Published on Oct 07, 2022 Updated 0 Hours ago

नाक से दवा देना एक सरल, तेज़, व्यवहारिक और भरोसेमंद तरीक़ा है. दवाओं के फौरी असर की बात करें, तो इसका कोई जोड़ नहीं है.

#Nasal Drug Delivery: नाक से दवा देने का विकल्प बना ज़िंदगी बदल देने वाला आविष्कार

पारंपरिक तरीक़े से दवाएं देने के मुक़ाबले नाक से दवाएं और वैक्सीन देने के इतने फ़ायदे हैं, जिनकी किसी से तुलना नहीं की जा सकती है. टीकों का इतिहास तब तक अधूरा रहेगा, जब तक हम चेचक के सूखे दाग़ों से निकाले गए चूरे को नाक से दवा के रूप में डालने का ज़िक्र नहीं करते. ये आज के दौर के टीकों का शुरुआती स्वरूप था. इसके अलावा नास्य कर्म नाम की एक प्राचीन परंपरा के तहत पाउडर, जड़ी-बूटी, तेल और दूसरे घोल को नाक के ज़रिए दिया जाता था. नाक से दवा देने का तरीक़ा, शरीर में बिना कोई सुई चुभोए दवा देने का सबसे अच्छा ज़रिया है. इसके अलावा, नाक बहुत से रोगाणुओं का शरीर में प्रवेश करने से रोकने दरवाज़ा भी है, जो तरह तरह के रोगाणुओं को हमारे बदन में घुसने से रोकती है और बीमारियों के मुक़ाबले दीवार का काम करती है. हालांकि, अपने तमाम उपयोगों के बाद भी नाक की इन ख़ूबियों का हमने बहुत कम ही इस्तेमाल किया है.

नाक से दवा देने का तरीक़ा, शरीर में बिना कोई सुई चुभोए दवा देने का सबसे अच्छा ज़रिया है. इसके अलावा, नाक बहुत से रोगाणुओं का शरीर में प्रवेश करने से रोकने दरवाज़ा भी है

वैकल्पिक रास्ते के फ़ायदे

चूंकि नाक, हमारे दिमाग़ और फेफड़ों के ज़्यादा क़रीब होती है, तो इससे शरीर के जिस हिस्से तक दवा पहुंचानी होती है, वो अधिक तेज़ी से पहुंच जाती है. नसों, धमनियों, मांसपेशियों, चमड़ी और मुंह के ज़रिए दवा देने की तुलना में नाक से दवा देने पर वो फ़ौरन अपने मकाम तक पहुंच जाती है. इससे दवा को, हमारे लिवर, ख़ून और दिमाग़ के रोड़ों से भी नहीं जूझना पड़ता. जिससे दवा की ज़्यादा ख़ुराक शरीर को मिलती है. नाक में नसों की ज़्यादा तादाद और बड़ा क्षेत्र होने के कारण दवाएं और टीकों को हमारा शरीर अधिक तेज़ी से पूरी तरह सोख लेता है. इसके साथ-साथ चूंकि नाक का दिमाग़ से सीधा संपर्क होता है, तो दिमाग़ के इलाज की बहुत सी दवाएं इस रास्ते से ज़्यादा असरदार तरीक़े से दी जा सकती हैं. मांसपेशियों या नसों में लगाए जाने वाले इंजेक्शन के बुरे असर देखने को मिलते हैं. लेकिन, नाक से दवा देने के मामले में ऐसा शायद ही कभी होते देखा गया हो. इसके अलावा दवाएं और टीके लगाने के ख़िलाफ़ एक सामाजिक विरोध हमेशा ही देखा गया है. ऐसे में नाक से दवा देकर, इस बाधा से आसानी से पार पाया जा सकता है और बड़ी आबादी के स्तर पर तेज़ी से टीकाकरण या दवाएं देने का काम निपटाया जा सकता है. इसके अलावा, HIV, हिपेटाइटिस बी और सी के टीकों को पारंपरिक इंजेक्शन से देने से संक्रमण होने का ख़तरा रहता है. लेकिन, नाक से दवा डालने पर इस जोखिम से भी बचा जा सकता है.

स्टेम सेल, प्रोटीन, पेप्टाइड, दवाएं, इंसुलिन और जैविक उपाय देना

किसी मामूली बीमारी या बड़ी बीमारी के इलाज के लिए नाक से दवा देने का विकल्प अभूतपूर्व संभावनाओं वाला है. इनमें स्टेम सेल, प्रोटीन, पॉलीपेप्टाइड, टीके, इम्युनोग्लोबिन, एंटी-डिप्रेसेंट, साइकियाट्रिक और न्यूरोट्रॉपिक दवाएं, कॉर्टिकोस्टेरॉयड, एंटी-हिस्टामाइन, एन्ज़ाइम और हॉरमोन की ख़ुराकें भी शामिल हैं. नाक से इंसुलिन की ख़ुराक देने का विकल्प तो ख़ास तौर से अहम है, क्योंकि दुनिया भर में डायबिटीज़ से होने वाली मौत में बहुत तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है. नाक से दी जाने वाली दवाएं, शरीर से होने वाले हॉरमोन के रिसाव की बराबरी कर सकती हैं. इससे शुगर पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है. नाक से इंसुलिन देना सरल होगा. इससे ख़ुराक आसानी से दी जा सकेगी और पूरे शरीर में पहुंच सकेगी. इसका एक और फ़ायदा ये भी है कि ख़ुद से नाक में इंसुलिन डालने से हाइपोग्लाइसेमिया या शुगर लेवल का बेहद ख़तरनाक स्तर तक गिरने का डर भी नहीं होगा.

नाक से इंसुलिन की ख़ुराक देने का विकल्प तो ख़ास तौर से अहम है, क्योंकि दुनिया भर में डायबिटीज़ से होने वाली मौत में बहुत तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही है. नाक से दी जाने वाली दवाएं, शरीर से होने वाले हॉरमोन के रिसाव की बराबरी कर सकती हैं. इससे शुगर पर आसानी से नियंत्रण पाया जा सकता है.

इसी तरह से स्टेम सेल ट्रांसप्लांटजैसी नई तकनीक के इस्तेमाल के लिए नाक के कई तरह के प्रयोग हो सकते हैं. अपने आपको नया करने वाली कोशिकाओं को नाक में डाला जा सकता है, जो वहां से निकलकर आख़िर में दिमाग़ तक पहुंच जाएंगी. इससे स्टेम सेल देने के रास्ते का अधिकतम उपयोग हो सकेगा. इसके अलावा, अल्झाइमर, पार्किंसंस और दिमाग़ के पतन की ऐसी ही अन्य बीमारियों के इलाज में नाक को मज़बूत माध्यम की तरह इस्तेमाल करने में काफ़ी संभावनाएं दिखती हैं. इन सबके अलावा अभी जो रिसर्च चल रहे हैं उनसे सबूत मिले हैं कि ग्लियोब्लास्टोमा जैसे न्यूरोलॉजिकल कैंसर को नाक से इलाज करके ठीक किया जा सकता है.

कोरोना और इनएक्टिवेटेड पोलियो वायरस के टीके

सार्स कोरोना वायरस-2 लगातार अपने अंदर बदलाव करके बीमारी पर क़ाबू पाने की हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता की राह में बाधाएं डालता है. इससे टीकों और दवाओं का पूरी तरह से असर नहीं होता. शरीर से वायरस निकलने में देर होने से अनगिनत इंसानों की जान जा चुकी है. हालांकि अब इससे निपटने के एक नए तरीक़े के तहत सबको उपलब्ध पॉलिवैलेंट कोविड-19 वैक्सीन ईजाद की गई है, जिसे नाक से दिया जा सकता है. हमारे शरीर में कोरोना वायरस के प्रवेश का एक अहम ज़रिया नाक भी है. इसलिए, नाक से टीका देकर, कोरोना के वायरस की रोकथाम की जा सकेगी. वायरस से लड़ने की नाक की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सकेगी. बहुत से रोग प्रतिरोधकों से लैस सर्वमान्य कोविड-19 वैक्सीन से मज़बूत इम्युनिटी विकसित होगी, जिससे संक्रमण शून्य हो जाएगा. इस तरीक़े से इस महामारी के ख़ात्मे को लेकर काफ़ी उम्मीदें जगी हैं.

नाक से वैक्सी देने का विकल्प इसलिए भी ख़ास है, क्योंकि इसके लिए लोगों को प्रशिक्षित किए जाने की ज़रूरत नहीं होगी और आसानी से टीकाकरण किया जा सकेगा. ये बात स्थानीय स्तर पर फैलने वाली बीमारियों से लेकर वैश्विक महामारियों तक पर लागू होती है.

हाल ही में न्यूयॉर्क शहर में फैले पोलियो के संक्रमण से लगातार टीकाकरण और निगरानी की अहमियत एक बार फिर से उजागर हुई है. ज़िंदा वायरस वाले मुंह से दिए जाने वाले पोलियो के टीके को ही इस नए संक्रमण की वजह माना गया है. अगर नाक से दी जाने वाली इनेक्टिवेटेड पोलियो वायरस वाली वैक्सीन को इस्तेमाल किया जाए, तो पोलियो के टीके लगाने से इसके संक्रमण का ख़तरा ख़त्म हो जाएगा. इसी बीच, इंजेक्शन लगाकर दिए जाने वाले पोलियो के टीके की तुलना में नाक से दी जाने वाली ख़ुराक से आंतों और लार में मौजूद वायरस ख़त्म करने वाले केमिकल IgA पैदा होते हैं, तो नाक से टीका लगाकर पोलियो के संक्रमण के ख़तरों को सीमित किया जा सकेगा. क्योंकि आंत और लार में एंटी वायरस केमिकल होने से पोलियो वायरस शरीर में प्रवेश नहीं कर पाएगा. नाक से वैक्सी देने का विकल्प इसलिए भी ख़ास है, क्योंकि इसके लिए लोगों को प्रशिक्षित किए जाने की ज़रूरत नहीं होगी और आसानी से टीकाकरण किया जा सकेगा. ये बात स्थानीय स्तर पर फैलने वाली बीमारियों से लेकर वैश्विक महामारियों तक पर लागू होती है.

आसानी से दवा देना और नाक का फॉर्मूला

संयमित रूप से नाक में जेल, नेबुलाइज़र घोल और दवाएं डालने जैसी तमाम तरीक़े अपनाने से नाक में बराबरी से दवा डाली जा सकती है. दवा को किसी भी स्वरूप में अधिकतम असर वाली मात्रा में पूरी नाक में बराबरी से फैलाकर दिया जा सकता है. नाक में दवा घुल जाए इसके लिए नेज़ल म्यूकोएडहेसन जैसी कई तकनीकें इस्तेमाल की जाती हैं, जो छींक के ज़रिए नाक से दवा बाहर फेंकने को रोक सकती हैं. इन नए नए तरीक़ों ने इलाज में काफ़ी आसानी ला दी है. फिर चाहे कोई मामूली बीमारी हो या बड़े स्तर पर फैली महामारी.

निष्कर्ष

इस बात के पक्के सुबूत हैं कि नाक से दवा देने का इतना असर होता है, जिसका कोई दूसरा जोड़ नहीं मिलता. ये दवा देने का आसान, तेज़, भरोसेमंदर और व्यवहारिक तरीक़ा है. हालांकि अभी भी नाक से दवाएं देने की संभावनाओं का व्यापक स्तर पर इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. एरोसॉल डिस्परशन हो या मैटेरियल साइंस की तरक़्क़ी दोनों की मदद से हमारे शरीर की इन व्यवस्थाओं का बेहतर इस्तेमाल हो सकता है. सिनर्जिया बायोसाइंस में हम लोगों ने एडवांस्ड नैनोटेक्नोलॉजी के एक ऐसे मंच का पेटेंट कराया है, जिससे किसी भी दवा को सीधे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुंचाया जा सकता है. नाक से दवा देकर, मौजूदा ही नहीं आने वाले समय की बीमारियों का इलाज भी किया जा सकेगा. हालांकि मेडिकल और सार्वजनिक स्वास्थ्य के एक नए विकल्प के तौर पर इसका वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल होना अभी बाक़ी है.

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