Published on May 28, 2021 Updated 0 Hours ago

इस इलाक़े में रूस और चीन पहले से ही बड़े किरदार बने हुए हैं. ऐसे में मध्य एशिया में अपनी मज़बूत पैठ बनाने के लिए भारत को अभी एक लंबा रास्ता तय करना होगा.

मध्य एशिया के साथ भारत के रिश्तों में निरंतरता

यूरेशिया के केंद्र में स्थित मध्य एशिया का इलाक़ा भारत के विस्तारित पड़ोस का ही अंग है. अपनी भौगोलिक निकटता, सामरिक स्थिति और ऐतिहासिक संपर्कों के चलते ये इलाक़ा भारत का एक अहम साझीदार है. भारत इस क्षेत्र के साथ लगातार अपनी सामरिक भागीदारी बढ़ाने की कोशिशें करता आ रहा है. इसी कड़ी में 28 अक्टूबर 2020 को वर्चुअल तरीके से भारत-मध्य एशिया द्वितीय संवाद का आयोजन किया गया. इसकी अध्यक्षता विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने की. कज़ाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़बेकिस्तान और ताजिकिस्तान के विदेश मंत्रियों के अलावा किर्ग़िस्तान के प्रथम उपविदेश मंत्री ने इस संवाद में हिस्सा लिया. इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ अफ़ग़ानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री हनीफ़ अटमार को इसमें ख़ास मेहमान के तौर पर बुलाया गया था. 

मध्य एशिया से जुड़ाव: वर्चुअल बैठकें

टेबल 1: 2014 के बाद मध्य एशिया के साथ उच्च स्तरीय यात्रा संपर्क

यात्रा का वर्ष     यात्रा किसने की  कहां की यात्रा  प्रमुख बातें
2014 किर्ग़िस्तान के विदेश मंत्री        भारत
  1. पारस्परिक कानूनी सहायता पर द्विपक्षीय समझौता. राजनयिकों, अधिकारियों और सर्विस पासपोर्ट धारकों के लिए वीज़ा मुक्त आवागमन पर करार
  2. जुलाई 2013 में बिश्केक में संपन्न व्यापार, अर्थव्यवस्था, विज्ञान, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग से जुड़े छठे भारत-किर्ग़ि रिपब्लिक अंतर-सरकारी आयोग की प्रगति
          भारत के विदेश मंत्री           ताजिकिस्तान    
  1. खनन, औषधि, वस्त्र और पोशाक उद्योग, परिवहन और संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन को प्राथमिक क्षेत्र मानकर द्विपक्षीय निवेश को प्रोत्साहन
  2. भारत-किर्गि रिपब्लिक साझा कारोबार परिषद
  3. बिश्केक में आईटी सेंटर ऑफ़ एक्सिलेंस और पूरे मध्य एशिया क्षेत्र के लिए नियोजित ई-नेटवर्क की प्रगति
2015 भारत के प्रधानमंत्री कज़ाकिस्तान
  1. रक्षा और सैन्य तकनीक
  2. रेलवे
  3. भारत को यूरेनियम आपूर्ति
  4. खेल-कूद
  5. सज़ायाफ़्ता क़ैदियों का स्थानांतरण
भारत के प्रधानमंत्री उज़बेकिस्तान
  1. आतंकवाद के ख़िलाफ़ साझा कार्यसमूह                         
  2. भारत को यूरेनियम की आपूर्ति
भारत के प्रधानमंत्री किर्ग़िस्तान
  1. रक्षा क्षेत्र में सहयोग पर समझौता
  2. चुनावों के मामलों में सहयोग पर समझौता पत्र (एमओयू)
  3. संस्कृति
भारत के प्रधानमंत्री तुर्कमेनिस्तान
  1. रासायनिक उत्पादों की आपूर्ति पर समझौता पत्र
  2. विज्ञान और प्रौद्योगिकी में सहयोग का कार्यक्रम
  3. पर्यटन क्षेत्र में सहयोग पर समझौता पत्र
  4. रक्षा समझौता
भारत के प्रधानमंत्री ताजिकिस्तान
  1. ताजिकिस्तान के 37 स्कूलों में कंप्यूटर लैब की स्थापना के लिए औपचारिक राजनयिक पत्रों का आदान-प्रदान
2016 ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति भारत 1.आतंकी संगठनों की फ़ाइनांसिंग और मनी लॉन्ड्रिंग की रोकथाम के लिए समझौता
किर्ग़िस्तान के राष्ट्रपति भारत

1. यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम्स पर समझौता पत्र

कृषि और खाद्य सुरक्षा पर समझौता पत्र

2018 भारत के राष्ट्रपति ताजिकिस्तान
  • विकास के लिए अंतरिक्ष तकनीकी के शांतिपूर्ण इस्तेमाल पर समझौता पत्र
  • नवीकरणीय उर्जा में सहयोग पर समझौता पत्र
उज़बेकिस्तान के राष्ट्रपति भारत 1.पर्यटन, कृषि और सहायक क्षेत्रों, स्वास्थ्य और चिकित्सा विज्ञान, औषधि उद्योग, विज्ञान, तकनीकी और नवाचार, सैन्य शिक्षा
2019  भारत के विदेश मंत्री उज़बेकिस्तान 1. भारत-मध्य एशिया संवाद का उद्घाटन
उज़बेकिस्तान के राष्ट्रपति भारत
  • उज़बेकिस्तान से यूरेनियम के आयात पर समझौता
  • गुजरात और अंदिजान के बीच सहयोग पर समझौता पत्र
भारतीय रक्षा मंत्री उज़बेकिस्तान
  • सैन्य औषधि
  • सैन्य शिक्षा
 उज़बेकिस्तान के विदेश मंत्री भारत
  • सुरक्षा सहयोग
  • आतंकवाद-निरोधक
  • मानव तस्करी
2020 उज़बेकिस्तान के विदेश मंत्री भारत
  • भारत द्वारा उज़बेकिस्तान को 2 अरब अमेरिकी डॉलर लाइन ऑफ़ क्रेडिट का विस्तार
  • इसकी अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के प्रयास, कारोबार के अनुकूल माहौल बनाना, भारतीय कंपनियों समेत तमाम स्रोतों से विदेशी निवेश आकर्षित करना
  • रक्षा, आतंकवाद-निरोधक और सुरक्षा, सूचना और संचार तकनीकी, विकास भागीदारी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना
  • संयुक्त राष्ट्र और शंघाई सहयोग संगठन समेत तमाम बहुराष्ट्रीय मंचों में सहयोग
भारत-मध्य एशिया द्वितीय संवाद वर्चुअल सम्मेलन
  • आतंकवाद की रोकथाम
  • ईरान के चाबहार पोर्ट की बुनियादी सुविधाओं का आधुनिकीकरण
  • मध्य एशियाई देशों के लिए भारत की ओर से 1 अरब अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त कर्ज़ सहायता
  • देशों में उच्च प्रभाव वाले सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता देना
  • भारत-मध्य एशिया कारोबार परिषद
भारत और उज़बेकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संवाद वर्चुअल सम्मेलन
  • भारत सरकार के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान और उज़बेकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान के बीच समझौता पत्र 
  • डिजिटल तकनीक के क्षेत्र में सहयोग पर समझौता
  • भारत के आयात-निर्यात बैंक और उज़बेकिस्तान की सरकार के बीच डॉलर क्रेडिट लाइन समझौता
  • उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाएं

2020 में इस इलाक़े के साथ भारत के जुड़ावों के दौरान कोरोना महामारी से निपटने की तात्कालिक ज़रूरतों के साथ साथ क्षेत्रीय आर्थिक विकास, संपर्क और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर साफ़ तौर से ध्यान दिया गया. इस क्षेत्र के साथ हुए समझौतों में भारत द्वारा 1 अरब अमेरिकी डॉलर के अतिरिक्त क्रेडिट लाइन को लेकर की गई घोषणा अहम है. इसका इस्तेमाल ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा, संपर्क, सूचना प्रौद्योगिकी, कृषि, शिक्षा आदि में प्राथमिकता वाली विकास परियोजनाओं के लिए किया जाएगा. भारत की ‘मध्य एशिया को जोड़ने की नीति’ दोनों क्षेत्रों के बीच सामाजिक-आर्थिक, सुरक्षा और सांस्कृतिक संबंधों के मामलों से जुड़े तमाम पहलुओं के बहुविध दृष्टिकोण को मज़बूती प्रदान करने का लक्ष्य रखती है. इस मकसद से भारत ने उच्च प्रभाव वाले सामुदायिक विकास परियोजनाओं पर अमल के लिए अनुदान सहायता देने का प्रस्ताव किया है. इनका उद्देश्य इलाक़े में सामाजिक-आर्थिक विकास में तेज़ी लाना है. 

ये तमाम गतिविधियां एक ऐसे समय में सामने आई हैं जब दुनिया भर के देश कोविड-19 महामारी से जूझ रहे हैं. भारत ने महामारी से लड़ने के लिए मध्य एशिया के अपने सहयोगियों को मानवीय और चिकित्सा सहायताएं दी हैं. वैसे तो मध्य एशियाई देशों ने रूस में बने वैक्सीन को इस्तेमाल के लिए चुना है लेकिन टीकाकरण की रफ़्तार सुस्त रही है. भारत ने अपने पड़ोसियों को कोविड-19 टीके के 55 लाख डोज़ मुहैया कराए हैं. अगर इन प्रयासों को और आगे बढ़ाया जाता है तो इसमें मध्य एशियाई देशों को शामिल किए जाने पर विचार किया जा सकता है. 

महामारी द्वारा पेश की गई ताज़ा चुनौतियों के अलावा इस इलाक़े के दीर्घकालीन सुरक्षा ख़तरे साझा चिंता का सबब बने हुए हैं. सुरक्षा सहयोग को और मज़बूत करने की नीयत से सभी देशों ने मौजूदा संघर्ष के निपटारे के लिए अफ़ग़ानी नेतृत्व, अफ़ग़ानी स्वामित्व और अफ़ग़ानी नियंत्रण वाली शांति प्रक्रिया पर ज़ोर दिया है. भारत-मध्य एशिया संवाद को लेकर जारी साझा बयान में भी आतंकियों के सुरक्षित पनाहगाहों, बुनियादी ढांचों, नेटवर्क और फ़ंडिंग से जुड़े स्रोतों को तबाह कर आतंकवाद की रोकथाम करने पर ज़ोर दिया गया है. इस बात को रेखांकित किया गया है कि हरेक देश ये सुनिश्चित करेगा कि किसी दूसरे देश के ख़िलाफ़ आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए उसके भूभाग का इस्तेमाल न हो. अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशियाई क्षेत्र (सीएआर) में स्थिरता का माहौल भारत की सुरक्षा से सीधे तौर से जुड़ा है. ऐसे में भारत को इस क्षेत्र के साथ व्यापार, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, तकनीकी और मानव संसाधनों के मामले में प्रगाढ़ संबंध बनाने चाहिए. 

भारत और उज़बेकिस्तान ने दिसंबर 2020 में पहले वर्चुअल द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन का आयोजन किया. 5 वर्षों के दौरान दोनों देशों के नेताओं के बीच ये सातवां द्विपक्षीय संवाद था. भारत और उज़बेकिस्तान ने एक समझौता पत्र पर दस्तख़त किए. इसके तहत भारतीय पक्ष ने सड़क निर्माण और डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने हेतु आईटी सेक्टर के विकास के लिए 4.48 अरब डॉलर के लाइन ऑफ़ क्रेडिट को मंज़ूर किए जाने की पुष्टि की. 2019 में उज़बेकिस्तान ने भारत को अपने प्रस्तावित अफ़ग़ानिस्तान-उज़बेकिस्तान रेल संपर्क परियोजना से जुड़ने का न्योता दिया था. इस परियोजना का लक्ष्य क्षेत्रीय व्यापार को प्रोत्साहन देना और ख़ासकर अफ़ग़ानिस्तान में विकास को बढ़ावा देना है. उज़बेकिस्तान अपनी विदेश नीति से जुड़े सहयोगियों की सूची में प्रमुख क्षेत्रीय शक्तियों से परे और अधिक विविधता लाना चाहता है. ऐसे में भारत के पास द्विपक्षीय और क्षेत्रीय गठजोड़ को आगे ले जाने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं. 

इस दिशा में एक और बड़ा कदम भारत, ईरान और उज़बेकिस्तान के त्रिपक्षीय कार्य समूह की बैठक के दौरान उठाया गया. 14 दिसंबर 2020 को हुई इस बैठक में चाबहार पोर्ट के साझा इस्तेमाल को लेकर बातचीत हुई थी. भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने अफ़ग़ानिस्तान, मध्य एशिया और उससे भी आगे अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) के लिए रूस और यूरोप तक पहुंच बनाने के भारत के प्रयासों के संदर्भ में इस बंदरगाह के महत्व को रेखांकित किया. चाबहार बंदरगाह के ज़रिए संपर्क में मज़बूती लाकर आर्थिक फ़ायदे हासिल करने के साथ-साथ भारत की नज़र पाकिस्तान में चीन द्वारा विकसित किए जा रहे ग्वादर पोर्ट पर भी है. 

आईएनएसटीसी का मुद्दा भी चर्चा के लिए आया. इसमें भारत ने यूरेशियाई क्षेत्र में कनेक्टिविटी में बुनियादी तौर पर सुधार के लिए उज़बेकिस्तान द्वारा इस परियोजना से जुड़ने के महत्व को रेखांकित किया. 2000 में शुरू हुई इस परियोजना की प्रगति अब तक धीमी ही बनी रही है. इसके लिए कई कारक ज़िम्मेदार हैं. इनमें व्यापार की मात्रा काफ़ी कम होना, बुनियादी ढांचे की अपूर्णता और प्रतिबंध जैसे मुद्दे शामिल हैं. कई महादेशों को जोड़ने वाले इस गलियारे के भौगोलिक क्षेत्रफल को बढ़ाकर 11 और सदस्य देशों को इसके दायरे में शामिल किया गया है. इस गलियारे में अपार संभावनाएं मौजूद हैं. लिहाजा इसका पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए इसकी मौजूदा कमियों को तत्काल दूर किए जाने की आवश्यकता है. उम्मीद की जा रही है कि तुर्कमेनिस्तान के साथ उज़बेकिस्तान के भी इसमें शामिल हो जाने से इस गलियारे से क्षेत्रीय संपर्कों के विस्तार में मदद मिलेगी. इससे और ज़्यादा आर्थिक और सामरिक फ़ायदे हासिल हो सकेंगे.

मध्य एशिया के कुछ देश हर ओर से स्थल-क्षेत्रों से घिरे हैं. इन देशों का कोई भी सिरा समुद्र के पास नहीं है. ऐसे में मध्य एशिया में जारी मौजूदा परियोजनाओं के अलावा डिजिटल कनेक्टिविटी की दिशा में भी काफ़ी काम किए जाने की संभावनाएं बरकरार हैं. इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी को और आगे बढ़ाने के लिए भारत को कनेक्टिविटी के क्षेत्र में अपने प्रयासों को कई गुणा तेज़ कर देना चाहिए. चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के संदर्भ में ये और भी ज़रूरी हो जाता है. इस इनिशिएटिव के 6 गलियारों में से 2 मध्य एशिया से होकर जाते हैं. 

मध्य एशियाई क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से प्राकृतिक संसाधनों के मामलों में समृद्ध रहे हैं. ये इलाका तेल और गैस पाइपलाइनों के आवागमन से जुड़ा एक प्रमुख केंद्र है. चीन, रूस, यूरोप और आईओआर के लिए मल्टी-मोडल गलियारा भी यहां से होकर गुज़रता है. सोवियत संघ के बाद के युग में यहां की क्षेत्रीय राजसत्ताएं अपनी विदेश नीतियों में विविधता लाना चाहती हैं. ऐसे में उनका ध्यान अपने सामरिक हितों की पूर्ति की ओर केंद्रित हो गया है

रूस अब भी इस इलाके में राजनीति और सुरक्षा के दृष्टिकोण से बड़ा खिलाड़ी बना हुआ है. अगर बात आर्थिक मसलों की हो तो सोवियत संघ के विघटन के बाद चीन ने रूस की जगह ले ली है. चीन के इस बढ़ते प्रभाव के मद्देनज़र रूस ने भी अपने यूरेशियाई आर्थिक संघ (ईएईयू) को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है. इसका मकसद क्षेत्रीय और आर्थिक एकीकरण करना है. ईएईयू इस इलाक़े में एक स्थापित किरदार बन गया है. हालांकि राजनीतिक मसलों पर रूसी प्रस्ताव को स्वीकारने से सदस्य देशों की आपत्तियों के चलते अब तक ये संघ राजनीतिक स्वरूप नहीं ले सका है. 2015 में अपनी स्थापना के बाद से अब तक इसमें मध्य एशियाई क्षेत्र के सिर्फ़ 2 देश- कज़ाकिस्तान और किर्ग़िस्तान ही सदस्य के तौर पर शामिल हुए हैं. इस तरह ये संघ एक अपूर्ण संगठन बनकर ही रह गया है

बहरहाल, चीन लगातार इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है. यहां अपना प्रभाव और बढ़ाने के मकसद से उसने 2020 में ‘5+1 प्रारूप’ की शुरुआत की थी. मध्य एशियाई देशों की आर्थिक स्थिति खस्ताहाल है. ऐसे में चीन के बढ़ते असर से यहां ‘ऋण के जाल में फंसाने वाली कूटनीति’ को लेकर चिंता जताई जाने लगी हैं. तुर्कमेनिस्तान पर कम से कम 8 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर चीनी कर्ज़ है. ताज़िकिस्तान का कुल विदेशी ऋण 2.8 अरब डॉलर के बराबर है जिसमें चीनी कर्ज़ का हिस्सा करीब 50 प्रतिशत है. महामारी के आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिए किर्ग़िस्तान ने चीन से कर्ज़ चुकाने में राहत देने की अपील की है. किर्ग़िस्तान का विदेशी कर्ज़ 4 अरब डॉलर के बराबर है, इसमें चीन के आयात-निर्यात बैंक का हिस्सा 1.7 अरब अमेरिकी डॉलर है. कज़ाकिस्तान इस इलाक़े में चीन का सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है. हालांकि बीआरआई के विस्तार के साथ चीन के पैंतरों को लेकर अब वो भी सतर्क हो गया है. 

रूस अब भी इस इलाके में राजनीति और सुरक्षा के दृष्टिकोण से बड़ा खिलाड़ी बना हुआ है. अगर बात आर्थिक मसलों की हो तो सोवियत संघ के विघटन के बाद चीन ने रूस की जगह ले ली है. 

इन घटनाक्रमों से भारत के लिए यहां नए द्वार खुल रहे हैं. भारत को इस क्षेत्र में सराहना भरी नज़रों से देखा जाता है. मध्य एशियाई राजसत्ताओं में भारत की छवि सकारात्मक है. भारत अब दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. ऐसे में मध्य एशिया के साथ जुड़ाव बढ़ने से आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में अनेक पारस्परिक लाभ हासिल हो सकते हैं. इस इलाक़े में अनेक मज़बूत शक्तियां मौजूद हैं. ऐसे में यहां की क्षेत्रीय राजसत्ताओं को अपने ऊपर बाहरी दबाव में संतुलन बिठाने का विकल्प मिलता है. 

बहरहाल, भारत ने यहां देर से अपने कदम रखे हैं. इस क्षेत्र की ओर उसने हाल के वर्षों में ही ध्यान देना शुरू किया है. भारत ने इस इलाक़े के साथ अपने संपर्कों को गहरा करने की पुरज़ोर कोशिशें शुरू कर दी हैं. इसके तहत दोनों पक्षों की ओर से उच्च स्तरीय दौरे, पारस्परिक सुरक्षा चिंताओं पर सहयोग और व्यापार संबंधों में सुधार पर ध्यान दिया गया है. जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मध्य एशियाई क्षेत्र के पांचों देशों की लंबी-चौड़ी यात्रा इसी दिशा में उठाया गया कदम था. 

इसके बावजूद मध्य एशिया में ख़ुद को एक प्रमुख किरदार के रूप में पेश करने के लिए भारत को अभी एक लंबा रास्ता तय करना है. सीमित संपर्कों और आर्थिक जुड़ाव के निम्न स्तर के चलते इस क्षेत्र के साथ भारत का व्यापार सिर्फ़ 2 अरब अमेरिकी डॉलर है. ये भारत के कुल विदेशी व्यापार के आधा प्रतिशत से भी कम है जबकि चीन के साथ इस क्षेत्र का व्यापार 100 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर है. 

आगे का रास्ता

मध्य एशिया के साथ व्यापार को मौजूदा निम्न स्तर से आगे बढ़ाने के लिए कोशिशें की जा रही हैं. इसके लिए दोनों पक्षों के कारोबारियों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसी कड़ी में 2020 में भारत-मध्य एशिया कारोबारी परिषद की स्थापना की गई. मध्य एशिया का भूगोल सामरिक दृष्टि से बेहद अहम है. इस इलाक़े से दुनिया के कई महत्वपूर्ण व्यापारिक और वाणिज्यिक मार्ग गुज़रते हैं. ऐसे में इस क्षेत्र के साथ जुड़ाव का भरपूर आर्थिक लाभ उठाने के लिए भारत द्वारा यहां प्रत्यक्ष निवेश करने की भी ज़रूरत है. निर्माण उद्योग, रेशम उद्योग, औषधि निर्माण, सूचना प्रौद्योगिकी और पर्यटन आदि के क्षेत्र में इस तरह के गठजोड़ की काफ़ी संभावनाएं मौजूद हैं. 

मध्य एशियाई राजसत्ताओं में भारत की छवि सकारात्मक है. भारत अब दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. ऐसे में मध्य एशिया के साथ जुड़ाव बढ़ने से आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में अनेक पारस्परिक लाभ हासिल हो सकते हैं.

सामरिक और आर्थिक सहयोग के अलावा भारत को इस क्षेत्र के विकास और मानवीय मदद के सिलसिले में अपने प्रयास भी बढ़ाने होंगे. दोनों ही क्षेत्रों की जनता के बीच आपसी ताल्लुकात को पुख्ता करने के उपाय करने होंगे. इसके लिए शिक्षा, जानकारियों का आदान-प्रदान, औषधि और स्वास्थ्य, संस्कृति, खान-पान और पर्यटन से जुड़े क्षेत्रों में आपसी मेलजोल बढ़ाना होगा. एससीओ, ईएईयू और सीआईसीए जैसे बहुपक्षीय संगठन सतत जुड़ाव और विचारों के आदान-प्रदान की निरंतरता बनाए रखने के लिए मंच के तौर पर काम कर सकते हैं. एससीओ एक बेहद अहम समूह है जो भारत को रूस और चीन के साथ सामरिक मुद्दों पर आपसी समझ विकसित करने का अवसर प्रदान करता है. इसके ज़रिए सुरक्षा की नित नई चुनौतियों से निपटने और बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी परियोजनाओं को बढ़ावा देने पर ध्यान दिया गया है. इसके साथ ही मध्य और दक्षिण एशियाई क्षेत्र के वृहत आपसी लाभ के लिए क्षेत्रीय स्तर पर तेल और गैस पाइपलाइन का जाल तैयार करने से जुड़े कार्य भी इसमें शामिल हैं. इससे यूरेशिया के एकीकरण की प्रक्रिया में भारत को शामिल किए जाने को लेकर अपार संभावनओं के द्वार खुलते हैं. हालांकि इस रास्ते में कई चुनौतियां भी हैं. चीन इस इलाक़े को लेकर बेहद आक्रामक रुख़ अपनाए हुए है. इतना ही नहीं चीन और पाकिस्तान के बीच का नापाक गठजोड़ भारत के प्रयासों की सफलता के रास्ते में बाधा बनकर खड़ा है. ऐसे में तमाम संबद्ध पक्षों के साथ बारीकी से तालमेल बिठाकर ही भारत न सिर्फ़ यूरेशिया बल्कि दक्षिण एशिया में भी अपनी भूमिका ठोस तरीके से निभा सकेगा. 

इस इलाक़े में रूस और चीन पहले से ही बड़े किरदार बने हुए हैं. ऐसे में मध्य एशिया में अपनी मज़बूत पैठ बनाने के लिए भारत को अभी एक लंबा रास्ता तय करना होगा. 2020 में आयोजित वर्चुअल शिखर सम्मेलनों में इसको लेकर अनेक प्रस्तावों और विचारों पर परिचर्चा की गई. इन्ही चर्चाओं से इस क्षेत्र के साथ रिश्तों को लेकर एक सतत, संतुलित और दीर्घकालिक रणनीति निकलकर सामने आने की संभावना है. भारत को इस इलाक़े में अपनी नीतियों को कामयाब बनाने और वांछित लक्ष्य हासिल करने के लिए इन्हीं चर्चाओं से निकले सूत्रों के हिसाब से आगे बढ़ना होगा. 

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