Published on Aug 25, 2022 Updated 0 Hours ago

श्रीलंका में चीनी जहाज युआन वांग 5 का ज़ोरदार स्वागत यह दर्शाता है कि चीनी एजेंसी भारत की सुरक्षा चिंताओं की अनदेखी कर रही है.

चीनी जासूसी जहाज और श्रीलंका का बीजिंग की तरफ झुकाव!

कोलंबो ने शुरुआत में चीनी जासूसी जहाज युआन वांग 5 को अपने हंबनटोटा बंदरगाह पर ठहरने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. हालांकि, बाद में श्रीलंका ने चीनी जहाज को मना करने के अपने पहले के निर्णय को फिर से बदल दिया. इसको लेकर उसने जहाज को लंगर डालने के अधिकार का हवाला देते हुए अपनी बदली हुई स्थिति को भी स्पष्ट किया. श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने कैबिनेट को बताया कि चीनी जहाज ने केवल ईंधन भरने के लिए वहां आने की अनुमति मांगी थी, जबकि प्रधानमंत्री दिनेश गुणावर्धने ने भारत के साथ संतुलन साध कर और इसे “दोस्ती का दृष्टिकोण” बताते हुए चीनी जहाज की यात्रा के ख़तरे को कम करके बताने की कोशिश की. नई दिल्ली की तरफ से सुरक्षा चिंता का मुद्दा उठाने के बावज़ूद, हालांकि कोलंबो ने 16 अगस्त, 2022 को चीनी जहाज को हंबनटोटा बंदरगाह में प्रवेश करने की अनुमति दे दी.

श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी ने कैबिनेट को बताया कि चीनी जहाज ने केवल ईंधन भरने के लिए वहां आने की अनुमति मांगी थी, जबकि प्रधानमंत्री दिनेश गुणावर्धने ने भारत के साथ संतुलन साध कर और इसे “दोस्ती का दृष्टिकोण” बताते हुए चीनी जहाज की यात्रा के ख़तरे को कम करके बताने की कोशिश की. 

चीन का दोहरे उपयोग वाला जासूसी जहाज युआन वांग 5, 11 अगस्त को दक्षिणी तट पर श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह की ओर सात दिनों तक रुकने के लिए आगे बढ़ रहा था. यह जहाज चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की स्ट्रैटजिक सपोर्ट फोर्स (एसएसएफ) के अंतर्गत संचालित होता है. पीएलएएसएसएफ सैन्य सामर्थ्य और क्षमताओं को बढ़ाने के लिए युआन वांग 5 जैसे असैनिक जहाजों को संचालित करता है. ऐसे करके चीन अपने सैन्य एजेंडे को छिपाने की कोशिश करता है और साथ ही इसके जरिए नागरिक अनुसंधान उद्देश्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करने की आड़ में फ़ायदा उठाता है. हूवर इंस्टीट्यूट की एक वरिष्ठ फेलो एलिजाबेथ सी इकोनॉमी ने अपनी पुस्तक ‘द वर्ल्ड एकॉर्डिंग टू चाइना’ में व्याख्या की है कि ‘एसएसएफ को सैन्य और नागरिक अनुसंधान और विकास के लिए एक समन्वय निकाय के रूप में काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. नौ विश्वविद्यालयों ने इसके साथ एक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.’ अंतरिक्ष और उपग्रह ट्रैकिंग में उपयोग करने के साथ-साथ अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल प्रक्षेपणों में विशेष रुप से उपयोग के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इस जहाज को श्रीलंकाई समुद्र और हंबनटोटा बंदरगाह पर तैनात किया जाना था. लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि इस यात्रा के दौरान चीनी इस जहाज को अपने आधिकारिक उद्देश्य तक ही सीमिति रखेंगे.

 

चीन का बढ़ता प्रभाव

पीएलएएसएसएफ का अधिकार क्षेत्र अंतरिक्ष, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध है. जहाज इन तीनों विषयों पर ध्यान केंद्रित करेगा और श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह से सूचनाएं और जानकारी एकत्र करेगा. ज़ाहिर है कि वहां से भारत के तमिलनाडु में स्थित कन्याकुमारी 451 किलोमीटर दूर है. ऐसे में जब भारत ने हुआवेई की 5जी जैसी चीनी प्रौद्योगिकियों को पूरी तरह से ब्लॉक कर दिया है,  साथ ही रियल-टाइम की ख़ुफिया और सूचना क्षमताओं को हासिल कर लिया है, जिससे भारत को अमेरिकी भू-स्थानिक यानी किसी विशेष स्थान की सूचनाओं के आधार पर दुश्मन के ठिकानों पर सटीक निशाना साधने की काबीलियत मिलती है. ऐसा करके चीन ने श्रीलंका और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में अपने संचार नेटवर्क का विस्तार करते हुए भारत के निकटवर्ती इलाकों में अपनी जगह बनाने के लिए एक वैकल्पिक रास्ता तैयार करने की कोशिश की है.

उल्लेखनीय है कि बीजिंग द्वारा हिंद महासागर के समुद्र में सैन्य संसाधन तैनात करने के लिए चीनी रणनीतिक दांव-पेंच का बेहतर तरीके से आकलन किया गया था, जिसने पिछले कुछ महीनों के दौरान नई दिल्ली और कैनबरा पर दबाव बनाया.

पीएलएएसएसएफ ने श्रीलंका और उसके समुद्री क्षेत्र सहित कई देशों में संकटकालीन समय के दौरान, विशेष तौर पर आंतरिक राजनीतिक चुनौतियों के वक़्त पनडुब्बी पोर्ट कॉल के जरिए इसी तरह की रणनीति का इस्तेमाल किया है. इससे पहले इस जहाज की अक्टूबर, 2014 में यात्रा तब हुई थी, जब श्रीलंका के तत्कालीन राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे अपने राष्ट्रपति चुनाव से महज तीन महीने दूर थे. मई, 2022 में ऑस्ट्रेलियाई चुनाव से पहले ऑस्ट्रेलिया में भी यही पैटर्न देखा गया था, जब पीएलए-एन का हैवांगक्सिंग खुफ़िया संग्रह पोत वहां के हैरोल्ड ई. होल्ट कम्युनिकेशन स्टेशन से लगभग 50 नॉटिकल माइल्स की दूरी पर घूम रहा था. यह संचार स्टेशन ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और दूसरे सहयोगी देशों की पनडुब्बियों को बहुत कम आवृत्ति (वीएलएफ) की संचार ट्रांसमिशन सेवा प्रदान करता है. उल्लेखनीय है कि बीजिंग द्वारा हिंद महासागर के समुद्र में सैन्य संसाधन तैनात करने के लिए चीनी रणनीतिक दांव-पेंच का बेहतर तरीके से आकलन किया गया था, जिसने पिछले कुछ महीनों के दौरान नई दिल्ली और कैनबरा पर दबाव बनाया.

श्रीलंका जैसे समुद्र तटीय देशों द्वारा चीन के इसी प्रकार के दांव-पेचों या चालाकियों से इनकार करना या इसे स्वीकार कर उनमें फंसने के गंभीर परिणाम सामने आते हैं, साथ ही इसकी विदेश नीति से जुड़े संस्थानों का काम बढ़ा देते हैं, जिनके लिए चीन के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करना ज़रूरी है. आमतौर पर देखा जाए तो बीजिंग समय-समय पर अपनी सॉफ्ट पॉवर, शार्प पॉवर और हार्ड पॉवर के बीच झूलता रहता है. ऐसा करके चीन कोलंबो में नई सरकार के वास्तविक हित और ताकत की जांच-परख करता है, वो भी ख़ास तौर पर नई दिल्ली को लेकर कोलंबो की विदेश नीति को समझने के लिए. श्रीलंकाई और चीनी झंडे लहराते हुए कई सांसदों की मौज़ूदगी में युआन वांग 5 का ज़बरदस्त स्वागत यह स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि चीनी एजेंसी श्रीलंका में भारत की सुरक्षा चिंताओं की अनदेखी कर रही है.

पूर्व में यह तब सामने आया था, जब मई, 2017 में एक चीनी पनडुब्बी ने बंदरगाह पर रुकने का अनुरोध किया गया था. उस समय भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी श्रीलंका का दौरा कर रहे थे और राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने चीनी आग्रह को ठुकरा दिया था. श्रीलंका द्वारा चीनी अनुरोध के कुछ दिनों बाद इसे अस्वीकार कर दिया गया था, ज़ाहिर है कि इसको लेकर राष्ट्रपति सिरिसेना पर स्पष्ट दबाव था. इस लेखक के साथ कोलंबो में एक मीटिंग के दौरान चीनी रक्षा सहयोगी वरिष्ठ कर्नल जू जियानवेई ने बताया था कि “श्रीलंका के इस इनकार से हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ा, हमने कोलंबो के स्थान पर पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का उपयोग किया.” यह इस बात की ओर इशारा करता है कि चीन ने हिंद महासागर में अपने कई रणनीतिक ठिकाने स्थापित कर लिए हैं. ऐसे में जहां, भारत, श्रीलंका और मालदीव के पास सुरक्षा मुद्दों पर एक क़रीबी सहयोगी व्यवस्था है, वहीं चीन जैसी अतिरिक्त क्षेत्रीय शक्तियां हैं, जो सुरक्षा सहयोग का आकलन करती हैं. चीनी पोत को लेकर अपने फ़ैसले पर दोबारा ग़ौर करना इन देशों की आपसी सुरक्षा व्यवस्थाओं में चीन की दख़लंदाज़ी करने की क्षमता को प्रदर्शित करता है.

श्रीलंका के समस्त दूरसंचार के 80 प्रतिशत से अधिक पर चीनी हार्डवेयर कंपनी का कब्ज़ा दिखाई दे रहा है, जिसने पूर्व की गोटाबाया राजपक्षे सरकार के दौरान हुआवेई के 5G विस्तार के लिए अपनी सहमति जताई थी.

ज़ाहिर है कि चीन जब श्रीलंका जैसे देशों के संबंधित दूरसंचार बुनियादी ढांचे पर हावी हो जाएगा, तो जासूसी जहाज का ख़ुफ़िया जानकारी एकत्र करने का उद्देश्य बेहद आसान हो जाएगा. हुआवेई का प्रस्ताव वर्ष 2017 में राष्ट्रपति सिरिसेना के समक्ष उसी समय लंबित था, जब उन्होंने पनडुब्बी की यात्रा को अस्वीकार कर दिया था, यह एक स्पष्ट उदाहरण है. सिरिसेना हुआवेई के कानून और व्यवस्था में सहायता के प्रस्ताव के विरोध में थे. उसके इस प्रस्ताव में श्रीलंका में यातायात और पुलिस की निगरानी के लिए सर्विलांस कैमरे भी शामिल थे। उस समय कानून-व्यवस्था मंत्रालय राष्ट्रपति के अधीन नहीं था. श्रीलंका के ख़ुफ़िया और संचार नेटवर्क में चीनी बैक चैनल यानी संचार के एक गुप्त और अनौपचारिक साधन के प्रवेश की यह स्पष्ट चेतावनी थी. स्टीवन फेल्डस्टीन बताते हैं कि इस तरह की परियोजनाओं के माध्यम से, हुआवेई अकेले दुनिया भर में कम से कम पचास देशों और तमाम बीआरआई देशों को एआई निगरानी तकनीक उपलब्ध करा चुका है.

हुआवेई द्वारा युगांडा की 126 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सीसीटीवी परियोजना इसका स्पष्ट उदाहरण है. श्रीलंका के समस्त दूरसंचार के 80 प्रतिशत से अधिक पर चीनी हार्डवेयर कंपनी का कब्ज़ा दिखाई दे रहा है, जिसने पूर्व की गोटाबाया राजपक्षे सरकार के दौरान हुआवेई के 5G विस्तार के लिए अपनी सहमति जताई थी. वर्तमान समय में जब युआन वांग 5 की यात्रा होने जा रही है, श्रीलंका राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहा है और ऐसी स्थिति में उसके पास चीन के विरुद्ध सीमित रणनीतिक विकल्प हैं. राष्ट्रपति विक्रमसिंघे जब श्रीलंका के प्रधानमंत्री थे, उस समय उनके द्वारा चीन के साथ जो बड़ी गलतियां की गई थी, उनके बारे में सभी को मालूम हैं. वर्ष 2015 में विक्रमसिंघे ही चीनी परियोजनाओं के सबसे बड़े आलोचक थे और उन्होंने राजपक्षे के भ्रष्टाचार का पर्दाफ़ाश करने के लिए जांच का वादा किया था, जो पूरा नहीं हुआ. वर्तमान समय में विक्रमसिंघे उसी तरह की बातों से फिर नहीं दोहराना चाहते हैं. उनका पूरा ध्यान चीन से 4 अरब अमेरिकी डॉलर की वित्तीय सहायता लाने पर है. श्रीलंका के एक वरिष्ठ एकेडमिक डॉ. जेहान परेरा के अनुसार, “श्रीलंका को वित्तीय सहायता की ज़रूरत है और वह जहाज की अनुमति को वापस लेकर चीन को नाराज़ नहीं करना चाहेगा“. चीन से वित्तीय सहायता और कर्ज़ पर भारी निर्भरता ने श्रीलंका में बीजिंग की रणनीतिक चालबाज़ियों की जगह को बढ़ा दिया है. ऐसे में देखा जाए तो चीनी जहाज के लिए अनुमति देकर, विक्रमसिंघे ने रणनीतिक तौर पर स्थितियों का एक गलत आकलन किया है.

 

पीएलएएसएसएफ की रणनीति

पीएलएएसएसएफ के श्रीलंका में युआन वांग 5 को तैनात करने की रणनीतिक चालबाज़ी में शामिल होने के तीन कारण हैं. पहला, चीन समर्थक राजपक्षे शासन के समाप्त होने से जो एक संदेश गया, वो चीन के अनुकूल नहीं था, बल्कि भारत के लिए ज़्यादा अनुकूल था. विक्रमसिंघे के नए नेतृत्व के कारण पिछले शासन द्वारा अपनाई गई चीनी की तरफ झुकी विदेश नीति अब बदल सकती है. विक्रमसिंघे शासन के दौरान भी चीन पहले की भांति उसी विदेश नीति के विशेषाधिकार को बनाए रखना चाहता है. चीन ने विक्रमसिंघे की कमज़ोरी को अच्छी तरह से भांप लिया है कि राजपक्षे की बहुमत वाली पार्टी ने नए राष्ट्रपति को नियुक्त किया है और उन्हें राजपक्षे के राजनीतिक समर्थन पर बहुत अधिक निर्भर रहना होगा. ज़ाहिर है कि श्रीलंका के वर्तमान राष्ट्रपति को नियुक्त किया गया है, उन्हें लोगों द्वारा नहीं चुना गया है. ऐसे में राजपक्षे के राजनीतिक अभिजात वर्ग के जरिए आंतरिक मामलों में दख़लंदाज़ी करना चीन के लिए बहुत आसान है. ज़ाहिर है कि चीन पहले से ही देश के उच्च राजनीतिक अभिजात वर्ग पर हावी है.

दूसरा, संकट के समय भारत द्वारा श्रीलंका को 4 अरब अमेरिकी डॉलर की मिलीजुली आर्थिक सहायता ने वहां नई दिल्ली की उस स्थिति को मज़बूत करने का काम किया है, जो राजपक्षे शासन के दौरान डगमगा गई थी या समाप्त हो गई थी. इसके साथ ही भारत ने एक ऐसे पड़ोसी के रूप में जनता का विश्वास जीता, जिसने सबसे कठिन समय में श्रीलंका का साथ दिया. विशेषतौर पर उस दौरान, जब चीन ऋण पुनर्गठन के मुद्दे पर श्रीलंका का समर्थन करने के बजाए, वहां से अपने पैर खींच रहा है. श्रीलंका में चीन समर्थक राजपक्षे शासन के बदलने के बावज़ूद चीन ने जिस प्रकार अपने जासूसी जहाज युआन वांग 5 को भारत के एकदम निकट पहुंचाया है, वो ना सिर्फ़ अपना प्रभाव स्थापित करने की उसकी दृढ़ता को दिखाता है, बल्कि नई दिल्ली को भी उसके इरादों को लेकर चेतावनी देता है.

तीसरा, युआन वांग 5 की यात्रा ऐसे समय हुई है, जब तीन महीने बाद ही चीन में  कम्युनिस्ट पार्टी की बड़ी बैठक होने वाली है, जिसमें राष्ट्रपति शी जिनपिंग को को पार्टी के नेता और सैन्य प्रमुख के रूप में फिर से चुना जाना है. ज़ाहिर है कि इससे पहले शी जिनपिंग की ताकत और दबदबे का प्रदर्शन करने की ज़रूरत है. इसी वजह ने उन्हें दो बड़े रणनीतिक मोर्चों – पूर्वी चीन सागर और हिंद महासागर में चीनी पीएलएएसएसएफ की कट्टर राष्ट्रवादी रणनीति का बचाव करने पर मज़बूर किया है.

युआन वांग 5 की यात्रा ऐसे समय हुई है, जब तीन महीने बाद ही चीन में  कम्युनिस्ट पार्टी की बड़ी बैठक होने वाली है, जिसमें राष्ट्रपति शी जिनपिंग को को पार्टी के नेता और सैन्य प्रमुख के रूप में फिर से चुना जाना है. ज़ाहिर है कि इससे पहले शी जिनपिंग की ताकत और दबदबे का प्रदर्शन करने की ज़रूरत है.

चीनी जहाज के प्रवेश की अनुमति से बीजिंग को यह एक स्पष्ट संदेश जाएगा कि श्रीलंका की नई सरकार, राजपक्षे शासन के दौरान की चीनी नीति को जारी रखेगी. युआन वांग 5 की यात्रा दूर समुद्र में चीन की महत्वाकांक्षा को सीमित नहीं करेगी और ना ही इससे चीन की हार्ड पॉवर की छवि और व्यवहार को बदलने की कोशिशों में कोई ज़्यादा फर्क आएगा. सैन्य जहाजों की तैनाती के माध्यम से बीजिंग द्वारा अपनी हार्ड पॉवर का प्रदर्शन ज़रूर किया गया है, लेकिन इसने उसकी सॉफ्ट पॉवर क्षमता को प्रभावित किया है. इतना ही नहीं इस पूरे प्रकरण ने संबंधित देशों के चीन पर बढ़ते अविश्वास को भी और अधिक बढ़ा दिया है. महामारी के बाद के युग में, ‘वुल्फ वॉरियर डिप्लोमेसी’ यानी भेड़िये की तरह हमलावर कूटनीति और हार्ड पॉवर पर चीन के रवैये को देखते हुए कई राष्ट्र उसे एक ‘संशोधनवादी शक्ति’ यानी एक ऐसे देश के रुप में पेश करेंगे, जो वैश्विक व्यवस्था से अलग कदम उठाते हुए अपने आस-पास के क्षेत्रों को अपने प्रभाव वाले इलाक़ों में बदलने का इरादा रखता है. जहां तक श्रीलंका की बात है तो वहां जिस प्रकार वित्तीय संकट और ऋण की अस्थिरिता है, ख़ासतौर पर चीनी परियोजना से मिलने वाला रिटर्न बहुत कम है, ऐसे हालातों में नागरिक और सैन्य गतिविधियों के ज़रिए दखल से चीन की उदार और परोपकारी छवि और भी ख़राब हो जाएगी.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.