Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स संस्था के मुताबिक, पांच साल से कम उम्र के कम-से-कम 730 रोहिंग्या बच्चों की मौत हुई है. अधिकतर बच्चों की गोली मारकर हत्या की गई जबकी 10 फीसदी बच्चों को जिंदा जला दिया गया और 5 प्रतिशत बच्चों को पीट-पीटकर मार डाला गया. 

Rohingya Crisis: रोहिंग्या शिविरों में सुरक्षा बढ़ाने की ज़रूरत
Rohingya Crisis: रोहिंग्या शिविरों में सुरक्षा बढ़ाने की ज़रूरत

रोहिंग्या नरसंहार के मामले में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में 21 फरवरी को सुनवाई होने वाली है. इस मामले में उम्मीद की जा रही है कि म्यांमार की सैन्य सरकार उन आरोपों को चुनौती देगी कि उनकी सरकार ने रोहिंग्या समुदाय के ख़िलाफ़ नरसंहार को अंजाम दिया. इस वजह से पहले के निर्णयों के बारे में बहुत अधिक अनिश्चितता खड़ी होती है जिनसे उम्मीद जताई जा रही थी कि वर्तमान में म्यांमार और बांग्लादेश में रह रहे बिना किसी देश के लोगों के लिए उचित समाधान निकलेगा.

2019 में आईसीजे का फ़ैसला बांग्लादेश सरकार के लिए काफ़ी राहत और उम्मीद लेकर आया था. बांग्लादेश में फिलहाल क़रीब 10 लाख रोहिंग्या शरणार्थी कॉक्स बाज़ार ज़िले (Cox’s Bazar district) के 34 शिविरों में रह रहे हैं. बांग्लादेश पिछले चार वर्षों से जगह और फंड की कमी से जूझ रहा है. बांग्लादेश पहले से ही इस संघर्ष का शिकार रहा है. दो बार रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस भेजने की कोशिश नाकाम रही और फरवरी 2021 में म्यांमार में सैन्य विद्रोह ने सम्मान के साथ रोहिंग्या शरणार्थियों को वापस रखाइन प्रांत भेजने के लिए उचित माहौल बनाने की दिशा में मामले को और अनिश्चित बना दिया है.

बांग्लादेश के शिविरों में रह रहे 18 वर्ष से कम उम्र के 4,51,612 बच्चों के भविष्य को ख़ास तौर पर अस्पष्ट बनाता है. शिविरों के हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि नया साल आने के साथ स्थिति और भी ख़राब हो गई है. 

ये क़दम बांग्लादेश के शिविरों में रह रहे 18 वर्ष से कम उम्र के 4,51,612 बच्चों के भविष्य को ख़ास तौर पर अस्पष्ट बनाता है. शिविरों के हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ है बल्कि नया साल आने के साथ स्थिति और भी ख़राब हो गई है. कैंप संख्या 16 और दूसरे क्षेत्रों में अचानक लगी आग की वजह से विस्थापित लोगों, ख़ास तौर पर बालूखाली और कुटुपलॉन्ग कैंप में दहशत और डर का माहौल बन गया है. वर्ष 2022  के शुरुआती 9 दिनों के भीतर बारी-बारी से आग लगने की दो घटनाए हुईं. इसके चलते 600 से अधिक आश्रय  स्थ्ल जलकर पूरी तरह खाक हो गए और उनमें रहने वाले  करीब 3,600 लोगों को विस्थापित कर दिया है.  इनमें 750 बच्चे भी शामिल हैं.

शिविरों में आग की घटनाएं

पिछले दो वर्षों से कैंप  में आग की घटनाओं का  सिलसिला जारी है.  साल 2021 में बार-बार आग लगने की घटनाएं हुई हैं. शुरुआती सात महीनों में ही 100 के क़रीब आग लगने की घटनाएं सामने आई. वहीं मार्च 2021 के बड़े अग्निकांड में क़रीब 15 लोगों की मौत हो गई जबकि 10,000 आश्रय स्थल नष्ट हो गए. इनमें रहने वाले 50,000 लोगों को विस्थापित होना पड़ा.

चूंकि शिविर के क्षेत्रों को अस्थायी माना जाता है, इसलिए आश्रय स्थलों को तिरपाल और बांस से बनाया जाता है जिनमें आग तेज़ी से फैलती है. अब तक आग लगने की वजह का पता नहीं चल पाया है और इस बार आग में सात बच्चे घायल हुए हैं.

कैंप में रहने वाले बच्चे हर रोज़ अपने हाथ में पानी का जग या सिर पर आग जलाने वाली लकड़ी की गठरी लेकर राहत मिलने के इंतज़ार में खड़े दिखाई देते हैं या ज़मीन के तंग हिस्से में खेलते हुए नज़र आते हैं. वैसे तो कुछ बच्चे फटे हुए कपड़ों में रहते हैं लेकिन ज़्यादातर बिना उचित कपड़ों के रहते हैं. म्यांमार में रहने के दौरान भी  इन बच्चों नेशारीरिक और मानसिक- दोनों तरह की कष्टदायक चोटों का अनुभव किया है. इनमें से  अधिकतर रोहिंग्या शरणार्थियों ने अपने पसंदीदा लोगों को सैन्य सरकार के बलों द्वारा पिटते, अपमानित होते या उनकी हत्या होते देखी  है. सैन्य बलों के चंगुल से भागते समय मुश्किल से उनकी जान बची है. इसकी वजह से उनका बांग्लादेश तक का सफ़र बेहद मुश्किल भरा रहा है.

 रोहिंग्या समुदाय के बच्चों के बीच कुपोषण की समस्या पहले से बढ़ गई है. वर्ष 2019 में बेहद गंभीर कुपोषण वाले पांच वर्ष से कम उम्र के 1,63,200 बच्चों में से केवल 24,500 बच्चों को शिविर के क्षेत्र में मौजूद स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था 

डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स संस्था का अनुमान है कि, पांच साल से कम उम्र के कम-से-कम 730 रोहिंग्या बच्चों की मौत हुई. इनमें से अधिकतर बच्चों की गोली मारकर हत्या की गई जबकी 10 फीसदी बच्चों को जिंदा जला दिया गया और  वर्ष 2017 में म्यांमार में बड़ी संख्या में लोगों के पलायन से पहले 5 प्रतिशत बच्चों को पीट-पीटकर मार डाला गया. इस तरह के आंकड़े सिर्फ़ कुछ ही वास्तविक घटनाओं को उजागर करते हैं जबकि असली आंकड़े अनुमान से काफ़ी ज़्यादा होते हैं और कई घटनाएं सामने आ ही नहीं पातीं.

नोट: आंकड़ों के मुताबिक, पांच साल से कम उम्र के कम-से-कम 730 रोहिंग्या बच्चों की मौत हुई है. अधिकतर बच्चों की गोली मारकर हत्या की गई जबकी 10 फीसदी बच्चों को जिंदा जला दिया गया और 5 प्रतिशत बच्चों को पीट-पीटकर मार डाला गया.

ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि यहां इन कैंपों में रहने वाले 17 प्रतिशत यानी करीब 80,000 बच्चे गंभीर मानसिक समस्या से जूझ रहे हैं.  वहींपिछले साल आग की घटनाओं ने कई बच्चों को गहरा आघात पहुंचाया है. आग लगने की इन घटनाओं  उन डरावनी यादों को फिर से ताज़ा कर दिया है जिनमें न सिर्फ उनके घरों बल्कि उनके परिवार के लोगों को भी  ज़िंदा जला दिया गया था. बिना पर्याप्त समर्थन के गंभीर मानसिक कठिनाई का अनुभव करने वाले बच्चे बेचैनी महसूस कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में ये सबसे अलग-थलग हो जाते हैं, आक्रामक बन जाते हैं और निराशा एवं उदासी की ओर जा सकते हैं. उन्हें मदद करने वाले संगठन के भीतर लगातार जानकारों के द्वारा मानसिक समर्थन दिया जा रहा है ताकि वो निराशा की ऐसी स्थिति से बाहर आ सकें.

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इसके अतिरिक्त, आग लगने की इन घटनाओं के चलते खाद्य असुरक्षा के मुद्दे भी खड़े हो गए हैं. कई आश्रय स्थल जलकर खाक हो चुके हैं.  इसके चलते लोग अपना क़ीमती सामान भी साथ नहीं ले जा सके. आग लगने के बाद कई लोगों ने अपनी जमा-पूंजी भी गंवा दी और उनके पास अब इतने पैसे भी नहीं बचे हैं कि राशन या कपड़े जैसे ज़रूरत के सामान ख़रीद सकें. जिस वक़्त रोहिंग्या समुदाय अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रहा था, उस वक़्त कम पोषण वाला आहार मिलने की वजह से रोहिंग्या समुदाय के बच्चों के बीच कुपोषण की समस्या पहले से बढ़ गई है. वर्ष 2019 में बेहद गंभीर कुपोषण वाले पांच वर्ष से कम उम्र के 1,63,200 बच्चों में से केवल 24,500 बच्चों को शिविर के क्षेत्र में मौजूद स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज के लिए भर्ती कराया गया था जबकि बाक़ी बच्चों की ज़रूरत पर ध्यान नहीं दिया जा सका. वहीं साल 2020 के बाद एक नई पहल के तहत 46 एकीकृत पोषण सुविधाओं (आईएनएफ) के ज़रिए पोषण की सभी सेवाएं मुहैया कराई गईं जिसने कुपोषण की गंभीर स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. बच्चों में कुपोषण और वृद्धि रुकने की दर 2018 के 2.4 प्रतिशत से कम होकर 2020 में 0.6 प्रतिशत हो गई है. लेकिन पांच वर्ष से कम उम्र के जिन बच्चों की जांच की गई और उन्हें हल्के कुपोषण से पीड़ित पाया गया, उनका अनुपात पोषण सेवा में सुधार के पहले और बाद में भी बदला नहीं. इसलिए इस मामले में और ज़्यादा क़दम उठाने की ज़रूरत है.

इसके अलावा पढ़ाई-लिखाई के चार केंद्रों को नुक़सान पहुंचा है. इसकी वजह से पहले से अपर्याप्त शिक्षा के अवसरों को चुनौती मिल रही है जो बच्चों के भविष्य के विकास को सीमित करता है. साफ-सफ़ाई के 200 से ज़्यादा सुविधा केंद्रों को नुक़सान पहुंचा है. इसका असर कोविड_19 महामरी के समय में स्वच्छता पर पड़ा है.

समस्या सुलझाने की कार्यवाही

इस अवांछित स्थिति से निपटने के लिए कई प्रक्रियाएं हैं. बांग्लादेश सरकार के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर), यूनिसेफ, विश्व खाद्य कार्यक्रम और सेव द चिल्ड्रन संस्थाओं ने पोषण की समस्या को नियंत्रण में लाने के लिए कई तरह की पहल का इंतज़ाम किया है.

पिछले दिनों की आग के बाद विश्य खाद्य कार्यक्रम और इसके राष्ट्रीय ग़ैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) साझेदार रिसोर्स इंटीग्रेशन सेंटर (आरआईसी) ने घर या खाना बनाने का सामान गंवाने वाले क़रीब 1,600 लोगों के बीच बिस्कुट बांटे. ये संगठन उन सभी परिवारों को रोज़ाना दो बार गरम खाना बांट रहा है जिनके पास खाना बनाने का साधन नहीं है. जब तक उनका आश्रय स्थल ठीक नहीं होता और खाना बनाने का इंतज़ाम नहीं हो जाता तब तक ये जारी रहेगा. इसके बाद इन परिवारों को विश्व खाद्य कार्यक्रम के नियमित खाद्य सहायता कार्यक्रम में फिर से जोड़ दिया जाएगा.

मानवीय साझेदारों के बीच ग़ैर-खाद्य सामानों जैसे खाना बनाने की गैस पहुंचाने में तालमेल का समर्थन करने के लिए डिजिटल लाभार्थी प्रबंधन प्रणाली पर काम चल रहा है. ये मदद विशेष रूप से उन लोगों के लिए है जो आग की वजह से अपना दस्तावेज़ गंवा चुके हैं. मलबे के ढेर को हटाने में साथ देने के लिए क्षेत्र में स्वयंसेवकों को भी तैनात किया गया है.

कुछ बदलावों का इंतज़ार है लेकिन और ज़्यादा बदलावों की ज़रूरत है ताकि शिविर के क्षेत्र में सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके. उदाहरण के लिए, शिविरों में घर कम ज्वलनशील सामानों जैसे ईंट और टिन के साथ बनाया जाना चाहिए. 

बेघर हो चुके परिवारों को कंबल और मच्छरदानी भी बांटी गई है. सेव द चिल्ड्रन और यूनिसेफ अपने कर्मचारियों के साथ तालमेल कर उन बच्चों की पहचान कर रहा है जो आग लगने की घटना के दौरान मची अफरातफरी में अपने-अपने परिवारों से अलग हो गए थे. पहचान के बाद उन बच्चों को उनके परिवार के साथ मिलाने का भी काम किया जा  रहा है.

ज़रूरी क़दम

सुरक्षा के पर्याप्त उपायों के साथ आश्रय स्थल फिर से बनाने में जगह की कमी से जुड़े मुद्दों को सुलझाने के लिए यूएनएचसीआर और उसके साझेदारों ने सरकार के साथ सुझाव के बाद दो मंज़िला आश्रय स्थल बनाने की शुरुआत की है ताकि सीमित जगह का पूरा इस्तेमाल किया जा सके और आग के दौरान भागने की जगह सुनिश्चित की जा सके. वैसे तो सरकार ने कुछ शिविरों में दो मंज़िला आश्रय स्थलों को बनाने की मंज़ूरी दे दी है लेकिन दो मंज़िला इमारतों अधिक निर्माण ज़रूरी है.

कुछ बदलावों का इंतज़ार है लेकिन और ज़्यादा बदलावों की ज़रूरत है ताकि शिविर के क्षेत्र में सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके. उदाहरण के लिए, शिविरों में घर कम ज्वलनशील सामानों जैसे ईंट और टिन के साथ बनाया जाना चाहिए. लंबे पाइप के साथ एक गहरा मोटर ट्यूब कुआं शिविर के हर ब्लॉक में बनाया जा सकता है ताकि आपातकाल की स्थिति में उनका इस्तेमाल किया जा सके. इसके साथ ही कई विस्थापित लोगों ने तारबंदी की वजह से आने वाली समस्याओं को सामने रखा है जो आपातकाल की स्थिति में तेज़ी से बचाव की कोशिशों और मदद पहुंचाने में बाधा पहुंचाती है. इसके अलावा शाम और रात के समय उचित सुरक्षा की ज़रूरत है ताकि अपराध की घटनाओं को नियंत्रण में रखा जा सके.

वैसे तो ये सोचा गया था कि पिछला साल आश्रय स्थल और उसके आसपास के क्षेत्र को बेहतर बनाकर भविष्य में आग की घटनाओं से बचाने के मामले में भागीदारों के लिए एक सबक था लेकिन मौजूदा परिस्थिति अचानक की घटनाओं से निपटने में बेहतर योजना बनाने और ठोस कार्रवाई की आवश्यकता दिखाती है. म्यांमार में सैन्य विद्रोह और उसके परिणामस्वरूप पैदा संकट ने रोहिंग्या समुदाय के बच्चों की ज़िंदगी को अनिश्चित स्थिति में डाल दिया है और निकट भविष्य में हालात सामान्य होने की भी स्थिति नहीं दिख रही है. इसलिए ये ज़रूरी हो जाता है कि रोहिंग्या समुदाय को नुक़सान रहित बस्ती मुहैया कराई जाए जहां वो समस्या का उचित समाधान होने तक ख़ुद को सुरक्षित महसूस करें.

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