Author : Soumya Bhowmick

Published on Jul 12, 2023 Updated 0 Hours ago
पाकिस्तान का प्रेरक गठबंधन: सऊदी अरब का नज़रिया

2019 में जब सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान पाकिस्तान के दौरे पर आए थेतो उन्होंने पाकिस्तान में 21 अरब डॉलर के निवेश के सहमति पत्रों (MoUs) पर दस्तख़त किए थेइनमें 12 अरब डॉलर की लागत से कच्चा तेल साफ़ करने की रिफाइनरी लगाने और पेट्रोकेमिकल कॉम्प्लेक्स स्थापित करने का समझौता भी शामिल थालेकिनइस मामले में करोड़ों पाकिस्तानियों की उम्मीदों को झटका लगाक्योंकि उन्हें जिस उद्यम का बहुत बेसब्री से इंतज़ार थाउसे अमली जामा नहीं पहनाया जा सकाइसके बजायये समझौता भीकूटनीतिक ग़लतियों और तनावपूर्ण विदेशी संबंधों के दलदल से बाहर निकलने की एक नाकाम कोशिश ही साबित हुआ2020 में पाकिस्तान ने सऊदी अरब की अगुवाई वाले 57 मुस्लिम बहुल देशों के इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की आलोचना करते हुए कहा कि OIC, कश्मीर मसले में दखल देने में असफल रहा है. कश्मीर का मुद्दापाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान की हुकूमत का एक अहम नीतिगत विषय रहा था.

2020 में पाकिस्तान ने सऊदी अरब की अगुवाई वाले 57 मुस्लिम बहुल देशों के इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की आलोचना करते हुए कहा कि OIC, कश्मीर मसले में दखल देने में असफल रहा है.

पाकिस्तान को आर्थिक मदद 

जब मुस्लिम देशों पर सऊदी अरब के दबदबे पर सवाल उठाते हुए विश्व मंच पर उसे खुली चुनौती दी गईतो आम तौर पर पाकिस्तान के साथ सौहार्दपूर्ण रहने वाले सऊदी अरब के संबंध बेहद ख़राब हो गएपाकिस्तान की धमकी के जवाब में सऊदी अरब ने पाकिस्तान को दिया गया एक अरब डॉलर का बिना ब्याज वाला वो क़र्ज़ वापस ले लियाजो उसने नवंबर 2018 में दिया थापाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति पहले से ही ख़राब थीसऊदी अरब के इस क़दम से उसकी स्थिति और बिगड़ गई और पाकिस्तानदिवालिया होने के मुहाने पर पहुंच गयायही नहींसऊदी अरब ने पाकिस्तान को तेल की क़ीमत का भुगतान करने में दी समय की गई रियायत भी वापस ले लीइस रियायत का मक़सद पाकिस्तान के आयात बिल को कम करना थाजो उसी पैकेज का हिस्सा था.

जब से सऊदी शाही परिवार ने ख़ुद पाकिस्तान के उच्च स्तरीय नेतृत्व से दूर करना शुरू किया हैउसके बाद से ऐसा देखा गया है कि सऊदी अरब ने भारत के साथ सामरिक कारोबारी रिश्ते स्थापित करने के लिए पाकिस्तान को हाशिए पर धकेल दिया हैउल्लेखनीय है कि 2019 में जब सऊदी अरब प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भारत आए थेतो उन्होंने पाकिस्तान के ऐतराज़ के बाद भीभारत के साथ लगभग 100 अरब डॉलर निवेश के सहमति पत्रों (MoUs) पर दस्तख़त किए थेइससे साफ़ ज़ाहिर था कि पाकिस्तान के साथ रिश्ते के मामले में सऊदी अरबकितना बड़ा जज़्बाती जोखिम लेने के लिए तैयार था.

इसके बावजूदसऊदी अरब के साथ पाकिस्तान के रिश्ते 1947 में उसके एक स्वतंत्र देश के तौर पर उभरने के बाद से ही काफ़ी मज़बूत रहे हैंदोनों देशों के बीच धार्मिक आस्था का अटूट बंधन रहा है जो इस्लाम की बुनियाद में निहित हैइसी वजह सेलंबे वक़्त से दोनों देशों के रिश्ते असाधारण रूप से बेहद नज़दीकी रहे हैंपाकिस्तान के सामने जब भी आर्थिक चुनौतियां पैदा हुई हैंतब वो तेल की आपूर्ति और वित्तीय मदद को लेकर सऊदी अरब के ऊपर बहुत अधिक निर्भर रहा हैचूंकिपाकिस्तान के सामने अक्सर विदेशी मुद्रा भंडार कम होनेदूसरी मुद्राओं के साथ पाकिस्तानी रुपए के लेनदेन की क़ीमतों में उथलपुथल और तेज़ी से बढ़ती महंगाई की चुनौती खड़ी होती रही है. ऐसे में सऊदी अरब द्वारा पाकिस्तान में 11 अरब डॉलर के निवेश की योजनाओं साथ साथ पाकिस्तान के स्टेट बैंक में उधार के तौर पर 3 से 5 अरब डॉलर के निवेश ने पाकिस्तान के लिए एक जीवन रेखा का ही काम किया हैहो सकता है कि इन उपायों की वजह से पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की बारीक़ पड़ताल का सामना  करना पड़ेसऊदी अरब द्वारा हमेशा मदद करने और हर मुश्किल में मज़बूती से साथ खड़ा रहनापाकिस्तान के लिए एक ऐसा ट्रंप कार्ड रहा हैजिससे वो हर संकट से ख़ुद को उबारता रहा हैइसमें IMF से मदद का पैकेज हासिल करना भी शामिल हैक्योंकिसऊदी अरब की मदद के बग़ैर पाकिस्तान को तेल और बिजली की क़ीमतों में और इज़ाफ़ा करने के साथ साथअपने अवाम पर टैक्स का अतिरिक्त बोझ भी लादना पड़ता.

सऊदी अरब द्वारा पाकिस्तान में 11 अरब डॉलर के निवेश की योजनाओं साथ साथ पाकिस्तान के स्टेट बैंक में उधार के तौर पर 3 से 5 अरब डॉलर के निवेश ने पाकिस्तान के लिए एक जीवन रेखा का ही काम किया है.

सऊदी अरब ने पाकिस्तान की मदद केवल आर्थिक मुश्किलों के दौर में ही नहीं की हैबल्किमानवीय संकटों के दौरान भी सऊदी अरब ने पाकिस्तान को दिल खोलकर सहायता दी हैसऊदी अरब ने पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति स्थिर करने के लिए केंद्रीय बैंक में 20 करोड़ डॉलर की रक़म जमा करने के साथ साथउसको यूरिया ख़रीदने के लिए भी इतनी ही रक़म दी थीइसके अलावापाकिस्तान में पिछले साल आई भयंकर बाढ़ के बाद दुनिया भर से उसको जो मदद मिलीउसमें से 13.3 प्रतिशत रक़म अकेले सऊदी अरब ने दी थीसऊदी अरब ने बाढ़ से निपटने के लिएपाकिस्तान को केवल पैसे से मदद नहीं दी थीबल्कि उसने राहत सामग्री देने के साथ साथ उसे लोगों तक पहुंचाने के लिए मालवाहक विमान और ट्रक भी उपलब्ध कराए थेपाकिस्तान और सऊदी अरब का ये बेहद ख़ास और अनूठा रिश्ता आज़ादी से पहले से चला  रहा है. 1943 में जब बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा थातब सऊदी अरब से मदद के तौर पर एक मोटी रक़म दान मे दी थीदोनों देशों ने शीत युद्ध के दौरान कम्युनिस्ट विरोधी मोर्चा भी बनाया थाऔर अफ़ग़ानिस्तान पर पूर्व सोवियत संघ के क़ब्ज़े का मिलकर विरोध किया था.

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान जिस तरह लगातार सऊदी अरब की आलोचना वाला रवैया अपनाता रहा है, वो इस दोस्ती के रिश्ते के लिए काफ़ी अहम जोखिम बन सकता है, जिसे पिछले 75 साल से दोनों देश लगातार मज़बूती से निभाते आए हैं.

आम तौर पर ये माना जाता है कि दोनों देशों के बीच नज़दीकी संबंध की बुनियाद मज़हबी विचारधारा हैलेकिनये बात पूरी तरह से सच नहीं हैसऊदी अरबपाकिस्तान को एक भरोसेमंद और अनिवार्य रक्षा साझीदार मानता हैइसकी बड़ी वजह ये है कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार हैंजो क्षेत्रीय ख़तरों से निपटने में एक अहम भूमिका अदा करते हैंसऊदी अरब की सरकार मानती है कि पाकिस्तान के साथ एक मज़बूत गठबंधन बनाए रखना बेहद ज़रूरी हैख़ास तौर से ईरान को लेकर चिंताओं को देखते हुएतो ये और भी ज़रूरी हो जाता हैहाल ही में चीन ईरान के बीच 400 अरब डॉलर का चाबहार समझौता हुआजिसे चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) से सुविधा मिली थीइसने इस परियोजना के लिए पाकिस्तान के माध्यम बनने की अहमियत को फिर से स्पष्ट किया है. अगर ये समझौता योजना के अनुसार आगे बढ़ता हैतो ईरान औपचारिक रूप से चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के साथ जुड़ जाएगाजिससे ईरान को काफ़ी आर्थिक फ़ायदे मिलेंगेजो सऊदी अरब के लिए बहुत असहज स्थिति पैदा कर सकते हैंक्योंकि ईरान के साथ उसकी पुरानी दुश्मनी हैइसके अतिरिक्त पाकिस्तानसऊदी अरब में कामगारों की मांग पूरी करने में काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता हैअपनी मूलभूत ढांचे की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में काम करने के लिए सऊदी अरब को पाकिस्तान से नियमित रूप से सस्ते मज़दूर मिलते रहते हैंइसके अलावापाकिस्तानसऊदी अरब के तेल का एक बड़ा बाज़ार हैऔर वो सऊदी अरब को विदेशी निवेश के भी आकर्षक अवसर उपलब्ध कराता है

Table 1: सऊदी अरब के साथ पाकिस्तान का व्यापार (2003-2020)

Table 1: Pakistan’s Trade with Saudi Arabia (2003 – 2020) 

Year Export (US$ Million) Import (US$ Million) Total Trade Volume (US$ Million) Pakistan’s Total Trade Deficit (US$ Million)
2003 469.6 1416.7 1886.2 947.1
2004 353.1 1757.8 2111 1404.7
2005 354.9 2650.6 3005.5 2295.7
2006 309 3033.2 3342.3 2724.2
2007 295.5 4011.8 4307.3 3716.3
2008 441.1 5954.9 6396 5513.9
2009 425.7 3500.1 3925.8 3074.4
2010 409 3837.9 4247 3428.9
2011 420.2 4668.3 5088.5 4248.1
2012 455.6 4283.5 4739.2 3827.9
2013 494.1 3847.2 4341.3 3353.2
2014 509.7 4417.4 4927.1 3907.7
2015 431.3 3006.8 3438.1 2575.4
2016 380.4 1843.1 2223.6 1462.7
2017 334.5 2730.4 3064.9 2395.9
2018 316.3 3242.3 3558.7 2926
2019 404.9 2436.3 2841.2 2031.4
2020 432.3 1893.1 2325.4 1460.8

Source: The World Bank

देशों के लिए फ़ायदेमंद इस रिश्ते को लेकर पाकिस्तान जिस तरह का रवैया अपनाता है और अपने हिस्से का योगदान देता हैवो अनिश्चित बना हुआ हैविदेश में रह रहे पाकिस्तानियों द्वारा भेजी जाने वाली विदेशी मुद्रा के मामले में पाकिस्तानसऊदी अरब पर बहुत अधिक निर्भर हैवहां रह रहे क़रीब 25 लाख पाकिस्तानी नागरिकअपने देश को 69.18 करोड़ डॉलर की भारी रक़म विदेशी मुद्रा के तौर पर भेजते हैंइसके अलावा सऊदी अरब से पाकिस्तान को उसके कुल तेल आयात का 25 प्रतिशत हिस्सा हासिल होता हैये ऐसा योगदान हैजो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए जीवन रेखा जैसा हैपिछले कई वर्षों से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने में सऊदी अरब से सस्ते दाम और रियायती शर्तों पर मिलने वाले तेल ने अहम भूमिका अदा की हैहालांकिअंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान जिस तरह लगातार सऊदी अरब की आलोचना वाला रवैया अपनाता रहा हैवो इस दोस्ती के रिश्ते के लिए काफ़ी अहम जोखिम बन सकता हैजिसे पिछले 75 साल से दोनों देश लगातार मज़बूती से निभाते आए हैं.


(नोट– इसके और विस्तृत विश्लेषण के लिए कृपया ORF का ऑकेज़नल पेपर नंबर 403, डेट एड इंफिनिटमपाकिस्तान्स मैक्रोइकोनॉमिक कैटास्ट्रोफे देखें)

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