Author : Sunaina Kumar

Published on Oct 18, 2022 Updated 0 Hours ago

18 साल की उम्र में रमामनि की जीति साहू के साथ शादी हो गई. जीति ने भी कक्षा 12वीं तक की पढ़ाई की थी और वो नयागढ़ ज़िले के अपने गांव में दुकान चलाया करते थे. दुकान से कोई ख़ास आमदनी नहीं होने के चलते शादी के 2 वर्षों बाद जीति और रमामनि ने भुवनेश्वर का रुख़ कर लिया.

रमामनि साहू: ‘भुवनेश्वर के एकामरा विहार को स्वच्छ बनाने का बीड़ा उठाने वाली धुन की पक्की महिला’

इस सीरीज़ से संबंधित अन्य आर्टिकल आप इस लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं.


32 वर्षीय रमामनि साहू स्वच्छता और पानी से जुड़े मसलों पर सक्रिय सामुदायिक कार्यकर्ता हैं. हर सुबह अपने घर से काम पर निकलते हुए उन्हें कूड़े के अंबार और खुले उफ़नाए नालों से होकर गुज़रना होता है. वो ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर की खुली झुग्गी बस्ती एकामरा विहार के एक झोंपड़े में रहती हैं. शाम के समय उनके बेटे, बेटी और आसपड़ोस के दूसरे बच्चे वहीं गलियों में खेलते हैं, जहां पसरे कूड़े के चलते इन बच्चों में भयानक संक्रमण फैलने का ख़तरा रहता है.

उनके समुदाय के कई लोगों का विचार है कि झुग्गी बस्ती में स्वच्छता में सुधार हो ही नहीं सकता. साथ ही वो ये सवाल भी उठाते हैं कि एक महिला होकर रमामनि क्यों इस काम की अगुवाई कर रही हैं. बहरहाल, जुलाई 2022 में भुवनेश्वर में डेंगू का प्रकोप फैलने पर रमामनि को यक़ीन हो गया कि उनके पास खोने के लिए वक़्त नहीं है. उन्होंने भांप लिया था कि उनके समुदाय के ज़्यादातर लोग डेंगू के प्रकोप के बारे में जानकारियां जुटाने की कोशिश करेंगे और इसके लिए वो वार्ड में स्वच्छता के मसले पर काम करने वाले इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पॉन्स सिस्टम (IVRS) का सहारा लेंगे. इसी विचार से रमामनि ने एहतियाती उपायों और ज़रूरी बर्तावों को लेकर जागरूकता बढ़ाने के लिए एक गाना तैयार किया ताकि उसे IVRS पर जारी किया जा सके.

IVRS एक ऐसे तंत्र के रूप में काम करता है जिसके ज़रिए समुदाय के मसले, सुझाव और शिकायतें सीधे अधिकारियों तक पहुंचते हैं. अपने काम के सिलसिले में रमामनि को अपने वार्ड में घर-घर जाकर लोगों को IVRS पर अपने संदेश दर्ज कराने के लिए प्रेरित करना होता है.

उनका गाना ओड़िया में है, जिसके बोल प्रेरित करने वाले हैं- “हम मिलकर डेंगू को दूर भगाएंगे, दूर भगाएंगे…दूर भगा देंगे”. पानी, स्वच्छता और साफ़-सफ़ाई (WASH) से जुड़े मसलों पर उन्होंने ऐसे 20 गाने रिकॉर्ड कराए हैं. इसके साथ ही वो अपना डिजिटल कौशल सुधारने की जुगत में भी लगी हैं ताकि वो उस एडिटिंग साफ़्टवेयर के बारे में सीख सकें जिसपर उनके गाने तैयार किए जाते हैं.

IVRS एक ऐसे तंत्र के रूप में काम करता है जिसके ज़रिए समुदाय के मसले, सुझाव और शिकायतें सीधे अधिकारियों तक पहुंचते हैं. अपने काम के सिलसिले में रमामनि को अपने वार्ड में घर-घर जाकर लोगों को IVRS पर अपने संदेश दर्ज कराने के लिए प्रेरित करना होता है. अगर समुदाय में किसी शख़्स के पास ख़ुद का फ़ोन नहीं होता है तो वो रमामनि अपने फ़ोन से उनके संदेश रिकॉर्ड कर लेती हैं, ताकि ये सुनिश्चित हो सके कि इस प्रक्रिया से कोई बाहर ना रह जाए.

भुवनेश्वर में कई झुग्गी बस्तियां हैं और एकामरा विहार उनमें से एक है. यहां आसपास के ज़िलों से आए प्रवासी कामगारों ने डेरा डाल रखा है. एक शहर के तौर पर भुवनेश्वर लगातार बदलाव के दौर से गुज़रता आ रहा है. पिछले कुछ सालों में यहां की आबादी काफ़ी बढ़ गई है. शहर के विस्तार के साथ-साथ नियोजन और शासन-प्रशासन से जुड़ी कई चुनौतियां भी खड़ी हो गई हैं.[i] इन्हीं चुनौतियों में से एक है- शहरी ग़रीबों के लिए स्वच्छता का प्रबंध करना. स्वच्छ भारत मिशन की गतिशील बुनियाद पर 2017 में ओडिशा शहरी स्वच्छता नीति लागू की गई. इसके ज़रिए ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन को लेकर स्वच्छता से जुड़ी पूरी मूल्य श्रृंखला में मौजूद ख़ामियों का निपटारा किया गया. इनमें इंसानी मल से जुड़े अपशिष्ट, सड़े गले कचरे और मासिक धर्म से जुड़ी साफ़-सफ़ाई शामिल हैं.[ii]

ओडिशा में महिलाओं (15-49 साल तक की उम्र वाली) का प्रौद्योगिकीय सशक्तिकरण
ख़ुद के प्रयोग के लिए मोबाइल फ़ोन रखने वाली महिलाएं 50.1%
मोबाइल फ़ोन रखने वाली महिलाओं में SMS संदेश पढ़ सकने वाली महिलाएं 68.3%
वित्तीय लेन-देनों के लिए मोबाइल का इस्तेमाल करने वाली महिलाएं 17.3%
इंटरनेट का प्रयोग कर चुकी महिलाएं 24.9%

स्रोत: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5), 2019-21[iii]

वैसे तो भारत ने खुले में शौच को ख़त्म करने की दिशा में तेज़ी से प्रगति की है, लेकिन WASH से जुड़े कई मसलों पर तत्काल ध्यान दिए जाने की दरकार है. भारत में तक़रीबन 60 करोड़ लोग पानी की ज़बरदस्त किल्लत का सामना कर रहे हैं. स्वच्छ जल तक पर्याप्त रूप से पहुंच ना हो पाने की वजह से हर साल क़रीब 2 लाख लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है.[iv] दूसरी ओर शहरी निकायों में पैदा होने वाले कचरे का महज़ 75 प्रतिशत से 80 प्रतिशत हिस्सा ही संग्रहित किया जाता है, जबकि इस कचरे के केवल 22 प्रतिशत से 28 प्रतिशत हिस्से को ही प्रॉसेस और साफ़ (treat) किया जाता है.[v]

2020 में कोविड-19 महामारी की आमद के बाद से रमामनि का ज़्यादातर कामकाज ऑनलाइन हो गया है. अतीत में वो अपने समुदाय के लोगों से नगर निगम के अधिकारियों के पास जाकर गड्ढों में भरे कचरे की सफ़ाई (सेप्टिक टैंक की सफ़ाई की प्रक्रिया) की मांग को लेकर आवेदन देने का आग्रह किया करती थीं. अब बिरादरी के लोगों को कचरे की सफ़ाई को लेकर अपनी मांग को रजिस्टर कराने के लिए बस एक QR कोड का इस्तेमाल करना होता है. इस प्रक्रिया को पूरा करने में लोगों की मदद के लिए वो अक्सर अपने ख़ुद के स्मार्टफ़ोन का इस्तेमाल करती हैं. साथ ही ये भी सुनिश्चित करती हैं कि लोगों को एक निश्चित समयसीमा के भीतर अपनी समस्या का समाधान मिल पाए. रमामनि के कार्यों में स्वच्छता सेवाओं के लिए मांग निर्माण, सामुदायिक स्वामित्व को बढ़ावा देना और समुदाय-आधारित निगरानी प्रणाली की स्थापना करना शामिल है.

रमामनि के स्वभाव में एक अड़ियलपन है और उन्हें इसपर काफ़ी नाज़ है. दरअसल यही मिज़ाज उन्हें जीतोड़ मेहनत करने को मजबूर करता है ताकि एकामरा विहार में WASH के क्षेत्र में सुरक्षित और पर्याप्त व्यवस्थाएं सुनिश्चित हो सकें. हालांकि इस क़वायद में लगी रमामनि को घरेलू मोर्चे पर मदद और समर्थन के अभाव से जूझना पड़ता है.

रमामनि के स्वभाव में एक अड़ियलपन है और उन्हें इसपर काफ़ी नाज़ है. दरअसल यही मिज़ाज उन्हें जीतोड़ मेहनत करने को मजबूर करता है ताकि एकामरा विहार में WASH के क्षेत्र में सुरक्षित और पर्याप्त व्यवस्थाएं सुनिश्चित हो सकें. हालांकि इस क़वायद में लगी रमामनि को घरेलू मोर्चे पर मदद और समर्थन के अभाव से जूझना पड़ता है. उनके मुताबिक घर और परिवार छोड़कर काम के लिए उनके बाहर जाने को लेकर उनकी सास उन्हें ताने दिया करती हैं. रमामनि के पति भी यही चाहते हैं कि वो सामुदायिक कामकाज करने की बजाए घर पर रहें.

बहरहाल, अपने ज़िद्दी स्वभाव की वजह से ही रमामनि आज ये मुक़ाम हासिल कर पाई हैं. ये बात रमामनि की शादी से पहले की है. तब उनके माता-पिता रोज़ी-रोटी की तलाश में नज़दीकी शहरों में चले गए थे, लेकिन रमामनि ने खुर्दा ज़िले के अपने गांव में ही रहने का संकल्प किया, ताकि वो अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रख सकें. हाई स्कूल (कक्षा 12) की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद पिता ने उनकी आगे की पढ़ाई रोक दी. दरअसल, रमामनि के पिता को फ़िक्र थी कि इससे आगे की पढ़ाई कर लेने पर उन्हें उसके लिए योग्य दूल्हा नहीं मिल सकेगा.

18 साल की उम्र में जीति साहू के साथ उनकी शादी हो गई. जिति ने भी कक्षा 12वीं तक की पढ़ाई की थी और वो नयागढ़ ज़िले के अपने गांव में दुकान चलाया करते थे. हालांकि दुकान से कोई ख़ास आमदनी नहीं होने के चलते शादी के 2 वर्षों बाद जीति और रमामनि ने भुवनेश्वर का रुख़ कर लिया. जब उनके पति को भुवनेश्वर में कोई काम नहीं मिला तो उन्होंने एक फ़ूड स्टॉल खोल लिया. परिवार का गुज़ारा चलाने के लिए रमामनि अपने घर पर छोटी दुकान चलाती हैं. इसमें वो किराने के सामान बेचती हैं और सिलाई-बुनाई से जुड़ी सेवाएं भी मुहैया कराती हैं. हालांकि, सामुदायिक कामकाज ही वो क्षेत्र था जिस ओर हमेशा से उनका दिल लगा हुआ था. 2015 में उन्होंने अपने वार्ड की महिला आरोग्य समिति (MAS) में एक सदस्य के तौर पर काम करना शुरू कर दिया. ग़ौरतलब है कि भारत सरकार ने ग्रामीण और शहरी इलाक़ों में स्वास्थ्य व्यवस्था को मज़बूत बनाने के इरादे से 2005 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की थी. इसी कार्यक्रम के तहत एक ज़रूरी दख़ल के तौर पर महिला आरोग्य समिति की क़वायद शुरू की गई. इसके तहत 8-12 महिलाओं का समूह शहर की नाज़ुक बस्तियों में 50 से 100 परिवारों तक अपनी सेवाएं पहुंचाता है. झुग्गी या वार्ड के स्तर पर स्वास्थ्य, पोषण, पानी और स्वच्छता के क्षेत्र में महिला समूहों को एकजुट करने के मक़सद से MAS के सदस्य आशा (ASHA)[1] कार्यकर्ताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं. सामाजिक प्रतिबद्धता और नेतृत्व कौशल के आधार पर MAS सदस्यों का चयन किया जाता है.

जनहित में शोध कार्य करने और समर्थन जुटाने वाला संगठन सेंटर फ़ॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (CFAR) स्वच्छता पर सिंगल विंडो फ़ोरम के लिए लोगों की भर्तियां कर रहा था. इस कार्यक्रम का मक़सद सामुदायिक स्तर पर WASH से जुड़े तमाम मसलों का निपटारा करना है. MAS सदस्य के तौर पर रमामनि के कामकाज ने CFAR संस्था का ध्यान खींचा. सामुदायिक जुड़ावों और WASH सेवाएं मुहैया कराने में प्रौद्योगिकी का प्रयोग CFAR के प्रमुख दख़लों में से एक है. CFAR से जुड़ी क़वायद को ऑस्ट्रेलिया सरकार के विदेशी मामलों और व्यापारिक मसलों से जुड़े वाटर फ़ॉर वूमेन फ़ंड के ज़रिए मदद पहुंचाई जा रही है. रमामनि का कामकाज स्वैच्छिक है और उन्हें इसके लिए कोई वेतन नहीं मिलता. पारिवारिक आमदनी में मदद पहुंचाने के लिए वो अपनी दुकान और सिलाई-बुनाई के कौशल पर निर्भर हैं.

रमामनि कहती हैं, “टेक्नोलॉजी ने बहुत मदद की है. इससे सेवाओं को पहुंचाने की रफ़्तार बढ़ जाती है और कामकाज में जवाबदेही आती है.” हालांकि शुरू-शुरू में रमामनि को समुदाय से प्रतिरोध झेलना पड़ा. जब वो लोगों के घरों में जाती थीं तब कइयों को भरोसा ही नहीं होता था कि गंदे नालों की सफ़ाई करने वाले ट्रकों को QR कोड के ज़रिए उनके घरों तक बुलाया जा सकता है. वो कहती हैं, “सोच में किसी तरह का बदलाव लाने के लिए आपको धीरज के साथ और लोगों को समझा-बुझाकर काम करना पड़ता है.”

रमामनि कहती हैं, “टेक्नोलॉजी ने बहुत मदद की है. इससे सेवाओं को पहुंचाने की रफ़्तार बढ़ जाती है और कामकाज में जवाबदेही आती है.” हालांकि शुरू-शुरू में रमामनि को समुदाय से प्रतिरोध झेलना पड़ा. जब वो लोगों के घरों में जाती थीं तब कइयों को भरोसा ही नहीं होता था कि गंदे नालों की सफ़ाई करने वाले ट्रकों को QR कोड के ज़रिए उनके घरों तक बुलाया जा सकता है

CFAR का दावा है कि QR कोड वाली व्यवस्था शुरू किए जाने के बाद से कचरे की सफ़ाई से जुड़ी सेवाओं की मांग में कम से कम तीन गुणा का इज़ाफ़ा हो चुका है. अब लोग घर बैठे एक क्लिक के ज़रिए अपनी मांग दर्ज करा सकते हैं. पहले उन्हें खुद जाकर आवेदन जमा करना पड़ता था. रमामनि ख़ासतौर से इस बात पर नाज़ करती हैं कि ये सेवाएं अब झुग्गी बस्ती के हरेक परिवार तक पहुंच गई हैं. सेवा केंद्रों से दूर रहने वाले दिव्यांगों से लेकर बेहद ग़रीबी में गुज़र बसर कर रहे लोगों तक अब ये सेवा पहुंच रही है.

साफ़-सफ़ाई और स्वच्छता की ज़रूरत पर जागरूकता के प्रचार-प्रसार में महामारी ने एक बड़ी भूमिका निभाई है. लॉकडाउन के दौरान रमामनि का काम ठप हो गया क्योंकि लोग उन्हें अपने घरों में घुसने नहीं देते थे. ऐसे में वो कोविड-19 से जुड़े राहत कार्यों में जुट गईं. इस सिलसिले में वो समुदाय के साथ कोविड-19 को लेकर उचित बर्तावों और स्वच्छता के उपायों से जुड़ी सूचनाएं साझा करतीं. महामारी का दौर थमने के बाद एक बार फिर WASH पर ज़ोर दिया जाने लगा है. समुदाय के भीतर से स्वच्छता की बेहतर व्यवस्थाओं की मांग बढ़ने लगी है. इसे महामारी के दीर्घकालिक प्रभाव के तौर पर देखा जा रहा है.

आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय हर साल स्वच्छ सर्वेक्षण कराता है. इसके तहत अनेक पैमानों (मसलन कचरा अलग करने और कूड़े के निपटारे) पर शहरों और शहरी स्थानीय निकायों की रैंकिंग की जाती है. 2021 में ओडिशा को 10 सबसे स्वच्छ राज्यों में शुमार किया गया लेकिन स्वच्छता में भुवनेश्वर का स्थान तमाम शहरों के बीच 144वां रहा.

अपने आसपड़ोस की बदहाली देखकर रमामनि उदास नहीं होती बल्कि इससे अपने समुदाय तक बेहतर सेवाएं मुहैया कराने से जुड़ा उनका निश्चय और दृढ़ हो जाता है. वो कहती हैं, “जब मैं घर पर रहा करती थी तब मुझे लगता था कि मैं अंधेरे में जी रही हूं. ये काम करते हुए, दूसरों की मदद से उनके जीवन में बदलाव लाते हुए मैं ये देख पा रही हूं कि जीवन में चुनौतियों का सामना करने वाली मैं अकेली नहीं हूं.”

प्रमुख सबक़

  • सबकी पहुंच के दायरे में रहने वाले प्रौद्योगिकीय दख़ल, मसलन IVRS या QR कोड, WASH के तहत सेवाएं मुहैया कराने की क़वायद में सुधार ला सकते हैं. इससे स्वास्थ्य और स्वच्छता के क्षेत्र में बेहतर नतीजे हासिल हो सकते हैं.
  • गानों और क़िस्सेबाज़ियों के ज़रिए WASH से जुड़े संदेशों का ज़्यादा असरदार तरीक़े से प्रचार-प्रसार किया जा सकता है.
  • सामुदायिक जुड़ावों और शासन-प्रशासन में सुधार लाने में महिलाओं के समूह एक प्रभावी औज़ार हैं.

NOTES

[1] मान्यता-प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता या ASHA, प्रशिक्षित महिला सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता होती हैं. वो सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था और समुदाय के बीच मध्यस्थ के तौर पर काम करती हैं.

[i] Geetika Anand and Anushree Deb, Planning, ‘Violations’ and Urban Inclusion: A Study of Bhubaneswar, Indian Institute for Human Settlements, 2017, https://iihs.co.in/knowledge-gateway/wp-content/uploads/2017/11/Bhubaneswar-Final.pdf

[ii] Housing and Urban Development Department, Government of Odisha, Odisha Urban Sanitation Policy, 2017, https://cprindia.org/wp-content/uploads/2021/12/Odisha-Urban-Sanitation-Policy-and-Strategy-2017.pdf

[iii] International Institute for Population Sciences, National Family Health Survey (NFHS-5), 2019–21: India: Volume 1, March 2022, http://rchiips.org/nfhs/NFHS-5Reports/NFHS-5_INDIA_REPORT.pdf

[iv] Niti Aayog, Composite Water Resources Management Index for Indian States, 2018,

https://www.niti.gov.in/sites/default/files/201906/Final%20Report%20of%20the%20Research%20Study%20on%20%20Composite%20Water%20Resources%20Management%20Index%20for%20Indian%20States%20conducted%20by%20Dalberg%20Global%20Development%20Advisors%20Pvt.%20Ltd_New%20Delhi.pdf

[v] Ministry of Environment, Forest and Climate Change, Government of India, https://pib.gov.in/newsite/printrelease.aspx?relid=138591

[vi] Bhubaneswar Municipal Corporation, https://www.bmc.gov.in/programs/septage-management

[vii] Centre for Policy Research, Budget Briefs, Swachh Bharat Mission-Urban (2019-20), https://cprindia.org/wp-content/uploads/2021/12/SBM_U_2019_20.pdf

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.