Author : Angad Singh

Published on Sep 07, 2021 Updated 0 Hours ago

जब भारत में नौसेना उड्डयन अपनी स्थापना के 68वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है, उस वक़्त उसकी मज़बूती और कमज़ोरी की समीक्षा.

इंडियन नेवी की वायु शाखा ‘नौसेना विमानन’ की कामयाबी और दिक्कतें: एक समीक्षा

भारतीय नौसेना की वायु शाखा इस साल 68 साल की हो गई और इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि ये युद्ध के साथ-साथ शांति काल में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. गोवा की मुक्ति से लेकर मौजूदा समय की प्राकृतिक आपदा में नौसेना के एयरक्राफ्ट- चाहे वो लड़ाकू विमान हों, सबमरीन हंटर या हेलीकॉप्टर- पूरे भारत और इस क्षेत्र के अभियानों के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं. पिछले कुछ महीनों में नौसेना उड्डयन कई कारणों से ख़बरों में रहा है. पहला कारण स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर (आईएस-1), जिसका नाम विक्रांत होगा, का समुद्री परीक्षण है. पांच दिन की समुद्री यात्रा, जो कि कैरियर की सुपुर्दगी से पहले सुनियोजित परीक्षण की पहली सीरीज़ है, के दौरान जहाज़ के अलग-अलग हिस्सों को आंका गया और यहां तक कि कुछ हेलीकॉप्टर को भी उतारा गया. इसके ठीक बाद भारतीय नौसेना विमानन को राष्ट्रपति ध्वज का एलान किया जाएगा. नौसेना विमानन के लिए ध्वज उसके बहुमूल्य काम और तट के साथ-साथ समुद्र में नौसेना के पूरे अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी उपक्रम के योगदान को मान्यता है. निश्चित रूप से नौसेना विमानन को ये उचित सम्मान मिला है और कुछ लोग ये दलील भी देते हैं कि ये पहले ही मिल जाना चाहिए था.

भारतीय नौसेना विमानन को राष्ट्रपति ध्वज का एलान किया जाएगा. नौसेना विमानन के लिए ध्वज उसके बहुमूल्य काम और तट के साथ-साथ समुद्र में नौसेना के पूरे अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी उपक्रम के योगदान को मान्यता है. निश्चित रूप से नौसेना विमानन को ये उचित सम्मान मिला है और कुछ लोग ये दलील भी देते हैं कि ये पहले ही मिल जाना चाहिए था. 

लेकिन पिछले महीने ये भारतीय नौसेना की ख़्याति का आख़िरी हिस्सा है जो किसी उल्लास की मनोदशा को बढ़ावा देता है. पश्चिमी प्रशांत महासागर से लेकर इंग्लिश चैनल तक, भारतीय युद्धपोतों का ‘फ्लाई द फ्लैग’ और सहयोगी नौसेना के साथ अभ्यास. ये भारतीय हितों को सुरक्षित करने और समुद्र में भारतीय विश्वसनीयता की रक्षा करने के लिए ज़रूरी है. लेकिन जब भारतीय जहाज़ों या फिर और शुद्ध रूप से कहें तो उसके हेलीकॉप्टर की तुलना की जाती है तो इससे भारत की समुद्री महत्वाकांक्षा के साधन उजागर होते हैं.

नौसेना के हेलीकॉप्टर की समस्या

तलवार क्लास युद्धपोत आईएनएस त्रिकंद और जर्मनी के ब्रैंडनबर्ग क्लास युद्धपोत बेयर्न के साथ अभ्यास को ले लीजिए. हर तरह के मौसम, दिन और रात में उड़ने में सक्षम जर्मनी के वेस्टलैंड लिंक्स एमके88ए की तुलना एचएएल चेतक से कीजिए. वेस्टलैंड लिंक्स जब भारतीय युद्धपोत पर सेंसर युक्त नोज़ लैंडिंग करता है तो उसके सामने पुराने पड़ चुके एचएएल चेतक की तस्वीरें क़रीब-क़रीब शर्मिंदगी की बात है क्योंकि चेतक में सिर्फ़ एक इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस सूट है और रात में या ख़राब मौसम में उड़ने की उसकी क्षमता बेहद कम है. ये तुलना और भी ख़राब हो जाती है जब दोनों हेलीकॉप्टर की उम्र और काम-काज का लेखा-जोखा किया जाता है. जर्मनी ने 80 के दशक की  शुरुआत में लिंक्स की ख़रीदारी की, 90 के दशक के आख़िर में बेड़े को अपग्रेड किया और अब न सिर्फ़ उन्हें बेहद सक्षम एनएच90 से बदलने की प्रक्रिया शुरू की है बल्कि उनकी संख्या भी 22 से बढ़ाकर 31 की जा रही है. दूसरी तरफ़ भारत ने चेतक के लिए समझौता 1961 में किया और नौसेना को पहले एयरक्राफ्ट की डिलीवरी 1964 में मिली. क़रीब-क़रीब 60 वर्षों से हेलीकॉप्टर में कोई बदलाव नहीं आया है और पिछले साल तक एचएएल उसका उत्पादन ही कर रहा है.

नौसेना में हेलीकॉप्टर को लेकर हालात बेहद ख़राब हैं लेकिन इसके बावजूद इसका समाधान टुकड़ों में किया जा रहा है. ये परिस्थिति सेना या रक्षा उद्योग के लिए आदर्श नहीं है जिसे विकसित करने का दावा एक के बाद एक सरकारें करती रही हैं. 50 से ज़्यादा चेतक हेलीकॉप्टर सेना के पास हैं. ऐसे में मुट्ठी भर एचएएल एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (एएलएच) के ऑर्डर से वास्तविक अभियानों पर मामूली असर ही पड़ेगा. चेतक को बड़े पैमाने पर बदलने में एचएएल ने अपने एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर को ज़बरन नौसेना के बेड़े में शामिल करने की कोशिश करके बाधित किया. हालांकि लगता है कि ये गतिरोध फिलहाल एचएएल के पक्ष में सुलझ गया है लेकिन जब तक सार्वजनिक क्षेत्र की ये कंपनी वास्तव में समुद्र में जाने में सक्षम एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर में बदलाव, उसे प्रमाणित करने और सुपुर्द करने में सक्षम नहीं होती है तब तक चेतक नौसेना की सेवा में 60वां वर्ष देख लेगा.

आने वाले दिनों में अपने मेजबान राजपूत क्लास डेस्ट्रॉयर की रिटायरमेंट को देखते हुए नौसेना के पुराने पड़ चुके सोवियत में बने कामोव केए-28 एंटी सबमरीन हेलीकॉप्टर के बेड़े को भी काम से हटाया जा सकता है. इससे मझौले हेलीकॉप्टर की कमी और बढ़ जाएगी.

मझौले हेलीकॉप्टर ने भी कुछ अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है. 2020 में बड़े उत्साह के साथ ख़रीदारी का एलान किया गया था लेकिन नौसेना के लिए 24 सिकरोस्की एमएच-60आर मल्टीरोल हेलीकॉप्टर का कॉन्ट्रैक्ट मौजूदा एयरक्राफ्ट को बदलने के लिए भी पर्याप्त नहीं है, बेड़े के विस्तार की बात तो छोड़ दीजिए. नौसेना पहले से ही 30 सतही जहाज़ों को परिचालित कर रही है जिन पर मझौले हेलीकॉप्टर को संचालित किया जा सकता है. इसी तरह 30 उम्रदराज सी किंग हेलीकॉप्टर भी नौसेना के पास हैं जो 80 और 90 के दशक के हैं. लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है कि दर्जन भर से ज़्यादा बड़े जहाज़ों का निर्माण हो रहा है. इसके साथ-साथ एक एयरक्राफ्ट कैरियर भी नौसेना में जल्द शामिल होने जा रहा है. इसका मतलब ये है कि बहुत जल्द समुद्र में हेलीकॉप्टर से ज़्यादा जहाज़ हो जाएंगे. आने वाले दिनों में अपने मेजबान राजपूत क्लास डेस्ट्रॉयर की रिटायरमेंट को देखते हुए नौसेना के पुराने पड़ चुके सोवियत में बने कामोव केए-28 एंटी सबमरीन हेलीकॉप्टर के बेड़े को भी काम से हटाया जा सकता है. इससे मझौले हेलीकॉप्टर की कमी और बढ़ जाएगी.

दशकों से खड़ी हो रही समस्याओं का कोई आसान जवाब नहीं है.

अगर नौसेना की ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम संशोधित एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर के लिए एचएएल का प्रस्ताव साकार होता है तो इस बात में ज़्यादा सवाल नहीं है कि वो हेलीकॉप्टर नौसेना के समुद्र में उतरने वाले हेलीकॉप्टर के बेड़े के लिए मूल आधार बनना चाहिए. मुद्दा समय और लागत का है. हर साल जब एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर नहीं मिलता है तो युद्धपोत काफ़ी कम क्षमता के साथ समुद्र की यात्रा करते हैं, ख़ास तौर पर एंटी सबमरीन के मामले में. इस समय  किसी समुद्री संघर्ष के तेज़ होने पर सोचने की ज़रूरत नहीं है. लेकिन अगर काल्पनिक सफलता की कहानी अब से पांच से छह साल बाद भी शुरू होती है तो सरकार को इन वर्षों के गुज़रने के दौरान मौक़े गंवाने के बारे में सोचना होगा. क्या नौसेना को हेलीकॉप्टर ख़रीदने के अपने प्रस्ताव के साथ आगे बढ़ना चाहिए था और एचएएल को अपने स्वदेशी मझौले हेलीकॉप्टर पर ध्यान देने के लिए छोड़ देना चाहिए था? इससे मिलते-जुलते सवाल आने वाले नौसैनिक कैरियर फाइटर और एलसीए एमके 2 को परेशान करते रहेंगे क्योंकि वो आसानी से मिलने वाले चीज़ों के साथ समय और संसाधन के लिए प्रतिस्पर्धा करेंगे. ये वो क़ीमत है जो फ़ैसले लेने में लगातार देरी की वजह से चुकानी होगी- और भारतीय उड्डयन ख़राब चीज़ों पर पैसा खर्च करने और दूसरी बेकार की चीज़ों से भरा पड़ा है.

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