Author : Hari Bansh Jha

Published on Oct 03, 2023 Updated 0 Hours ago

सरकारी अधिकारियों ने इस 100 किलो सोना घोटाले से पहले 2017 में, टीआईए में 33 किलो सोने की चोरी का भी पर्दाफाश किया था, लेकिन वो सोना रहस्यमयी तरीके से तब से अब तक गायब ही है.

नेपालः सोने की तस्करी का ‘अंतरराष्ट्रीय केंद्र’?

हॉन्गकॉन्ग से कुछ महीने पहले 18 जुलाई को काठमांडू के रेडी ट्रेड प्राइवेट लिमिटेड को निर्यात किया गया 100 किलोग्राम अवैध सोना नेपाल स्थित काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (टीआईए) के निकट सिनामंगल से ज़ब्त किया गया था. भारत को तस्करी किए जा रहे इस सोने को मोटरसाइकिल के ब्रेक शूज़ और इलेक्ट्रिक शेवर के अंदर छुपाया गया था. नेपाल सरकार के राजस्व जांच विभाग (डीआरआई) ने त्वरित कार्यवाही करते हुए, इस घटना के तुरंत बाद स्वर्ण तस्करी में कथित तौर पर लिप्त नेपाल, चीन समेत भारत के 18 लोगों को गिरफ्त़ार किया. इसके अलावा उन ख़ामियों का पता लगाने के लिए भी छह सदस्यीय जांच कमेटी बिठाई गई, जिस वजह से इस सोने की तस्करी को अंजाम दिया जाना संभव हो सका था.

कुछ समय पहले, सत्तारूढ़ माओवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता पर इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट की आड़ में 9 किलो सोने की तस्करी में लिप्त होने का संदेह व्यक्त किया गया था.

रेडी ट्रेड प्राइवेट लिमिटेड ने इस घटना से पहले भी हॉन्गकॉन्ग से लगभग 1.997 किलोग्राम सोने का आयात किया था. इस फर्म के गोदाम में डीआरआई द्वारा की गई छापामारी के दौरान सरकारी अधिकारियों को सोने को छिपाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले डिब्बों के साथ सोना तोलने और पिघलाने में इस्तेमाल की जाने वाली मशीनें भी बरामद हुई थीं. हालांकि, सबसे दिलचस्प जानकारी ये प्राप्त हुई कि इस फर्म का मालिक कोई हाई-प्रोफाइल व्यवसाई नहीं, बल्कि नेपाल के दोलखा ज़िले के मेलुंग ग्रामीण नगर पालिका में रहने वाला कोई दिहाड़ी मज़दूर निकला.

सरकारी अधिकारियों ने इस 100 किलो सोना घोटाले से पहले 2017 में, टीआईए में 33 किलो सोने की चोरी का भी पर्दाफाश किया था, लेकिन वो सोना रहस्यमयी तरीके से तब से अब तक गायब ही है. कुछ समय पहले, सत्तारूढ़ माओवादी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता पर इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट की आड़ में 9 किलो सोने की तस्करी में लिप्त होने का संदेह व्यक्त किया गया था. अब तो इन कथित सोने के तस्करों के साथ अन्य हाई प्रोफाइल माओवादी नेताओं के साथ खड़े होकर फ़ोटो के लिए पोज देते हुए तस्वीरें एवं वीडिओ, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर छाया हुआ है.

बड़ी साज़िश

एक छोटे से सिक्के का भी पता लगा पाने में सक्षम टीआईए के इन सुरक्षा अधिकारियों द्वारा एक क्विंटल सोने का पता लगा पाने में मिली विफलता ने उनके कार्य-कौशल पर सवाल खड़ा कर दिया है. हवाई अड्डे में इतनी भारी सुरक्षा व्यवस्था होने के बावजूद सोने की इतनी बड़ी खेप का बच निकलना आश्चर्यजनक है? टीआईए के मानव और तकनीक़ी सुरक्षा तंत्र, दोनों की विश्वसनीयता अब दांव पर है, क्योंकि इस सोने की तस्करी में शामिल एक विशेष कंपनी है, जिसे हवाई अड्डे के बाहरी और आंतरिक क्षेत्रों में प्रबंधन का कॉन्ट्रैक्ट अथवा ज़िम्मेदारी दी जाती है.

नेपाल में सोने की तस्करी कोई नई घटना नहीं है. यह (1960-1990) के पंचायत प्रणाली व्यवस्था के दौरान भी प्रचलन में था. हालांकि, बाद में राजनीतिक व्यवस्था के बदल जाने के बावजूद भी, सोने की तस्करी बदस्तुर जारी रही. हालांकि, सोने की तस्करी रोजाना हो रही है, लेकिन शायद ही कभी कोई सोना या सोने की खेप पकड़ में आती है. और फिर भी अगर कभी कोई सोना पकड़ा भी जाता है तो इसके आरोप में मुख्य खिलाड़ी के बजाय छुटपुट अपराधियों को ही दंडित किया जाता है.

ऐसा समझा जाता है कि सरकारी अधिकारियों द्वारा तस्करी किए गए सोने की ज़ब्ती दिखाने के पीछे का मक़सद ये बतलाना है कि वे तस्करी के मुद्दे को हल करने के प्रति काफी सजग एवं सक्षम है.

ऐसा समझा जाता है कि सरकारी अधिकारियों द्वारा तस्करी किए गए सोने की ज़ब्ती दिखाने के पीछे का मक़सद ये बतलाना है कि वे तस्करी के मुद्दे को हल करने के प्रति काफी सजग एवं सक्षम है. सोने के घोटाले के मामलों की जांच के लिए अब सरकार पर विशेष जांच आयोग बनाने का दबाव बढ़ता जा रहा है. नेपाल इस समय पूरी दुनिया में सोने की तस्करी के मुख्य केंद्र के रूप में जाना जाता है, जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच नेपाल की विश्वसनीयता में कमी देखी जा रही है. ये सबकी जानकारी में है कि नेपाल से जिस सोने की तस्करी होती है, वो ज्य़ादातर चीन के द्वारा नेपाल में आयात किया जाता है, फिर वहां से वो भारत में तस्करी किया जाता है. इस संबंध में राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी के अध्यक्ष राजेन्द्र लिंगदेल ने अपनी बात रखते हुए कहा, “सोने की ये नाम मात्र मात्रा सिर्फ़ दिखने के लिए बरामद की गई थी. सोने की तस्करी के लिए नेपाल, तस्करों का एक महत्वपूर्ण ट्रांज़िट केंद्र बनता जा रहा है.” यह भी पता चला है कि अंतरराष्ट्रीय  दबाव की वजह से ही ये सोना ज़ब्त किया गया है.”

नेपाल पुलिस के पूर्व उप-महानिरीक्षक हेमंत मल्ला ठाकुर  के अनुसार सोने की इतनी बड़ी मात्रा की तस्करी का पता न लगना, तस्करों, सीमा शुल्क अधिकारियों और उच्च अधिकारियों व इसमें लिप्त अन्य लोगों के बीच मिलीभगत के बगैर संभव ही नहीं है. उन्होंने इस सोने की हो रही तस्करी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहा संगठित अपराध करार दिया है, क्योंकि सोना किसी तीसरे देश से लाया जा रहा था.

इसके अलावा, प्रतिनिधि सभा (नेपाली संसद) की कानून, न्याय और मानवाधिकार समिति की बैठक को संबोधित करते हुए नेपाली काँग्रेस के सांसद सुनील शर्मा ने उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री नारायण काजी श्रेष्ट और वित्त-मंत्री प्रकाश शरण महत से, हवाई अड्डे के रास्ते लगातार हो रही सोने की तस्करी को रोक पाने में मिली विफलता के कारण इस्तीफे की मांग की थी. ऐसा इसलिए क्योंकि टीआईए में शामिल शुल्क विभाग, वित्त-मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है, जबकि पुलिस गृह-मंत्रालय के अधीन कार्य करती है. नेपाली काँग्रेस के वरिष्ठ नेता शेखर कोइराला  ने सोने की तस्करी मामले में एक अन्य हाइप्रोफाइल व्यक्ति के शामिल होने का संदेह किया था.

सरकार पर आरोप

देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी सीपीएन-यूएमएल ने सरकार पर सोने की तस्करी में शामिल दोषी व्यक्तियों को बचाने कि कोशिश करने का आरोप लगाया है. इसकी जांच के लिए उन्होंने एक स्वतंत्र उच्च-स्तरीय जांच करवाने की मांग की है और अपने इस मांग के समर्थन में वह काफी लंबे समय से प्रतिनिधि सभा की कार्यवाही में बाधा पैदा करता आ रहा है. सोने की तस्करी में शामिल लोगों के खिलाफ़ कार्यवाही करने के लिए सरकार पर वाजिब दबाव बनाने के उद्देश्य से सीपीएन (यूएमएल) की युवा शाखा, नेशनल यूथ फेडरेशन नेपाल ने भी राजधानी काठमांडू में एक मशाल रैली का आयोजन किया. ‘इन लोगों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह, तस्करी के वाहकों या कैरियर्स को गिरफ्त़ार करके, इसके पीछे के मास्टरमाइन्ड  और असर अपराधी को बचाने का काम कर रही है.’

इस तस्करी/ घोटाले में शामिल वास्तविक दोषियों को दंडित किए जाने में ज़रा भी नरमी न केवल वैश्विक समुदायों के बीच नेपाल की छवि धूमिल करेगी, बल्कि इसका देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.

नेपाल सरकार इस स्वर्ण घोटाले/तस्करी की जड़ों तक कैसे पहुँच सकेगी, ये तो समय ही बताएगा. लेकिन इस ढुलमुल तर्क के आधार पर कि डीआरआई पहले से ही मामले की जांच कर रहा है, सरकार का इस संबंध में स्वतंत्र उच्च-स्तरीय जांच समिति बिठाए जाने की किसी भी संभावना को ख़ारिज किया जाना, एक चिंतनीय विषय है. इस सच्चाई के बावजूद कि जांच एजेंसी, डीआरआई एक सरकारी निकाय है, और इस मामले में उच्च स्तरीय राजनेताओं की संलिप्तता के बारे में पहले से ही काफी संदेह बना हुआ है, वहाँ इस एजेंसी की जांच रिपोर्ट निष्पक्ष होगी, इस बात किसी को यकीन नहीं है. ऐसे मामलों में ये संदेहास्पद लगता है कि इस घोटाले में शामिल मास्टरमाइंड सहित असली दोषी व्यक्तियों को सज़ा मिलेगी. साथ ही हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए कि इस तस्करी/ घोटाले में शामिल वास्तविक दोषियों को दंडित किए जाने में ज़रा भी नरमी न केवल वैश्विक समुदायों के बीच नेपाल की छवि धूमिल करेगी, बल्कि इसका देश की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है.   

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