Author : Shoba Suri

Expert Speak Health Express
Published on Feb 19, 2024 Updated 1 Hours ago

विश्व दलहन दिवस अलग-अलग भागीदारों के साथ आने और कुछ ख़ास सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को हासिल करने में दालों के महत्व का उत्सव मनाने के लिए एक अवसर प्रदान करता है. 

धरती को बचाने और समुदायों के पोषण में दलहन अनाज की भूमिका!

पोषण के मामले में दाल बहुत महत्वपूर्ण हैं. प्रोटीन, फाइबर और आवश्यक पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत प्रदान करके दाल SDG 2 (भूख ख़त्म करना) में अहम योगदान देती है. खाद्य के एक स्थिर स्रोत के रूप में दालें खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने और कुपोषण से मुकाबला करने, ख़ास तौर पर उन क्षेत्रों में जहां अलग-अलग और पोषक तत्वों से भरपूर आहार की उपलब्धता सीमित है, में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं. दालों, जिसमें फलीदार फसलें जैसे कि मसूर की दाल, बीन्स और चना शामिल हैं, की खेती और खपत सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को हासिल करने के संदर्भ में सर्वोपरि महत्व रखती है. अपने पोषण के महत्व के आगे दालें SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) और SDG 15 (ज़मीन पर जीवन) के साथ जुड़कर पर्यावरण की स्थिरता में योगदान करती हैं. नाइट्रोजन को स्थिर करने की उनकी अनूठी क्षमता मिट्टी की उर्वरता में बढ़ोतरी करती है, कृत्रिम उर्वरक पर निर्भरता कम करती है और ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में राहत प्रदान करती है. दालों की खेती फसल चक्र (क्रॉप रोटेशन) के ज़रिए जैव विविधता के संरक्षण में भी सहायता देती है, लचीली और पारिस्थितिक रूप से संतुलित कृषि इकोसिस्टम को बढ़ावा देती है. इसके अलावा दालें आर्थिक अवसर, विशेष रूप से छोटी जोत वाले किसानों के लिए जिनमें से अधिकतम महिलाएं हैं, पेश करके SDG 1 (ग़रीबी ख़त्म करना) और SDG 5 (लैंगिक समानता) के साथ भी जुड़ती हैं. साथ ही दालें जवाबदेह खपत और उत्पादन के पैटर्न को बढ़ावा देती हैं और इस तरह SDG 12 (जवाबदेह खपत और उत्पादन) का समर्थन करती हैं. खान-पान में उनके शामिल होने से सतत और प्लांट आधारित खाने की पसंद की तरफ परिवर्तन को बढ़ावा मिलता है जो एक अधिक लचीली और बराबरी पर आधारित वैश्विक खाद्य प्रणाली को बढ़ावा देता है. 

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2019 में 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस के तौर पर घोषित किया. इसका मक़सद खाद्य के एक टिकाऊ स्रोत के रूप में दालों को लेकर जागरूकता बढ़ाना था, वो दाल जो पोषण और पर्यावरण- दोनों मामलों में फायदे पेश करती है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2019 में 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस के तौर पर घोषित किया. इसका मक़सद खाद्य के एक टिकाऊ स्रोत के रूप में दालों को लेकर जागरूकता बढ़ाना था, वो दाल जो पोषण और पर्यावरण- दोनों मामलों में फायदे पेश करती है. विश्व दलहन दिवस सरकारों, NGO और लोगों समेत अलग-अलग हिस्सेदारों के लिए एक अवसर प्रदान करता है कि वो साथ आएं और ग़रीबी में कमी, भूख ख़त्म करने, लैंगिक समानता और पर्यावरणीय स्थिरता से जुड़े सतत विकास लक्ष्यों (SDG) को हासिल करने में दालों के महत्व का उत्सव मनाएं. 

पोषक तत्वों से भरपूर दालें कुपोषण को कम करने में मदद कर सकती हैं. चावल और गेहूं जैसे सामान्य अनाज की तुलना में दालों में प्रति ग्राम औसतन दो से तीन गुना प्रोटीन होता है. अनाज के साथ खाने पर दालों में मौजूद अमिनो एसिड अनाज में मौजूद अमिनो एसिड को संतुलित करता है और इस तरह प्रोटीन की अच्छी मात्रा मिल जाती है. दालों में आयरन और दूसरे महत्वपूर्ण तत्व जैसे कि पोटैशियम, ज़िंक, सेलेनियम और फॉस्फोरस के साथ विटामिन बी भी होता है. दालें खाद्य स्थिरता (फूड सस्टेनेबिलिटी) इंडेक्स की तीन बुनियादों में से एक हैं और एक संतुलित आहार के हिस्से के रूप में लेने पर डायबिटीज़, कैंसर, दिल की बीमारी तथा मोटापे की रोकथाम और इलाज में मदद कर सकती हैं. 

स्रोत: https://www.usapulses.org/consumers/nutritious

इस साल की थीम ‘दालें: मिट्टी और लोगों का पोषण’ दालों के द्वारा मिट्टी में अधिक सूक्ष्मजीवी (माइक्रोबियल) गतिविधि लाने के फायदों पर ज़ोर देती है जो खाद्य सुरक्षा और दीर्घकालीन कृषि-खाद्य (एग्री-फूड) प्रणाली के लिए महत्वपूर्ण है. मिट्टी की सेहत में दालों का एक प्रमुख योगदान है वातावरण के नाइट्रोजन को स्थिर करने की उनकी क्षमता. दालें नाइट्रोजन को स्थिर करने वाले बैक्टीरिया के साथ सहजीवी संबंध बनाती हैं, इस आवश्यक पोषक तत्व के साथ मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं. ये प्रक्रिया मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है और कृत्रिम उर्वरक की आवश्यकता कम करती है. इस तरह पर्यावरण पर पारंपरिक खेती की पद्धति के असर को कम करती है. दालें अपने डीप रूट सिस्टम (गहरी जड़ प्रणाली) के माध्यम से मिट्टी को उपजाऊ बनाने में योगदान करती हैं जिससे मिट्टी के कटाव को रोकने और पानी को धारण करने की क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है. दाल के अवशेष के सड़ने से तैयार कार्बनिक पदार्थ मिट्टी की संरचना में और सुधार लाता है, उसे अलग-अलग पौधों के जीवन का समर्थन करने के लिए अधिक लचीला और अनुकूल बनाता है. ये पारिस्थितिकी संतुलन (इकोलॉजिकल बैलेंस) न केवल तात्कालिक कृषि परिदृश्य को लाभ पहुंचाता है बल्कि व्यापक इकोसिस्टम पर भी सकारात्मक असर डालता है.  

दालें नाइट्रोजन को स्थिर करने वाले बैक्टीरिया के साथ सहजीवी संबंध बनाती हैं, इस आवश्यक पोषक तत्व के साथ मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं. ये प्रक्रिया मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है और कृत्रिम उर्वरक की आवश्यकता कम करती है.

दालों की खेती टिकाऊ कृषि पद्धतियों जैसे कि फसल चक्र को बढ़ावा देती है. फसल चक्र में दालों को शामिल करने से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है, कीड़ों और बीमारियों का ख़तरा कम होता है और मिट्टी की सेहत अच्छी होती है. ये दृष्टिकोण कृषि परिदृश्य में जैव विविधता को बढ़ावा देता है, लचीली और टिकाऊ खेती की प्रणाली में योगदान देता है. दालें जल संसाधन के कुशल उपयोग के लिए जानी जाती हैं. उनकी गहरी जड़ प्रणाली निचली मिट्टी की परत से पानी लेने में मदद करती है, इस तरह सिंचाई पर निर्भरता कम होती है. जो इलाके पानी की कमी का सामना कर रहे हैं, वहां दालें खेती के लिए एक सफल और टिकाऊ विकल्प पेश करती हैं और इस तरह खेती के इकोसिस्टम के लचीलेपन में योगदान देती हैं. 

दालों की खपत स्वास्थ्य से जुड़े अलग-अलग फायदों से जुड़ी हुई है. इनमें डायबिटीज़ और दिल की परेशानी जैसी क्रॉनिक (पुरानी) बीमारियों की रोकथाम शामिल हैं. दालों में कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स उन्हें लोगों को ब्लड शुगर नियंत्रित करने के लिए उपयुक्त बनाता है जबकि दालों में ज़्यादा फाइबर कंटेंट पाचन को बढ़ावा देता है और कोलोरेक्टर कैंसर के ख़तरे को कम करता है. प्लांट आधारित आहार में बढ़ती दिलचस्पी के साथ दाल ज़रूरी प्रोटीन के स्रोत के रूप में काम करती है. मांस में मिलने वाले प्रोटीन के विकल्प के तौर पर दालें मांस के उत्पादन की वजह से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को कम करने में योगदान देती हैं और सतत एवं नैतिक (एथिकल) खाने की पसंद को लेकर बढ़ती जागरूकता के साथ जुड़ती हैं. दालें जलवायु में परिवर्तन को लेकर लचीलापन दिखाती हैं और इस तरह वो जलवायु परिवर्तन को देखते हुए ज़रूरी फसल बन जाती हैं. सूखा या अधिक तापमान जैसे चुनौतीपूर्ण हालात में उनके फलने-फूलने की क्षमता उन्हें बदलते जलवायु के असर को बर्दाश्त करने में सक्षम लचीली कृषि प्रणाली का निर्माण करने में प्रमुख घटक के तौर पर पेश करती है.  

दालों की खेती और व्यापार का महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक अर्थ है. छोटी जोत वाले किसानों, विशेष रूप से विकासशील देशों में, को दाल की खेती से फायदा होता है क्योंकि दाल आमदनी के अवसर मुहैया कराती है और आजीविका में सुधार करती है. इसके अलावा, दालें दीर्घकालीन खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने वाली खेती की सतत पद्धतियों को बढ़ावा देकर ग्रामीण विकास में योगदान देती हैं. सांस्कृतिक और रसोई के महत्व से देखें तो दालें सदियों से अलग-अलग संस्कृति के खान-पान का अभिन्न हिस्सा रही हैं. भारतीय व्यंजनों में दाल से लेकर मध्य पूर्व के पकवानों में हुम्मुस तक दालें अलग-अलग रसोई की परंपरा की बुनियाद हैं. इस सांस्कृतिक विरासत को मान्यता देना और उसका संरक्षण न केवल दालों के महत्व को बढ़ाता है बल्कि दुनिया भर में खान-पान की आवश्यकता को पूरा करने में उनके ढलने की क्षमता और उपयोग को भी उजागर करता है. 

सांस्कृतिक और रसोई के महत्व से देखें तो दालें सदियों से अलग-अलग संस्कृति के खान-पान का अभिन्न हिस्सा रही हैं. भारतीय व्यंजनों में दाल से लेकर मध्य पूर्व के पकवानों में हुम्मुस तक दालें अलग-अलग रसोई की परंपरा की बुनियाद हैं. 

दाल जहां अनगिनत लाभ पेश करती है, वहीं बाज़ार में उपलब्धता, फसल काटने के बाद नुकसान और फसल की बेहतर किस्म के लिए आवश्यकता जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं. इन चुनौतियों के समाधान के लिए किसानों, रिसर्च करने वालों, नीति निर्माताओं और प्राइवेट सेक्टर से सहयोगपूर्ण प्रयासों की आवश्यकता है. अनुसंधान और विकास (रिसर्च एंड डेवलपमेंट) में निवेश, सतत खेती की पद्धतियों को बढ़ावा और सहायक नीतिगत रूप-रेखा का निर्माण मिट्टी और लोगों के पोषण में दालों की क्षमता को अधिकतम करने के लिए जरूरी हैं. चूंकि हम खेती और पोषण के जटिल परिदृश्य की तरफ बढ़ रहे हैं, ऐसे में दाल मिट्टी और लोगों को पोषण देने में समान रूप से चैंपियन की तरह दिखती है. 


शोभा सूरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.

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