Skyroot in Indian space: भारत के अंतरिक्ष अभियान में स्काईरूट ने किया नए युग का ‘प्रारंभ’!
अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की एक निजी कंपनी स्काईरूट एरोस्पेस (Skyroot Aerospace) ने भारत के निजी तौर पर विकसित किए गए पहले रॉकेट विक्रम-एस (Vikram-S) को कामयाबी से लॉन्च करके नया इतिहास बनाया है. ये एक ऐसा लम्हा है जिसका इंतज़ार भारत का प्राइवेट सेक्टर लंबे समय से कर रहा था. अब उम्मीद ये है कि स्काईरूट की कामयाबी बहुत से अन्य लोगों के लिए भी अंतरिक्ष (space) के दरवाज़े खोलेगी. इस मिशन का नाम ‘प्रारंभ’ (Prarambh) यानी शुरुआत रखा गया था. अंतरिक्ष समुदाय में बहुत से लोग ये मानते हैं कि ये मिशन, भारत की आधिकारिक अंतरिक्ष एजेंसी, इसरो (ISRO) और निजी क्षेत्र के बीच सहयोग की नई शुरुआत है. कामयाब उड़ान के लिए स्काईरूट को बधाई देते हुए इसरो ने ट्वीट किया कि, ‘मिशन प्रारंभ कामयाबी से पूरा किया गया.’ अपनी कंपनी की कामयाबी से बेहद ख़ुश स्काईरूट के सीईओ और सह-संस्थापक, पवन कुमार चांदना ने ट्वीटकिया कि, ’18 नवंबर को सुबह 11.30 बजे का वक़्त भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के इतिहास में मील के पत्थर के तौर पर दर्ज हो जाएगा’. इसमें कोई शक नहीं कि अंतरिक्ष में भारत के सफ़र में ये एक मील का पत्थर है. भारत के विज्ञान और तकनीकी मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह ने भी इस लॉन्च की तारीफ़ की और कहा कि, ‘निश्चित रूप से ये एक नई शुरुआत है. एक नया सवेरा है और भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के सफर में एक नया प्रारंभ है. भारत द्वारा अपने रॉकेट विकसित करने की दिशा में ये निश्चित रूप से एक बड़ा क़दम है और भारत के स्टार्ट अप (start-up आंदोलन का भी ये निर्णायक मोड़ है. शानदार उपलब्धि, स्काईरूट.’
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, इस कंपनी ने देश का पहला निजी तौर पर विकसित क्रायोजेनिक हाइपरगोलिक-लिक्विड और सॉलिड ईंधन से चलने वाले इंजन पर आधारित रॉकेट बनाकर उसका कामयाब परीक्षण किया है. स्काईरूट ने ये रॉकेट बनाने में एडवांस्ड कंपोज़िट और 3D प्रिंटिंग तकनीकों का इस्तेमाल किया है.
एक समीक्षा
स्काईरूट एक नई कंपनी है, जिसकी स्थापना 2018 में की गई थी. 2020 में जब भारत सरकार ने अंतरिक्ष के क्षेत्र को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोलने की घोषणा की, तो स्काईरूट, इसरो के साथ रॉकेट लॉन्च करने के सहमति पत्र (MoU) पर दस्तख़त करने वाली पहली निजी कंपनी बनी थी.भारत की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, इस कंपनी ने देश का पहला निजी तौर पर विकसित क्रायोजेनिक हाइपरगोलिक-लिक्विड और सॉलिड ईंधन से चलने वाले इंजन पर आधारित रॉकेट बनाकर उसका कामयाब परीक्षण किया है. स्काईरूट ने ये रॉकेट बनाने में एडवांस्ड कंपोज़िट और 3D प्रिंटिंग तकनीकों का इस्तेमाल किया है.’ किसी स्टार्ट अप कंपनी के लिए ये कोई मामूली उपलब्धि नहीं है.
विक्रम-एस रॉकेट के साथ ग्राहकों के तीन पे-लोड भी इस परीक्षण में गए थे. रॉकेट को इसरो के आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था. स्काईरूट ने ये भी कहा कि उनके रॉकेट ने 89.5 किलोमीटर की ऊंचाई तक कामयाब उड़ान भरी और उड़ान के सभी मानकों को पूरा किया. ये रॉकेट लॉन्च निचली कक्षा का मिशन था, जिसके ज़रिए इसमें इस्तेमाल की गई तमाम तकनीकों का परीक्षण और उनकी पुष्टि की गई. इस मिशन की कामयाबी के बाद अब स्काईरूट अगले साल विक्रम-I रॉकेट लॉन्च करने की तैयारी में जुट गई है.
प्रारंभ मिशन ने ये दिखा दिया है कि थोड़ी सी मदद के साथ भारत का निजी क्षेत्र भी भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के विकास को आगे बढ़ाने में पूरी तरह सक्षम है. पूरी दुनिया में अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी से बहुत लाभ हुए हैं और भारत का तजुर्बा भी इससे अलग नहीं हो सकता है.
स्काईरूट, विक्रम के नाम से कई उपग्रह बना रही है, जिसका नाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉक्टर विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है. स्काईरूट ये रॉकेट छोटे छोटे सैटेलाइट लॉन्च करने की नीयत से तैयार कर रही है. हाल के वर्षों में ऐसे सैटेलाइट की अहमियत काफ़ी बढ़ गई है. स्काईरूट का कहना है कि ‘आने वाले एक दशक में 20 हज़ार से ज़्यादा छोटे उपग्रह लॉन्च होने का अनुमान है और विक्रम सीरीज़ के रॉकेटों को इसी हिसाब से डिज़ाइन किया गया है कि वो अभूतपूर्व रूप से सस्ते दाम पर बनाकर, बहुत कम क़ीमत पर सैटेलाइट लॉन्च कर सकें.’. विक्रम-I रॉकेट को 480 किलोग्राम वज़न लो इन्क्लिनेशन ऑर्बिट तक ले जाने के लिहाज़ से विकसित किया जा रहा है. वहीं विक्रम-II रॉकेट 595 किलोग्राम वज़न तो विक्रम-III रॉकेट 815 किलोग्राम पे-लोड को लो इन्क्लिनेशन ऑर्बिट तक ले जाने में सक्षम होगा स्काईरूट ने ये भी कहा है कि ये रॉकेट एक साथ अलग अलग कक्षाओं में रॉकेट प्रक्षेपित करने में सक्षम होंगे और ये दूसरे ग्रह तक जाने की क्षमता से भी लैस होंगे. इसके अलावा विक्रम सीरीज़ के रॉकेट के ज़रिए ग्राहकों को उनकी ख़ास ज़रूरतों के हिसाब से छोटे सैटेलाइट लॉन्च करने की सुविधा मुहैया कराई जाएगी.’ स्काईरूट का कहना है कि उनके रॉकेट को किसी भी लॉन्च साइट से 24 घंटे की तैयारी में लॉन्च किया जा सकता है. इस बात से ज़ाहिर है कि कंपनी, मांग के आधार पर सैटेलाइट लॉन्च करने की सुविधा देने की तैयारी में है. आज मुक़ाबले और संघर्ष के दौर में इस तरह की सेवाओं की मांग बढ़ रही है.
इसरो: एक अहम खिलाड़ी
स्काईरूट के रॉकेट लॉन्च की सबसे अहम बात तो ये इसमें इसरो और उससे जुड़े संगठनों, जैसे कि इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन ऐंड ऑदराइज़ेशन सेंटर (IN-SPACe) द्वारा निभाई गई भूमिका थी.इन-स्पेस का गठन, अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने के इरादे से किया गया था. 2020 में सरकार द्वारा अंतरिक्ष के क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिए खोलने से जुड़े बड़े एलान करने के बाद, इन-स्पेस (IN-SPACe) जैसे संगठन बनाए गए, जो निजी क्षेत्र और इसरो के रिश्तों को आगे बढ़ाने का एक सीधा माध्यम बन गए. इस मिशन के लिए भी इसरो ने अपनी विशेषज्ञता तो उपलब्ध कराई ही. उसने स्काईरूट के रॉकेट का परीक्षण करने के लिए अपनी सुविधाएं भी मुहैया कराईं. जैसा कि इन-स्पेस के चेयरमैन डॉक्टर पवन गोयनका ने कहा भी कि इस लॉन्च के दौरान इसरो ने एक साथ कई मिशन लॉन्च करने की अपनी तैयारियों की भी समीक्षा की. इसके लिए बाहर से भी विशेषज्ञ आए थे. इसरो द्वारा निजी क्षेत्र के मददगार की भूमिका निभाना एक बड़ा बदलाव है जिसकी तारीफ़ की जानी चाहिए. पारंपरिक रूप से भारत, अंतरिक्ष के मामले में निजी क्षेत्र को शामिल करने को लेकर अनिच्छुक रहा है; साफ है कि इस नज़रिए में बदलाव आ रहा है. भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से बढ़ती हुई अलग अलग मांगों को देखते हुए ये बदलाव वक़्त की मांग बन चुका था. हो सकता है कि आने वाले कुछ वक़्त तक इसरो और इन-स्पेस जैसे सरकारी संगठनों को निजी क्षेत्र की मदद करनी पड़ेगी. लेकिन, प्रारंभ मिशन ने ये दिखा दिया है कि थोड़ी सी मदद के साथ भारत का निजी क्षेत्र भी भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के विकास को आगे बढ़ाने में पूरी तरह सक्षम है. पूरी दुनिया में अंतरिक्ष के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी से बहुत लाभ हुए हैं और भारत का तजुर्बा भी इससे अलग नहीं हो सकता है. अंतरिक्ष तक पहुंच को और अधिक सुगम और सस्ता बनाना इस भागीदारी के फौरी लाभ हैं. ये साझेदारी आगे चलकर बाहरी अंतरिक्ष के कारोबारी इस्तेमाल का रास्ता खोलने की मिसाल भी बन सकती है. इससे भारत को और अधिक अंतरराष्ट्रीय ग्राहक मिल सकते हैं. कुल मिलाकर, निजी क्षेत्र की भागीदारी के आग़ाज़ के साथ ही अब भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र, एक उत्साहवर्धर भविष्य की ओर उम्मीद से देख सकता है.
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