म्यांमार और चीन के रिश्तों को अक्सर ‘पाउक फॉ’ यानी एक भाईचारे वाला संबंध कहा जाता है. इसकी वजह दोनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक संबंध हैं. चीन और म्यांमार की सीमा 2129 किलोमीटर लंबी है और दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं. 1988 में जब पश्चिमी देशों ने म्यांमार में तख़्तापलट करके सत्ता में आई नेपियीडाव या सैन्य सरकार पर मानव अधिकारों के उल्लंघन और राजनीतिक अस्थिरता के कारण प्रतिबंध लगा दिए थे, तब चीन और म्यांमार के संबंधों में बड़ा बदलाव आया था. उसी दौर में चीन, म्यांमार का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया था और उसका ये दर्जा आज भी बना हुआ है.
हाल के वर्षों में चीन, म्यांमार का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है. म्यांमार के वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक़, वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान अप्रैल 2022 से जनवरी के पहले पखवाड़े के बीच चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार 215. 9412 करोड़ डॉलर पहुंच गया था.
वैसे तो चीन और म्यांमार के संबंधों में पिछले कई वर्षों के दौरान बार-बार उतार चढ़ाव आए है. इसकी वजह चीन के इरादों को लेकर म्यांमार के सत्ताधारी वर्ग की आशंकाएं रही है. फिर चाहे जातीय समूहों को हथियारबंद बनाना हो, क़र्ज़ के बोझ का डर हो या फिर ऐसी परियोजनाएं हों जिनके टिकाऊ होने पर संदेह हो. इन उतार-चढ़ावों के बाद भी दोनों देशों के रिश्ते मज़बूती से आगे बढ़ते रहे है. इसकी एक बड़ी वजह तो ये है कि दोनों देशों के रिश्तों में आर्थिक पहलू पिछले दो दशकों में काफ़ी मज़बूत हुए है.
हाल के वर्षों में चीन, म्यांमार का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया है. म्यांमार के वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक़, वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान अप्रैल 2022 से जनवरी के पहले पखवाड़े के बीच चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार 215. 9412 करोड़ डॉलर पहुंच गया था.
Source: Ministry of Commerce, SAC
म्यांमार, चीन के साथ उन सीमा चौकियों के ज़रिए व्यापार करता है, जो म्यूसे, चिनश्वेहाव, कमपैती के अलावा ल्वेजे सीमा पर स्थित है. इनमें से कमपैती की सीमा चौकी के ज़रिए सबसे ज़्यादा व्यापार होता है.
अहम साझेदार
इसके अतिरिक्त चीन ने म्यांमार की अर्थव्यवस्था का दायरा बढ़ाने में भी मदद की है. ग्रेटर मेकांग उपक्षेत्र आर्थिक सहयोग, जिसमें चीन, लाओ लोकतांत्रिक गणराज्य, थाईलैंड और वियतनाम के साथ म्यांमार भी शामिल है. इस मंच ने भी चीन और म्यांमार को एक दूसरे की शक्तियों के मेल से व्यापार एवं निवेश को मज़बूत बनाने का अवसर दिया है.
1988 में जब म्यांमार ने अपने दरवाज़े विदेशी निवेश के लिए खोले थे, उसके बाद से 2019 तक वहां हुए कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 26 प्रतिशत अकेले चीन से आया था. अपनी बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के ज़रिए चीन, म्यांमार में लगातार मूलभूत ढांचे की परियोजनाओं में निवेश कर रहा है. इसका माध्यम चीन म्यांमार आर्थिक गलियारा (CMEC) बना है. मिसाल के तौर पर CMEC के तहत कई परियोजनाएं जैसे कि मी लिंग ग्याइंग LNG टर्मिनल, क्याउकफ्यू विशेष आर्थिक क्षेत्र, गहरे बंदरगाह और मांडले म्यूस सड़क का आधुनिकीकरण और इससे म्यूस मांडले के बीच रेलवे लाइन को बढ़ावा मिलेगा. ये सब परियोजनाएं म्यांमार में चीन की दिलचस्पी का उदाहरण है.
म्यांमार अब चीन को जेड और तांबा जैसे खनिजों का भी अधिक निर्यात कर रहा है. इसके उलट चीन से म्यांमार को होने वाले निर्यात में अधिकतर तैयार माल, जैसे कि मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स और कपड़े शामिल है.
म्यांमार, चीन को मुख्य रूप से कृषि उत्पादों, जैसे कि चावल, बीन्स और तिल के बीजों का निर्यात करता है. जैसे कि 2019 में चीन को म्यांमार के कुल निर्यात में कृषि उत्पादों की हिस्सेदारी 83 प्रतिशत थी. म्यांमार अब चीन को जेड और तांबा जैसे खनिजों का भी अधिक निर्यात कर रहा है. इसके उलट चीन से म्यांमार को होने वाले निर्यात में अधिकतर तैयार माल, जैसे कि मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स और कपड़े शामिल है.
चीन और म्यांमार के व्यापारिक संबंध में इस तेज़ प्रगति के कई कारण रहे हैं. पहला, जैसे जैसे चीन की अर्थव्यवस्था बड़ी हुई है वैसे वैसे वहां म्यांमार के प्राकृतिक संसाधनों की मांग बढ़ी है. म्यांमार तेल, गैस, लकड़ी और खनिजों जैसे प्राकृतिक संसाधनों से संपन्न है और चीन ने इन क्षेत्रों में भारी निवेश किया है. इसके अलावा, 2021 में म्यांमार ने चीन को 1.231 करोड़ डॉलर के मोतियों, क़ीमती रत्नों, धातुओं और सिक्कों का निर्यात किया था.
Source: The Irrawaddy
दूसरा, म्यांमार और चीन के बीच व्यापार और निवेश में बढ़ोतरी करने में चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) ने अहम भूमिका अदा की है. म्यांमार, BRI का अहम हिस्सा है और इसके तहत वहां कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है. इनमें चीन- म्यांमार आर्थिक गलियारा (CMEC) भी शामिल है. चीन म्यांमार आर्थिक गलियारे में क्याउकफ्यू में गहरे समुद्र का बंदरगाह, एक औद्योगिक पार्क और चीन के कुनमिंग से म्यांमार के मांडले के बीच हाई स्पीड रेल मार्ग का निर्माण भी शामिल है. कहा जा रहा है कि तख़्तापलट के बाद भी इनमें से कई परियोजनाओं पर काम चल रहा है.
संपर्क के इन रास्तों के अलावा, चीन की कंपनियां संसाधन साझा करने के कई संपर्क लागू करने पर काम कर रही है, जिनके तहत पनबिजली परियोजनाओं जैसे बिजली के प्रोजेक्ट कई ठिकानों पर बनाए जा रहे है. अक्टूबर 2022 में क्योकफ्यू के विशेष आर्थिक क्षेत्र में 18 करोड़ डॉलर की लागत से बनाई गई 135 मेगावाट की परियोजना का उद्घाटन किया गया था.
चुनौतियां
हालांकि, म्यांमार और चीन के बीच व्यापारिक संबंध कई चुनौतियों का सामना भी कर रहे है. इनमें से सबसे अहम चुनौती व्यापार के असंतुलन की है. म्यांमार पिछले कई वर्षों से चीन के साथ घाटे पर व्यापार कर रहा है. वित्त वर्ष 2022-23 में जनवरी के मध्य तक ये व्यापार घाटा 40.9 करोड़ डॉलर का था. ये व्यापारिक असंतुलन म्यांमार के लिए बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है क्योंकि इससे म्यांमार, अपने आयात के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर और फिर उसके आर्थिक दबाव का शिकार बन सकता है.
एक और चुनौती चीन को लेकर म्यांमार के कार्यकर्ताओं और ज़्यादातर आबादी की सोच है. म्यांमार की जनता ये मानती है कि चीन की कंपनियां उनके देश के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रही है और इसके बदले में स्थानीय लोगों को कोई ख़ास लाभ नहीं दे रही है. जनता के विरोध के चलते दोनों देशों के बीच प्राकृतिक संसाधनों के कारोबार को 2011 में रोकना भी पड़ा था.
म्यांमार की जनता ये मानती है कि चीन की कंपनियां उनके देश के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रही है और इसके बदले में स्थानीय लोगों को कोई ख़ास लाभ नहीं दे रही है. जनता के विरोध के चलते दोनों देशों के बीच प्राकृतिक संसाधनों के कारोबार को 2011 में रोकना भी पड़ा था.
चीन के क़र्ज़ के जाल में फंसने का डर, म्यांमार के अर्थशास्त्रियों की नज़र में एक और बड़ी चुनौती है. जैसा कि कई देशों में देखा जा चुका है कि चीन का विकास का मॉडल अक्सर सरकार की अगुवाई वाले मूलभूत ढांचे की परियोजनाओं वाला होता है, जिसके बदले में प्राकृतिक संसाधनों को गारंटी के तौर पर लिया जाता है. कई विकासशील देशों में चीन को अपने क़र्ज़ के टिकाऊ न होने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है. इसके अलावा स्थानीय पर्यावरण को नुक़सान पहुंचाने और लोगों को रोज़गार मुहैया कराने में नाकामी के लिए भी चीन की आलोचना होती रही है. कई विद्वानों ने बार बार ये दावा किया है कि ज़्यादातर देशों को चीन द्वारा जो क़र्ज़ दिया जाता है, उनमें कड़ी शर्तें ‘छुपी’ होती हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) या विश्व बैंक जैसे प्रमुख आर्थिक संगठन चीन के क़र्ज़ में पारदर्शिता को लेकर गंभीर चिंता जता चुके हैं.
तख़्तापलट के बाद म्यांमार के हालत और ख़राब
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