए ये श्रीलंका के लिए मुश्किल फ़ैसला होगा क्योंकि हंबनटोटा का विकास करने वाली चीन की कंपनियों के प्रति उसके ‘व्यावसायिक संविदात्मक दायित्व’ हैं.
महत्वपूर्ण प्रतिष्ठान
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक़ युवान वांग-5 विवाद की पृष्ठभूमि में तमिलनाडु की कोस्टल पुलिस के खुफिया विभाग ने ‘एक केंद्रीय खुफिया एजेंसी का हवाला देकर’ हाल के दिनों में एक अलर्ट जारी किया था. इस अलर्ट में तमिलनाडु की तटीय सीमा से सटे महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों जैसे कि परमाणु प्रतिष्ठानों (कुडनकुलम और कलपक्कम) और समुद्री बंदरगाहों (तूतूकुड़ी और पड़ोस में कडलूर) के लिए पर्याप्त सुरक्षा इंतज़ाम करने की बात कही गई है.
द हिंदू के अनुसार सुरक्षा अलर्ट में कहा गया है कि “पड़ोस के देश में चीन की गतिविधियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक चिंता का विषय है और तट रेखा पर निगरानी बढ़ाई जाए”. सभी शहरों/ज़िलों को भेजी गई एडवाइज़री में कहा गया है कि “उत्तरी श्रीलंका में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के कैडर की गतिविधि और आधुनिक मशीनों जैसे कि सैटेलाइट, ड्रोन और दूसरे संचार उपकरणों की तैनाती के कारण तटीय ज़िलों में लगातार निगरानी की आवश्यकता है”. सूत्रों का हवाला देते हुए अलर्ट में दावा किया गया है कि “PLA ने समुद्री खीरे (सी कुकुंबर) की खेती शुरू करने की आड़ में आधुनिक मशीनों को तैनात किया है”.
रिपोर्ट में आगे ये भी जोड़ा गया है कि “उत्तरी श्रीलंका के कई हिस्सों, जिनमें मुल्लाईतीवू, पारुतितीवू, अनालाईतीवू, मीसालाई और चवाक्काचेरी शामिल हैं, में चीन के नागरिकों की खुली आवाजाही ने तमिल मछुआरों के बीच असंतोष को तेज़ किया है. उन्होंने ये आशंका जताई है कि चीन के नागरिक समृद्ध समुद्री संपदा का दोहन कर रहे हैं जो कि उनकी आजीविका का एकमात्र साधन है. स्थानीय तमिलों का डर ऐसा था कि मौजूदा स्थिति श्रीलंका के नागरिकों के बीच बंटवारे की वजह बन सकती है और इस द्वीपीय देश के उत्तरी एवं पूर्वी भागों में रहने वाले तमिलों के ऊपर भारत का असर कम हो सकता है”.
अगर श्रीलंका के तमिल मछुआरों के बीच बंटवारे को लेकर अलर्ट पर चलें तो भारत को अपनी सुरक्षा को लेकर ग़ैर-परंपरागत स्रोतों से नये ख़तरों का सामना करना पड़ सकता है.
श्रीलंका का तमिल मीडिया इन मुद्दों पर रिपोर्ट कर रहा है. साथ ही पिछले कुछ वर्षों के दौरान इस मामले में स्थानीय मछुआरों के प्रदर्शन के बारे में भी बता रहा है, विशेष तौर पर चीन के राजदूत क़ी झेनहोंग के द्वारा दिसंबर में उत्तरी प्रांत के दौरे और हाल के दिनों में बहु-जातीय पूर्वी प्रांत के दौरे के बाद. राजदूत झेनहोंग ने उत्तरी प्रांत के दौरे के समय ‘अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा’ तक जाने के लिए श्रीलंका की नौसेना के जहाज़ का इस्तेमाल किया. हालांकि उन मीडिया रिपोर्ट में चीन के द्वारा अपने उद्देश्य के लिए सैटेलाइट और ड्रोन की तैनाती के बारे में सीमित जानकारी है.
रूखा व्यवहार
अगर श्रीलंका के तमिल मछुआरों के बीच बंटवारे को लेकर अलर्ट पर चलें तो भारत को अपनी सुरक्षा को लेकर ग़ैर-परंपरागत स्रोतों से नये ख़तरों का सामना करना पड़ सकता है. तब ये असंभव नहीं है कि श्रीलंका के उत्तर और पूर्व में रहने वाले चीन समर्थक तमिल मछुआरे समुद्र के पार जाने वाले भारतीय मछुआरों से रूखा व्यवहार कर सकते हैं. इसके पीछे हिंद महासागर क्षेत्र के दोनों पड़ोसियों के बीच कूटनीतिक मुद्दों को भड़काना है. अभी तक भारतीय मछुआरों को श्रीलंका की नौसेना के द्वारा सिर्फ़ गिरफ़्तारी/हमलों का जोखिम उठाना पड़ रहा है.
ये उस वक़्त है जब श्रीलंका के तमिल मछुआरों के सभी वर्ग भारतीय-तमिल मछुआरों के द्वारा उनके मछली पकड़ने के क्षेत्र में घुसपैठ, उनकी मछली की तलाश और उनके उपकरणों को बर्बाद करने के ख़िलाफ़ हैं. इसके अलावा श्रीलंका के तमिल मछुआरे बड़े जाल के इस्तेमाल से समुद्र के निचले स्तर तक मछली पकड़ने के भारतीय मछुआरों की पद्धति का विरोध भी करते हैं जिस पर श्रीलंका में प्रतिबंध भी है. परंपरागत मछुआरों और नये स्थानीय मछुआरों के बीच भी समुद्र के निचले स्तर तक मछली पकड़ने को लेकर तनाव बढ़ रहा है. परंपरागत मछुआरे इसका विरोध करते हैं. कई बार ज्ञापन देने और रैली करने के बाद भी श्रीलंका की नौसेना और मत्स्य पालन विभाग के अधिकारियों ने इस पर रोक नहीं लगाई है.
नया घटनाक्रम
श्रीलंका में लगातार जारी आर्थिक संकट और पिछले कुछ हफ़्तों एवं महीनों के दौरान तमिलनाडु में श्रीलंका के उत्तरी प्रांत के तमिलों के समय-समय पर आगमन के संदर्भ में एक घटनाक्रम सामने आया है. द हिंदू की रिपोर्ट में ये स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या तटीय सुरक्षा अलर्ट का संबंध इससे भी जुड़ा है और अगर ऐसा है तो उनकी छानबीन के लिए कोई ख़ास प्रक्रिया जारी की गई है या नहीं.
जैसा कि याद किया जा सकता है, ‘श्रीलंका में ‘ईलम युद्ध’ और यहां तक कि 2009 में इसकी समाप्ति के बाद भी’ श्रीलंका की सरकार इस बात को लेकर विशेष तौर पर चिंतित रही कि किसी भी पक्ष के मछुआरों का इस्तेमाल लोगों, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के लिए किया जा सकता है. हाल के महीनों में दोनों देशों के ड्रग्स विरोधी दस्तों और इनके साझा पड़ोसी मालदीव ने भी ड्रग्स की तस्करी करने वालों पर छापा मारने के लिए साझा और स्वतंत्र अभियान शुरू किया है. भारतीय एजेंसियों ने प्रतिबंधित लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से संबंध रखने वाले श्रीलंका के कुछ तमिलों को हिरासत में भी लिया है.
इन परिस्थितियों में तमिलनाडु के सुरक्षा अलर्ट का क्या मतलब है, ये भी स्पष्ट नहीं है.
तमिल हिंदुओं के लिए नागरिकता?
इससे अलग 17 अक्टूबर को मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै खंडपीठ के जस्टिस जी स्वामीनाथन ने फ़ैसला दिया कि ‘CAA (नागरिकता संशोधन अधिनियम) का सिद्धांत श्रीलंका के तमिल हिंदुओं पर लागू होता है, जो द्वीपीय देश में नस्लीय संघर्ष के प्रमुख शिकार थे’. ये देखना बाक़ी है कि किस तरह केंद्र सरकार, जिसके पास ही संविधान के तहत नागरिकता के मामलों में कार्यकारी अधिकार क्षेत्र है, एकल न्यायाधीश के आदेश के ख़िलाफ़ अपील दायर करती है.
जैसा कि सबको पता है CAA वर्तमान में श्रीलंका से आने वाले ‘हिंदुओं’ पर लागू नहीं होता है और जब संसद में नये क़ानून को लेकर बहस चल रही थी तो केंद्र सरकार ने इस संबंध में मांगों को नज़रअंदाज़ किया था. अपने समय में तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) पार्टी के स्वर्गीय नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने खुले तौर पर केंद्र से श्रीलंका के हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने के लिए अपील की थी. लेकिन तमिल शरणार्थियों से ऐसी मांग और उम्मीदें काफ़ी कम रही हैं. हाल के दिनों में श्रीलंका की सरकार ने भी शरणार्थियों की घर वापसी को आसान बनाने के लिए एक समिति का गठन किया है. हालांकि लगता है कि ज़मीनी स्तर पर अभी तक काफ़ी काम नहीं किया गया है.
पहले के अवसरों पर भी ये बताया गया था कि कैसे श्रीलंका की तमिल राजनीति और समाज से संबंध रखने वाले नेता दृढ़तापूर्वक कहते रहे हैं कि वो देश के सामाजिक ताने-बाने के लिए उसी तरह अभिन्न हैं जैसे कि बौद्ध धर्म को मानने वाले बहुसंख्यक सिंहला. तमिल नेताओं के मुताबिक़ वो अपनी धार्मिक और भाषाई पहचान से स्वतंत्र हैं, जिसे लेकर बहुसंख्यक सिंहला नेताओं और धर्मगुरुओं का एक हिस्सा तमिलों को ‘भारतीय’ बताता रहा है (जिनके लिए श्रीलंका में कोई जगह नहीं होनी चाहिए). तमिल राजनीति के बेहद अनुभवी आर संपनतन ने, पिछले दिनों श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को लिखी चिट्ठी में लेकिन पूरी तरह अलग संदर्भ में, ज़ोर दिया कि कैसे श्रीलंका के तमिल और उनके हिंदू मंदिर भारत से राजकुमार विजय, जिन्हें सिंहला समुदाय का पूर्वज माना जाता है, के आगमन से भी पुराने हैं.
अपने समय में तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) पार्टी के स्वर्गीय नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने खुले तौर पर केंद्र से श्रीलंका के हिंदुओं को भारत की नागरिकता देने के लिए अपील की थी. लेकिन तमिल शरणार्थियों से ऐसी मांग और उम्मीदें काफ़ी कम रही हैं. हाल के दिनों में श्रीलंका की सरकार ने भी शरणार्थियों की घर वापसी को आसान बनाने के लिए एक समिति का गठन किया है.
न्यायाधीश स्वामीनाथन का ये निर्णय तमिल विश्वास के मूल के ख़िलाफ़ जाता है, हालांकि एक ढंग से इसकी व्याख्या की गई है, कि श्रीलंका के ‘हिंदू तमिलों’ को CAA के तहत भारतीय नागरिकता देने पर विचार किया जा सकता है. सवाल ये भी बना हुआ है कि कि क्या श्रीलंका के तमिल धार्मिक आधार पर बंटवारा चाहते हैं क्योंकि ‘जातीय आंदोलन’ के मूल में हिंदू और ईसाई दोनों हैं और श्रीलंका के उत्तरी और पूर्वी हिस्से में तमिल चर्च भी ईलम के आंदोलन के साथ उतने ही जुड़े हुए हैं. हालांकि समय-समय पर श्रीलंका के हिंदू समूहों ने भारत के हिंदू राजनीतिक संगठनों के साथ ख़ुद को जोड़ने की कोशिश की है लेकिन ऐसा करते समय उन्होंने स्थानीय समीकरणों को गड़बड़ नहीं किया है.
भारत को इस तरह के अदालती फ़ैसले के नतीजतन अप्रत्याशित सुरक्षा ख़तरों, अगर कोई हो, पर नज़र रखने की भी ज़रूरत है. ये सुरक्षा ख़तरे ग़ैर-परंपरागत प्रकार के हैं जब तक कि ये बाद के समय में उग्रवाद को फिर से ज़िंदा होने की ओर न ले जाए.
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