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Published on Feb 15, 2024 Updated 0 Hours ago

ऐसा लगता है कि मालदीव की संसद और राष्ट्रपति के बीच चल रहा मौजूदा संघर्ष आगे भी जारी रहेगा, जिसकी वजह से वहां और अधिक अनिश्चितता और अस्थिरता की राह खुलेगी.

राष्ट्रपति, संसद और महाभियोग: मालदीव की सियासत में लगातार चल रहा संघर्ष!

मालदीव में राष्ट्रपति मुहम्मद मुइज़्ज़ू की कैबिनेट के नए सदस्यों को मंज़ूरी देने के लिए बुलाए गए संसद (मजलिस) के विशेष सत्र ने वहां पर एक सियासी तूफ़ान खड़ा कर दिया है. देखते ही देखते संसद का ये विशेष सत्र उपद्रव में तब्दील हो गया. सांसदों के बीच मारपीट होने लगी, क्योंकि मालदीव के विपक्षी दलों, मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी (MDP) और डेमोक्रेट्स ने मुइज़्ज़ू कैबिनेट में नियुक्त किए गए तीन नए मंत्रियों को ख़ारिज कर देने का फ़ैसला किया. इस घटना के बाद, विपक्षी दलों ने इस झगड़े के लिए राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू को ज़िम्मेदार ठहराया और उनके ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाने का फ़ैसला किया है. वहीं दूसरी तरफ़, मुइज़्ज़ू ने उन्हीं तीन मंत्रियों को फिर से कैबिनेट में शामिल कर लिया है, जिनको मजलिस ने ख़ारिज कर दिया था. ये हालिया घटनाएं, मालदीव में 2008 के लोकतांत्रिक बदलाव के बाद से वहां की विधायिका और कार्यपालिका के बीच लगातार होते संघर्ष को ही रेखांकित करती हैं. मार्च में होने वाले संसद के चुनावों के बाद तो ये टकराव और भी भयंकर होने का अंदेशा है.

 

लगातार चलने वाला संघर्ष

 

2008 में मालदीव ने बहुदलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया था. उम्मीद लगाई गई थी कि इस नई व्यवस्था से संसद, जनता द्वारा सीधे चुने गए राष्ट्रपति की अगुवाई वाली कार्यपालिका पर अंकुश लगाना सुनिश्चित हो सकेगा. हालांकि, इस बदलाव से दोनों ही संस्थाओं के बीच लगातार संघर्ष की शुरुआत हो गई. इसकी वजह, देश की नाज़ुक और ध्रुवों में बंटी राजनीतिक परिस्थितियां हैं, जिनके कारण नेता एक दूसरे को मात देने के लिए इन संस्थाओं का इस्तेमाल करते आए हैं. इसका नतीजा ये हुआ है कि सरकार और विपक्षी दल लगातार संसद पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश करते रहे हैं. क्योंकि, उनको पता है कि उनका सियासी भविष्य बहुमत हासिल करने से जुड़ा हुआ है.

विपक्षी दलों के बहुमत वाली संसद ने राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त कई मंत्रियों को ख़ारिज कर दिया और ऐसे क़ानून पारित किए जिन्होंने कई मुद्दों पर संसद की सहमति को ज़रूरी बना दिया. इस वजह से सरकार और संसद के बीच लगातार टकराव होता आया है और कई बार तो इसी कारण से विपक्षी दलों के नेताओं की गिरफ़्तारी भी हुई.

2008 में मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के मुहम्मद नशीद राष्ट्रपति चुने गए थे. लेकिन, जब 2009 में संसद के चुनाव हुए, तो उनकी पार्टी संसद में सामान्य बहुमत हासिल कर पाने में नाकाम रही. संसद की 77 में से केवल 26 सीटों वाली MDP के ऊपर, 35 सदस्यों वाला विपक्षी गठबंधन हावी रहा था. इसके बाद के वर्षों में विपक्षी दलों द्वारा सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करने और उनका सियासीकरण होते हुए दिखा. विपक्षी दलों के बहुमत वाली संसद ने राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त कई मंत्रियों को ख़ारिज कर दिया और ऐसे क़ानून पारित किए जिन्होंने कई मुद्दों पर संसद की सहमति को ज़रूरी बना दिया. इस वजह से सरकार और संसद के बीच लगातार टकराव होता आया है और कई बार तो इसी कारण से विपक्षी दलों के नेताओं की गिरफ़्तारी भी हुई. तब, विपक्षी दलों के पास इतने सांसद नहीं थे कि वो राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ महाभियोग का प्रस्ताव ले आ पाते. लेकिन, उन्होंने इतना समर्थन जुटा लिया कि 2012 में उन्हें इस्तीफ़ा देने को मजबूर करके सत्ता से बेदख़ल कर दिया.

 

उसके बाद 2013 में हुए राष्ट्रपति चुनावों में प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव (PPM) के अब्दुल्ला यामीन ने जीत हासिल की. पुरानी सरकार के तजुर्बों से सीखते हुए, यामीन ने संसद में अपने पक्ष में संख्या जुटाने की कोशिश की. इसके लिए उन्होंने कुछ दलों से गठबंधन किया, तो कुछ को तोड़ने की कोशिश भी की. 2014 के संसदीय चुनावों में यामीन की पार्टी PPM को 85 में से 33 सीटों पर जीत हासिल हुई, तो उनकी सहयोगी जम्हूरी पार्टी को 15 तो, मालदीव डेमोक्रेटिक एलायंस (MDA) को 5 सीटों पर जीत मिली. इससे, यामीन के गठबंधन को संसद में बहुमत हासिल हो गया. 2017 तक उन्होंने संसद में ख़ुद अपने दल की संख्या बढ़ाकर 47 पहुंचा ली थी.

 

वहीं दूसरी तरफ़, 26 सीटों वाली मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी ने सरकार की आलोचना की और अपने साथ सहयोग करने के लिए लगातार दूसरे दलों के सांसदों को भी रिझाती रही. उन्होंने 2017 से 2018 के दौरान स्पीकर के ख़िलाफ़ लगभग चार बार अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश की. वहीं इसके जवाब में सरकार ने बाग़ी सांसदों को अयोग्य करके और संसद से विपक्षी दलों को निकाल बाहर करने के लिए सुरक्षा बलों का इस्तेमाल किया. आख़िर में जब विपक्षी दल, अब्दुल्ला यामीन के ख़िलाफ़ महाभियोग लाने के लिए पर्याप्त सांसद जुटाने में सफल रहे, तो यामीन ने देश में इमरजेंसी लगा दी. बाद में अब्दुल्ला यामीन को 2018 में चुनावों के ज़रिए सत्ता से बेदखल किया गया. 2018 में यामीन की हार और 2019 में संसद के चुनावों के बाद जाकर मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी, संसद और कार्यपालिका दोनों पर अपना दबदबा स्थापित करने में सफल हो सकी.

 

मुहम्मद मुइज़्ज़ू का नंबर गेम

 

राष्ट्रपति चुनाव में PPM और पीपुल्स नेशनल कांग्रेस (PNC) के उम्मीदवार मुहम्मद मुइज़्ज़ू की जीत ने एक बार फिर से इस समीकरण को बदल दिया है. जब मुइज़्ज़ू ने राष्ट्रपति पद की शपथ ली, तो उनकी पार्टी के छह और सहयोगी मालदीव नेशनल पार्टी (MNP) के एक सांसद, उनकी कैबिनेट में शामिल होने के लिए मजलिस से इस्तीफ़ा दे चुके हैं. इसकी वजह से संसद में PPM-PNC के केवल चार सांसद बचे हैं. वहीं, गठबंधन में उनके साझीदार MNP और MDA के दो दो सांसद हैं. कुल मिलाकर सत्ताधारी गठबंधन और उनके साथी दलों को 87 सदस्यों वाली मजलिस में केवल 8 सांसदों का समर्थन प्राप्त है. इसकी तुलना में विपक्षी मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के पास 56 तो डेमोक्रेट्स के पास 13 सांसद हैं. जम्हूरी पार्टी के दो और दो सांसद निर्दलीय हैं.

 

मजलिस के भीतर अपनी इस ताक़त का इस्तेमाल करके MDP और डेमोक्रेट्स ने कई बार राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के मंत्रियों का नामांकन ख़ारिज किया है और उनके ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाने की धमकी भी दी है. उन्होंने राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव की प्रक्रिया के नियमों में भी बदलाव किया है. चूंकि, सात सांसदों के इस्तीफ़े के बाद संसद में केवल 80 सदस्य बचे हैं. इसलिए, अब महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए ज़रूरी सांसदों की संख्या घटा दी गई है. 

 

अपनी सरकार को बचाने के लिए पिछले साल दिसंबर के आख़िर में मुइज़्ज़ू 14 सांसदों को तोड़कर अपने पाले में लाने में सफल रहे. इनमें से 13 MDP के तो एक निर्दलीय सांसद हैं. इससे संसद में राष्ट्रपति के दल की ताक़त (Table 1) तो बढ़ गई है और उनके ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव लाना आसान नहीं रह गया है. पर, ख़तरा तो बना हुआ है. राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव पारित करने के लिए 54 सांसदों की ज़रूरत है और डेमोक्रेट्स और MDP के पास उससे ज़्यादा (56) सांसद हैं.

 

Table 1: मालदीव की मजलिस (संसद में) पार्टियों की मौजूदा स्थिति

पार्टियां

सांसदों की संख्या

MDP

43

JP

2

PPM

2

PNC

15

MDA

2

Independent

03 (MNP से 2)

Democrats

13

कुल सांसद

80

स्रोत: Avas, Sun

 

मुइज़्ज़ू सत्ता से बेदख़ल होंगे?

 

MDP और डेमोक्रेट्स, दोनों ने ही सरकार द्वारा सरकारी कंपनियों के नियमन के प्रयासों, सांसदों की संख्या बढ़ाने, राजनीतिक पक्षपात और नियुक्तियों, चीन समर्थक और भारत विरोधी झुकाव, ख़र्च में पारदर्शिता न होने, वित्तीय स्थिति और देशों के साथ किए जा रहे समझौतों पर नाख़ुशी ज़ाहिर की है. सरकार को अनुशासित करने के लिए विपक्ष ने मुइज़्ज़ू के मंत्रिमंडल के तीन सदस्यों की नियक्ति को भी ख़ारिज कर दिया है. हालांकि, PPM-PNC द्वारा संसद के बाहर हिंसा को उकसाने और विरोध प्रदर्शन ने लोकतंत्र में गिरावट के संकेत दिए हैं और राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ महाभियोग चलाने के विपक्ष के इरादों को और मज़बूत कर दिया है.

हालांकि, उम्मीद यही है कि महाभियोग से राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू बच जाएंगे. जैसा कि मालदीव का इतिहास दिखाता है, उसके अनुसार महाभियोग की प्रक्रिया से बचने के लिए प्रशासन अपनी सारी ताक़त का इस्तेमाल करेगा.

हालांकि, उम्मीद यही है कि महाभियोग से राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू बच जाएंगे. जैसा कि मालदीव का इतिहास दिखाता है, उसके अनुसार महाभियोग की प्रक्रिया से बचने के लिए प्रशासन अपनी सारी ताक़त का इस्तेमाल करेगा. सरकार ने महाभियोग प्रक्रिया में बदलाव के लिए मौजूदा संशोधनों की वैधानिकता को पहले ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिका दायर कर दी है. सुप्रीम कोर्ट से स्टे का आदेश, महाभियोग की प्रक्रिया को अचानक ही ठप कर सकता है, ख़ास तौर से इसलिए और क्योंकि संसद का कार्यकाल जल्दी ही ख़त्म होने वाला है. 

 

सियासी तौर पर इस मसले पर विपक्षी सांसदों का रुख़ भी अलग अलग है. ये मतभेद मुइज़्ज़ू कैबिनेट के मंत्रियों को मंज़ूरी देने के लिए हुई वोटिंग के दौरान और साफ़ दिखे थे. तब विपक्ष के कई सांसदों ने अपनी पार्टी के तीन लाइन के व्हिप का उल्लंघन करके वोट दिया था. अगर मुइज़्ज़ू विपक्ष के दो सांसदों को अपने साथ जोड़ने या फिर महाभियोग प्रस्ताव का विरोध करने के लिए राज़ी कर लेते हैं, तो हो सकता है कि महाभियोग की कोशिश नाकाम भी हो जाए. उनके समर्थक दलों- PPM-PNC, सहयोगियों MDA और MNP और जम्हूरी पार्टी (JP) ने पहले ही संकेत दे दिया है कि वो महाभियोग प्रस्ताव के दौरान मुइज़्ज़ू को बचाने की कोशिश करेंगे.

 

आगे का रास्ता

 

नतीजा चाहे कुछ भी हो, लेकिन महाभियोग प्रस्ताव की मांग ही, उन संरचनात्मक चुनौतियों को रेखांकित करता है, जो संसदीय चुनावों के बाद मुइज़्ज़ू सरकार के सामने खड़ी होने वाली हैं. मजलिस में सामान्य बहुमत मिलने पर भी इस बात की गांरटी नहीं होगी कि मुइज़्ज़ू आसानी से सरकार चला सकेंगे. क्योंकि मालदीव में दल-बदल विरोधी क़ानून नहीं है और सांसदों के पाला बदल लेने का लंबा इतिहास भी रहा है. इसका नतीजा ये है कि सरकार, संसद में 62 सदस्यों के साथ भारी बहुमत जुटाने की उम्मीद कर रही है. लेकिन, ये उनकी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी:

 

प्राथमिक तौर पर सरकार एक व्यापक गठबंधन बना पाने में नाकाम रही है और यहां तक कि वो सत्ता में साझेदारी करने को लेकर भी अनिच्छुक है. उसके साझीदार MDA को सरकार में कोई सियासी नियुक्ति या पद हासिल नहीं हुआ है और MNP के खाते में केवल एक नियुक्ति आई है. जम्हूरी पार्टी लगातार निरपेक्ष रहने के संकेत देती रही है. वहीं, शुरुआत में डेमोक्रेट्स के साथ गठबंधन करने की संभावनाएं जगाने के बाद भी, PPM-PNC के गठजोड़ ने सरकार के अहम पदों में जगह देने से इनकार करके डेमोक्रेट्स को नाराज़ कर लिया है. सरकार की हालिया नीतियों और हरकतों ने हालात को और जटिल बनाते हुए डेमोक्रेट्स को MDP के और क़रीब धकेल दिया है.

 

वहीं दूसरी ओर, मुइज़्ज़ू ने पहले अब्दुल्ला यामीन को हाशिए पर धकेला, और फिर उन्हें PPM-PNC से बेदख़ल कर दिया. उन्हें इसकी भी सियासी क़ीमत चुकानी होगी. ये कोई इत्तिफ़ाक़ नहीं है कि अब्दुल्ला यामीन अब छला हुआ महसूस कर रहे हैं और ख़बरें हैं कि उन्होंने मुइज़्ज़ू के ख़िलाफ़ महाभियोग प्रस्ताव का समर्थन भी किया है. यामीन की पार्टी- पीपुल्स नेशनल फ्रंट (PNF), आने वाले संसदीय चुनावों में मुइज़्ज़ू के ख़िलाफ़ चुनाव लड़कर वोटों का बंटवारा करने के लिए भी बेक़रार है. मुइज़्ज़ू द्वारा अपने वफ़ादारों को सशक्त बनाने और यामीन के समर्थकों को नाराज़ करने की वजह से भी PPM-PNC के कई समर्थकों ने सत्ताधारी पार्टी से दूरी बना ली है.

मुइज़्ज़ू के बेपरवाह प्रशासन और अन्य नेताओं और दलों के साथ सत्ता में साझेदारी करने में नाकामी शायद उन्हें संसद में पर्याप्त बहुमत हासिल करने से रोक दे.

मुइज़्ज़ू के बेपरवाह प्रशासन और अन्य नेताओं और दलों के साथ सत्ता में साझेदारी करने में नाकामी शायद उन्हें संसद में पर्याप्त बहुमत हासिल करने से रोक दे. इसके अलावा, डेमोक्रेट्स, MDP और PNF द्वारा खुलकर मुइज़्ज़ू के ख़िलाफ़ खड़े होने की वजह से राष्ट्रपति और मजलिस के बीच मौजूदा संघर्ष को नई संसद भी जारी रखेगी. इससे और अनिश्चितता और अस्थिरता को ही बढ़ावा मिलेगा.

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