Author : Pranjali Goradia

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Published on Dec 26, 2024 Updated 0 Hours ago

हालांकि हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर सेक्टर के लिए न्यूरोमोर्फिक तरीका अभी भी नया है, फिर भी भारत को उभरती प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में अपना प्रमुख स्थान हासिल करने के लिए इस दिशा में निरंतर प्रयत्न करने चाहिए.

न्यूरोमोर्फिक अनुसंधान और भारत की नई तकनीकी छलांग

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न्यूरोमोर्फिक पद्धतियों से वो हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर बनते हैं जो बायोलॉजिकल न्यूरल कम्प्यूटेशन और इससे संबंधित क्षमता पर आधारित होते हैं जो अपेक्षाकृत बहुत कम मात्रा में बिजली की ख़पत से  मिली सेकंड में डेटा को प्रोसेस कर उसे समझ कर और उसके अनुसार प्रतिक्रिया करने की क्षमता रखते हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के एप्लीकेशन में एफिशिएंसी को अधिकतम करने के लिए न्यूरोमोर्फिक तकनीक की सैद्धांतिक क्षमता से कई संबंधित घटकों और उद्योग क्षेत्रो में इस तकनीक के प्रति रुचि उत्पन्न हुई है, जिसमें इंटेल और IBM जैसी कंपनियों के अलावा और दुनिया भर की कई सरकारें शामिल हैं

सन 2024 के आखिरी महीनो में, बेंगलुरु में स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (IISc) के शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट किया कि उन्होंने मस्तिष्क से प्रेरित एक कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म बनाया है. यह घोषणा दुनियाभर से आ रहे रुझानों के अनुरूप थी जो हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के प्रति न्यूरोमोर्फिक अप्रोच  पर ध्यान केंद्रित करती है.

सन 2024 के आखिरी महीनो में, बेंगलुरु में स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस (IISc) के शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट किया कि उन्होंने मस्तिष्क से प्रेरित एक कंप्यूटिंग प्लेटफॉर्म बनाया है. यह घोषणा दुनियाभर से रहे रुझानों के अनुरूप थी जो हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के प्रति न्यूरोमोर्फिक अप्रोच  पर ध्यान केंद्रित करती है. हालांकि, न्यूरोमोर्फिक क्षेत्र अपेक्षाकृत एक नया सेक्टर है पर भारत को इस दिशा में विकास के लिए गंभीरता से ध्यान देना चाहिए क्योंकि न्यूरोमोर्फिक अनुसंधान में सफ़लता और विकास देश को उभरती प्रौद्योगिकियों पर अनुसंधान के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रिम पंक्ति में स्थापित करने में योगदान दे सकता है

न्यूरोमोर्फिक अप्रोच : एक परिचय 

न्यूरोमोर्फिक क्षेत्र में दो दिशाओं में ख़ोज का कार्य काफ़ी तत्परता से आगे बढ़ रहा हैपहला है स्पाइकिंग न्यूरल नेटवर्क (SNN) का उपयोगSNNs मस्तिष्क में न्यूरल साइनेप्स पर आधारित होते हैं और सूचना को एनकोड करने और ट्रांसमिट करने के लिए स्पाइक का उपयोग करते हैं। यह आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क (ANNs) से अलग है जिसने वर्तमान AI एप्लीकेशनो को बनाने में योगदान दिया है. यह भी उल्लेखनीय है है कि SNNs  पारंपरिक हार्डवेयर के लिए शायद उपयुक्त नहीं हो सकते. इसीलिए, शोध का एक अन्य क्षेत्र न्यूरोमोर्फिक चिप्स का विकास है, जिसमें SNN को डेवलप और सपोर्ट करने की क्षमता हो

पारंपरिक चिप्स अलग-अलग जगहों पर डाटा स्टोर और प्रोसेस करते हैं. इस प्रक्रिया ने वॉन न्यूमैन बॉटलनेक के रूप में जानी जाने वाली एक ऐसी स्थिति उत्पन्न की है, जिसमें मेमोरी और कंप्यूटिंग के पृथक रूप से यानी एक के बाद एक कार्य को क्रमिक रूप से पूरा करने की आवश्यकता होती है. इसके ठीक विपरीत, न्यूरोमोर्फिक चिप्स का काम मेमोरी और प्रोसेसिंग के बीच के अंतर को हटाकर ऊर्जा और कंप्यूटिंग एफिशिएंसी को अधिकतम करना होता है. अनुमानित ऊर्जा मांग के संदर्भ में ऊर्जा एफिशिएंसी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है. उदाहरण के लिए, इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी को उम्मीद है कि 2026 तक AI, क्रिप्टोकरेंसी और डेटा केंद्रों को बिजली देने के लिए एक हजार TWh की आवश्यकता होगीहार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के लिए न्यूरोमोर्फिक के उपयोग से उन एज एप्लिकेशन्स को भी फ़ायदा होगा जिनके लिए इन-मेमोरी प्रोसेसिंग और रियल टाइम इनसाइट की आवश्यकता होती है, जैसे कि स्वचालित वाहन, रोबोटिक्स (विशेष रूप से कृत्रिम अंग के क्षेत्र में), और बैंकिंग और वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र

 

चुनौतियाँ

इन सब के बावजूदन्यूरोमोर्फिक चिप्स और SNNs से अन्य तकनीकों (जैसे ANNs, क्वांटम तकनीक या पारंपरिक चिप्स) को तत्काल बदलने की उम्मीद नहीं की जा सकती है क्योंकि एफिशिएंसी लाभ केवल कुछ मामलों में ही लागू हो सकते हैंउदाहरण के लिए, शोध से पता चलता है कि पारंपरिक चिप्स सटीक गणना करने के लिए सबसे उपयुक्त हैं, जबकि क्वांटम तकनीकों में एन्क्रिप्शन, कम्युनिकेशन और क्वांटम सेंसिंग के अंदर ऐसी एप्लीकेशन शामिल है जिनका न्यूरोमोर्फिक चिप्स मुकाबला नहीं कर सकते

इसके अलावा, न्यूरोमोर्फिक एप्रोच की पहल कई अन्य मुद्दों से भी बाधित होती हैसबसे पहली बात, न्यूरोमोर्फिक हार्डवेयर और संबंधित एल्गोरिदम बनाने के लिए न्यूरोसाइंस, सर्किट डिज़ाइन, भौतिकी और कंप्यूटर विज्ञान सहित कई क्षेत्रों में दुर्लभ, क्रॉस-फ़ंक्शनल विशेषज्ञता की आवश्यकता होती हैदूसरी बात, न्यूरोमोर्फिक कंप्यूटिंग मानव मस्तिष्क के कामकाज की हमारी विकसित समझ से भी ज़्यादा जटिल है. आखिरी बात यह है कि, मानव मस्तिष्क जिसमें 100 ट्रिलियन से अधिक सिनैप्टिक कनेक्शन और 100 बिलियन न्यूरॉन्स हैं उसकी जटिलता को दोहराने के साथ और भी महत्वपूर्ण मुद्दे हैंइसीलिए, तंत्रिका नेटवर्क अधिक न्यूरॉन्स और सिनैप्स के साथ बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, लेकिन मस्तिष्क की कार्यप्रणाली के लिए आवश्यक संख्या को समझ पाना मुश्किल है. इसके अलावा, भले ही चिप्स को संयोजित करने के परिणामस्वरूप उपलब्ध न्यूरॉन्स और साइनेप्स बढ़ जाए लेकिन इंटरकनेक्शन के कारण ऊर्जा एफिशिएंसी का नुक़सान हो सकता हैकुछ शोधकर्ता यह भी सवाल उठाते हैं कि ये सब चुनौतियां क्या एक स्पष्ट बेंचमार्क होने की कमी के कारण और न्यूरोमोर्फिक हार्डवेयर की नवीनता के कारण हैं

शोध से पता चलता है कि पारंपरिक चिप्स सटीक गणना करने के लिए सबसे उपयुक्त हैं, जबकि क्वांटम तकनीकों में एन्क्रिप्शन, कम्युनिकेशन और क्वांटम सेंसिंग के अंदर ऐसी एप्लीकेशन शामिल है जिनका न्यूरोमोर्फिक चिप्स मुकाबला नहीं कर सकते. 

इससे एक और समस्या सामने गई हैपारंपरिक हार्डवेयर न्यूरोमोर्फिक शोध को थामने के लिए पूरी तरह लायक नहीं हैं, जिसके लिए न्यूरोमोर्फिक के लिए उपयुक्त हार्डवेयर के निर्माण की आवश्यकता हैइसके लिए धन के साथ-साथ समय की भी आवश्यकता होगी. इसके अतिरिक्त, SNNs को प्रशिक्षित करना कठिन साबित हुआ है क्योंकि उनके विशिष्ट स्पाइक गणितीय रूप से जुड़े हुए नहीं हैं, हालांकि कई शोध समूह इस मोर्चे पर काफ़ी प्रगति भी कर चुके हैं. SNNs  के साथ सटीकता का नुक़सान भी हो सकता है, यही वजह है कि शोधकर्ता ANNs और SNNs  को मिलाने का प्रयोग कर रहे हैं. इसलिए, केवल मस्तिष्क से प्रेरित आर्किटेक्चर बनाने के बजाय मानव मस्तिष्क की सटीक नकल करने वाले आर्किटेक्चर बनाने की फिजिबिलिटी और व्यावहारिकता के संबंध में न्यूरोमोर्फिक शोधकर्ताओं के बीच असहमति है

मौजूदा स्थिति

इन चुनौतियों के बावजूद दुनिया भर के न्यूरोमोर्फिक से जुड़े साझेदार की व्यवहार्यता का पता लगाने में अपना समय और धन लगा रहे हैं. उदाहरण के लिए, इंटर-गवर्नमेंट स्तर पर, मानव मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को बेहतर ढंग से समझने के प्रयास में, यूरोपीय संघ ने 2013 में मानव मस्तिष्क परियोजना शुरूआत की, जिसने तब से दो न्यूरोमोर्फिक सिस्टम, ब्रेनस्केल्स और स्पिननेकर रिलीज़ किया किए हैं.  2024 में, यूरोपीय संघ (EU) और कोरिया गणराज्य ने भी एक साझेदारी की घोषणा की, जो सेमीकंडक्टर के विशेष संदर्भ के साथ न्यूरोमोर्फिक प्रौद्योगिकियों के विकास पर केंद्रित है

न्यूरोमोर्फिक चिप्स पर शोध जो ठोस परिणाम देते हैं वे संभवतः भारत को बौद्धिक संपदा अधिकारों में लाभ दिलाने में योगदान देंगे. इससे भारत को प्रौद्योगिकी नवाचार और विनिर्माण में एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में ख़ुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी.

कई निजी साझेदार भी न्यूरोमोर्फिक अप्रोच पर शोध कर रहे हैं और विभिन्न स्तरों पर बाज़ार में उसके उपयोग की तैयारी कर रहे हैं. इंटेल ने हाल ही में एक बयान जारी किया जिसमें घोषणा की गई कि उसके हाला पॉइंट न्यूरोमोर्फिक सिस्टम (जो अपने 1.15 बिलियन न्यूरॉन्स के साथ, कथित तौर पर दुनिया में सबसे बड़ा है) का उपयोग सैंडिया नेशनल लेबोरेटरीज में भविष्य के मस्तिष्क-प्रेरित AI और अनुसंधान को मदद करने के लिए किया जाएगा. हाला पॉइंट पारंपरिक AI वर्कलोड के साथ काम कर सकता है और इंटेल के Loihi 2 चिप द्वारा संचालि है, जो अन्य न्यूरो-प्रेरित एल्गोरिदम की मदद कर सकता हैअपने चिप्स के अलावा, कंपनी ने इंटेल न्यूरोमोर्फिक रिसर्च कम्युनिटी की भी शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य न्यूरोमोर्फिक शोध को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी सुविधाओं, शिक्षाविदों और अन्य कंपनियों के साथ काम करना हैइसके अतिरिक्त, IBM ऐसी सामग्रियों पर शोध कर रहा है जिनका उपयोग न्यूरोमोर्फिक आर्किटेक्चर बनाने के लिए किया जा सकता है, जैसे कि फ्रोएलेक्ट्रिक्सकंपनी ने अपना मस्तिष्क-प्रेरित नॉर्थ पोल चिप भी लॉन्च किया है, जिसमे मेमोरी और कंप्यूटिंग एक ही डिवाइस पर है. नतीजतन, चिप कथित तौर पर सभी अन्य उपलब्ध चिप्स की तुलना में तेजी से AI का अनुमान लगाने में सक्षम हैइसी तरह, सैमसंग का न्यूरोमोर्फिक शोध भी तेजी से आगे बढ़ रहा है, और यह अगले दशक में अपने न्यूरल प्रोसेसिंग आर्किटेक्चर को न्यूरोमोर्फिक्स में विस्तारित करने की योजना बना रहा हैअन्य कंपनियां विशिष्ट उपयोग मामलों के लिए न्यूरोमोर्फिक अप्रोच की व्यवहार्यता का आकलन कर रही हैंउदाहरण के लिए, मर्सिडीज-बेंज़  समूह कई ऐसी परियोजनाओं का हिस्सा है, जिसमें NAOMI4Radar और वाटरलू विश्वविद्यालय के साथ एक शोध सहयोग शामिल है, जिसका उद्देश्य स्वचालित ड्राइविंग को बेहतर बनाने के लिए न्यूरोमोर्फिक कंप्यूटिंग पर शोध करना है

भारतीय परिप्रेक्ष्य 

इस वर्ष की शुरुआत में IISc में हुए विकास से इस बात की पुष्टि हुई  कि  भारत में न्यूरोमोर्फिक शोध की अपार संभावनाएं हैं, और इस क्षेत्र में वैश्विक रुचि यह दर्शाता है कि भारत के लिए स्वदेशी शोध को और अधिक प्रोत्साहित करना बहुत अनिवार्य है. भारत के पास न्यूरोमोर्फिक तकनीक पर काम करने वाले अन्य देशों, जिनमें US और EU शामिल हैं, के लिए ख़ुद को एक संभावित शोध भागीदार के रूप में पेश करने का अवसर है. यह आगे द्विपक्षीय और बहुपक्षीय भागीदारी के अवसरों का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, जिससे भारत उभरती प्रौद्योगिकियों में वैश्विक शोध और विकास में सबसे अग्रणी स्थान पर  जाएगा. इसके अतिरिक्त, न्यूरोमोर्फिक चिप्स पर शोध जो ठोस परिणाम देते हैं वे संभवतः भारत को बौद्धिक संपदा अधिकारों में लाभ दिलाने में योगदान देंगे. इससे भारत को प्रौद्योगिकी नवाचार और विनिर्माण में एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में ख़ुद को स्थापित करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा, शोध में बढ़ोतरी से देश को न्यूरोमोर्फिक प्रौद्योगिकियों में भविष्य के उछाल के लिए तैयार होने में मदद मिल सकती है. उदाहरण के लिए, मुख्यधारा में आने से पहले न्यूरोमोर्फिक चिप्स पर शोध करने वाली भारतीय कंपनियां न्यूरोमोर्फिक अप्रोच के लिए विशिष्ट उपयोग मामलों की पहचान कर सकती हैं. वे इस बारे में अधिक सूक्ष्म समझ भी बना पाएंगे कि न्यूरोमोर्फिक अप्रोच विभिन्न उद्योगों के भीतर प्रौद्योगिकी कन्वर्जेन्स को कैसे प्रभावित कर सकते हैं.


प्रांजलि गोराडिया ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.

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