Author : Aleksei Zakharov

Expert Speak Raisina Debates
Published on Dec 23, 2024 Updated 0 Hours ago

महाशक्ति बनने की अपनी महत्वाकांक्षा के बावजूद, युद्ध की वजह से अस्थिर अर्थव्यवस्था शायद रूस की सैन्य महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगा देगी

रूस की 2024 की दुविधा: क्या आर्थिक संकट और यूक्रेन युद्ध उसकी महाशक्ति बनने की महत्वाकांक्षाओं को रोक सकते हैं?

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2024 में यूक्रेन का युद्ध रूस के लिए सबसे अहम मसला बना हुआ है, जिसका दुनिया और क्षेत्रीय मामलों में उसकी हैसियत पर असर पड़ा है. रक्षा मामलों में रूस का ख़र्च उसके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 6.3 प्रतिशत और कुल संघीय बजट का एक तिहाई पहुंच गया है. इससे ज़ाहिर है कि रूस की अर्थव्यवस्था पूरी मज़बूती से युद्ध स्तर पर पहुंच गई है. संघर्ष के समाधान को लेकर रूस का नेतृत्व अपने कट्टर रुख़ पर अड़ा हुआ है. रूस की मांग है कि यूक्रेन एक निरपेक्ष और निष्पक्ष और एटमी ताक़त से मुक्त देश हो, उसकी सेना को हटाया जाए और पश्चिमी देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनको हटाया जाए. इसके अलावा रूस इस बात पर भी ज़ोर देता है कि युद्ध विराम या शांति समझौता, इसका अंत नहीं होगा, ये सभी पक्षों के बीच ठोस अंतरराष्ट्रीय समझौते की शक्ल में होना चाहिए. वैसे तो डॉनल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने से शांति वार्ता के लिए एक अवसर दिख रहा है. लेकिन, रूस और यूक्रेन के बीच सहमति क़ायम करने और यूरोप के सुरक्षा ढांचे की शर्तें पूरी करने के लिए बहुत सघन प्रयास करने होंगे.

 रूस की मांग है कि यूक्रेन एक निरपेक्ष और निष्पक्ष और एटमी ताक़त से मुक्त देश हो, उसकी सेना को हटाया जाए और पश्चिमी देशों ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनको हटाया जाए.

मुक़ाबले और टकराव के बीच फंसा रूस

 

वैश्विक स्तर पर रूस के प्रयास दो मोर्चों पर विभाजित हैं. पहला तो पश्चिम के साथ बढ़ते मुक़ाबले से निपटना है. अमेरिका और नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन (NATO) के साथ आपातकालीन हॉटलाइन की वजह से किसी भी सीधे टकराव को टालना संभव हुआ है. हालांकि, रूस की घोषितलक्ष्मण रेखाओंके उल्लंघन का कई बार इम्तिहान हो चुका है. बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन को आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम (ATACMS) को रूस की अंतरराष्ट्रीय भीतर सटीक निशाना लगाने की इजाज़त देकर इस संघर्ष में एक नए दौर की शुरुआत कर दी है. रूस की नज़र में ये उकसावे वाला क़दम है, क्योंकि यूक्रेन ATACMS से हमला करने की योजना स्वतंत्र रूप से नहीं बना सकता, और मिसाइलों के सभी हमले अमेरिकी सैन्य विशेषज्ञों की निगरानी में होते हैं. रूस ने इस क़दम के जवाब में अपनी मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल ओरेशनिक को लॉन्च करके और यूक्रेन के ऊर्जा के मूलभूत ढांचे को निशाना बनाते हुए बड़े पैमाने पर हवाई हमले किए. रूस ने अपने परमाणु सिद्धांत में बदलाव किया है और वहां एटमी हथियारों के इस्तेमाल के समर्थकों की बढ़ती संख्या के बावजूद राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एलान किया था कि ओरेशनिक' मिसाइलों की पर्याप्त संख्या प्रभावी तौर पर परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की ज़रूरत ख़त्म कर देते हैं.

 बाइडेन प्रशासन ने यूक्रेन को आर्मी टैक्टिकल मिसाइल सिस्टम (ATACMS) को रूस की अंतरराष्ट्रीय भीतर सटीक निशाना लगाने की इजाज़त देकर इस संघर्ष में एक नए दौर की शुरुआत कर दी है. रूस की नज़र में ये उकसावे वाला क़दम है, क्योंकि यूक्रेन ATACMS से हमला करने की योजना स्वतंत्र रूप से नहीं बना सकता

वहीं, दूसरे मोर्चे पर रूस ने ग्लोबल साउथ के साझीदारों को लुभाने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं, ताकिएक नई विश्व व्यवस्था का निर्माण किया जा सके' और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों से उबरा जा सके. वैसे तो रूस ये दिखाने में सफल रहा है कि रूस को अलग थलग करने की कोशिशें नाकाम रही हैं. लेकिन, द्विपक्षीय और ब्रिक्स के स्तर पर एक नई भुगतान व्यवस्था स्थापित करने की कोशिशें अब तक फलीभूत नहीं हो सकी हैं. यहां तक कि कारोबारी साझीदार देशों के साथ उनकी राष्ट्रीय मुद्राओं में लेन-देन भी प्रतिबंधों की मार से पूरी तरह नहीं बच सकें. यही नहीं, जैसे जैसे प्रतिबंधों को लागू करने में सख़्ती बढ़ती जा रही है, तो अमेरिका ने रूसी संस्थाओं के साथ संबंध की वजह से ग्लोबल साउथ की कई कंपनियों और व्यक्तियों पर प्रतिबंध लगा दिए हैं.

 

क्षेत्रीय नीतियों के मिले-जुले नतीजे

 

व्यापक आधिकारिक ठेकों और आपसी व्यापार के आंकड़ों (जनवरी से नवंबर 2024 के बीच 200 अरब डॉलर से भी ज़्यादा) को देखें, रूस का सबसे बड़ा विदेशी साझीदार चीन दिखता है. रूस के सैन्य उत्पादन के लिए चीन की कंपनियों ने मशीनों के औज़ार और छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भेजे हैं और चीन की कंपनियां ग्राहकों के बाज़ार की कमियां पूरी करने की कोशिश कर रही हैं. हालांकि, अमेरिकी प्रतिबंधों को देखते हुए चीन बहुत सतर्कता बरत रहा है और द्विपक्षीय परियोजनाओं की बातचीत में बेहद कड़ा रुख़ अपना रहा है. अब चूंकि रूस के कारोबारी चीन के साथ सहयोग पर बहुत अधिक निर्भर हैं, इस वजह से उन्हें युआन में भी भुगतान की कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसके अलावा पावर ऑफ साइबेरिया 2 गैस पाइपलाइन का निर्माण भी इसकी क़ीमतों को लेकर लंबी खिंचती बेनतीजा बातों की वजह से अटका हुआ है.

 

जुलाई 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मॉस्को दौरे के बाद से भारत और रूस के रिश्ते बड़ी तेज़ी से आगे बढ़े हैं. दोनों देशों के बीच राजनयिक संपर्कों में नई जान आई है. पर, व्यापार और आर्थिक सहयोग की राह में रही संरचनात्मक बाधाएं अभी भी बनी हुई हैं. निष्क्रियता के दौर के बाद अब रूस और भारत के रक्षा संबंधों में भी कुछ सुधार आता दिख रहा है. ये बात दिसंबर के शुरुआती दिनों में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की प्रेसिडेंट पुतिन और रूस के रक्षा मंत्री आंद्रे बेलुसोव के बीच मुलाक़ात से ज़ाहिर होती है. साझा युद्ध अभ्यासों का विस्तार और भारत में रूस के हथियारों का लाइसेंसशुदा उत्पादन शायद अगले साल से शुरू हो जाएगा.

 रूस के सैन्य उत्पादन के लिए चीन की कंपनियों ने मशीनों के औज़ार और छोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भेजे हैं और चीन की कंपनियां ग्राहकों के बाज़ार की कमियां पूरी करने की कोशिश कर रही हैं. हालांकि, अमेरिकी प्रतिबंधों को देखते हुए चीन बहुत सतर्कता बरत रहा है

एक अहम बदलाव के तहत ईरान और उत्तर कोरिया के साथ रूस के सहयोग में काफ़ी तेज़ी देखने को मिल रही है. ईरान के साथ कई मसलों पर ऐतिहासिक मतभेदों और फ़ारस की खाड़ी में स्थित तीन द्वीपों पर संयुक्त अरब अमीरात (UAE) की दावेदारी को रूस के समर्थन जैसे कुछ विवादों के बावजूद, रूस और ईरान ने अपने रक्षा और आर्थिक संबंधों का विस्तार किया है. ईरान ने रूस को ड्रोन और कम दूरी की मिसाइलों की आपूर्ति की है और वो इसके बदले में रूस से उन्नत हथियार का तलबगार है. दोनों देश अपने नज़दीकी सैन्य और सुरक्षा सहयोग को औपचारिक रूप देने के लिए सामरिक साझेदारी के एक व्यापक समझौते पर दस्तख़त करने के भी बेहद क़रीब हैं.

 

वहीं, रूस को सैन्य मदद देने में उत्तर कोरिया इससे भी एक क़दम आगे बढ़ गया है: हथियार देने के साथ साथ उत्तर कोरिया ने यूक्रेन के युद्ध क्षेत्र में रूस की तरफ़ से लड़ने के लिए अपने सैनिक भी भेजे हैं. अब तक उत्तर कोरिया के सैनिकों को केवल कुर्स्क के मोर्चे पर ही युद्ध लड़ते देखा गया है. वैसे तो अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने इस क़दम की आलोचना की है. लेकिन, रूस का कहना है कि युद्ध के मोर्चे पर उत्तर कोरिया के सैनिकों की तैनाती, रूस और उत्तर कोरिया के बीच सामरिक साझेदारी के समझौते की धारा 4 के अनुरूप हैं, जिसमें एक दूसरे की रक्षा में सहयोग का प्रावधान है.

 रूस को सैन्य मदद देने में उत्तर कोरिया इससे भी एक क़दम आगे बढ़ गया है: हथियार देने के साथ साथ उत्तर कोरिया ने यूक्रेन के युद्ध क्षेत्र में रूस की तरफ़ से लड़ने के लिए अपने सैनिक भी भेजे हैं. 

सीरिया में जिस तेज़ी के साथ बशर अल असद की हुकूमत का पतन हुआ, उसने रूस को हैरान कर दिया है. रूस के लिए एक बड़ी चुनौती सीरिया में अपनी सैन्य सुविधाओं को बनाए रखने की है. खमीमिम एयरबेस, सीरिया के भीतर रूस के सैन्य अभियानों के साथ साथ उत्तरी और मध्य अफ्रीका में तैनात रूसी सैनिकों की मदद के लिहाज़ से बेहद महत्वपूर्ण रहा है. असद सरकार के पतन के तुरंत बाद रूस के विदेश मंत्रालय ने हयात तहरीर अल-शाम (HTS) से संपर्क करने में ज़रा भी देर नहीं की, ताकि दमिश्क में अपने दूतावास की सुरक्षा सुनिश्चित कर सके. वैसे तो सीरिया में रूस के दबदबे को तगड़ा झटका लगा है. लेकिन, इलाक़े में रूस के असर को अभी से ख़त्म मान लेना जल्दबाज़ी होगी

 

स्थिर राजनीति और अस्थिर अर्थव्यवस्था

 

उम्मीद के मुताबिक़, इस साल मार्च में रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने एक और कार्यकाल के लिए चुनाव जीत लिया, जिसके बाद वो 2036 तक अपने पद पर बने रह सकेंगे. विधायी तरीक़ों से सत्ता पर शिकंजा कसने की कोशिशों में तेज़ी आती दिख रही है, और विरोध के सुरों को कुचला जा रहा है. इसका नतीजा ये हुआ है कि सभी विपक्षी दल और बौद्धिक तबक़े के बहुत से सदस्य, रूस छोड़कर विदेश चले गए हैं. एक के बाद एक कई विवादों के बाद, विपक्ष एकजुट होने में असफल रहा है और अभी भी बंटा हुआ है. रूस की घरेलू राजनीति, किसी भी तरह के बाहरी प्रभाव से मुक्त है और अब वो देश के भीतर सत्ताधारी तबक़े के आपसी समीकरणों पर और अधिक निर्भर हो गई है.

 

GDP की घटती विकास दर (तीसरी तिमाही में 3.1 प्रतिशत), कामगारों की कमी, बढ़ती महंगाई और कमज़ोर होते रूबल की वजह से रूस की आर्थिक स्थिति अब और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई है. इससे सरकार के आर्थिक रणनीतिकारों के सामने एक दुविधा खड़ी हो गई है: क़र्ज़ की उपलब्धता बनाए रखने और ऊंची मांग के लिए बढ़ती महंगाई की तरफ़ से आंखें मूंद लें, या फिर सख़्त मौद्रिक नीति पर चलकर महंगाई पर क़ाबू पाएं. रूस के केंद्रीय बैंक ने फिलहाल मौद्रिक नीति में सख़्ती करते हुए अपनी बुनियादी ब्याज दर को अक्टूबर में बढ़ाते हुए रिकॉर्ड 21 प्रतिशत कर दिया था. ताज़ा आंकड़े दिखाते हैं कि सालाना महंगाई दर 8.76 प्रतिशत पहुंच गई है, जो केंद्रीय बैंक (8.0 से 8.5 प्रतिशत) और आर्थिक विकास मंत्रालय (7.3 फ़ीसद) के पूर्वानुमानों से कहीं अधिक है. वास्तविक महंगाई दर तो और भी ज़्यादा हो सकती है, जिससे आगे चलकर ब्याज दरें और भी बढ़ाई जा सकती हैं. इस तरह की नीति की वजह से कुछ सरकारी अधिकारियों, बैंकिंग क्षेत्र और बहुत से कारोबारियों ने सेंट्रल बैंक की गवर्नर एलविरा नबीउल्लिना की तीखी आलोचना भी की है. वहीं गवर्नर एलविरा का कहना है कि रूस की अर्थव्यवस्था में पूंजी बहुत अधिक है और महंगाई की दर ऊंची होने की वजह से आर्थिक विकास की दर बनाए रखना मुश्किल हो रहा है, जिससे अर्थव्यवस्था के सामने दूरगामी अवधि के लिए गंभीर ख़तरे पैदा हो गए हैं.

 

बाहरी प्रतिबंधों और तेल की क़ीमतों में संभावित गिरावट जैसी बाहरी चुनौतियों के साथ साथ अपनी अर्थव्यवस्था में रही इन दरारों से रूस कैसे निपटेगा? और, क्या इस वजह से रूस का नेतृत्व अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं पर लगाम लगाएगा? 2025 में ये सवाल अहम बने रहेंगे.

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