Published on Jul 23, 2022 Updated 0 Hours ago

अफ्रीका में संकट की उपेक्षा करने के बजाय उससे निपटने की रणनीति बनाना एकमात्र सही विकल्प है जो हमें एक और महामारी से बचा सकता है और मौज़ूदा संकट का समाधान ढूंढने में मदद कर सकता है.

मंकीपॉक्स महामारी: अफ्रीका में बढ़ते मामलों की अनदेखी करने से हो सकता है भारी नुकसान!

मंकीपॉक्स (एमपीएक्स) एक दुर्लभ, वायरल जूनोटिक बीमारी है जिसमें पहले की तरह ही चेचक रोगियों में देखे गए लक्षणों जैसे ही लक्षण होते हैं, हालांकि कम मृत्यु दर के साथ यह गंभीर महामारी नहीं है. इस बीमारी को पहली बार 1958 में देखा गया था जब बंदरों में दो पॉक्स जैसे लक्षण मिले थे जिनका इस्तेमाल रिसर्च के लिए किया जा रहा था. हालांकि यह बीमारी मंकीपॉक्स कहलाती है लेकिन इसका स्रोत अभी तक अज्ञात है. यह माना जाता है कि चूहे या कुतर कर खाने वाले जीव की कई प्रजातियां वायरस का घर होती हैं और ये इंसानों को संक्रमित कर सकती हैं. मंकीपॉक्स ने एक बार फिर से दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है और तो और इसके मामले ऐसे देशों से सामने आए हैं जो वायरस के लिए गैर-स्थानिक थे, और जहां स्थानीय क्षेत्रों के साथ महामारी का कोई लिंक नहीं था. 15 जुलाई 2022 तक, वैश्विक स्तर पर 62 देशों में मंकीपॉक्स संक्रमण के 12,669 मामले दर्ज किए गए हैं. 14 जुलाई को भारत में केरल से मंकीपॉक्स का पहला मामला दर्ज़ किया गया.

चित्र 1 : 15 जुलाई 2022 तक मंकीपॉक्स के कुल कन्फर्म मामले


यह कहां से आया ?

आनुवांशिक विश्लेषण जैसी तकनीक के इज़ाद होने से, मंकीपॉक्स की उत्पत्ति के बारे में अब काफी कुछ स्पष्ट हो चुका हैशोधकर्ताओं का मानना है कि वायरस 2018 से मनुष्यों में पहुंच रहा है. 2017 में नाइजीरिया में एमपीएक्स का प्रकोप शुरू हुआ था और शोधकर्ताओं का मानना है कि वर्तमान वायरस 2017-2018 में नाइजीरिया में पनपे प्रकोप का ही वंशज है. शोधकर्ताओं ने देखा कि यह वायरस उम्मीद से कहीं अधिक तेजी से म्यूटेट हुआ. और हो सकता है कि इसी वजह से इसने अपने मानव होस्ट को बेहतर तरीक़े से अनुकूलित कर लिया हो. हालांकि, ट्रांसमिसिबिलिटी और गंभीरता पर इसके निहितार्थ को समझने के लिए अभी अधिक शोध की आवश्यकता है.

शोधकर्ताओं का मानना है कि वायरस 2018 से मनुष्यों में पहुंच रहा है. 2017 में नाइजीरिया में एमपीएक्स का प्रकोप शुरू हुआ था और शोधकर्ताओं का मानना है कि वर्तमान वायरस 2017-2018 में नाइजीरिया में पनपे प्रकोप का ही वंशज है.

उभरते संक्रामक रोग और ‘वन हेल्थ’ 

नाइजीरिया में 2017-2018 में मंकीपॉक्स महामारी का प्रकोप व्यापक क्षेत्र में हुआ था. जबकि मंकीपॉक्स मध्य और पश्चिम अफ्रीका के लिए स्थानिक है लेकिन नाइजीरिया में 2017-18 में जब इस महामारी ने पैर फैलाया तब जो कुछ चीजें इसे लेकर देखी गई थीं वो मौज़ूदा समय के लिए प्रासंगिक हैं. तब यह कहा गया था कि विभिन्न क्षेत्रों में जो मंकीपॉक्स के मामले थे, वे महामारी से जुड़े नहीं थे लेकिन आनुवांशिक रूप से 1970 के वायरस के जैसे ही थे, जिसका मतलब यह हो सकता है कि वायरस किसी अज्ञात पशु में अपना घर बनाकर कई दशकों तक जीवित था. इसका मतलब यह हो सकता है कि मंकीपॉक्स का प्रकोप पशुओं से निकलकर पूरे देश को अपनी चपेट में ले सकता है. जूनोटिक संक्रामक रोगों के मामले में, जब महामारी की शुरुआत होती है तब पशुओं से वायरस इंसानों में ट्रांसफर होते हैं जो काफी मायने रखता है और इसके कई कारण हो सकते हैं. मेजबान शरीर में वायरस की प्रकृति और गतिशीलता (आरएनए वायरस जानवर या इंसान में जल्दी फैलते हैं ) इंसानों के स्वास्थ्य के लिए जोख़िम पैदा करती है. वायरस के मेजबान के विभिन्न कारक जैसे घनत्व, व्यवहार, संपर्क पैटर्न और प्रतिरक्षा का स्तर, वायरस के स्पिलओवर के जोख़िम को प्रभावित करते हैं. यही कारण है कि वायरस का प्रकोप मौसम, स्थान और जलवायु के अनुसार अलग-अलग असर पैदा करते हैं. रोगाणु की फैलने की क्षमता और विषैलापन भी महामारी में बदलने की संभावना को प्रभावित करते हैं.

सभी जूनोटिक संक्रामक रोग पशुओं के जरिए फैलते हैं, जो ‘वन हेल्थ’ परिप्रेक्ष्य को केंद्र में रखता है. ‘वन हेल्थ’ एक सहयोगी, बहुक्षेत्रीय और ट्रांसडिसिप्लिनरी दृष्टिकोण है जो स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तरों पर काम कर रहा है ताकि लोगों, जानवरों, पौधों और उनके साझा वातावरण के बीच अंतर्संबंध को पहचानने वाले स्वास्थ्य नतीजों को प्राप्त किया जा सके. यह इस बात की पहचान करता है कि लोगों, जानवरों और पर्यावरण का स्वास्थ्य एक दूसरे से जुड़ा हुआ है और एक दूसरे को प्रभावित करता है. सबसे अच्छे स्तर के मानव स्वास्थ्य को हासिल करने के लिए पौधों और जानवरों का अच्छा स्वास्थ्य होना सबसे ज़रूरी है.

जैसे ही मंकीपॉक्स का प्रकोप पश्चिमी देशों में फैलने लगा, उच्च आय वाले देशों ने बवेरियन नॉर्डिक द्वारा निर्मित चेचक वैक्सीन की डोज़ को सुरक्षित करना शुरू कर दिया लेकिन यह टीका अफ्रीका में कहीं भी उपलब्ध नहीं है, जहां के कई देशों में मंकीपॉक्स बहुत लंबे समय से महामारी बना हुआ है.

अफ्रीका में कई उभरती हुई और फिर से उभरने वाली संक्रामक बीमारियों का ख़तरा मौज़ूद है जो महाद्वीप की ख़राब स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के साथ इसके जोख़िम को और बढ़ाती है. सशस्त्र संघर्ष, शहरीकरण और वनों की कटाई जूनोटिक बीमारियों को फैलने और फैलाने के लिए बेहतर परिस्थितियां प्रदान करती हैं. ख़राब स्वच्छता, बढ़ती भुखमरी, उच्च जनसंख्या घनत्व और घटते जल स्रोत पैथोजन्स को इंसानी आबादी में फैलने के लिए सबसे अच्छी स्थिति पैदा करते हैं. अफ्रीका में वन हेल्थ नेटवर्क में बहुत अधिक सहयोग नहीं देखा जाता है. निगरानी और मूल्यांकन कार्यक्रमों के लिए ढ़ांचे की ज़रूरत होती है. बीमारियों की निगरानी, नियंत्रण और निगरानी के मामले में अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है. अफ्रीका को अपनी वन हेल्थ पहल के लिए ज़्यादातर पैसे महाद्वीप के बाहर से आते हैं और अफ्रीका में वन हेल्थ को टिकाऊ बनाने के लिए, जिसे बदलना भी ज़रूरी है, और इसे लोगों के बीच फैलाने और संस्था का दर्ज़ा दिलाने के लिए इस अवधारणा की वकालत करने के साथ-साथ इसे लेकर जागरूकता और संवाद बढ़ाने की आवश्यकता है. इतना ही नहीं, सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है. वन हेल्थ की सफलता के लिए विभिन्न क्षेत्रों के बीच सुशासन, मदद और सहयोग अफ्रीका में बेहद ज़रूरी कदम हैं.

क्या पहले अफ्रीका की अनदेखी की गई?

हाल ही में कई देशों में फैले मंकीपॉक्स का प्रकोप इस बात की ओर इशारा करता है कि अंतरराष्ट्रीय  समुदाय की ओर से अफ्रीका को कितना उपेक्षित और उसके साथ कितना अनुचित व्यवहार किया गया. मंकीपॉक्स का प्रकोप तो सिर्फ एक मिसाल भर है, जहां दुनिया ने अफ्रीका में बड़े पैमाने पर चल रही समस्याओं को नज़रअंदाज़ किया है. जैसे ही मंकीपॉक्स का प्रकोप पश्चिमी देशों में फैलने लगा, उच्च आय वाले देशों ने बवेरियन नॉर्डिक द्वारा निर्मित चेचक वैक्सीन की डोज़ को सुरक्षित करना शुरू कर दिया लेकिन यह टीका अफ्रीका में कहीं भी उपलब्ध नहीं है, जहां के कई देशों में मंकीपॉक्स बहुत लंबे समय से महामारी बना हुआ है. शोधकर्ताओं ने अपने निष्कर्षों को भी साझा किया है, जिसमें चेतावनी दी गई है कि उप-सहारा अफ्रीका में नए मामले उन लक्षणों के समान लक्षणों के साथ बढ़ रहे थे जो इस महामारी में देखे जाते हैं. 1 जनवरी 2020 और 28 नवंबर 2021 के बीच, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य ने एमपीएक्स के 9,175 मामलों की सूचना दी. दुर्भाग्य से, शोधकर्ताओं को जीनोमिक निगरानी उपकरण और फंड जैसे पर्याप्त संसाधन नहीं दिए गए थे. हालांकि इसके अन्य देशों में फैलने के बाद अधिकारियों ने ध्यान देना शुरू कर दिया है.

 जैसा कि कोविड-19 के साथ देखा गया है, अफ्रीका को टीकों, निदान, निगरानी और फंड के साथ भारी असमानताओं का सामना करना पड़ रहा है. कोविड-19 महामारी के दौरान भी अफ्रीका में वैक्सीन की असमानता थी. आवर वर्ल्ड इन डाटा के अनुसार, 1 जनवरी 2022 तक, जब दुनिया ओमिक्रॉन संक्रमण के साथ जूझ रही थी, ब्रिटेन ने पहले से ही हर 100 लोगों में से 50 को बूस्टर (तीसरी डोज़) शॉट्स लगवा दिए थे, जबकि यूरोप और अन्य उच्च आय वाले देशों ने क्रमशः हर 100 में से 24 और 25 लोगों को बूस्टर डोज़ दे दी थी. उस वक़्त तक अफ्रीका ने अपनी आबादी का केवल 8.99 प्रतिशत लोगों को ही पूरी तरह से टीका (दो डोज़) लगवाया था. जब अफ्रीका ने अपनी आबादी को आवश्यक दो टीका तक नहीं लगाया था तब उच्च आय वाले देश पहले से ही अपनी आबादी को तीसरी डोज़ देने में लगे थे. ओमिक्रॉन संक्रमण की पहचान के बाद अफ्रीका पर इसकी निगरानी के लिए इसकी सराहना करने के बजाय इसके ख़िलाफ़ यात्रा प्रतिबंध लगाए गए थे, जबकि उच्च आय वाले देशों में टीकाकरण दोगुना हो चुका था.

अफ्रीका में इबोला के प्रकोप के दौरान भी उच्च आय वाले देश अफ्रीका की वो मदद नहीं कर पाए जिसकी इसे ज़रूरत थी. यहां तक कि अफ्रीका में अंतरराष्ट्रीय  संगठन मेडेकिन्स संस फ्रंटियर्स (डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स) भी इबोला के प्रकोप का सामना बेहतर तरीक़े से नहीं कर पाए. इस संगठन ने तब अंतरराष्ट्रीय सहयोग का अनुरोध किया था. हालांकि उन्होंने अपनी रिपोर्ट में इसका ज़िक्र किया था कि जब तक मदद पहुंची तब ‘बहुत देर हो चुकी थी और यह बेहद कम थीपॉल फॉर्मर और जिम योंग किम, वैश्विक स्वास्थ्य को लेकर अपने काम में मशहूर हैं और स्वास्थ्य के क्षेत्र में गैर-लाभकारी भागीदारों के सह-संस्थापकों ने कहा कि अगर बीमारी ने संयुक्त राज्य अमेरिका के शहरों में अपना पैर फैलाया तो वहां की प्रभावी स्वास्थ्य प्रणालियों से इस बीमारी की रोकथाम मुमकिन हो पाती. उनका मानना है कि अगर अमीर देशों ने अफ्रीका में सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी होती तो बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है और मृत्यु दर को भी कम किया जा सकता है.

अफ्रीका में दूसरे संकट भी मौज़ूद हैं, जिनमें से अधिकांश दुनिया के बाकी हिस्सों में नहीं देखे जाते हैं. हिंसा, बढ़ती भुखमरी, और व्यापक विस्थापन, मिसाल के तौर पर ये कुछ संकट हैं. मीडिया का इन मुद्दों पर कम ध्यान देना भी इस ओर जागरूकता और फंड की गुंजाइश को कम करता है जिससे ये संकट और बढ़ते ही जाते हैं.


अफ्रीका में दूसरे संकट भी मौज़ूद हैं, जिनमें से अधिकांश दुनिया के बाकी हिस्सों में नहीं देखे जाते हैं. हिंसा, बढ़ती भुखमरी, और व्यापक विस्थापन, मिसाल के तौर पर ये कुछ संकट हैं. मीडिया का इन मुद्दों पर कम ध्यान देना भी इस ओर जागरूकता और फंड की गुंजाइश को कम करता है जिससे ये संकट और बढ़ते ही जाते हैं. यूक्रेन में जंग के जवाब में, अंतरराष्ट्रीय  प्रतिक्रिया त्वरित थी. रूस की आक्रामकता की निंदा करने के लिए कई देश एक साथ आए. निजी कंपनियों और सरकारों ने उदारतापूर्वक दान दिया जबकि मीडिया ने पूरे समय स्थिति को कवर किया. यूक्रेन में युद्ध ने अफ्रीका की समस्याओं से दुनिया का ध्यान और हटा दिया है. यूक्रेन के प्रति अंतरराष्ट्रीय  प्रतिक्रिया इस बात का एक बड़ा उदाहरण है कि संकट के दौरान एक राष्ट्र के लिए सहयोग और वैश्विक एकजुटता क्या कर सकती है. हमें अफ्रीका के लिए भी ऐसे ही करने की ज़रूरत है इसे आगे अनदेखा नहीं करना चाहिए. मंकीपॉक्स का प्रकोप अफ्रीका की उपेक्षा के लिए दुनिया द्वारा भुगतान की जा रही क़ीमत का सिर्फ एक छोटा सा उदाहरण है.

अनुसंधान के लिए धन की उपलब्धता, विशिष्ट परियोजनाओं में निवेश, स्वास्थ्य क्षेत्र में बुनियादी ढांचे में सुधार, जागरूकता पैदा करना और महाद्वीप के संकट पर ध्यान देकर एक और महामारी से बचा जा सकता है तो मौज़ूदा संकट से निपटने में मदद मिल सकती है. जैसा कि हमने मंकीपॉक्स के प्रकोप के दौरान देखा है कि यह दुनिया के किसी कोने तक फैल सकता है. ऐसे में कोविड-19 महामारी और मंकीपॉक्स का प्रकोप अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को वैश्विक एकजुटता की अहमियत सिखाता है क्योंकि अगर ऐसी स्थिति भी संकट नहीं मानी जाती है तो फिर शायद कुछ भी संकट की श्रेणी में नहीं हो fसकता है.

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