Author : Pratnashree Basu

Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

दक्षिणी चीन सागर पर अपनी दावेदारी मज़बूत करने के लिए चीन सिर्फ़ सैन्य खुफिया तंत्र और ताक़त की नुमाइश का सहारा नहीं ले रहा है, बल्कि वो अपनी सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल भी कर रहा है.

पॉप संस्कृति और सामरिक संदेश: नेटफ्लिक्स किस तरह से दक्षिणी चीन सागर के विवाद में फंस गया
पॉप संस्कृति और सामरिक संदेश: नेटफ्लिक्स किस तरह से दक्षिणी चीन सागर के विवाद में फंस गया

नवंबर महीने की शुरुआत में ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स (Netflix) को ऑस्ट्रेलियाई जासूसी सीरीज़ पाइन गैप के दो एपिसेड हटाने पड़े. फिलीपींस और वियतनाम ने इस जासूसी नाटक के दो एपिसोड पर इसलिए ऐतराज़ जताया था, क्योंकि इनमें साउथ चाइना सी के जिस नक़्शे का इस्तेमाल किया गया था, उसमें नाइन डैश लाइन को दिखाया गया था. नाइन डैश लाइन, वो सीमा रेखा है, जिसके हवाले से चीन पूरे साउथ चाइना सी के समुद्री क्षेत्र पर अपनी दावेदारी ठोकता रहा है. जबकि, इस इलाक़े के दूसरे देश इसे नहीं मानते हैं. असल में साउथ चाइना सी का पूरा विवाद ही इस नाइन डैश लाइन पर आधारित है. वैसे तो ये विवाद कई दशक पुराना है. लेकिन, हाल के वर्षों में चीन ने साउथ चाइना सी पर अपनी दावेदारी को मज़बूत बनाने के लिए जिस तरह की आक्रामकता दिखाई है, उससे ये सीमा रेखा काफ़ी अहम हो गई है.

नाइन डैश लाइन, वो सीमा रेखा है, जिसके हवाले से चीन पूरे साउथ चाइना सी के समुद्री क्षेत्र पर अपनी दावेदारी ठोकता रहा है. जबकि, इस इलाक़े के दूसरे देश इसे नहीं मानते हैं

नक़्शों से संकेत देने का तौर-तरीक़ा

किसी भी संप्रभु इलाक़े को साबित करने के उपकरण के तौर पर नक़्शों की भूमिका बहुत अहम होती है. अपनी दावेदारी मज़बूत करने के लिए चीन का पुराने नक़्शों का हवाला देना कोई नई बात भी नहीं है. नक़्शे, चीन के ‘तीन युद्धों वाले सिद्धांत’– यानी जनता की राय बनाने की जंग, मनोवैज्ञानिक युद्ध और क़ानूनी लड़ाई-का बेहद महत्वपूर्ण अंग हैं. साउथ चाइना सी में चीन बेहद संस्थागत तरीक़े से युद्ध के इन तीनों आयामों का इस्तेमाल कर रहा है. समुद्री इलाक़ों पर अपनी दावेदारी जताने के लिए चीन, 1950 के दशक से ही तमाम तरह के सांस्कृतिक उत्पादों का इस्तेमाल करता आया है. पाइन गैप सीरीज़ इसका सबसे हालिया शिकार बना है.

वर्ष 2020 की शुरुआत में लिटिल पांडाज़ वर्ल्ड एडवेंचर नाम के एक वीडियो गेम को गूगल प्ले स्टोर और ऐपल के ऐप स्टोर से हटा दिया गया था. इस वीडियो गेम का निर्माण चीन स्थित झी योंग इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने किया था; और, वर्ष 2019 में ड्रीमवर्क्स एनिमेशन और शंघाई स्थित पर्ल स्टूडियो द्वारा निर्मित फिल्म एबॉमिनेबल को सिनेमाघरों से हटाना पड़ा था- इन दोनों ही मामलों में साउथ चाइना सी में चीन की दावेदारी वाली नाइन डैश लाइन को दिखाया गया था. इसी तरह, अगस्त 2020 में नेटफ्लिक्स के एक और शो- पुट योर हेड ऑन माय शोल्डर- को भी तब सेंसर करना पड़ा था, जब इसने समुद्र में नाइन डैश लाइन वाले नक़्शे दिखाए थे. लगभग उसी दौरान ऐसी ख़बरें आई थीं कि ऑस्ट्रेलिया में स्कूल की किताबों में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के दुष्प्रचार को दोहराने वाली बातें लिखी गई थीं. जिसके बाद जो किताबें नहीं बिकी थीं, उन्हें हटा लिया गया था. अप्रैल 2021 में स्वीडन के फैशन रिटेलर एच ऐंड एम को ट्विटर पर उस वक़्त कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था, जब उसने शंघाई में अपने प्रचार के लिए उसी नक़्शे का इस्तेमाल किया था.

वैसे तो हो सकता है कि जनता के बीच लोकप्रिय संस्कृति में राजनैतिक बातों के ज़िक्र का कोई ख़ास असर न हो. लेकिन, ऐसा बार बार किए जाने से, ग़ैर-क़ानूनी दावों को वाजिब ठहराने में मदद तो ज़रूर मिलती है.

वैसे तो हो सकता है कि जनता के बीच लोकप्रिय संस्कृति में राजनैतिक बातों के ज़िक्र का कोई ख़ास असर न हो. लेकिन, ऐसा बार बार किए जाने से, ग़ैर-क़ानूनी दावों को वाजिब ठहराने में मदद तो ज़रूर मिलती है. नेटफ्लिक्स के हालिया विवाद और उससे पहले के जिन मामलों का ज़िक्र किया गया, उन सब में साउथ चाइना सी के ज़्यादातर हिस्से पर चीन के दावे को दिखाए जाने से, चीन के रुख़ को सही और वाजिब ठहराने का काम किया गया. ये अंतरराष्ट्रीय समुद्री क़ानूनों का खुला उल्लंघन है. फैशन और जन संस्कृति में ऐसे संकेतों से जनता की जानकारी को प्रभावित करने और हक़ीक़त को तोड़-मरोड़कर पेश किए जाने को बल मिलता है. क्योंकि, चीन की प्रशासनिक व्यवस्था ऐसी है, जो सूचना को तोड़-मरोड़कर पेश करने और सरकारी नियंत्रण पर बहुत अधिक निर्भर है. जैसा कि फिलीपींस के फिल्म बोर्ड ने कहा कि, ‘नाइन डैश लाइन वाले नक़्शे का इस्तेमाल ग़लती से नहीं हुआ. इसे जान-बूझकर और सोच-समझकर इस्तेमाल किया गया, ताकि ये संदेश दिया जा सके कि चीन की नाइन डैश लाइन का वाक़ई में अस्तित्व है.’

अंतरराष्ट्रीय इच्छाशक्ति की ज़रूरत

ये चिंताजनक भले ही हो, लेकिन इस बात पर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि चीन जिन बातों को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज़ से ज़रूरी समझता है, उनसे जुड़ी रणनीतियों को लेकर वो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और अन्य देशों की संप्रभुता का सम्मान बिल्कुल नहीं करता. हाल के दिनों में हमने ऐसी कई मिसालें देखी हैं, जब चीन की सरकार ने ऐसे कई क़दमों को प्रायोजित किया है (जैसे कि साउथ चाइना सी में पूर्व समुद्री सैन्य बल हो या फिर, उसका तट रक्षा से जुड़ा क़ानून या अन्य मिसालें). ये सभी बातें साफ़ तौर पर यही इशारा करती हैं कि किस तरह चीन न सिर्फ़ अपने पास-पड़ोस में, बल्कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में और अपने बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के ज़रिए पूरे यूरेशिया में अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार कर रहा है. ‘प्रभाव क्षेत्र के स्वरूप’ का मतलब ये है कि चीन न सिर्फ़ अपना राजनीतिक और कूटनीतिक असर बढ़ा रहा है, बल्कि अपनी ज़्यादा ताक़त और संसाधन, सेना, नौसेना और इस मामले में साइबर तकनीक का इस्तेमाल करके अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार कर रहा है.

सबसे ज़्यादा चिंताजनक बात तो शायद चीन द्वारा की जाने वाली जासूसी की बढ़ती रफ़्तार और दायरे हैं. चीन बड़े ही रणनीतिक ढंग से अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ा रहा है. ऐसे में दक्षिणी पूर्वी एशिया, चीन के लिए सबसे आसान लक्ष्य है.

सबसे ज़्यादा चिंताजनक बात तो शायद चीन द्वारा की जाने वाली जासूसी की बढ़ती रफ़्तार और दायरे हैं. चीन बड़े ही रणनीतिक ढंग से अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को आगे बढ़ा रहा है. ऐसे में दक्षिणी पूर्वी एशिया, चीन के लिए सबसे आसान लक्ष्य है. अपने इस दांव को आज़माने के लिए साउथ चाइना सी चीन का पसंदीदा अखाड़ा बन गया है. हिंद प्रशांत क्षेत्र के दूसरे देश हों या इस इलाक़े में अपनी उपस्थिति बढ़ाने वाले वाले राष्ट्र जैसे कि यूरोपीय संघ, उन्हें ये समझने की ज़रूरत है कि अगर चीन के बेलगाम क़दमों पर क़ाबू पाना है, तो फिर क्वाड और अन्य त्रिपक्षीय मंचों के ज़रिए उस पर नियंत्रण स्थापित करने के असरदार तरीक़े तलाशे जाने की ज़रूरत है.

साउथ चाइना पर अपनी आक्रामक गतिविधियों को मज़बूती देने के लिए चीन, ऐसे सामरिक इशारों का बख़ूबी इस्तेमाल कर रहा है. चीन को इस मक़सद में तकनीकी तरक़्क़ी से भी काफ़ी मदद मिल रही है. पिछले कुछ वर्षों से चीन, साउथ चाइना सी में स्थित चट्टानों, मछलियों के भंडारों और जज़ीरों पर अपनी दावेदारी मज़बूत करने के लिए, गोदामों का निर्माण कर रहा है और सैनिक अड्डे बनाने में जुटा है. हालिया ख़बरें बताती हैं कि अब इस क्षेत्र में चीन अपनी इलेक्ट्रॉनिक और संचार युद्ध की क्षमता को भी तेज़ी से बढ़ा रहा है. मिसाल के दौरान पर हैनान द्वीप पर स्थित मुमियान में ऐसी सुविधाएं स्थापित की गई हैं, जहां से विदेशी नौकाओं और जहाज़ों का ज़्यादा सटीक ढंग से पता लगाया जा सकता है. इसके लिए चीन सैटेलाइट ट्रैकिंग और कम्युनिकेशन (SATCOM) और ख़ुफिया संचार तंत्र (COMINT) का इस्तेमाल कर रहा है. एक और ख़बर के मुताबिक़, चीन अपने साइबर जासूसी तंत्र से न सिर्फ़, सरकारों को बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में निजी क्षेत्र के संगठनों को भी निशाना बना रहा है. चीन की इस इलेक्ट्रॉनिक और साइबर जासूसी को अगर हम 2020 में बनाए गए उसके समुद्र तटीय सुरक्षा क़ानून और उसके समुद्री हथियारबंद दल की तैनाती से जोड़ कर देखें, तो साफ़ हो जाता है कि चीन अपना सामरिक प्रभाव बढ़ाने और राजनीतिक नियंत्रण का दावा मज़बूत करने के लिए इन संसाधनों का इस्तेमाल बहुत तेज़ी से बढ़ा रहा है.

ओआरएफ हिन्दी के साथ अब आप FacebookTwitter के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं. नए अपडेट के लिए ट्विटर और फेसबुक पर हमें फॉलो करें और हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें. हमारी आधिकारिक मेल आईडी [email protected] के माध्यम से आप संपर्क कर सकते हैं.


The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Author

Pratnashree Basu

Pratnashree Basu

Pratnashree Basu is an Associate Fellow, Indo-Pacific at Observer Research Foundation, Kolkata, with the Strategic Studies Programme and the Centre for New Economic Diplomacy. She ...

Read More +