Author : Ramanath Jha

Published on Apr 11, 2023 Updated 0 Hours ago

राज्यों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए ताकि वे शहरी नियोजन पर केंद्रीय दिशा-निर्देशों का पालन सकें जो समुचित ढंग से शहरी विकास के लिए आवश्यक हैं.

राष्ट्रीय बजट 2022-23: शहरी नियोजन की महत्ता पर ज़ोर

पिछले साल, 2022-23 के अपने केंद्रीय बजट भाषण में, भारत की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने शहरी विकास के संदर्भ में बात करते हुए अपना पूरा ध्यान शहरी नियोजन पर केंद्रित किया था. इसका कारण समझाते हुए उन्होंने कहा कि देश में बढ़ते शहरीकरण ने जनसांख्यिकी परिवर्तन को जन्म दिया है, जिसके परिणामस्वरूप 2047 तक शहर ही मानव बसावट के प्रमुख केंद्र होंगे. उनका यह भी विचार था कि भारत अपने शहरों के व्यवस्थित विकास के ज़रिए ही अपनी आर्थिक संभावनाओं का दोहन कर सकता है और बड़े पैमाने पर रोज़गार के अवसर पैदा कर सकता है. बेतरतीब शहरीकरण और राष्ट्रीय खुशहाली दोनों एक साथ नहीं चल सकते. वित्त मंत्री ने व्यवस्थागत शहरी विकास के लक्ष्य के लिए शहरी नियोजन को महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में रेखांकित किया. उन्होंने अपने भाषण के छह पैराग्राफों में शहरी नियोजन के मुद्दे को केंद्र में रखते हुए उसे व्यवस्थित ढंग से लागू करने के लिए आवश्यक कदमों के संबंध में विस्तृत चर्चा की.

बेतरतीब शहरीकरण और राष्ट्रीय खुशहाली दोनों एक साथ नहीं चल सकते. वित्त मंत्री ने व्यवस्थागत शहरी विकास के लक्ष्य के लिए शहरी नियोजन को महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में रेखांकित किया.

उन्होंने मेगासिटी और उनके भीतरी इलाकों के विकास पर ध्यान देने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया ताकि वे आर्थिक विकास के मौजूदा केंद्र बनकर उभर सकें. इसके अतिरिक्त, उन्होंने भविष्य में इसी आधार पर टियर 2 और टियर 3 शहरों के विकास में योगदान देने की बात की. शहरों को समावेशी बनाने का सपना तभी साकार होगा जब इन शहरों का पुनर्गठन इस आधार पर करें कि ये पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ जीवन के केंद्र के रूप में उभरें, जहां सभी के लिए, विशेष रूप से महिलाओं और युवाओं के लिए अवसर मौजूद हों. इसके लिए, सबसे पहले यह समझना होगा कि यथास्थितिवादी व्यावसायिक दृष्टिकोण के साथ शहरी नियोजन पर काम नहीं किया जा सकता और साथ ही इस संदर्भ में हमें मौजूदा दृष्टिकोण में बदलाव की ज़रूरत है.

वित्तमंत्री ने शहरी नियोजकों और अर्थशास्त्रियों की एक उच्च-स्तरीय समिति के गठन का प्रस्ताव सामने रखा, जो शहरी क्षेत्र से जुड़ी नीतियों, क्षमता निर्माण, नियोजन, क्रियान्वयन और प्रशासन को लेकर सिफ़ारिशें पेश कर सकेंगे. उन्होंने शहरी क्षमता निर्माण के लिए राज्यों को समर्थन देने का वादा किया. बजट में बिल्डिंग बायलॉज और शहरी नियोजन योजनाओं (TPS) के आधुनिकीकरण और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के निर्माण और परिवहन-उन्मुख विकास एवं शहरी नियोजन योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा वित्तीय सहायता का प्रस्ताव दिया गया है.

अकादमिक संस्थानों से मदद

शहरी नियोजन और रूपरेखा के क्षेत्र में भारतीय संदर्भ में ज्ञान के उत्पादन के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में स्थित पांच मौजूदा अकादमिक संस्थानों को उत्कृष्टता केंद्र के रूप में नामित किया गया और इनमें से प्रत्येक को 250 करोड़ रुपए का एंडोमेंट फंड दिया गया. इसके अतिरिक्त, बजट ने शहरी नियोजन से संबंधित पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता, विषय-सूची और ऐसे पाठ्यक्रमों तक पहुंच में सुधार की ज़िम्मेदारी अखिल भारतीय तक़नीकी शिक्षा परिषद (AICTE) को सौंपी है.

परिणामस्वरूप, आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने शहरी नियोजन क्षेत्रों में सुधारों की अनुशंसा के लिए विशेषज्ञों की एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है. यह समिति शहरी नियोजन में मौजूदा अंतरालों की पहचान करने, अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपायों पर काम करने और शहरी नियोजन को मज़बूत बनाने के लिए राज्य (या केंद्र-शासित प्रदेश) विशिष्ट रिपोर्टों पर काम करने के लिए राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के साथ मिलकर काम करेगी. इसके अतिरिक्त, यह समिति पुरानी समितियों द्वारा की गई सिफ़ारिशों के क्रियान्वयन की स्थिति के आकलन के माध्यम से मौजूदा अंतरालों का विश्लेषण प्रस्तुत करेगी, शहरों में मास्टर प्लान तैयार करने से संबंधित मुद्दों के समाधान हेतु उपायों का सुझाव देगी, और राज्य-स्तर पर शहरी नियोजन सुधारों के लिए एक रोडमैप तैयार करेगी.

इस संबंध में, 2021 में नीति आयोग ने भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधारों पर एक रिपोर्ट तैयार की. जिसमें यह पाया गया कि कई अवरोध देश में शहरी नियोजन क्षमता को प्रभावित करते हैं. उदाहरण के लिए, 7,933 शहरी बसावटों में से 65 प्रतिशत के पास कोई मास्टर प्लान नहीं था. कई शहरों में पुरानी विकास नियंत्रण नियमावलियां प्रचलना में थीं. उनके पास सटीक भूकर मानचित्र नहीं थे. इस रिपोर्ट में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ऑर्गेनाइज़ेशन और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स द्वारा किए गए एक अध्ययन का हवाला दिया गया है, जिसके मुताबिक राज्यों में शहरी नियोजकों के लिए 12,000 से अधिक पदों की आवश्यकता है जबकि स्वीकृत पदों की संख्या महज़ 4,000 है और इनमें से आधे खाली पड़े थे. 

2021 में नीति आयोग ने भारत में शहरी नियोजन क्षमता में सुधारों पर एक रिपोर्ट तैयार की. जिसमें यह पाया गया कि कई अवरोध देश में शहरी नियोजन क्षमता को प्रभावित करते हैं.

नीति आयोग ने पाया कि निजी क्षेत्र शहरों में नगर नियोजन पर काम करने के लिए तैयार नहीं थे यानी इस संबंध में उनकी क्षमता पर्याप्त नहीं थी, और इसके लिए आयोग उनकी नियोजन क्षमता को समग्र रूप से मज़बूत बनाने के लिए ठोस उपायों को लागू करना चाहता था.

आयोग ने नगर नियोजन विभागों को मज़बूत करने, नगर और ग्राम नियोजन अधिनियमों को संशोधित करने और तक़नीकी कार्रवाईयों से समझौता न करते हुए नियोजन प्रक्रिया में नागरिकों को शामिल करने की सिफ़ारिश की है. शहरी नियोजन संबंधित शिक्षा के स्तर पर, उनका सुझाव है कि भारतीय उपमहाद्वीप में मानव बसावट के इतिहास से जुड़े पाठ्यक्रम को और अधिक विस्तृत किए जाने की आवश्यकता है.

शहरी नियोजन पर भारतीय सरकार के प्रयासों की बिना शक़ सराहना की जानी चाहिए. हालांकि, इस तरह के किसी बदलाव के लिए शहरी नियोजन के दृष्टिकोण में कुछ ख़ास क़िस्म के मूलभूत परिवर्तनों की ज़रूरत होगी, जिसमें आधुनिकीकरण और शहरी नियोजन के स्थानीय संदर्भ शामिल हैं. भारत में अधिकतर शहरी नियोजन गतिविधियों के भारतीयकरण की आवश्यकता है ताकि वे संबंधित सामाजिक-आर्थिक संदर्भों के साथ संगत हों. साथ ही, योजनाओं की तैयारी को प्रभावित करने वाले तक़नीकी पहलुओं और शहरों पर प्रौद्योगिकी के कारण होने वाले स्थानिक परिवर्तनों पर विचार करने की आवश्यकता है. योजनाओं के कार्यान्वयन के महत्व को देखते हुए, शहर बिना संबंधित पहलुओं पर विचार किए योजनाएं तैयार नहीं कर सकते. बीस वर्षीय शहरी योजनाओं को पंच वर्षीय कार्यान्वयन योजनाओं और सालाना योजनाओं में बदलने की आवश्यकता है ताकि वित्तीय समर्थन एवं अन्य उपकरणों के माध्यम से उसके कार्यान्वयन को आसान बनाया जा सके. जो 'क्रियान्वयन' के स्तर पर लगभग असंभव हों, उन्हें उनकी वांछनीयता के बावजूद योजनाओं में शामिल नहीं किया जाना चाहिए.

राज्यों से अनुरोध

हालांकि, ऐसा लगता है कि भारत सरकार इन अनुशंसाओं को स्वीकार करने के प्रति राज्यों के उत्साह को लेकर आशान्वित है. इन सुझावों से जुड़ी बाध्यता यह है कि इसके लिए संवैधानिक शर्तों के अनुरूप प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता होगी, जहां नियोजन को राज्य के नहीं बल्कि नगरनिगम के दायरे में लाने की बात की जा रही है. अनुभव बताते हैं कि जब राज्यों से स्वेच्छा से अपने अधिकारों को छोड़ने की मांग की गई है, केवल निराशाएं हासिल हुई हैं. उदाहरण के लिए, भारत सरकार ने 2003 में एक मॉडल नगरपालिका कानून की सिफ़ारिश की थी. इसमें प्रशासनिक सुधार, निजी क्षेत्र की भागीदारी और बड़े पैमाने पर वित्तीय हस्तांतरण शामिल थे. राज्यों ने इसे अनसुना कर दिया. भारत सरकार ने बस रैपिड ट्राज़िट सिस्टम (BRTS) को लागू करने के लिए कई राज्यों के कई शहरों से अनुरोध किया और इसके लिए वित्तीय सहायता भी मुहैया कराई. हालांकि, जैसे ही केंद्रीय सरकार द्वारा मिलने वाली सहायता राशि ख़त्म हो गई, नई बस व्यवस्था ठप पड़ने लगी. इसी तरह, राज्यों ने क्षेत्र सभा मॉडल विधेयक को अपनाने के संबंध में आश्वासन दिया था लेकिन इस संबंध में भारत सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त करने के बाद उन्होंने बड़ी चतुराई से विधेयक को उलट-पुलट कर रख दिया, जिससे यह निष्क्रिय हो गया. भारत सरकार के मॉडल रेंट एक्ट को भी राज्यों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. इसलिए, इस बात का कोई आधार नहीं है कि राज्य शहरी नियोजन से जुड़े सुधारों के मामले में भारत सरकार के परामर्श पर ध्यान देने को तैयार हैं.

भारत सरकार के मॉडल रेंट एक्ट को भी राज्यों ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. इसलिए, इस बात का कोई आधार नहीं है कि राज्य शहरी नियोजन से जुड़े सुधारों के मामले में भारत सरकार के परामर्श पर ध्यान देने को तैयार हैं.

जिस प्रकार भारत सरकार मानती है कि शहरी नियोजन को पुराने ढर्रे के हवाले नहीं छोड़ा जा सकता, उसी तरह यह बात भी ठीक है कि वह अपने आदेशों के पालन के लिए राज्यों पर दबाव नहीं डाल सकती. इस तरह से व्यापक पैमाने पर लागू होने वाले आदेशों की अवहेलना ही की जाएगी. इसके बजाय, भारत सरकार को निम्नलिखित सुझावों पर अमल करना चाहिए:

  1. भारत सरकार योजनाओं की रूपरेखा तैयार करेगी जिसके कार्यान्वयन का ज़िम्मा राज्यों पर होगा. और जहां भी क्षेत्रानुसार अनुकूलन की आवश्यकता होगी, वहां पर वह राज्यों और शहरों से परामर्श करेगी.
  2. भारत सरकार उन कंपनियों/संस्थानों की पहचान करेगी जो गुणवत्तापूर्ण योजनाएं तैयार करने में सक्षम होंगे, और सार्वजनिक बोली प्रक्रिया के ज़रिए उनका चयन किया जाएगा. शहरों और कस्बों की विभिन्न श्रेणियों के लिए प्रति एकड़ नियोजन की लागत तय की जा सकती है. इससे बोली प्रक्रिया लगने वाले समय को बचाया जा सकेगा, जबकि वर्तमान मानदंडों के मुताबिक इन प्रक्रियाओं में कई साल बर्बाद हो जाते हैं. अगर राज्य योजना की तैयारी के लिए छांटी गई कंपनियों में से किसी एक को नियुक्त करता है तो ऐसे में योजना की तैयारी से जुड़े सौ फ़ीसदी ख़र्च का वहन केंद्र सरकार को करना चाहिए और साथ ही भारत के किन्हीं 500 शहरों में योजना- कार्यान्वयन की पर्याप्त लागत का भार भी केंद्र सरकार को उठाना चाहिए.
  3. जो राज्य राष्ट्रीय रूपरेखा और कार्यान्वयन पद्धति को अपनाने से इनकार करेंगे, उन्हें प्रस्तावित सुधारों के लिए दिए जाने वित्तीय प्रोत्साहनों से वंचित कर दिया जाएगा.

चूंकि, संविधान के अनुसार, शहरी विकास राज्य सूची में शामिल है, लेकिन अनुभवों की रोशनी में देखें तो यह स्पष्ट है कि नगरों में केंद्र सरकार का आदेश केवल तभी लागू किया जाएगा जब राज्य केंद्रीय सरकार द्वारा ज़ारी दिशानिर्देशों का पालन करने में विफल हो जाते हैं और इसके चलते वे भारी राजस्व हानि की स्थिति में चले जाते हैं. ऐसा सोचना बेवकूफ़ी है कि राज्य परोपकारिता की भावना से प्रेरित होकर भागीदारी करेंगे.

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