यूक्रेन में जारी युद्ध का परिदृश्य वैसा नहीं दिखाई दे रहा है, जैसी रूस ने आक्रमण करने से पहले इसकी कल्पना की थी. क्रेमलिन ने यूक्रेनी सेना की क्षमता, यूक्रेन के नागरिकों की अपनी आजादी के लिए लड़ने की तीव्र इच्छाशक्ति और ट्रांसअटलांटिक समुदाय की एकजुटता को कम आंका था. युद्ध की शुरुआत के बाद से ही हो रही सभी वार्ताओं में यूक्रेन की प्राथमिक मांग रूसी सेना की वापसी के साथ डोनबास और 2014 में कब्ज़ा किए गए क्राइमिया की वापसी की प्रक्रिया पर चर्चा की रही है. यूक्रेन के सरकार की पहली प्राथमिकता यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की पुन: बहाली थी और यही बनी भी हुई है.
मॉस्को हालांकि इन मांगों पर विचार से इंकार करते हुए यूक्रेन की कुछ और भूमि को कब्जाने की कोशिश कर रहा है. युद्ध के दौरान कब्ज़ा किए गए नए इलाके में रूस तत्काल ही अपना प्रशासन जमाना शुरू कर देता है. कब्ज़ा किए गए इलाके में रूसी मुद्रा का उपयोग शुरू कर यूक्रेन की भाषा और उसके प्रतीक चिन्हों पर प्रतिबंध लगाने के साथ ही यूक्रेन की मोबाइल संचार व्यवस्था और रेडियो प्रसारण को बंद कर दिया जाता है. फिलहाल यूक्रेन का 20 प्रतिशत क्षेत्र रूसी कब्जे में है. हालांकि शुरुआत में रूस, यूक्रेन के खिलाफ अपने आक्रमण को यह कहकर सही साबित करने की कोशिश करता था कि वह ‘डोनबास क्षेत्र के अधिकारों’ की रक्षा कर रहा है. लेकिन, कीव पर कब्जा करने की मंशा, खारकीव, ङौपोरीङिया और खेरसान क्षेत्र के कुछ हिस्सों पर कब्जे ने यह साफ कर दिया है कि उसका लक्ष्य यूक्रेन पर संपूर्ण अधिकार जमाना ही है.
रूस के लिए यह लड़ाई एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरने की अपनी महत्वाकांक्षा को संतुष्ट करने के साथ ही पूर्व के सोवियत संघ के विघटन के बाद उसके रूतबे में आयी कमी को पुन: पाने की कोशिश है.
शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरने की महत्वाकांक्षा
यूक्रेन के खिलाफ रूस की लड़ाई दोनों पक्षों के लिए अस्तित्व की लड़ाई बनती जा रही है. यूक्रेन के लिए यह देश की संप्रभुता और देश के रूप में अपने अस्तित्व को बचाए रखने की लड़ाई है. रूस के लिए यह लड़ाई एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरने की अपनी महत्वाकांक्षा को संतुष्ट करने के साथ ही पूर्व के सोवियत संघ के विघटन के बाद उसके रूतबे में आयी कमी को पुन: पाने की कोशिश है. यूक्रेन के इलाकों पर विजय पाने से मॉस्को के पास बाल्टिक देशों एवं पूर्वी यूरोप के देशों के मामलों में हस्तक्षेप का अधिक मौका होगा और इसके साथ ही वह सोवियत संघ के विघटन के बाद उपजी व्यवस्था में अपना प्रभाव भी स्थापित कर सकेगा.
रूसी सेना अब फ्रंट लाइन के साथ-साथ अपने हमले को सेना के दायरे से बाहर आने वाले इलाकों, मसलन शहर पर गोलाबारी कर वहां की ढांचागत सुविधाओं को नुकसान पहुंचाने का भी काम कर रही है. युद्ध के दौरान 3000 से ज्यादा रॉकेटस छोड़े गए, जिसकी वजह से सैकड़ों नागरिकों और बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ी. हमले का मुख्य उद्देश्य यूक्रेन के नागरिकों पर अतिरिक्त दबाव डालकर वहां की सरकार और उनके प्रतिरोध को कमजोर करना है, ताकि वह कीव को कुछ ज्यादा रियायतें देने पर मजबूर कर सके. हालांकि आज यूक्रेन के सामने हथियार डाल देने का कोई कारण दिखाई नहीं देता. भविष्य में शांति की शर्तो को अब युद्ध भूमि पर ही तय किया जाएगा. इस बीच दोनों पक्ष बातचीत के दौरान अपना पक्ष मजबूत करने के लिए परिस्थिति को अपने अनुकूल बनाने में लगे हुए हैं.
जवाबी हमला करने की यूक्रेन की सेना की संभावनाएं इस बात पर टिकी हुई है कि उसे पश्चिमी देशों से लगातार हमला करने के लिए ज़रुरी हथियार कितनी जल्दी मिल पाते हैं. काफी कोशिशों के बाद जब यूक्रेन को लंबी दूरी तक मार करने वाला आर्टिलरी सिस्टम मिला तो उसने इसकी सहायता से कब्ज़ा किए गए इलाकों में तैयार रूसी सेना के वेयर हाउस को नष्ट कर डोनबास पर हो रहे हमले को कमजोर करने में सफलता हासिल की थी.
यूक्रेन को लेकर यूरोपियन यूनियन (ईयू) तथा उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की नीति हमेशा से रूसी प्रतिक्रिया पर आधारित रही है. यूक्रेन के खिलाफ रूस के आक्रमण ने यूरोपीय देशों के सामने एक गंभीर चुनौती पेश की है.
युद्ध के आरंभ से ही यूक्रेनी प्रशासन को अनेक मोर्चो, सैन्य, वित्तीय, रणनीतिक और सूचनात्मक, पर लड़ाई लड़नी पड़ रही है. यूक्रेन के प्रत्येक सफल कदम, पश्चिमी देशों से हथियार लेने, यूरोपियन यूनियन का सदस्य बनने के लिए उम्मीदवार के रूप में पात्रता की स्वीकृति पाने और पश्चिमी देशों को रशियन फेडरेशन के खिलाफ प्रतिबंधों के सात पैकेज लागू करने में सफलता हासिल करने के लिए, यूक्रेन के अधिकारियों और खासकर राष्ट्रपति जेलेंस्की ने व्यक्तिगत तौर पर कड़ी मेहनत की. यूक्रेन को लेकर यूरोपियन यूनियन (ईयू) तथा उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की नीति हमेशा से रूसी प्रतिक्रिया पर आधारित रही है. यूक्रेन के खिलाफ रूस के आक्रमण ने यूरोपीय देशों के सामने एक गंभीर चुनौती पेश की है. इसमें से अधिकांश देश अनेक वर्षो से पुतिन को भड़काने से बचते रहे और उसके साथ लगातार ‘हमेशा की तरह संबंध’ जारी रखे हुए थे.
वर्तमान में जब पश्चिमी देश रशियन फेडरेशन के खिलाफ यूक्रेन के समर्थन में एकजुटता प्रदर्शित कर रहे हैं, तो उन्हें रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से ऊर्जा और खाद्य संकट जैसी कुछ नई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. रोजमर्रा की उपयोगिता वाली सुविधाओं, जीवन के लिए आवश्यक चीजों, खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि और बढ़ती मुद्रास्फीति की वजह से पश्चिमी देशों के समाज ने वहां की सरकारों पर यह दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि आखिर यूक्रेन का साथ देने के लिए उनका देश अपने संसाधन कब तक भेजता रहेगा. व्लादिमीर पुतिन यह जानते हैं कि लोकतांत्रिक देशों में अधिकांश सरकारें अपने मतदाताओं के मूड को लेकर संवेदनशील होती हैं, खासकर बात जब आर्थिक स्थिरता और सामाजिक सुरक्षा की आती है. इसी वजह से यूक्रेन में युद्ध को लंबा खींचकर रूसी अधिकारी न केवल यूक्रेन को थकाना और हताश करना चाहते हैं, बल्कि वह ऐसा ही यूक्रेन के सहयोगियों के साथ होता देखना चाहते हैं.
तहस-नहस होती यूक्रेनी अर्थव्यवस्था
इस बीच यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को युद्ध की वजह से अब तक सीधे तौर पर 95.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स का नुकसान हो चुका है और यह नुकसान प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. पश्चिमी सहयोगियों ने हाल ही में स्विस सिटी लुगानो में अपनी पहली बैठक करते हुए युद्ध समाप्ति के बाद यूक्रेन में पुनर्निमाण की योजना पर बातचीत की. इसके अलावा यूक्रेन के अधिकारी यूक्रेन को हुए नुकसान के लिए मुआवजा प्रक्रिया स्थापित करने पर काम कर रहे हैं.
रूस, जानबूझकर यूक्रेन के उद्योगों और उसके माल गोदामों को नष्ट कर रहा है. इसका कारण यह है कि वह चाहता है कि यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को बाधित किया जा सके. रूसी आक्रमण की वजह से इस वर्ष ही यूक्रेनी अर्थव्यवस्था में 35 प्रतिशत की गिरावट आने की संभावना जताई जा रही है. दो महीने तक लगे झटकों के बाद यूक्रेन की सरकार आपूर्ति श्रृंखला को सुचारू करने, कब्ज़ा किए गए क्षेत्रों से उद्योगों को स्थानांतरित करने और बुआई अभियान चलाने में कामयाब हुई. लेकिन, यूक्रेन के बंदरगाहों पर रूस की नाकाबंदी के कारण यूक्रेन के सामने निर्यात व्यवस्था को ठीक करने की एक मुश्किल चुनौती खड़ी है.
इस बीच यूक्रेन की अर्थव्यवस्था को युद्ध की वजह से अब तक सीधे तौर पर 95.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स का नुकसान हो चुका है और यह नुकसान प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है.
इस वक्त पिछले फसल सत्र से उपजा 22 मिलियन टन अनाज यूक्रेन के अनाज गोदामों में फंसा पड़ा है. यह सारा माल निर्यात होना था. फिलहाल किसान नई फसल को काट रहे हैं. ऐसे में यदि समय पर धन उपलब्ध नहीं हुआ तो किसानों और कृषि से जुड़े उद्यमों पर दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है. इसके साथ ही इस वजह से अगले वर्ष का उत्पादन चक्र भी खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएगा. ऐसे में एक ओर जहां वैश्विक स्तर पर खाद्यान्न का संकट है, वहीं रूसी आक्रमण की वजह से यूक्रेन के किसान अपने उत्पाद नहीं बेच पा रहे हैं. यूक्रेन के लिए अनाज निर्यात की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करने की संभावना के दो पहलू देखे जा सकते हैं. ऐसा होने से एक ओर जहां यूक्रेन के किसानों की समस्याओं को हल करने का अवसर होगा, वहीं दूसरी ओर ऐसा करने से यूक्रेनी मालवाहक जहाजों को सुरक्षा की मजबूत गारंटी चाहिए होगी और यूक्रेन के बंदरगाहों को रूस के संभावित कब्जे में जाने से रोकने की भी गारंटी हो जाएगी. यूक्रेनी चिंताएं इसलिए भी वाजिब दिखाई देती हैं, क्योंकि इस्तांबुल में यूक्रेन के बंदरगाहों से अनाज और खाद्यान्न के सुरक्षित परिवहन को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर करने के दूसरे दिन ही रूसी सेना ने ओडेसा बंदरगाह पर कलिब्र मिसाइल से हमला कर दिया. इस समझौते के लिए यूक्रेन ने अपने अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों से गारंटी लेने की कोशिश की थी, क्योंकि उसे रूस पर भरोसा नहीं था. इस समझौते पर बातचीत और हस्ताक्षर संयुक्त राष्ट्र और तुर्की की भागीदारी के साथ हुए थे. रूस ने अपने कृषि क्षेत्र पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाने के बदले में इस बात का संकल्प लिया था कि वह विशेष गलियारे के माध्यम से यात्रा करने वाले नागरिक जहाजों और तीन बंदरगाहों – ओडेसा, युजनी और चोरनोमोर्स्क पर हमला नहीं करेगा. ऐसे में एक बंदरगाह पर रूसी हमले की वजह से रूस पर भरोसे का स्तर घटा है और इस हमले ने समझौते पर अमल की संभावनाओं को मुश्किल में डाल दिया है. इस स्थिति में इन मालवाहक जहाजों और उस पर मौजूद कर्मचारियों की सुरक्षा की गारंटी पर सवालिया निशान लग जाता है, क्योंकि रशियन फेडरेशन उन पर किसी भी क्षण गोलीबारी कर सकता है अथवा उसकी आड़ लेकर यूक्रेन के बंदरगाहों को निशाना बना सकता है. रूस की हरकतों से तुर्की का प्रभाव भी घटता है, क्योंकि वह रूस-यूक्रेन युद्ध में एक रचनात्मक मध्यस्थ बनने की कोशिश कर रहा है. यूक्रेनी बंदरगाहों से रूस की नाकाबंदी हटाने को लेकर हुई बातचीत की प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस की व्यक्तिगत निगराही में हुई. इस समझौते के सफल कार्यान्वयन से उन्हें विश्व खाद्य संकट को हल करने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका के महत्व को समझाने का मौका मिलेगा. यूक्रेन युद्ध और वहां इसकी वजह से होने वाले रक्तपात को रोकने में संयुक्त राष्ट्र को मिली विफलता के बाद इस समझौते पर प्रभावी अमल यह साबित करेगा कि संयुक्त राष्ट्र का प्रभाव अब भी बरकरार है.
हालांकि बंदरगाहों की नाकाबंदी हटाने को लेकर हुआ समझौता हमें यह दिखाता है कि इस पर सही तरीके से अमल होगा ही इस बात की कोई गारंटी नहीं है. इसी प्रकार इस समझौते से यूक्रेन को लेकर रूस की सैन्य योजना में भी कोई परिवर्तन नहीं होगा. पुतिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने हाल ही में इस बात पर जोर दिया है कि रूसी आक्रमण उस वक्त तक जारी रहेगा जब तक वह अपने सभी लक्ष्यों को हासिल नहीं कर लेता. रूसी सेना को होने वाले भारी नुकसान के बावजूद इस फैसले में कोई बदलाव नहीं हुआ है. एक अनुमान है कि पांच माह पुराने युद्ध में रूस ने सोवियत संघ के दस वर्ष तक चले अफगान युद्ध में मारे गए सैनिकों से ज्यादा सैनिकों को गंवा दिया है. 2014 में रूस ने जबरन क्रीमिया पर आसानी से कब्जा करते हुए डोनबास के कुछ क्षेत्रों को हथिया लिया था क्योंकि इस क्षेत्र के नागरिक रूसी समर्थक और खास तौर पर पुतिन के समर्थक थे. मॉस्को ने यहां भाषाई और सांस्कृतिक समानताओं, ऑर्थोडॉक्स चर्च ऑफ द रशियन पेट्रिआर्केट, रूस समर्थक दलों के प्रयोजन तथा क्रेमलिन के एजेंट्स को यूक्रेनी अधिकारियों के साथ एकीकृत करते हुए यहां पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की है. पिछले आठ वर्षो से यूक्रेनी अधिकारियों ने यूक्रेन के भीतर रूसी प्रभाव वाले क्षेत्रों से उसका प्रभाव कम करने की कोशिश की है, लेकिन इस समस्या को अभी तक पूरी तरह हल नहीं किया जा सका है.
यूक्रेनी चिंताएं इसलिए भी वाजिब दिखाई देती हैं, क्योंकि इस्तांबुल में यूक्रेन के बंदरगाहों से अनाज और खाद्यान्न के सुरक्षित परिवहन को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर करने के दूसरे दिन ही रूसी सेना ने ओडेसा बंदरगाह पर कलिब्र मिसाइल से हमला कर दिया.
एक जांच के अनुसार कर्तव्यों के अनुचित प्रदर्शन या सुरक्षाबलों और कानून लागू करने वाली एजेंसियों के कुछ लोगों की सहायता के कारण ही रूसी सैनिकों ने यूक्रेन के खेरसान और जापोरिजिया जैसे क्षेत्रों में आसानी से प्रवेश कर वहां कब्जा जमाने में सफलता हासिल की थी. इसी कारण राष्ट्रपति जेलेंस्की ने यूक्रेन की सुरक्षा सेवा और महाधिवक्ता कार्यालय के कर्मचारियों में अब एक ‘बड़ा बदलाव’ करते हुए उनके चेयरमैन इवान बाकानोव और इरीना वेनेडिक्टोवा को हटा दिया है. इन दोनों विभागों के प्रमुखों के खिलाफ मुख्य शिकायत यह थी कि सुरक्षा सेवा और महाधिवक्ता कार्यालयों के बीच बड़ी संख्या में देशद्रोही मौजूद थे.
यूक्रेन के सामने अनेक चुनौतियां
यह साफ है कि यूक्रेन के सामने अनेक चुनौतियां हैं. इस युद्ध को जीतने के लिए उसे अपने सहयोगियों की सहायता से सफल रणनीतिक और सैन्य दृष्टिकोण अपनाकर अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने की आवश्यकता है. रूस और व्यक्तिगत तौर पर पुतिन के पास हाइब्रिड युद्ध का काफी अनुभव है. ऐसे में यूक्रेन के लिए यह महत्वपूर्ण होगा कि जब तक रूस की ओर से युद्ध जारी रहता है तब तक वह मॉस्को के युद्धविराम अथवा रशियन फेडरेशन की शर्तों पर होने वाली शांति बातचीत जैसे किसी भी झांसे में न आए. ऐसा होने पर यह केवल युद्ध के अंत को स्थगित करेगा, सैनिकों और नागरिकों की बढ़ती मौतों के कारण मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ाएगा और दुष्प्रचार फैलाएगा. इससे दुनिया में और विशेषत: यूरोप में रूस समर्थक लॉबी को यह मौका मिलेगा कि वह यूक्रेन पर रूस के सामने हथियार डालने का दबाव बढ़ा सके.
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