द्विध्रुवीयता के अंत ने बहुध्रुवीयता के युग की शुरुआत की, ख़ासकर साल 2000 की शुरुआत से ऐसा होने लगा. अमेरिका का एकध्रुवीय क्षण ना केवल 9/11 हमले के साथ ख़त्म हो गया, जैसा कि कई विद्वानों ने इसे लेकर टिप्पणी की थी, बल्कि बाद में कई एशियाई शक्तियों के उदय के साथ यह समाप्त हो गया. यह लेख जिन सवालों को संबोधित करता है वह यह कि क्या बहुध्रुवीयता किसी संकट का कारण या समाधान है और साथ ही, ठोस कार्रवाई में यह बाधा बनता है या फिर यह समाधान का नेतृत्व करता है. वर्तमान रूस-यूक्रेन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में मूल्यांकन किए जाने पर बहुध्रुवीयता का विचार ख़ास तौर पर महत्वपूर्ण हो जाता है. क्योंकि बहुध्रुवीयता के केंद्र में शक्ति और सह-निर्भरता के वितरण का विचार निहित होता है. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि बराबरी और अनुकूल सह-निर्भरता एक जैसा है. किसी भी संकट में, हालांकि छोटे और मध्यम ताक़त वाले राष्ट्र ख़ुद को एक मुश्किल में फंसे देख सकते हैं, क्योंकि अक्सर वे बड़ी ताक़त वाले देशों के उद्देश्य के लिए एकजुट होने की कोशिशों में महत्वपूर्ण कड़ी बन जाते हैं. पदानुक्रमित और अराजक विश्व व्यवस्था का मतलब यह होता है कि महान शक्तियों को अपना शीर्ष स्थान बनाए रखने के लिए, उन्हें छोटे और कमज़ोर राष्ट्रों द्वारा पर्याप्त सहायता की ज़रूरत होती है. भले ही वैश्विक आधिपत्य ने नियम निर्धारित किए हैं, जो गैर-आधिपत्य देशों के राष्ट्रीय हितों की अनदेखी कर सकते हैं लेकिन नियम स्थापित करने में अन्य राष्ट्रों द्वारा उसी के माध्यम से वैधता प्राप्त होती है जो इसमें हिस्सा लेते हैं बल्कि वो नहीं जो इसे बनाते हैं. पश्चिम की घटती शक्ति और वैश्वीकरण के कारण निर्मित अंतर्संबंध कई देशों को वैश्विक क्षेत्र में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए रणनीतिक रूप से अपनी स्वायत्तता का इस्तेमाल करने की इजाज़त देता है. यह वार्ता के दायरे को व्यापक करते हुए वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था में कुछ शक्तियों की गतिशीलता के फिर से पुनर्विन्यास की अनुमति देकर गैर-आधिपत्य वाली ताक़तों को सशक्त बनाता है. गैर आधिपत्य वाले ताक़तों के संबंध में इन बदलावों की संभावनाओं का मुद्दा विवादास्पद और एक अलग बहस का विषय है. बहुध्रुवीयता के साथ तकनीकी कौशल भी जुड़ा हुआ होता है, जिसने बहुराष्ट्रीय निगमों (एमएनसी) की सुविधा को बढ़ाने और उन्हें प्रोत्साहन देने में मदद दिया है.
यह लेख जिन सवालों को संबोधित करता है वह यह कि क्या बहुध्रुवीयता किसी संकट का कारण या समाधान है और साथ ही, ठोस कार्रवाई में यह बाधा बनता है या फिर यह समाधान का नेतृत्व करता है.
रूस-यूक्रेन संकट और बहुध्रुवीयता
यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूसी आक्रमण के मौज़ूदा संकट के लिए बहुध्रुवीयता की इस सैद्धांतिक पृष्ठभूमि का अमलीकरण कुछ घटनाओं और कार्यों का ध्यान और आलोचनात्मक उल्लेख करने की मांग करता है जो इस मामले को साबित करता है. व्हाइट हाउस की फ़ैक्ट शीट के मुताबिक़, “संयुक्त राज्य अमेरिका और दुनिया भर में 30 से अधिक सहयोगियों और भागीदारों ने इतिहास में सबसे प्रभावशाली, समन्वित और व्यापक आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं”.
कई देश अब रूसी तेल और गैस आयात के विकल्प तलाश रहे हैं. माना जाता है कि आर्थिक प्रतिबंधों को लागू करके किसी देश द्वारा आक्रामक और नैतिक रूप से संदिग्ध कार्यों को रोका जा सकता है. इस संकट के मद्देनज़र दुनिया भर की कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने कारोबार रोक दिया है या पूरी तरह से वापस ले लिया है. संकट के प्रति उनकी प्रतिक्रिया ज़्यादातर मामलों में अधिक अस्थायी और अल्पकालिक रही हैं, जिससे उन्हें संकट के बाद वापस लौटने और प्रतिबंधों को हटाने की अनुमति मिली. हालांकि रूस के मामले में, भारी प्रतिबंधों के बावज़ूद उसने युद्ध को रोकने के वैश्विक अपील को मानने से इनकार कर दिया है.
यहां, युद्ध में जाने के कारणों से यह समझने का कुछ आधार मिल सकता है कि रूस जंग रोकने के लिए तैयार क्यों नहीं है. हालांकि युद्ध आज के कई घटनाक्रमों से प्रभावित हो सकता है लेकिन यह शीत युद्ध की प्रतिद्वंद्विता में अपनी जगह पाता है, भले ही रूस यूक्रेन जंग का तात्कालिक कारण यूक्रेन को नेटो में शामिल होने से रोकना था. तत्कालीन सोवियत संघ के पतन ने इस पूरे क्षेत्र पर गहरा प्रभाव छोड़ा था. रूस और चीन दोनों ने तब से दुनिया भर में पश्चिम के प्रभाव और कार्यों का मुक़ाबला करने के लिए हाथ मिलाया है. उन्होंने विशेष रूप से कई देशों को प्रभावशाली बनने से रोकने और वैश्विक व्यवस्था में असंतुलित शक्ति संबंधों के ज़रिए अन्य देशों को दबाने के लिए अमेरिका के प्रयासों के ख़िलाफ़ बात की है. रूस के पूर्वी यूरोप पर नियंत्रण ख़त्म होने के बाद, जहां देशों ने अब नेटो देशों के साथ रिश्ते कायम कर लिए हैं, और कुछ देश नेटो में शामिल हो गए हैं, इससे वर्तमान संकट बढ़ा है. पूर्वी यूरोप में नेटो की बढ़ती मौज़ूदगी रूस को अपनी राजनीतिक और रणनीतिक स्वायत्तता के लिए ख़तरा लगता है. यह रूस को शीत युद्ध की समाप्ति और बहुध्रुवीयता के परिणामस्वरूप इन राष्ट्रों की स्वतंत्रता के कारण पूर्वी यूरोप में अपने आधिपत्य के नुक़सान से निपटने के लिए तैयार करता है. रूस के लिए जो सबसे हैरान करने वाली बात थी यूक्रेन का रूस जैसे ताक़तवर शक्ति के ख़िलाफ़ प्रतिक्रिया देना. साथ ही यूक्रेन द्वारा आत्मसमर्पण नहीं करने का विकल्प चुन कर अपने क्षेत्र में हिंसक वारदातों को झेलने की बात ने रूस को चौंका दिया.
रूस के लिए जो सबसे हैरान करने वाली बात थी यूक्रेन का रूस जैसे ताक़तवर शक्ति के ख़िलाफ़ प्रतिक्रिया देना. साथ ही यूक्रेन द्वारा आत्मसमर्पण नहीं करने का विकल्प चुन कर अपने क्षेत्र में हिंसक वारदातों को झेलने की बात ने रूस को चौंका दिया.
संयुक्त राज्य अमेरिका ने युद्ध के कारण मानवीय आपदाओं और कार्रवाई और निर्णय लेने में एक संप्रभु देश के स्वायत्तता के अधिकार के उल्लंघन के ख़िलाफ़ जमकर हमला बोला है. युद्ध ने रूस को वैश्विक व्यापार और बहुपक्षीय संगठनों से बाहर करके दुनिया को अपने पक्ष में एकजुट करने की कोशिश की है. वेनेजुएला की मादुरो सरकार के अलोकतांत्रिक रवैये के साथ देश के नागरिकों को उनके बुनियादी अधिकार से वंचित करने के बावजूद इस समय वेनेजुएला पर प्रतिबंधों में ढील देने पर भी विचार किया जा रहा है. ऐसे प्रतिबंधों ने देश में पहले से ही अस्थिर और गिरती सामाजिक-आर्थिक स्थिति को और अधिक नुकसान पहुंचाया है. अमेरिका ने रूस के साथ भारत के तेल सौदे को स्वीकार किया है, और हिंदभारत-प्रशांत में चीन के विस्तारवाद का मुक़ाबला करने के लिए एक मज़बूत सहयोगी के रूप में एक प्रमुख एशियाई शक्ति को साथ रखने की दिलचस्पी को अगर देखा जाए तो यह रूस यूक्रेन युद्ध पर उसके रुख़ के विपरीत है. भारत ने युद्ध को समाप्त करने के लिए शांति और बातचीत की मांग करते हुए अपनी रणनीतिक कूटनीति के ज़रिए रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संतुलन बनाने की कोशिश भी की है.
एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था जो असंतुलित शक्तियों और निर्णायक संप्रभुता द्वारा नेतृत्व की जा रही है, उसपर किसी तरह की रोक की कार्रवाई को अमल में लाना काफी मुश्किल साबित हो सकता है और उन्हें लागू करवाने में निर्भरता के ख़तरों का सामना करना पड़ सकता है.
बहुध्रुवीयता अपने आप में बहुपक्षवाद के लिए ख़तरा
यूक्रेन पर रूस का आक्रमण ख़ास तौर पर इस बात का संकेत है कि विश्व की उदार व्यवस्थाएं ख़तरे में हैं और सत्ता के कई केंद्रों ने कमज़ोर अंतर संबंधों को पैदा किया है. इससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या बहुध्रुवीयता स्वाभाविक रूप से संघर्ष पैदा करने की क्षमता रखता है और क्या बहुपक्षवाद ने उन्हें और अधिक बढ़ाया है. यदि यह सही है, तो क्या बहुध्रुवीयता और कार्यों के साथ-साथ बहुपक्षवाद के सैद्धांतिक उद्देश्यों के रूप में समाधान खोजना संभव है? हालांकि इस पर भी विचार करना ज़रूरी है कि बहुध्रुवीयता अपने आप में बहुपक्षवाद के लिए ख़तरा है. बहुध्रुवीयता की सबसे बड़ी नाकामी रूस की आक्रामकता के ख़िलाफ़ अन्य देशों को एकजुट (दोनों देशों और नियामक/वैचारिक समर्थन) नहीं करने की क्षमता में देखी जा सकती है. दुनिया भर में राष्ट्रीय हित की प्राथमिकता मानवीय संकट की चिंता पर हावी होता दिख रहा है. बहुध्रुवीयता ने राष्ट्रों को सामूहिक रूप से किसी कार्रवाई को करने में रुकावट डाली है और राष्ट्रीय हित के संबंध में चिंताओं को बढ़ाया है, लेकिन इससे क्या समाधान निकल पा रहा है? क्योंकि बहुध्रुवीयता एक तरह से अनदेखी किए जाने वाले व्यापक निर्भरता को बढ़ाती है. यह वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और बहुपक्षीय संगठनों में भागीदारी के ज़रिए राष्ट्रों को एकजुट कर सकती है. यह फिर इस पर सवाल उठाता है कि राष्ट्रों को जवाबदेह बनाने और रूस की तरह आक्रामकता को रोकने के लिए इस तरह की वैश्विक व्यवस्था किस तरह संतुलन स्थापित कर पाएगी. एक ऐसी वैश्विक व्यवस्था जो असंतुलित शक्तियों और निर्णायक संप्रभुता द्वारा नेतृत्व की जा रही है, उसपर किसी तरह की रोक की कार्रवाई को अमल में लाना काफी मुश्किल साबित हो सकता है और उन्हें लागू करवाने में निर्भरता के ख़तरों का सामना करना पड़ सकता है.
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