मोहल्ला क्लीनिकों को अक्सर दिल्ली की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था की ‘प्रथम रक्षा पंक्ति’ कहा जाता रहा है. यह योजना 2015 में पश्चिमी दिल्ली के पीरागढ़ी में अपनी शुरुआत के साथ ही मिलीजुली प्रतिक्रियाएं लेकर आयी. मोबाइल वैन या मोबाइल मेडिकल यूनिट (एमएमयू) के सफल मॉडल पर आधारित, इन क्लीनिकों की संख्या 2016 के 106 से बढ़कर 2022 में 519 हो गयी है. परामर्श, दवा, नैदानिक जांच (डायग्नोस्टिक्स), पैथोलॉजी टेस्ट की मुफ़्त सुविधा मुहैया कराने वाले, शून्य-लागत मॉडल पर आधारित इन क्लीनिकों को, क्षेत्रों व वर्गों के बीच स्वास्थ्य देखभाल की उपलब्धता में मौजूद खाई को पाटने के वास्ते, गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं प्रदान करने के लिए विकसित किया गया था.
क्रमिक-विकास को समाहित करना
2015 में अपनी शुरुआत से लेकर, ख़ुद को ज़्यादा सुलभ और समावेशी बनाने के वास्ते अधिक से अधिक जन-मित्र बनने के लिए, इन क्लीनिकों का अपने डिज़ाइन में नियमित बदलावों और सुधारों से गुज़रना जारी है. ‘सेंटर फॉर सिविल सोसाइटी’ ने इन क्लीनिकों के कामकाज के विश्लेषण की कोशिश करते हुए, 2016 में अपनी एक प्रारंभिक रिपोर्ट प्रकाशित की. इसने बताया कि किस तरह लोग ऐसे क्लीनिकों की लोकेशन के बारे में अनजान थे, लेकिन डॉक्टरों, दवाओं और जांच सुविधा की सुनिश्चित उपलब्धता पर उन्होंने सकारात्मक प्रतिक्रिया दिखायी. सितंबर-अक्टूबर 2016 के बीच, जब दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया का प्रकोप हुआ, तो ये सुविधाएं प्रकाश में आयीं और स्वास्थ्य जांच और पूर्ण लैब टेस्ट के लिए महत्वपूर्ण स्थल बन गयीं. इसे मोहल्ला क्लीनिक के लिए बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा गया और शहर को आपात स्थिति से राहत मिली.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) ने अपनी केस स्टडी (2017) में पाया कि लोग मुफ़्त इलाज से काफ़ी संतुष्ट थे. हालांकि, इस बात पर ज़ोर दिया गया कि चुनिंदा क्लीनिकों में डॉक्टरों का बार-बार बदलना चिंता का विषय था.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) ने अपनी केस स्टडी (2017) में पाया कि लोग मुफ़्त इलाज से काफ़ी संतुष्ट थे. हालांकि, इस बात पर ज़ोर दिया गया कि चुनिंदा क्लीनिकों में डॉक्टरों का बार-बार बदलना चिंता का विषय था. 2019 में, ‘आईडी इनसाइट’ ने पाया कि लोग इन क्लीनिकों की लोकेशन से ज़्यादा वाक़िफ़ हो रहे थे, जो इन क्लीनिकों की जनता के बीच बढ़ती लोकप्रियता को दिखा रहा था. इसकी पुष्टि सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज, लोकनीति द्वारा भी की गयी, जिसने कहा कि उत्तरदाताओं में से 31 फ़ीसद लोग या तो ख़ुद या उनके परिवार का कोई सदस्य बीते पांच सालों में कम से कम एक बार मोहल्ला क्लीनिक में ज़रूर गया. लहरिया (2017) के मुताबिक़, इन क्लीनिकों में वो डिजाइन विशेषताएं हैं जिन्हें कोई स्वास्थ्य व्यवस्था हासिल करना चाहती है, जैसे- अप्रशिक्षित प्रैक्टिशनरों को समाप्त करना; उच्चतर-स्तर की स्वास्थ्य सुविधाओं में भीड़ कम करना, ताकि उन व्यक्तियों के लिए विशेषज्ञ उपलब्ध हो सकें जिन्हें इनकी ज़रूरत है; स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने में कार्यकुशलता लाना. यही वो कारक है जो इन क्लीनिकों को लोकप्रिय, सर्वसुलभ और एक ऐसा विचार बनाता है जिसकी नकल अब कई दूसरे राज्यों द्वारा की जा रही है.
महामारी और क्लीनिक
कोविड-19 के प्रकोप ने दुनिया भर में सबसे मज़बूत स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्थाओं को भी पंगु बना दिया. भारत में भी इसी तरह की स्थिति देखी गयी, जहां काम के बोझ तली दबी स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था ज़रूरतें पूरी करने के लिए हाथ-पैर मार रही थी. दिल्ली में पूर्व के डेंगू और चिकनगुनिया संक्रमण के उलट, कोविड-19 ने इस व्यवस्था के लिए बड़ी बाधाएं खड़ी कीं, यहां तक कि मोहल्ला क्लीनिक भी भारी दबाव झेल रहे थे. डेल्टा वेरिएंट की लहर में शहर को आवश्यक दवाओं, ऑक्सीजन, और हॉस्पिटल बेड के लिए जूझते देखा गया. दिल्ली में, कोविड की पहली लहर के दौरान, इन क्लीनिकों ने महत्वपूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने में बेहद अहम भूमिका निभायी. बड़े संस्थानों और अस्पतालों ने ओपीडी सेवा बंद कर दी थी, लेकिन मोहल्ला क्लीनिक यह सेवा देते रहे. सुरक्षा उपकरणों के अभाव और वेतन भुगतान में देरी से जूझ रहे होने के बावजूद, इन सुविधाओं ने बहुत से लोगों के लिए स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं हासिल करने, साथ ही साथ कोविड जांच सेवा प्रदान करने के लिए ऐक्सेस प्वाइंट के रूप में बेहद अहम भूमिका निभायी.
वैश्विक स्वास्थ्य संकट से निपटने में जुटे डॉक्टर और स्वास्थ्य देखभाल कर्मी – व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) और अन्य उपकरणों के अभाव के साथ, सीमित संसाधनों की विपरीत परिस्थिति में व्यक्तियों, परिवारों और समुदायों को बचाने की कोशिश करते हुए – कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई में ख़ुद को असुरक्षित महसूस कर रहे थे. स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों के ख़िलाफ़ हिंसा का प्राथमिक कारण झूठी सूचनाओं से उत्पन्न डर था. ऐसे समय में, दिल्ली प्रशासन को इन क्लीनिकों तक जनता की पहुंच का इस्तेमाल न सिर्फ़ आम लोगों के बीच से डर और आतंक कम करने की ख़ातिर सूचनाओं के संप्रेषण के लिए करना चाहिए था, बल्कि झूठी सूचनाओं से लड़ने के लिए भी करना चाहिए था.
दिल्ली में, कोविड की पहली लहर के दौरान, इन क्लीनिकों ने महत्वपूर्ण प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने में बेहद अहम भूमिका निभायी. बड़े संस्थानों और अस्पतालों ने ओपीडी सेवा बंद कर दी थी, लेकिन मोहल्ला क्लीनिक यह सेवा देते रहे.
महामारी से लड़ने के दूसरी सरकारों के त्वरित क़दमों के उदाहरणों का अनुसरण करते हुए, दिल्ली में कई मोहल्ला क्लीनिकों ने कोविड-19 की लैबोरेट्री टेस्टिंग सेवाओं की पेशकश शुरू कर दी. इन क्लीनिकों में तैनात बहुत से कर्मी कोविड-19 संबंधी विभिन्न ड्यूटी, जैसे थोक बाज़ार में काम करने वाले लोगों की जांच करना, निभाने में मूल्यवान रहे हैं. यह बताता है कि मोहल्ला क्लीनिक का स्टाफ चिकित्सकीय ज़रूरत के वक़्त शहर के लिए एक बड़ा अतिरिक्त कार्यबल हो सकता है.
निष्कर्ष
विभिन्न देशों में प्रत्येक 2000-7000 की आबादी के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल (पीएचसी) सेवा डॉक्टरों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य टीम सदस्यों से लैस सामुदायिक क्लीनिकों के ज़रिये उपलब्ध करायी जाती है. हालांकि, भारत में प्रति 50,000 लोगों पर एक शहरी पीएचसी सुविधा है. नतीजतन, दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिकों की स्थापना ने फिजीशयन से लैस स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की उपलब्धता को पांच गुना विस्तृत किया. ग़रीबों और उपेक्षितों की ख़ातिर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की उपलब्धता और पहुंच का दायरा बढ़ाने के वास्ते इन क्लीनिकों की लोकेशन के लिए कम सुविधा वाले मोहल्लों को चुना गया. यह बताता है कि स्वास्थ्य सेवाओं को आबादी की ज़रूरत के अनुरूप बनाने और लोगों के क़रीब लाने से सरकारी स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था का उपयोग बेहतर हो सकता है और लोग उसकी ओर लौट सकते हैं. जिन महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों, प्रवासियों और व्यक्तियों की सरकारी अस्पतालों में मुफ़्त स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहले पहुंच नहीं थी उन्हें इन क्लीनिकों का लाभ उठाते देखा जाता है. यह स्वास्थ्य देखभाल में मौजूद उन असंतुलनों को दूर करने में मदद करता है जिन्हें हमारे समुदायों में ढके-छिपे ढंग से बढ़ावा दिया जाता है.
सौम्यजीत दास, सतविंदर सिंह बख्शी और सीपाना रमेश द्वारा पेश एक पेपर (2021) के मुताबिक़, महामारी और उसके बाद देशव्यापी लॉकडाउन के नतीजतन गैर-आपातकालीन मामलों में, लोगों के अस्पताल पहुंचने में बड़ी गिरावट आयी. ठीक उसी समय, भारत ने सभी विशेषज्ञताओं में टेली-परामर्श में 500 फ़ीसद की वृद्धि दर्ज की, जिनमें से 80 फ़ीसद उपभोक्ता पहली बार इस सेवा का इस्तेमाल कर रहे थे. भारत और दूसरे विकासशील देशों में, जहां दूर-दराज़ तक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को पहुंचाना बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों की कमी से बाधित होता है, टेलीमेडिसिन एक समाधान हो सकता है, जिसे ज़रूरतों के अनुकूल बनाने और एकीकृत करने में मोहल्ला क्लीनिक एक अत्यावश्यक भूमिका निभा सकते हैं. टेलीमेडिसिन का प्रचलन सफल बनाने के लिए ऐसे क्लीनिकों में किसी चिकित्सकीय विशेषज्ञ की तैनाती की ज़रूरत नहीं है. शारीरिक तंदुरुस्ती के साथ-साथ, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल (जिस पर ज़्यादा चर्चा नहीं होती है) को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए.
भारत और दूसरे विकासशील देशों में, जहां दूर-दराज़ तक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं को पहुंचाना बुनियादी ढांचे और कर्मचारियों की कमी से बाधित होता है, टेलीमेडिसिन एक समाधान हो सकता है, जिसे ज़रूरतों के अनुकूल बनाने और एकीकृत करने में मोहल्ला क्लीनिक एक अत्यावश्यक भूमिका निभा सकते हैं.
नयी दिल्ली के बाहर और भारत के समस्त मेट्रोपोलिटन क्षेत्रों में असाधारण सामुदायिक-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल उपलब्ध करा कर, आम आदमी मोहल्ला क्लीनिक एक बेहद अहम ज़रूरत को पूरा कर सकते हैं. इनके साथ तुलनीय मॉडलों का गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में परीक्षण किया जा रहा है. कोविड-19 ने दिखाया कि ये मोहल्ला क्लीनिक शहर के स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए अपने अलग रास्ते विकसित करते हैं. त्वरित प्रतिक्रिया प्रणाली, जिसकी मुख्य विशेषता फ़ौरन स्वास्थ्य परामर्श है, वह चीज़ है जो मोहल्ला क्लीनिकों को उन समुदायों के जीवन के लिए मूल्यवान और सुविधाजनक बनाती है जिन्हें इनकी सबसे अधिक आवश्यकता है. ये क्लीनिक देश में अपनी तरह के पहले हैं, और उनके द्वारा डाले जा रहे प्रभावों के मूल्यांकन से हमें उन उद्देश्यों को पूरा करने मे मदद मिलेगी जो हमारी सेवाओं को बेहतर बनायेंगे.
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