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रूस- यूक्रेन युद्ध और इनसे जुड़े आर्थिक प्रतिबंधों के के बुरे असर हम दुनिया के कई हिस्सों में देख रहे हैं. इनकी वजह से कई नई तरह की चुनौतियां खड़ी हो रही हैं.
बड़ी ताक़तों के बीच मुक़ाबले के नए दौर की वजह से दुनिया में जो उथल-पुथल पैदा हुई, उसे महामारी ने और बढ़ाया और अब रूस यूक्रेन के युद्ध के चलते, दुनिया भर में मची इस उठा-पटक ने अलग अलग देशों में अपना बुरा असर दिखाना शुरू कर दिया है. आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरण संबंधी बड़े सवालों के बावजूद, बाक़ी सभी चुनौतियों पर भू-राजनीतिक खींच-तान ने अपना दबदबा बनाया हुआ है. इन हालात में आगे चलकर कई तरह की अनिश्चितताएं पैदा होने का अंदाज़ा लगाया जा रहा है. इनमें वो बातें भी शामिल हैं रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे मौजूदा युद्ध के कारण पैदा हुई हैं. इस युद्ध के चलते, आर्थिक प्रतिबंधों, नई नई खेमेबंदी के फिर से पैदा होने, आर्थिक स्थिरता और व्यापार व आपूर्ति श्रृंखलाओं में बदलाव जैसे कई नए समीकरण बनते दिख रहे हैं.
युद्ध, सैन्य मदद और बड़े पैमाने पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों ने कई ऐसी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, जिनका असर सिर्फ़ पूर्वी यूरोप तक नहीं सीमित है, बल्कि पूरी दुनिया पर दिख रहा है.
आज जब रूस और यूक्रेन के युद्ध का छठा महीना शुरू हो चुका है, तो दोनों पक्षों की सहमति से विवाद के समाधान की तो बात छोड़िए, किसी युद्ध विराम तक की संभावना बहुत कम दिख रही है. रूस ने युद्ध के दौरान अपने लक्ष्य और रणनीति में बदलाव किया. अब वो यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणी हिस्से पर अपना ध्यान ज़्यादा केंद्रित कर रहा है, ताकि जंग के शुरुआती दौर में मिले झटकों से उबर सके. इससे इस युद्ध का एक नया दौर शुरू हो गया है. इससे रूस ने जंग के दूसरे दौर में कुछ अहम सफलताएं हासिल की हैं. इसके उलट पश्चिमी देशों द्वारा यूक्रेन को सहयोग और उसकी आर्थिक और सामरिक मदद, उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) और यूक्रेन से लगने वाले अन्य देशों द्वारा एकजुट होने के साथ साथ पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर बेहद व्यापक और बहुआयामी आर्थिक प्रतिबंध लगाने से दोनों पक्षों का रुख़ और कड़ा हो गया है. युद्ध, सैन्य मदद और बड़े पैमाने पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों ने कई ऐसी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, जिनका असर सिर्फ़ पूर्वी यूरोप तक नहीं सीमित है, बल्कि पूरी दुनिया पर दिख रहा है. इन नई चुनौतियों में सबसे ज़्यादा असरदार आर्थिक प्रतिबंध हैं, जिनका बाक़ी दुनिया पर पड़ रहा असर आंखों से दिख रहा है और इसका मूल्यांकन भी किया जाना संभव है.
आर्थिक प्रतिबंधों की परिकल्पना बहुत पुरानी है. हालांकि पिछली कई सदियों के दौरान इसकी रूप-रेखा और नियमों में बहुत से बदलाव देखने को मिले हैं. इन आर्थिक प्रतिबंधों के दबाव में उम्मीद के मुताबिक़ राजनीतिक नतीजे हासिल कर पाने की क्षमता पर विवाद भी लंबे समय से चला आ रहा है. इसी वजह से विशेषज्ञों के बीच प्रतिबंधों की उपयोगिता को लेकर काफ़ी मतभेद हैं. इन बातों से इतर, दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अमेरिका ने आर्थिक प्रतिबंधों को नीतिगत हथियार के तौर पर इस्तेमाल करना कई गुना बढ़ा दिया है. इसकी प्राथमिक वजह तो सह-अस्तित्व, दुनिया का एकध्रुवीय होना और भूमंडलीकरण रहे हैं. अमेरिका ने अब तक विरोधियों को डराने वाले और उसके साथ साथ सज़ा देने वाले प्रतिबंधों का इस्तेमाल, कभी अकेले और कभी अन्य साझीदार देशों के साथ मिलकर किया है. संयुक्त राष्ट्र ने भी, संयुक्त राष्ट्र के चार्टर की धारा 41 के तहत व्यापक स्तर पर ऐसे प्रतिबंधों का इस्तेमाल बढ़ा दिया है.
जहां तक रूस और यूक्रेन के युद्ध का सवाल है, तो अमेरिका और यूरोपीय संघ ने मिलकर- 2014 से 2021 के दौरान रूस के ऊपर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं. बाद में कई और देश भी इन प्रतिबंधों को लागू करने में शामिल हुए थे. इन आर्थिक प्रतिबंधों के व्यापक दायरे और धीरे धीरे लागू करने के चलते, अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को ख़ुद को इन प्रतिबंधों के हिसाब से ढालने में मदद की है. हालांकि, यूक्रेन पर हमले के बाद, यानी फरवरी 2022 के बाद रूस पर लगाए गए प्रतिबंध ज़्यादा सख़्त, मज़बूत और व्यापक रहे हैं. इनका मक़सद आने वाले लंबे समय तक रूस की अर्थव्यवस्था को विकलांग बनाना है. इनमें संस्थाओं के साथ साथ ख़ास व्यक्तियों, बैंकों और वित्तीय सेवाओं, निर्यात और आयात, सेवाओं और तकनीक पर पाबंदियां लगाना शामिल है. इन प्रतिबंधों के केंद्र में ऊर्जा (तेल, गैस और कोयला क्षेत्र पर प्रतिबंध, जिन्हें लगाते हुए इस बात का ख़याल रखा गया है कि यूरोपीय संघ के कमज़ोर देशों पर इनका बुरा असर न पड़े), स्टील, खनन और कृषि क्षेत्र रहे हैं. रूस ने इन प्रतिबंधों से होने वाली तकलीफ कम करने के कलिए कुछ क़दम उठाए हैं. इनमें पूंजी के प्रवाह पर नियंत्रण, रूसी नागरिकों द्वारा अपनी मुद्रा विदेश भेजने, कुछ ख़ास चीज़ों जैसे कि, कच्चे माल और कृषि उत्पादों के निर्यात पर पाबंदियां और गैस का भुगतान रूबल में करने, लेन-देन की वैकल्पिक व्यवस्था अपनाने और व्यापार व निवेश में विविधता लाने जैसे क़दम शामिल हैं. रूस ने पश्चिमी देशों पर पलटवार करते हुए कुछ प्रतिबंध ख़ुद भी लगाए हैं. इसके अलावा, रूस ने कुछ यूरोपीय देशों को गैस का निर्यात भी कम कर दिया है. इन जटिल प्रतिबंधों के आपसी टकराव ने दुनिया की तरक़्क़ी पर बहुत बुरा असर डाला है. यही नहीं, इसके चलते कृषि उत्पादों, खाने-पीने के सामान, ऊर्जा और रासायनिक खाद के दाम में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हो गया है. बहुत से उद्योगों की आपूर्ति श्रृंखलाएं भी बाधित हो गई हैं. मुद्रा बाज़ार में भयंकर उठा-पटक देखने को मिल रही है. तमाम देशों पर क़र्ज़ का बोझ बढ़ रहा है और बहुत से देशों का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम होता जा रहा है. नतीजा ये हुआ है कि बहुत सी सरकारों और केंद्रीय बैंकों को कड़े वित्तीय और मौद्रिक नीति संबंधी फ़ैसले लेने पड़े हैं. आज जब ये जंग और प्रतिबंध दोनों का सिलसिला बदस्तूर जारी है, तो दुनिया की अर्थव्यवस्था का भविष्य बेहद कमज़ोर दिख रहा है. श्रीलंका के आर्थिक संकट की मिसाल देते हुए, हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की प्रमुख ने कहा था कि, ‘दुनिया की अर्थव्यवस्था का भविष्य बहुत स्याह हो गया है और अनिश्चितता का ज़बरदस्त माहौल बन गया है. जिन जोखिमों की बात अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने पहले की थी वो अब हक़ीक़त में तब्दील हो चुके हैं.’
यूक्रेन पर हमले के बाद, यानी फरवरी 2022 के बाद रूस पर लगाए गए प्रतिबंध ज़्यादा सख़्त, मज़बूत और व्यापक रहे हैं. इनका मक़सद आने वाले लंबे समय तक रूस की अर्थव्यवस्था को विकलांग बनाना है.
अमेरिका और यूरोपीय संघ ने यूक्रेन पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनका G7 देशों ने न केवल पूरी तरह से समर्थन किया है, बल्कि ख़ुद भी रूस पर कई प्रतिबंध लगा दिए हैं. चीन, अर्जेंटीना, दक्षिण अफ्रीका, मेक्सिको, इंडोनेशिया, तुर्किए और सर्बिया ने खुलकर बयान दिया है कि वो ऐसे आर्थिक प्रतिबंधों का समर्थन नहीं करते, क्योंकि इनसे कोई मक़सद हल नहीं होता. इसलिए वो इन प्रतिबंधों का हिस्सा नहीं बनेंगे. कई अन्य देशों ने बिना कोई बयान जारी किए हुए ही, किसी खेमे का हिस्सा बनने के बजाय, निष्पक्ष बने रहने का फ़ैसला किया है, और वो रूस पर लगे इन प्रतिबंधों में शामिल नहीं हुए हैं.
पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का पूरा असर अभी तक नहीं दिख रहा है. लेकिन, इस स्तर पर कम से कम तीन बातें साफ़ दिखने लगी हैं.
नियम आधारित व्यवस्था के नज़रिए से लगाए गए आर्थिक प्रतिबधों को चुनौती मिलने की पूरी संभावना है. नियमों पर आधारित विश्व व्यवस्था का पश्चिमी देशों का नज़रिया पिछले पांच वर्षों के दौरान धीरे धीरे विकसित हुआ है. इसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य नियम क़ायदों की अहमियत पर काफ़ी ज़ोर दिया जाता है. इस दृष्टिकोण का एक मक़सद, दबाव और आक्रामकता से अपना हित साधने वाले चीन जैसे देशों पर लगाम लगाना भी है. हालांकि, इस नज़रिए को व्यवहारिक स्तर पर लागू करने की राह में कई दिक़्क़तें आई हैं. इसकी बड़ी वजह कमज़ोर अंतरराष्ट्रीय और बहुपक्षीय संगठन रहे हैं. रूस और यूक्रेन के युद्ध की बात करें, तो रूस ने निश्चित रूप से नियम आधारित विश्व व्यवस्था की लक्ष्मण रेखा को पार किया है और अन्य देशों को सख़्त आर्थिक प्रतिबंध लगाने को मजबूर किया है. इसके बावजूद, बहुत से देश ये मानते हैं कि इन आर्थिक प्रतिबंधों से कुछ ख़ास देशों के राजनीतिक हित ही सध रहे हैं. प्रतिबंध लगाने वाले देशों पर इनके विपरीत असर को कम करने के लिए उठाए गए क़दम और विकासशील देशों पर इनके बुरे असर को तवज्जो न दिए जाने से इन प्रतिबंधों से निपटने की व्यवस्था को लेकर शंकाएं पैदा हुई हैं. इसके अलावा विदेशी मुद्रा भंडारों के कमज़ोर होने की आशंकाएं भी ज़ाहिर की गई हैं. आर्थिक प्रतिबंध लगाने की किसी एक रूप-रेखा पर अब तक कोई सहमति नहीं बनी है. वहीं, विकसित देशों द्वारा आर्थिक प्रतिबंधों को बार बार हथियार बनाए जाने से नियम आधारित विश्व व्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ने की राह में चुनौतियां आएंगी.
चीन, ऐसे प्रतिबंधों से लड़ने की अपनी क्षमता विकसित करने पर और ध्यान केंद्रित करेगा. चीन के लिहाज़ से देखें, तो इस युद्ध के सैन्य तजुर्बे उसके लिए तब तक अधूर हैं, जब तक वो आर्थिक प्रतिबंधों से मिले सबक़ को न समझ ले. इन आर्थिक प्रतिबंधों के युद्ध के संचालन, इसकी प्रगति और युद्ध जारी रखने पर पड़े वाले असर को देखते हुए, चीन भविष्य में ऐसी पाबंदियों से निपटने की अपनी क्षमता को और बढ़ाने पर पूरा ध्यान लगाएगा. चीन दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक देश है और उसकी अर्थव्यवस्था में भी बहुत विविधता है. 2021 में चीन की GDP, रूस से दस गुना अधिक थी. चीन के बैंकों की संपत्ति, रूस के बैंकों से तीस गुना अधिक थी. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत से पहले ही चीन ने ऐसे प्रतिबंधों से निपटने की अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए क़दम उठाने शुरू कर दिए थे. इनमें आत्मनिर्भरता पर ज़ोर, घरेलू अर्थव्यवस्था और देश के भीतर से ही अर्थव्यवस्था को ताक़त देने, व्यापारिक लेन-देन और बॉन्डधारकों के लिए अपनी मुद्र रेनमिन्बी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के साथ साथ चीन ने ख़ुद के बनाए क्रॉस बॉर्डर इंटरबैंक पेमेंट सिस्टम के ज़रिए भुगतान को बढ़ावा देना तेज़ कर दिया है. वैसे विदेशी मुद्रा भंडार में विविधता लाने की अपनी कोशिशों में चीन को सीमित सफलता ही मिली है. 2022 की शुरुआत में जहां रूस का विदेशी मुद्रा भंडार 640 अरब डॉलर था. वहीं चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 3.4 खरब डॉलर था. तय है कि चीन अपनी इन कोशिशों में तेज़ी लाएगा, और ‘प्रतिबंधों की व्यवस्था से निपटने’ की साझा सोच रखने वाले अन्य देशों के साथ तालमेल बढ़ाएगा. जून 2022 में ब्रिक्स (BRICS) शिखर सम्मेलन में बोलते हुए, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मौजूदा वैश्विक संकट के दौरान ब्रिक्स देशों के लचीलेपन की सराहना की थी और इन देशों से कहा था कि वो शीत युद्ध के दौर की मानसिकता वाले इकतरफ़ा प्रतिबंधों का विरोध करने के लिए मिल-जुलकर काम करें.
चीन दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक देश है और उसकी अर्थव्यवस्था में भी बहुत विविधता है. 2021 में चीन की GDP, रूस से दस गुना अधिक थी. चीन के बैंकों की संपत्ति, रूस के बैंकों से तीस गुना अधिक थी. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत से पहले ही चीन ने ऐसे प्रतिबंधों से निपटने की अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए क़दम उठाने शुरू कर दिए थे
डॉलर के दबदबे वाले विदेश मुद्रा भंडार और सीमाओं के आर-पार होने वाले लेन देन पर दबाव बढ़ने की आशंका है. अमेरिकी डॉलर आज भी विश्व व्यापार की सबसे प्रमुख मुद्रा है. 2022 में अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरों और मुद्रा के लेन-देन की दरों में अंतर से इसकी ताक़त और बढ़ी है. हाल के वर्षों में दुनिया के विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की स्थिति काफ़ी बेहतर रही है. हालांकि, पिछले बीस वर्षों में विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से घटकर 59 प्रतिशत रह गई है. पिछले एक दशक के दौरान बहुत से देशों ने अपने व्यापार की मुद्रा में विविधता बढ़ा दी है. रूस और यूक्रेन के मौजूदा युद्ध और उनके चलते लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों के चलते इस प्रक्रिया में और भी तेज़ी आएगी. क्योंकि आर्थिक प्रतिबंधों ने विश्व वित्तीय व्यवस्था के असंतुलन को और उजागर कर दिया है. तमाम देशों के बीच इस बात को लेकर भी चिंता है कि रिज़र्व मुद्रा के तौर पर डॉलर के दबदबे के चलते पश्चिमी देशों द्वारा इकतरफ़ा ढंग से आक्रामक आर्थिक प्रतिबंध लगाने की राह खुलती है और मुद्रा के अवमूल्यन से अन्य ज़्यादातर देशों को होने वाले फ़ायदे की संभावनाएं भी सीमित ही रह जाती हैं. इन विचारों को देखते हुए, दुनिया के कई हिस्सों में द्विपक्षीय और बहुपक्षीय व्यापार में वैकल्पिक मुद्रा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिए जाने की संभावना है इसके अलावा, रूस और चीन साथ मिलकर, ब्रिक्स की रिज़र्व मुद्रा विकसित करने पर काम कर रहे हैं. इसे न केवल सदस्य देशों के लिए उपयोगी बताया जा रहा है. बल्कि, ये साझा मुद्रा उन देशों के लिए भी फ़ायदेमंदर बताई जा रही है, जो ब्रिक्स देशों के साथ कारोबार करते हैं. विश्व व्यापार में अमेरिकी डॉलर के दबदबे के पीछे कई कारण हैं. लेकिन, ऐसी कोशिशों के चलते डॉलर के दबदबे वाली व्यापारिक और वित्तीय व्यवस्था के लिए चुनौती बन सकती हैं. अगर कुछ देश अपनी मुद्राओं में लेन-देन बढ़ाते हैं और धीरे धीरे केंद्रीय बैंकों की डिजिटल करेंसी (CBDC) में व्यापार का भुगतान बढ़ेगा तो, सीमाओं के आर-पार के भुगतान पर भी डॉलर के प्रभुत्व में कमी आएगी. CBDC के विकास को लेकर एक हालिया रिपोर्ट में ये संकेत दिया गया है कि इस डिजिटल मुद्रा की आमद से विदेशी मुद्रा भंडार की करेंसी में भी बदलाव देखने को मिलेगा. CBDC के डिज़ाइन, अन्य मुद्राओं से तालमेल, नियामक पहलुओं और सीमाओं के आर-पार के लेन देन की व्यवस्थाएं विकसित करने पर ज़ोर देने का नया चलन देखने को मिल रहा है.
अगर कुछ देश अपनी मुद्राओं में लेन-देन बढ़ाते हैं और धीरे धीरे केंद्रीय बैंकों की डिजिटल करेंसी (CBDC) में व्यापार का भुगतान बढ़ेगा तो, सीमाओं के आर-पार के भुगतान पर भी डॉलर के प्रभुत्व में कमी आएगी.
रूस यूक्रेन युद्ध और उससे जुड़े आर्थिक प्रतिबंधों के विपरीत असर दुनिया के तमाम हिस्सों पर दिख रहे हैं. इससे नई तरह की चुनौतियां पैदा हो रही है. आधुनिक प्रतिबंधों की परिकल्पना और इन्हें लागू करने को लेकर दुनिया की राय भी बंटी हुई है. इन प्रतिबंधों के बेइरादा असर, ख़ास तौर से विकासशील देशों पर पड़ रहे बुरे प्रभाव ने इन प्रतिबंधों को कम करने और संकट के कूटनीतिक समाधान की आवाज़ को और तेज़ कर दिया है. वैसे तो कई भू-राजनीतिक अनिश्चितताएं बनी हुई हैं. लेकिन, आर्थिक प्रतिबंधों और पलटवार में लगाए गए प्रतिबंधों से जो बातें उभर रही हैं, उनके चलते, भू-आर्थिक समीकरणों के बदल जाने की काफ़ी संभावनाएं हैं.
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Vice Admiral Girish Luthra is Distinguished Fellow at Observer Research Foundation, Mumbai. He is Former Commander-in-Chief of Western Naval Command, and Southern Naval Command, Indian ...
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