साल 1985 में रूस 10.8 मिलियन बैरल प्रतिदिन (एमबी/डी) से अधिक की उत्पादन क्षमता के साथ सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादक था. 10.5 एमबी/डी से अधिक के उत्पादन के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका दूसरे स्थान पर था और सऊदी अरब 3.6 बी/डी से अधिक उत्पादन क्षमता के साथ तीसरे स्थान पर था. दुनिया भर में कुल तेल उत्पादन में इन तीन सबसे बड़े उत्पादकों का हिस्सा लगभग 43 प्रतिशत था लेकिन साल 1992 तक, सऊदी अरब 9 एमबी/डी से अधिक उत्पादन क्षमता के साथ शीर्ष उत्पादक बन गया और इसने साल 1985 के उत्पादन की तुलना में 150 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज़ की, जबकि रूस का उत्पादन इसी अवधि में 26 प्रतिशत से अधिक गिरकर 7.9 एमबी/डी से अधिक हो गया. जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका ने दूसरा स्थान बरकरार रखा, हालांकि अमेरिका का तेल उत्पादन 16 प्रतिशत से अधिक गिरकर 8.8 एमबी/डी से थोड़ा अधिक तक आ गया.
साल 1992 से 2013 तक सऊदी अरब ने शीर्ष स्थान बरकरार रखा लेकिन 2014 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने सऊदी अरब को पीछे छोड़ दिया और 11.8 एमबी/डी से अधिक उत्पादन क्षमता के साथ 11.5 एमबी/डी के सऊदी के तेल उत्पादन की तुलना में तेल का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया.
तीनों देशों के संयुक्त हिस्से में लगभग 39 प्रतिशत तक गिरावट आई. साल 1992 से 2013 तक सऊदी अरब ने शीर्ष स्थान बरकरार रखा लेकिन 2014 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने सऊदी अरब को पीछे छोड़ दिया और 11.8 एमबी/डी से अधिक उत्पादन क्षमता के साथ 11.5 एमबी/डी के सऊदी के तेल उत्पादन की तुलना में तेल का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया. साल 2014 में रूसी तेल उत्पादन सिर्फ 10.9 एमबी/डी से अधिक था और संयुक्त राज्य अमेरिका, सऊदी अरब और रूस का वैश्विक उत्पादन में 38 प्रतिशत से अधिक का योगदान था. तब से अमेरिका ने साल 2021 में 16.5 एमबी/डी से ज़्यादा उत्पादन क्षमता के साथ अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा है, इसके बाद सऊदी अरब ने 10.95 एमबीडी के उत्पादन के साथ और रूस ने 10.94 एमबी/डी के उत्पादन के साथ अपना स्थान बरकरार रखा है.
स्रोत: BP Statistical Review of World Energy
सऊदी अरब ने 1980 के दशक के बाद से कच्चे तेल के सबसे बड़े निर्यातक के रूप में शीर्ष स्थान बरकरार रखा था, हालांकि यह तब था जबकि 1980 के दशक की शुरुआत में एक थोड़े से समय को छोड़कर रूस तेल का शीर्ष निर्यातक था. 2021 में सऊदी अरब ने रूस द्वारा 4.5 एमबी/डी और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा 2.9 एमबी/डी की तुलना में 6.2 एमबी/डी से अधिक कच्चे तेल का निर्यात किया. सस्ते तेल के बड़े भंडार के साथ तेल के सबसे बड़े निर्यातक के रूप में और स्विंग निर्माता के रूप में इसकी भूमिका ने तेल बाज़ार में सऊदी अरब की अहमियत को समझा है. साल 2010 के बाद से जब संयुक्त राज्य अमेरिका कच्चे तेल के सबसे बड़े उत्पादक एक महत्वपूर्ण निर्यातक के रूप में सामने आया तो सबको लगा था कि संयुक्त राज्य अमेरिका स्विंग निर्माता के तौर पर सऊदी अरब की जगह हथिया लेगा लेकिन साल 2022 के घटनाक्रम, तेल की उच्च क़ीमतों को लेकर अमेरिका की सीमित प्रतिक्रिया इसे लेकर कई सवाल उठाती है.
स्विंग निर्माता के रूप में सऊदी अरब
स्विंग निर्माता आमतौर पर ऐसे आपूर्तिकर्ता का प्रतिनिधित्व करता है जो कम समय में (30 से 90 दिनों के भीतर) तेल उत्पादन को पर्याप्त रूप से (1एमबी/डी) बढ़ा सकता है. स्विंग निर्माता असरदार लेनदेन मूल्य निर्धारिण के ज़रिए बाज़ार की ताक़तों को इसे बदलने से रोककर मूल्य नियंत्रण को अंजाम दे सकता है. सऊदी अरब का विशाल तेल भंडार और वैश्विक तेल उत्पादन और निर्यात में बड़ा हिस्सा होने की वजह से पेट्रोलियम निर्यातक देशों (OPEC) के बीच क़ीमतों को स्थिर या कम करने के लिए इसे नेतृत्व प्रदान करता है. एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में सऊदी अरब के पास बाज़ार की हिस्सेदारी खोने की क़ीमत पर अपनी क़ीमत बढ़ाकर या अपने बाज़ार की हिस्सेदारी का समर्थन करने वाले मूल्य निर्धारित करके और समय के साथ बेहद प्रतिस्पर्द्धी अल्पकालिक लाभ प्राप्त करने का विकल्प है. सऊदी अरब ने साल 1982 में ओपेक के भीतर कोटा प्रणाली को सहकारी कटौती का लाभ लेने और ओपेक आपूर्ति का विस्तार करने के लिए स्विंग निर्माता मॉडल अपनाया था जो आपूर्ति बाज़ार की मांग में उतार-चढ़ाव से मेल खा सके.
साल 2010 के बाद से जब संयुक्त राज्य अमेरिका कच्चे तेल के सबसे बड़े उत्पादक एक महत्वपूर्ण निर्यातक के रूप में सामने आया तो सबको लगा था कि संयुक्त राज्य अमेरिका स्विंग निर्माता के तौर पर सऊदी अरब की जगह हथिया लेगा लेकिन साल 2022 के घटनाक्रम, तेल की उच्च क़ीमतों को लेकर अमेरिका की सीमित प्रतिक्रिया इसे लेकर कई सवाल उठाती है.
1980 के दशक की शुरुआत में पूर्व की रणनीति के परिणामस्वरूप तेल की क़ीमतें ज़्यादा हुई, जिसने गैर-ओपेक प्रतिस्पर्धियों को उत्पादन के लिए मज़बूर किया, जिससे सऊदी अरब के तेल बाज़ार की हिस्सेदारी में कमी आई. गैर-ओपेक तेल के बाज़ार में आने से तेल की क़ीमतों में भी गिरावट आई और 1980 के दशक के मध्य तक तेल उद्योग के सामने संकट पैदा हो गया था. साल 1986 में वैश्विक कच्चे तेल की क़ीमतें 10 डॉलर/बी से नीचे गिर गईं और दुनिया के तेल उद्योग के सामने अस्तित्व का संकट गहरा गया. अमेरिकी तेल उद्योग के लिए आसन्न ख़तरे को देखते हुए तत्कालीन अमेरिकी उपराष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 1986 में सऊदी अरब के किंग से मुलाक़ात करने के लिए वहां का दौरा किया और उत्पादन में कटौती के ज़रिए कच्चे तेल की क़ीमत को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा. बुश ने तर्क दिया कि तेल की कम क़ीमतों से संयुक्त राज्य अमेरिका की ‘राष्ट्रीय सुरक्षा‘ को ख़तरा है और इसी संदर्भ में उन्होंने अमेरिका के तेल उद्योग की सच्चाई को बता दिया.
इसके बाद से ही सऊदी अरब ने ओपेक के संदर्भ में उत्पादन अनुशासन में सुधार लाने और वैश्विक तेल बाज़ार का प्रबंधन करने के लिए नेतृत्व की भूमिका निभाई. चूंकि सऊदी अरब के पास उत्पादन अनुपात के लिए विशाल तेल भंडार है, इसलिए इसका उद्देश्य लंबे समय तक तेल क़ीमतों को स्थिर बनाना है. मिसाल के तौर पर अप्रैल 1999 में सऊदी अरब ने वेनेज़ुएला और मेक्सिको से तेल उत्पादन में वृद्धि को व्यवस्थित करने के लिए अपना उत्पादन कम कर दिया था जिससे कि तेल की क़ीमतें ऊंची बनी रहें. साल 2003 में इराक पर हमले के दौरान सऊदी अरब अपनी क़ीमतों के लक्ष्य को प्राप्त करने और इराक की आपूर्ति की कमी की भरपाई करने के लिए अपने उत्पादन में बदलाव किया था. साल 2009 में जब वित्तीय संकट के कारण तेल की वैश्विक मांग में गिरावट आई, तो सऊदी अरब ने अपना उत्पादन कम कर दिया. यहां तक कि साल 2010 की शुरुआत तक सऊदी अरब ने तेल की क़ीमतों को स्थिर रखने के लिए उत्पादन को एडजस्ट करना जारी रखा. साल 2014 के बाद ओपेक के साथ सऊदी अरब ने “बाज़ार-शेयर” रणनीति का रूख़ नहीं किया, ताकि ज़्यादा लागत वाले अमेरिकी शेल कंपनियों को कम लाभ के साथ बाज़ार से बाहर निकाला जा सके, बल्कि “लाभ को अधिकतम बनाने की” रणनीति पर वह टिका रहा, जिसमें उच्च क़ीमतों और अमेरिका से एलटीओ (लाइट टाइट ऑयल) का उच्च उत्पादन को समायोजित किया जा सके. इस रणनीति में सऊदी अरब का एक प्रमुख भागीदार रूस है. तेल रूस के लिए राजस्व प्रदान करता है तो गैस रूस को भू-राजनीतिक वर्चस्व बढ़ाने का मौका देती है.
स्विंग उत्पादक के रूप में अमेरिका
1970 और 2010 की शुरुआत के बीच सऊदी अरब ने मूल्य स्थिरता बनाए रखने के लिए कई मौक़ों पर 1-2 एमबी/डी के बीच तेल उत्पादन में वृद्धि की थी. तकनीकी क्रांति जिसके बाद, शेल ने तेल और गैस उत्पादन में वृद्धि की, इसके ज़रिए अमेरिका ने तेल उत्पादन में बढ़ोतरी की, जो एलटीओ और नेचुरल गैस लिक्विड (एलजीएल) को साल 2013 में सिर्फ 1 एमबी/डी और 2014 में 1.5 एमबी/डी से अधिक की बढ़ोतरी की. फरवरी 2015 में, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने देखा कि संयुक्त राज्य अमेरिका बाज़ार को संतुलित करने के लिए नए स्विंग उत्पादक के रूप में तेजी से उभरा है. तेल बाज़ार में घाटे की आपूर्ति की स्थिति 2012 की दूसरी तिमाही की शुरुआत में सरप्लस की स्थिति में बदल गई, जिसमें 2015 की पहली तिमाही तक 1.5 एमबी/डी से अधिक का लगातार सरप्लस था. इस सरप्लस में ज़्यादा हिस्सा ग़ैर-ओपेक क्षेत्रों से ग़ैर-पारंपरिक तेल के उत्पादन का था जिसमें ख़ास तौर पर अमेरिका की भूमिका थी. आईईए के वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2014 के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका से मुख्य रूप से एलटीओ और एनजीएल के ग़ैर-परंपरागत तेल का गैर-ओपेक उत्पादन 1990 में 0.4 एमबी/डी से बढ़कर 2013 में 5.4 एमबी/डी हो गया, जो कि केवल एक दशक में 10 गुना बढ़ोतरी से अधिक था. साल 2014 में आईईए ने निष्कर्ष निकाला कि तेल बाज़ार में सुधार अलग था क्योंकि (1) नए स्विंग उत्पादक के रूप में यूएसए सऊदी अरब नहीं बन सकता था (राजनीतिक रूप से, संस्थागत रूप से, और अन्यथा) और (2) कि यूएसए में एलटीओ का उत्पादन पारंपरिक कच्चे तेल के विपरीत आपूर्ति और मांग की स्थिति में बदलाव के लिए बहुत जल्दी प्रतिक्रिया देगा. आईईए के शब्दों में, “संयुक्त राज्य अमेरिका में एलटीओ उत्पादन ने ओपेक और गैर-ओपेक देशों के बीच श्रम के पारंपरिक विभाजन को बढ़ा दिया था और एलटीओ उत्पादन में उतार चढ़ाव यह सुनिश्चित करेगी कि तेल बाज़ार में मूल्य सुधार उतनी ही तेजी से होगा जितनी मूल्य में तेजी आएगी”. हालांकि जैसी उम्मीद की गई थी वैसा नहीं हुआ. संयुक्त राज्य अमेरिका में शेल उत्पादक कम ब्याज दर के माहौल में काम करते हैं. ज़्यादा लाभ कमाने की इच्छा ने निवेश करने वाले बैंकों को छोटे अमेरिकी ऑयल एक्सप्लोरेशन और प्रोडक्शन कंपनियों में कम लागत वाली पूंजी को निवेश करने के लिए बढ़ावा दिया. इससे कई कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन पर असर पड़ा तो साथ-साथ कंपनियों के नकदी में कमी आई और उनके कर्ज़ का स्तर बढ़ने लगा. हालात ऐसे हो गए कि सऊदी अरब के बराबर दैनिक तेल उत्पादन तक पहुंचने के लिए अमेरिकी शेल कंपनियों को सऊदी अरब के मुक़ाबले 100 गुना अधिक तेल के कुओं की खुदाई करने की ज़रूरत पड़ने लगी. अगर अमेरिका ने वास्तव में स्विंग उत्पादक के रूप में सऊदी अरब की जगह ले ली होती, तो वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति अन्य बातों के अलावा तेल की क़ीमतों को कम करने के लिए तेल उत्पादन में वृद्धि का अनुरोध करने के लिए सऊदी अरब की यात्रा नहीं करते.
चूंकि सऊदी अरब के पास उत्पादन अनुपात के लिए विशाल तेल भंडार है, इसलिए इसका उद्देश्य लंबे समय तक तेल क़ीमतों को स्थिर बनाना है. मिसाल के तौर पर अप्रैल 1999 में सऊदी अरब ने वेनेज़ुएला और मेक्सिको से तेल उत्पादन में वृद्धि को व्यवस्थित करने के लिए अपना उत्पादन कम कर दिया था जिससे कि तेल की क़ीमतें ऊंची बनी रहें.
तेल उत्पादन का केंद्र
सऊदी अरब, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभुत्व वाले तेल की धुरी, जो साल 2021 में वैश्विक उत्पादन का 42 प्रतिशत हिस्सा है, इस बात की ओर इशारा करता है कि तीनों के बीच के संबंध निकट भविष्य में तेल बाज़ार को प्रभावित करना जारी रखेंगे. मौज़ूदा भू-राजनीतिक माहौल और फॉसिल फ्यूल को लेकर जारी जंग के बीच, सऊदी अरब और संयुक्त राज्य अमेरिका के संबंधों के बदले रूस और सऊदी अरब के बीच घनिष्ठ संबंधों की वकालत करेंगे और इससे तेल बाज़ार में क़ीमतों में तेजी और उतार-चढ़ाव की संभावना और बढ़ जाएगी.
स्रोत: OPEC Annual Statistical Bulletin, 2022
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