Author : Harsh V. Pant

Published on Oct 28, 2023 Updated 0 Hours ago

भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि रूस के रुख में एक संतुलन बना रहे. खासतौर से रूस को यह संतुलन चीन के उस रुख-रवैये को लेकर सुनिश्चित करना होगा, जो भारतीय हितों को चुनौती पेश करता रहता है.

भारत के हित में नहीं रूस-चीन की दोस्ती

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी बीआरआई चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है. इस योजना का आगाज हुए 10 वर्ष बीत चुके हैं. इस अवसर पर चीन ने बीते दिनों एक कार्यक्रम आयोजित किया. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस आयोजन के मुख्य आकर्षण रहे. हालांकि, मास्को का बीआरआई से आधिकारिक जुड़ाव नहीं है, लेकिन इससे जुड़े आयोजन में पुतिन की मौजूदगी यही दर्शाती है कि दुनिया के दो निरंकुश शासक किस प्रकार एक-दूसरे के नजदीक आते जा रहे हैं.

यूक्रेन युद्ध के बाद से खासतौर पर दोनों के बीच गर्मजोशी बढ़ती ही गई है. इस बीच चीन और रूस का पश्चिमी जगत से टकराव और बढ़ा है. रूस और चीन के रिश्तों में मौजूदा रुझान का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि इसमें चीन बढ़त की स्थिति में है और वही रूस के साथ संबंधों की शर्तें तय कर रहा है. संबंधों के स्वरूप का पलड़ा बीजिंग के पक्ष में झुका होने और कुछ बुनियादी मतभेदों के बावजूद मास्को को शायद इससे कोई बहुत समस्या नहीं, क्योंकि लंबे खिंचते यूक्रेन युद्ध के चलते पुतिन की बीजिंग पर निर्भरता बढ़ती जा रही है. 

संबंधों के स्वरूप का पलड़ा बीजिंग के पक्ष में झुका होने और कुछ बुनियादी मतभेदों के बावजूद मास्को को शायद इससे कोई बहुत समस्या नहीं, क्योंकि लंबे खिंचते यूक्रेन युद्ध के चलते पुतिन की बीजिंग पर निर्भरता बढ़ती जा रही है.

वैश्विक मुद्दों पर प्रतिक्रिया में भी इस साझेदारी की छाप दिखाई पड़ रही है. जैसे कि पश्चिम एशिया के हालिया टकराव पर दोनों देश हिंसा को खत्म करने और द्विराष्ट्र सिद्धांत को लागू करने की हिमायत करते हुए हमास को आतंकी संगठन बताने से बचते रहे. वैसे तो रूस और चीन दोनों के इजरायल के साथ बढ़िया संबंध हैं, लेकिन इजरायल को मिले पश्चिम के तगड़े समर्थन को देखते हुए वे उस पाले में खड़े होते नहीं दिखना चाहते और उन्होंने ऐसा रुख अपनाया, जो उन्हें अरब जगत के नजदीक लाता है. यूक्रेन पर हमला करने के बाद से पुतिन रूस से बाहर नहीं गए, लेकिन बीआरआई के मंच पर उनकी मौजूदगी यह दर्शाती है कि मास्को अब अपनी विदेश नीति में बीजिंग को कितना महत्व देता है. 

कोविड महामारी फैलने के बाद से पुतिन और शी चिनफिंग ने बहुत विदेशी दौरे नहीं किए हैं, लेकिन दोनों एक दूसरे के लिए समय निकाल ले रहे हैं. यह इस दौर के बदलते वैश्विक ढांचे की वास्तविकता को भी दर्शाता है. अमेरिकी सीनेट में मिच मैककोनेल ने चीन, रूस और ईरान को नई ‘शैतान की धुरी’ बताते हुए अमेरिका के लिए उन्हें तात्कालिक खतरा करार दिया है. यूक्रेन युद्ध ने जहां रूस की मूलभूत आर्थिक एवं सैन्य कमजोरियों को उजागर किया वहीं जिस प्रकार की आर्थिक चुनौतियों से इस समय चीन जूझ रहा है, उससे एक सक्षम प्रशासक के रूप में चिनफिंग की छवि पर भी सवालिया निशान लगे हैं. इन दोनों ही नेताओं की देश-विदेश में स्थिति कमजोर हुई है और उन्हें शक्तिशाली देशों की घेरेबंदी का सामना भी करना पड़ रहा है. यह सब एक ऐसे समय में हो रहा है, जब अधिकांश देश किसी एक खेमे को चुनने के लिए अभी तैयार नहीं हैं. 

चीन और रूस की इस जुगलबंदी

दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों की नई दिशा निर्धारित करने में यूक्रेन संकट की अहम भूमिका रही है. चूंकि पश्चिम बीजिंग के साथ अपनी आर्थिक सक्रियता पर नए सिरे से विचार कर रहा है तो रूस ही चीन के लिए निर्यात का नया ठिकाना बनकर उभरा है. रूस और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार सितंबर में बढ़कर 21.18 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया. पुतिन को उम्मीद है कि इस साल के अंत तक यह बढ़कर 200 अरब डॉलर हो सकता है. ऐसा होता है तो यह बहुत अप्रत्याशित बढ़ोतरी होगी. चीन को अपने लिए नए बाजारों की तलाश है और इसमें रूस को व्यापार के अगले केंद्र के रूप में देखा जा रहा है. कम्युनिस्ट पार्टी के मठाधीशों को लगता है कि रूस के सहारे पश्चिम से हुए नुकसान की भरपाई और घरेलू आर्थिक उथल-पुथल से निपटने में मदद मिल सकती है. खुद को एक वैश्विक खिलाड़ी बनाए रखने के लिए पुतिन के दृष्टिकोण से भी यह उपयुक्त है कि दुनिया की एक बड़ी आर्थिक ताकत कैसे उनके लिए पलक-पांवड़े बिछाए हुए है.

चाहे हमास के हमले की निंदा करने का मामला हो या फिर फुकुशिमा परमाणु संयंत्र का पानी छोड़ने के बाद जापान से सामुद्रिक खाद्य और मछलियों के आयात पर प्रतिबंध का प्रश्न हो, दोनों देश एक दूसरे के साथ सुर में सुर मिला रहे हैं.  

चीन और रूस की इस जुगलबंदी का असर वैश्विक मामलों पर भी सहज देखा जा सकता है. भले ही यह रणनीतिक हो, लेकिन वैश्विक राजनीति को नया आकार देने के लिहाज से पर्याप्त है. चाहे हमास के हमले की निंदा करने का मामला हो या फिर फुकुशिमा परमाणु संयंत्र का पानी छोड़ने के बाद जापान से सामुद्रिक खाद्य और मछलियों के आयात पर प्रतिबंध का प्रश्न हो, दोनों देश एक दूसरे के साथ सुर में सुर मिला रहे हैं. रूस और चीन ही दो ऐसे देश बचे हैं, जो हिंद-प्रशांत के मौजूदा समीकरणों को नहीं स्वीकार कर पा रहे हैं. आर्कटिक क्षेत्र के अतिरिक्त दोनों देश कई क्षेत्रीय एवं बहुमंचीय स्तरों पर भी सक्रिय हैं. वैसे तो यूक्रेन पर रूसी हमले का समर्थन करने में चीन ने खासी एहतियात बरती है, लेकिन सैन्य एवं नागरिक साजोसामान की आपूर्ति सुनिश्चित कर उसने रूस की आर्थिकी एवं सैन्य संचालन को सुचारु बनाए रखने में सहायता प्रदान की है. 

ड्रोन और आर्टिलरी शेल्स के लिए भले ही रूस को ईरान एवं उत्तर कोरिया का रुख करना पड़ा हो, लेकिन यह चीन का समर्थन ही है, जो यूक्रेन को मदद पहुंचा रहे पश्चिम की चुनौती का तोड़ निकालने में पुतिन को सक्षम बनाए हुए है. 

बदलते समीकरण 

बीजिंग-मास्को के संबंध जिस प्रकार नई करवट ले रहे हैं, उससे भारत के सदाबहार मित्र रहे रूस के साथ उसकी मित्रता की परीक्षा होना तय है. शीत युद्ध की समाप्ति के बाद कई चुनौतियों के बावजूद नई दिल्ली ने मास्को के साथ अपने संबंधों को मधुर बनाए रखा है. हालांकि अब ये समीकरण कुछ बदलते दिख रहे हैं, क्योंकि रूस का झुकाव निरंतर चीन की ओर बढ़ रहा है. ऐसे में भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि रूस के रुख में एक संतुलन बना रहे. खासतौर से रूस को यह संतुलन चीन के उस रुख-रवैये को लेकर सुनिश्चित करना होगा, जो भारतीय हितों को चुनौती पेश करता रहता है.


यह लेख दैनिक जागरण में प्रकाशित हो चुका है.

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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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