Author : Terri Chapman

Published on Apr 19, 2018 Updated 0 Hours ago

क्या कॉमनवेल्थ मे नए सिरे से जान फूंकने की ज़रूरत है?

कॉमनवेल्थ में नई जानकारी: 2018 और वो भी आगे

लंदन में राष्‍ट्रमंडल देशों के प्रमुखों की आगामी 25वीं सरकारी बैठक (16-18 अप्रैल) के साथ राष्‍ट्रमंडल देशों पर नए सिरे से ध्‍यान दिया जा रहा है। यह समूह अब एक चौराहे पर है: क्‍या इसका वजूद खत्‍म हो जाएगा या यह एक ऐसा उद्यम बनेगा जो दुनिया के एजेंडे को आकार देगा ? इस फोरम के भविष्‍य की प्रासंगिकता सवालों के घेरे में है और यह इसके सदस्‍य देशों के हितों को बनाये रखने एवं उनकी जरूरतों की पूर्ति करने की इसकी क्षमता पर निर्भर करेगा।

नीचे 2018 एवं उससे आगे के नए रास्‍तों के लिए तीन सुझाव दिए गए हैं:

एक विकेंद्रीकृत नेतृत्‍व मॉडल

दिलचस्‍पी एवं प्रतिबद्धता में नई जान फूंकने के लिए, राष्‍ट्रमंडल को नेतृत्‍व विकेंद्रित करने की तात्‍कालिक आवश्‍यकता है। लंदन केंद्रित प्रशासन संरचना में अधिक महत्‍वाकांक्षी भविष्‍य की कोई गुंजाइश नहीं दिखती। आगामी बहसों के केंद्र में अधिकारों एवं निर्णय निर्माण का ‘उबेरीकरण’ होना चाहिए। ऐसा मॉडल सदस्‍यों को वैसे क्षेत्रों में अधिक महत्‍वपूर्ण भूमिकाएं निभाने को प्रेरित करेगा, जिनमें उनका सबसे अधिक निवेश या दिलचस्‍पी है। उदाहरण के लिए, अधिक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने पर भारत को सबसे अधिक लाभ हासिल हो सकता है। वर्तमान में, आंतरिक व्‍यापार में भारत की लगभग एक चौथाई भागीदारी है, राष्‍ट्रमंडल देशों की 55 प्रतिशत आबादी भारत में है और यह समूह के लिए चौथा सबसे बड़ा वित्‍तीय योगदानकर्ता है। [i] उदाहरण के लिए, व्‍यापार से संबंधित जिम्‍मेदारियों का हस्‍तांतरण इसकी नवीनीकृत भागीदारी के लिए और अधिक प्रेरणा देगा।

इसके अतिरिक्‍त, नेतृत्‍व के प्रति एक सामूहिक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जो विभिन्‍न हितों वाले सदस्‍य देशों के समूह को सामूहिक रूप से फोरम के विभिन्‍न तत्‍वों एवं पहलुओं का स्‍वामित्‍व ग्रहण करने का अवसर देता है। उदाहरण के लिए, समूह के 53 देशों में 24 छोटे द्वीपीय देश हैं [ii] जो आपसी महत्‍व के मुद्दों पर एकजुट हो सकते हैं। जिन देशों की सोलर, सुरक्षा, कनेक्टिविटी आदि में हिस्‍सेदारी है, वे इन क्षेत्रों में सामूहिक रूप से प्रयास कर सकते हैं। एक ‘यूबेराइज्‍ड’ और क्‍लस्‍टर्ड मॉडल की प्रकृति का अर्थ आपसी हितों का मेल होगा जो सदस्‍य देशों के बीच अधिक प्रतिबद्धता के लिए प्रेरक होगा। [iii] 

समर्थन का एक नया क्षेत्र

राष्‍ट्रमंडल देशों को अनिवार्य रूप से अपनी समान भाषा, अपने सांस्‍कृतिक रिश्‍तों एवं अपने युवाओं की ऊर्जा का लाभ उठाने का रास्‍ता ढूंढने का प्रयास करना चाहिए। समूह को नई पीढ़ी के लिए इसकी अति महत्‍वपूर्ण कहानियों एवं विचारों को फिर से गढ़ने की जरूरत है।

राष्‍ट्रमंडल के सदस्‍य देशों के बीच भौगोलिक एवं डिजिटल संपर्कों को इसे अर्जित करने का एक कारण बनना चाहिए। राष्‍ट्रमंडल के भीतर मौजूद सार्वजनिक मतभेद का प्रत्‍युत्‍तर समूह के लिए विश्‍वास पैदा करने के साथ एक ऐसे प्रभावी, बहुपक्षीय संस्‍थान के रूप में दिया जाना चाहिए जो इसके सदस्‍य देशों के बीच सहजीवी संबंध को बढ़ावा देता है।

इसलिए विचार विमर्श का एक केंद्रीय बिंदु यह होना चाहिए कि किस प्रकार यह एक नई, अधिक डिजिटल पीढ़ी के लिए महत्‍वपूर्ण बन सकता है? 2.4 अरब की राष्‍ट्रमंडल की जनसंख्‍या का 60 प्रतिशत हिस्‍सा 29 वर्ष से कम आयु का है। 15 एवं 29 वर्ष की उम्र के बीच की वैश्विक आबादी के लगभग एक तिहाई लोग राष्‍ट्रमंडल देशों में रहते हैं। [iv] राष्‍ट्रमंडल में एक मुख्‍य हिस्‍सेदार के रूप में इस नई पीढ़ी को ध्‍यान में न रखने से इसका महत्‍व एवं क्षमता अनिवार्य रूप से पुरानी पीढियों के साथ ही गायब हो जाएगी जो इसके हिमायती रही हैं।

रस्‍मी परंपराओं से आगे

राष्‍ट्रमंडल एक महत्‍वपूर्ण व्‍यापार समूह, सुरक्षा या राजनीतिक गठबंधन नहीं बनेगा लेकिन क्‍या यह प्रमुख वैश्विक मुद्दों के समाधान प्रस्‍तुत करने वाला एक फोरम बन सकता है? इसके लिए इसे पारंपरिक रीतिरिवाजों से तथा प्रमुख नियामकीय प्रश्‍नों एवं मुद्दों पर सदस्‍य देशों के बीच आपसी संपर्क के निर्धारित क्षेत्रों से आगे बढ़ने की जरूरत होगी। [v]

विकास की विभिन्‍न अवस्‍थाओं से गुजर रहे देशों के एक समूह के रूप में, सामूहिक विजन की अभिव्‍यक्ति वैश्विक एजेंडा को आकार देने में एक प्रमुख माध्‍यम बन सकती है। समाधानों के एक साध्‍यात्‍मक (प्रोपोजिशनल) प्रस्‍तावक फोरम के रूप में, यह समूह साइबर सुरक्षा, डिजिटल अर्थव्‍यवस्‍था, सामूहिक संसाधनों के प्रबंधन एवं अंतर्राष्‍ट्रीय विकास जैसे वैश्विक महत्‍व के प्रश्‍नों पर सामूहिक विजन निर्धारित कर सकता है।

राष्‍ट्रमंडल के लिए भविष्‍य के दो संभावित रास्‍ते हैं। पहली संभावना यह है कि इस समूह का महत्‍व और भी कम हो जाए और इस समूह का मंडल मिलाकर, वजूद ही खत्‍म हो जाए। एक अधिक बाध्‍यकारी संभावना यह हो सकती है कि अपने सदस्‍य देशों के नेतृत्‍व में राष्‍ट्रमंडल एक महत्‍वपूर्ण वैश्विक उद्यम बन जाए। ऐसे अवसर को साकार बनाने के लिए, सत्‍ता का विकेंद्रीकरण, इसके प्रमुख हितधारकों का पुन: मूल्‍यांकन और प्रमुख नियामकीय मुद्दों का समाधान निर्धारित करने की महत्‍वाकांक्षी कोशिशें बेहद जरूरी हैं। आगामी बैठक इस पर विचार-विमर्श करने का एक बढिया अवसर है कि किस प्रकार व्‍यावहार्य तरीके से इस लक्ष्‍य को अर्जित किया जा सकता है।

प्रिया दुआ ORF दिल्‍ली में एक रिसर्च इन्‍टर्न हैं


[i] Murthy, C.S.R. (2018). ‘India and the Commonwealth: Redirecting the Relationship’. Carnegie India

[ii] — (2018). ‘Fast Facts: The Commonwealth: A Briefing for Journalists’. The Commonwealth.

[iii] Insights from ORF’s Conference on Re-Imagining the Commonwealth Road to CHOGM-2018

[iv] — (2018). ‘Fast Facts: The Commonwealth: A Briefing for Journalists’. The Commonwealth.

[v] Insights from ORF’s Conference on Re-Imagining the Commonwealth Road to CHOGM-2018

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