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Published on Jun 14, 2024 Updated 2 Days ago

चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी होने से अफ्रीका की आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ा है. चीन पर अफ्रीका की निर्भरता बहुत ज़्यादा है. चीन अब ग्रीन इकोनॉमी और हाईटेक सेक्टर पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. ये अफ्रीकी देशों की अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं हैं.

चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट का अफ्रीका की आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक असर

चीन की अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व तरक्की को अक्सर एक आर्थिक चमत्कार के तौर पर पेश किया जाता है. 1979 से 2018 के बीच चीन की सालाना वृद्धि दर 10 प्रतिशत से ज़्यादा रही. इस दौरान उसने करीब 80 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला. विश्व बैंक ने भी चीन की आर्थिक सफलता को “दुनिया के इतिहास में एक प्रमुख अर्थव्यवस्था द्वारा सबसे तेज़ी से निरंतर विस्तार” के रूप में परिभाषित किया. चीन के आर्थिक विकास का दूसरे विकासशील क्षेत्रों में दूरगामी असर पड़ा, खासकर अफ्रीका में. ये एक ऐसा क्षेत्र था जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा से अलग था लेकिन 2000 से 2015 के बीच अफ्रीका ने चीन से व्यापार, निवेश और विकास के लिए बड़े पैमाने पर वित्त के प्रवाह में अद्वितीय वृद्धि देखी है.

साल 2000 के बाद से चीन और अफ्रीका के बीच व्यापार में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई. पारंपरिक रूप से यूरोप और अमेरिका ही अफ्रीकी महाद्वीप के देशों के बड़े व्यापारिक साझेदार हुआ करते थे, लेकिन अब उनकी जगह चीन ने ले ली है. 

साल 2000 के बाद से चीन और अफ्रीका के बीच व्यापार में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई. पारंपरिक रूप से यूरोप और अमेरिका ही अफ्रीकी महाद्वीप के देशों के बड़े व्यापारिक साझेदार हुआ करते थे, लेकिन अब उनकी जगह चीन ने ले ली है. चीन और अफ्रीका के बीच सामान का व्यापार 16.1 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ा है. 2000 में ये व्यापार 9.9 अरब अमेरिकी डॉलर था, जो 2022 में बढ़कर 260.8 अरब डॉलर हो गया (चित्र 1). अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक चीन इस क्षेत्र का 13 प्रतिशत निर्यात करता है और कुल माल का 16 प्रतिशत आयात करता है. अफ्रीकी देशों से चीन को मुख्य तौर पर प्राथमिक वस्तुओं (कच्चा तेल, तांबा, प्राकृतिक गैस और तिलों) का निर्यात होता है, जबकि ये चीन से निर्मित सामान और मशीनरी का आयात करते हैं. चीन की तरफ से प्राथमिक वस्तुओं की बड़े पैमाने पर मांग का अफ्रीकी देशों पर भारी मात्रात्मक प्रभाव पड़ा है. इसका असर वैश्विक स्तर पर माल (सामान) की कीमतों पर भी दिखता है. इससे अफ्रीकी देशों की व्यापार की शर्तों में नाटकीय सुधार हुआ है. निर्यात में बढ़ोत्तरी से प्राप्त राजस्व की वजह से अफ्रीका में आर्थिक विकास की उच्च वृद्धि दर देखी गई है. अंगोला, इथोपिया और नाइजीरिया जैसे देश तो दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हो गए हैं. चीन से आ रही मांग का ही नतीजा था कि ये अफ्रीकी देश 2008-09 के वैश्विक मंदी का मुकाबला करने में कामयाब रहे.

चित्र 1 : 1992 से 2022 तक अफ्रीका के साथ चीन का व्यापार (डॉलर में)

स्रोत :  चीन-अफ्रीका रिसर्च इंस्टीट्यूट

 

इस अवधि में अफ्रीकी देशों में चीन का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ODI) लगातार बढ़ा लेकिन फिर भी चीन के विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में अफ्रीका की भागीदारी बहुत मामूली है. चीन के कुल ODI का सिर्फ 3 प्रतिशत ही अफ्रीकी देश में है. लेकिन चीन और अफ्रीका के रिश्ते का सबसे विवादित पहलू अफ्रीका में बुनियादी ढांचे के विकास में चीन के आधिकारिक वित्तीय निवेश का भारी प्रवाह है. वो आधिकारिक तौर पर अफ्रीकी देशों का सबसे बड़ा लेनदार है. चीन इस इलाके में ऊर्जा, परिवहन सुविधा के बुनियादी ढांचे और खनन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र की परियोजनाओं को आर्थिक मदद मुहैया कराता है. चीन की कड़ी आलोचना का एक कारण इन देशों को उसकी तरफ से दिए जाने वाले ऋण का तरीका भी है. चीन लोन देने के लिए कई गोपनीय शर्तें रखता है. ऋण में अनुदान का हिस्सा कम रखता है. लोन चुकाने के लिए अनुग्रह समय (ग्रेस पीरियड) भी कम होता है. चीन के ऋण को लेकर आंकड़े भी स्पष्ट नहीं होते. इसके अलावा यहां चल रही चीन की परियोजनाओं में मज़दूर और पर्यावरण के नियमों का उल्लंघन किया जाता है. इनमें से कई आलोचनाओ में दम है, लेकिन इन आलोचनाओं के बावजूद ये एक तथ्य है कि चीन ने अफ्रीकी देशों को बुनियादी ढांचे के विकास का मौका दिया है. ये एक ऐसा क्षेत्र है, जिसकी पश्चिम के दानदाता देशों और बहुपक्षीय विकास बैंकों ने अनदेखी की, क्योंकि इसमें उच्च लागत और ज़ोखिम था. 

चीन की कड़ी आलोचना का एक कारण इन देशों को उसकी तरफ से दिए जाने वाले ऋण का तरीका भी है. चीन लोन देने के लिए कई गोपनीय शर्तें रखता है. ऋण में अनुदान का हिस्सा कम रखता है. लोन चुकाने के लिए अनुग्रह समय (ग्रेस पीरियड) भी कम होता है.

आर्थिक मंदी का ख़तरा

लेकिन अब हालात तेज़ी से बदले हैं. चीन अब उस तरह वैश्विक विकास का इंजन नहीं रहा, जैसा एक वक्त पर था. दुनिया पर एक और आर्थिक मंदी का ख़तरा मंडरा रहा है और इस बार चीन की अगुवाई में मंदी का मुकाबला करने की संभावना बहुत कम है. चीन की अर्थव्यवस्था की रफ्त़ार धीमी हो गई है. वस्तुओं की खपत भी कम हो रही है. 2022 में चीन की आर्थिक वृद्धि दर 3 प्रतिशत ही रही. इसके अलावा चीन अपनी अर्थव्यवस्था का स्वरूप भी बदल रहा है. चीन की अर्थव्यवस्था अब तक निर्यात और निवेश वृद्धि पर आधारित थी लेकिन अब इसे उच्च घरेलू खपत और ‘बेहतर गुणवत्ता वाले विकास’ की तरफ ले जाया जा रहा है, जिसमें हाईटेक सेक्टर में निरंतर और स्थिर विकास पर ज़ोर दिया जा रहा है. उम्रदराज़ लोगों की बढ़ती संख्या और आबादी में कमी से भी चीन की भविष्य की आर्थिक संभावनाओं पर सवाल उठ रहे हैं. चीन की अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि इसकी वृद्धि दर में आ रही कमी का असर पूरी दुनिया पर दिखेगा. लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि अफ्रीकी देशों में विकास की रफ्तार पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है.

2015 में जब चीन के साथ इस क्षेत्र के आयात और निर्यात में भारी गिरावट आई तो अफ्रीकी देशों में वस्तुओं की कीमत पर बहुत नकारात्मक असर पड़ा. (चित्र 1). हालांकि 2017 से 2022 के बीच आयात बढ़ा. इस दौरान आयात ने 12 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक दर हासिल की लेकिन अफ्रीकी देशों से चीन को निर्यात में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई. इससे चीन के साथ अफ्रीकी देशों का व्यापार घाटा बढ़ा. (तालिका 1). कोरोना महामारी और यूक्रेन-रशिया युद्ध ने अफ्रीकी देशों को और कमज़ोर किया. ज़्यादातर अफ्रीकी देश इस वक्त कर्ज़ के बोझ तले दबे हुए हैं. इतना ही नहीं ये देश खाद्य असुरक्षा की स्थिति का भी सामना कर रहे हैं. ऐसे में चीन पर अफ्रीका की निर्भरता और चीन की अर्थव्यवस्था में गिरावट इन अफ्रीकी देशों के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है. चीन जिस तरह अपनी अर्थव्यवस्था का पुनर्गठन कर रहा है, जिस तरह वस्तुओं की मांग में कमी आ रही है. जिस तरह वो हरित अर्थव्यवस्था (ग्रीन इकोनॉमी) और हाईटेक सेक्टर पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, वो अफ्रीकी देशों की अर्थव्यस्था के लिए ठीक नहीं है, खासकर वस्तुओं के निर्यात के संदर्भ में. आईएमएफ के एक अनुमान के मुताबिक चीन की जीडीपी में एक प्रतिशत की गिरावट से अफ्रीका के उप सहारा देशों की जीडीपी में 0.25 फीसदी की गिरावट आ जाती है. चीन की अर्थव्यस्था की रफ्तार धीमी होने का सबसे ज़्यादा असर अफ्रीकी देशों से चीन को होने वाले तेल और प्राकृतिक संसाधनों के निर्यात पर पड़ता है. चीन अब ग्रीन इकोनॉमी और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर ज़ोर दे रहा है. ऐसे में ये माना जा रहा है कि अगर चीन की जीडीपी में अब एक फीसदी की गिरावट आएगी तो अफ्रीकी देशों की जीडीपी भी 0.5 प्रतिशत कम हो जाएगी.

 

तालिका 1 :  चीन से आयात-निर्यात में अफ्रीकी देशों की वृद्धि

स्रोत :  चीन-अफ्रीका रिसर्च इंस्टीट्यूट

चीन से अफ्रीका को आसानी से मिलने वाली आर्थिक मदद का युग भी अब ख़त्म होता दिख रहा है. अफ्रीकी देशों को चीन से मिलने वाला कर्ज़ 2016 में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचा था, लेकिन उसके बाद से इसमें लगातार गिरावट दिख रही है. (चित्र 2). चीन अब कर्ज़ देने में ज़्यादा सावधानी बरत रहा है. ऋण स्थिरता की चिंताओं की वजह से चीन अब उच्च गुणवत्ता वाली कुछ खास परियोजना के लिए ही कर्ज़ दे रहा है. चीन-अफ्रीका सहयोग मंच (FOCAC) में चीन ने नाममात्र की वित्तीय मदद देने का जो वादा किया था, उसमें भी गिरावट आ रही है. चीन से मिलने वाले कर्ज़ में कमी और अंतरराष्ट्रीय वित्त की कठिन शर्तें अफ्रीका देशों के लिए अपने सार्वजनिक ऋण के पुनर्वित्त को ज़्यादा मुश्किल बना देंगी. इससे उनके लिए अपने ऋण उत्तरदायित्वों को पूरा करना और विकास परियोजना के लिए आवश्यक वित्त जुटाना बहुत बड़ी चुनौती साबित होगा. संक्षेप में कहें तो चीन की अर्थव्यस्था की धीमी रफ्तार ने अफ्रीकी देशों के सामने एक बड़ी चुनौती पेश कर दी है क्योंकि ये देश पहले से ही कोरोना महामारी के आर्थिक असर और यूक्रेन-रशिया युद्ध के प्रभाव से जूझ रहे हैं. ऐसे में अपनी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए अफ्रीकी देशों के चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी और अपने व्यापारिक साझेदारों में भी विविधता लानी होगी. ग्लोबल साउथ के दूसरे देशों के साथ करीबी संबंध स्थापित करने से इन देशों को मदद मिल सकती है. जी-20 में भी अफ्रीकी यूनियन को एक सीट दी गई है. वो इसका उपयोग अपनी अर्थव्यवस्था के पुनर्उद्धार और वैश्विक वित्तीय मंचों से अंतरराष्ट्रीय वित्त के न्यायसंगत वितरण की मांग करने में कर सकता है.

  चीन से मिलने वाले कर्ज़ में कमी और अंतरराष्ट्रीय वित्त की कठिन शर्तें अफ्रीका देशों के लिए अपने सार्वजनिक ऋण के पुनर्वित्त को ज़्यादा मुश्किल बना देंगी. इससे उनके लिए अपने ऋण उत्तरदायित्वों को पूरा करना और विकास परियोजना के लिए आवश्यक वित्त जुटाना बहुत बड़ी चुनौती साबित होगा. 

चित्र 2 : 2000 से 2022 के बीच अफ्रीकी देशों को चीन से कर्ज़

 

स्रोत : ग्लोबल डेवलपमेंट पॉलिसी सेंटर


मलांचा चक्रबर्ती ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फैलो और डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च) हैं

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