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लैटिन अमेरिका को काफ़ी बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा- उसे अपने राजनीतिक क्षेत्र को नया रूप देना होगा.
लैटिन अमेरिकी देशों के 20वीं से 21वीं शताब्दी में प्रवेश करने के दौरान अपेक्षाकृत शांत राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक माहौल के कुछ समय के बाद पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक स्थिति बिगड़ने लगी है. इस मायने में 2020 में कोविड-19 संकट ने इस क्षेत्र में चल रहे कई महत्वपूर्ण मुद्दों को बढ़ा दिया है. इसी से ये सवाल खड़ा होता है कि:” क्या लैटिन अमेरिका ख़ुद को फिर से व्यवस्थित कर पाएगा?”
राजनीतिक दृष्टिकोण से कहें तो ये क्षेत्र बेहद उग्र दौर से गुज़र रहा है. अतीत के तानाशाही शासन की वजह से ग़ैर-ज़रूरी अस्थिरता और सदमा सहना पड़ रहा है. पेरु और बोलीविया जैसे देश कार्यकारी प्रतिनिधित्व को मज़बूत बनाने की चुनौती का सामना कर रहे हैं. पेरु में पिछले चार वर्षों के दौरान चार राष्ट्रपति हुए. बोलीविया में तो एक साल से भी कम समय में एक राष्ट्रपति को कुर्सी से हटाया गया, विपक्ष की एक कार्यकारी सरकार को सत्ता सौंपी गई और सत्ता से हटाई गई पार्टी की एक चुनी हुई सरकार फिर सत्ता में आई. ब्राज़ील में एक दक्षिणपंथी जनवादी सरकार है जो उसके तानाशाही अतीत की याद दिलाती है और जिसकी वजह से वो वहां की परंपरागत बहुलतावादी पार्टियों से संवाद में नाकाम है. मेक्सिको में भी जनवादी सरकार है लेकिन वहां की सरकार की विचारधारा वामपंथी मानी जाती है. वेनेज़ुएला भी राजनीतिक रुकावट के अनिश्चित रास्ते पर चल पड़ा है. वहां एक ऐसी सरकार है जो बातचीत की इच्छा का कोई संकेत नहीं दे रही है.
राजनीतिक दृष्टिकोण से कहें तो ये क्षेत्र बेहद उग्र दौर से गुज़र रहा है. अतीत के तानाशाही शासन की वजह से ग़ैर-ज़रूरी अस्थिरता और सदमा सहना पड़ रहा है.
आर्थिक दृष्टिकोण से कहें तो अर्जेंटीना और पेरू जैसे जो देश पहले से गंभीर संकट का सामना कर रहे थे, अब वो एक जटिल भूल-भुलैया में गुम हो चुके हैं. महामारी के असर से पहले 2020 की पहली तिमाही में इस क्षेत्र के 20 देशों में जीडीपी पहले से नकारात्मक थी और पिछले पांच वर्षों के दौरान विकास दर सबसे कम थी. महामारी ने इस क्षेत्र की जीडीपी को 120 वर्षों में सबसे ख़राब बना दिया है. बेरोज़गारी काफ़ी तेज़ी से बढ़ी और जो क्षेत्र पहले से दुनिया में सबसे असमानता वाला क्षेत्र माना जाता था, वहां सामाजिक असमानता और ज़्यादा बढ़ गई. ईसीएलएसी (लैटिन अमेरिका और कैरेबियन के लिए आर्थिक आयोग) के मुताबिक़, “ये महादेश एक वर्ष गंवाने के रास्ते पर है, आर्थिक मामलों में एक दशक और सामाजिक मामलों में लगभग डेढ़ दशक गंवाने जा रहा है.”
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के दृष्टिकोण से कहें तो लगता है कि इस क्षेत्र ने बातचीत के बहुपक्षीय मॉडल से ख़ुद को अलग कर लिया है. मिसाल के तौर पर यूएनएएसयूआर (दक्षिण अमेरिकी राष्ट्रों का संघ) को इसके सदस्यों की निष्क्रियता की वजह से पूरी तरह भंग कर दिया गया है और एमईआरसीओएसयूआर (दक्षिणी साझा बाज़ार) अपने अस्तित्व पर गंभीर संकट का सामना कर रहा है. इसकी वजह से अलग-अलग देशों के द्वारा साझा चुनौतियों का समाधान करने और साझा हल तलाशने की क्षमता प्रभावित हो रही है.
आर्थिक समस्याओं के अलावा इन साझा चुनौतियों के बीच इस क्षेत्र के लिए दो अन्य मुद्दे भी हैं: सीमा पार संगठित अपराध और पर्यावरण के मुद्दे.
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के दृष्टिकोण से कहें तो लगता है कि इस क्षेत्र ने बातचीत के बहुपक्षीय मॉडल से ख़ुद को अलग कर लिया है
इस क्षेत्र में मादक पदार्थों की तस्करी बहुत बड़ा कारोबार बन गई है. मादक पदार्थों की तस्करी में इतना पैसा लगा है जो इस क्षेत्र के कुछ देशों की जीडीपी से भी ज़्यादा है. इन आपराधिक संगठनों के तौर-तरीक़े और जटिल हो गए हैं जिसमें हथियारों और लोगों की तस्करी, भ्रष्टाचार और दूसरे ग़ैर-क़ानूनी काम शामिल हैं. कोलंबिया की शांति प्रक्रिया ने इस क्षेत्र में संघर्ष को हल करने में मदद की है, लेकिन हिंसा के दूसरे रूप आकार ले रहे हैं जिनकी वजह से अस्थिरता कायम हो रही है और क्षेत्रीय सुरक्षा ख़तरे में पड़ गई है.
दूसरी तरफ़ पर्यावरण के मुद्दे वैश्विक एजेंडा बन गए हैं और इनका उन देशों पर बड़ा असर पड़ा है जिन्होंने अपार प्राकृतिक संसाधन होने के बावजूद पर्यावरण संरक्षण और टिकाऊ अर्थव्यवस्था को नज़रअंदाज़ किया है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान अमेज़न क्षेत्र में आग लगने की कई घटनाएं हुई हैं और इस मुद्दे की वजह से राजनीतिक संघर्ष हुए हैं. इसकी वजह से इस तरह की समस्याओं का समाधान करते वक़्त जिस तार्किकता की ज़रूरत होती है, उसका अक्सर इस्तेमाल नहीं होता है.
इस क्षेत्र में मादक पदार्थों की तस्करी बहुत बड़ा कारोबार बन गई है. मादक पदार्थों की तस्करी में इतना पैसा लगा है जो इस क्षेत्र के कुछ देशों की जीडीपी से भी ज़्यादा है.
आख़िर में, कोविड-19 के असरदार जवाब को तलाशने के अलावा लैटिन अमेरिका को काफ़ी ज़्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. उसे अपने राजनीतिक क्षेत्र को नया रूप देना होगा. उसे निश्चित रूप से न्यूनतम आर्थिक रिकवरी की तरफ़ एक ऐसा असरदार रास्ता तलाशना पड़ेगा जो कम-से-कम मौजूदा संकट से बाहर निकलने की गारंटी दे. मुख्य रूप से उसे अपने देशों के बीच बहुपक्षीय रास्ता (फिर से) बनाना पड़ेगा ताकि वो ख़ुद को व्यवस्थित कर सके.
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