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कोरोना महामारी के बाद की दुनिया में समुद्री सुरक्षा को लेकर काम बढ़ रहे हैं और बजट में कमी आ रही है
पिछले दशक में कई चीजों ने समुद्री सुरक्षा की सूरत बदली. और एशिया में तो हमेशा से ही समुद्री सुरक्षा चुनौतीपूर्ण रही है. इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा में जुटी एजेंसियों को कई पारंपरिक और गैर-पारंपरिक मसलों से जूझना पड़ता है. इससे उनका काम बेहद मुश्किल हो जाता है. इसके बावजूद हाल के वर्षों में जो घटनाक्रम सामने आए हैं, उनसे समुद्री सुरक्षा के लिए बढ़ते ख़तरे और मुश्किलात का संकेत मिलता है. पिछले दशक में सोमालिया के समुद्री लुटेरों के ख़िलाफ़ कुछ सफलता ज़रूर मिली, लेकिन इस क्षेत्र की नौसेनाएं नशीली दवाओं, स्मगलिंग, हथियारबंद लुटेरों, मानव तस्करी और यहां तक कि अवैध आप्रवास को रोकने में संघर्ष करती दिखीं. समुद्री आतंकवाद के सिर उठाने के कारण इनका काम और कठिन हो गया है. मुंबई में 26/11 के आतंकवादी हमलों के बाद समुद्री क्षेत्र में पारंपरिक और अनियमित गतिविधियों के बीच का फर्क धीरे-धीरे मिटता गया है. इसने एक ‘हाइब्रिड’ कैटेगरी को जन्म दिया, जिसमें सरकार और बाहरी तत्वों ने मिलकर दूसरे देशों की चुनौतियां कई प्रत्यक्ष और कई परोक्ष गतिविधियों से बढ़ाई हैं. उनकी नजर खासतौर पर उन देशों की कमजोरियों पर है. इन ख़तरों के कारण कइयों को समुद्र में दूरदराज के मिशन से संसाधनों को हटाकर तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा में लगाना पड़ा है.]
सबसे बड़ी चुनौती मरीन गवर्नेंस को लेकर सामने आई है, ख़ासतौर पर जिस तरह से सरकारें ज़रूरत से ज़्यादा मछली मारने की समस्या सुलझाने में नाकाम रही हैं
इनमें सबसे बड़ी चुनौती मरीन गवर्नेंस को लेकर सामने आई है, ख़ासतौर पर जिस तरह से सरकारें ज़रूरत से ज़्यादा मछली मारने की समस्या सुलझाने में नाकाम रही हैं, उससे एक खीझ पैदा हुई है. यह मसला सिर्फ अवैध और संसाधनों के अत्यधिक दोहन तक सीमित नहीं है. ग़लत नीतियां और उन्हें लागू करने में लापरवाही, ख़ासतौर पर मछुआरे समुदाय को दी जा रही बड़ी सब्सिडी के कारण इस तरह से फिशिंग की जा रही है, जो टिकाऊ साबित नहीं हो सकती. इतना नहीं नहीं, समुद्र में अम्ल की मात्रा और समुद्री प्रदूषण अप्रत्याशित स्तर तक जा पहुंचा है. मॉरीशस के पास समुद्र में हाल ही में तेल फैलना इस बात का सबूत है कि समुद्र में रहने वाले जीवों के लिए जहाज़ों से होने वाला प्रदूषण कितना ख़तरनाक साबित हो रहा है. इस पूरे मामले में एक पेच और है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्र में तैनात नौसैनिकों को राहत कार्यों और आपदा राहत के लिए बार-बार लगाया जा रहा है. इतना ही नहीं, समुद्र में फंसे लोगों को निकालने और सर्च-रेस्क्यू मिशन में भी उनकी तैनाती की जा रही है.
इसमें कोई शक नहीं कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए आक्रामक चीन सबसे बड़ी चुनौती है. वह इस क्षेत्र की शांति और स्थिरता के लिए संकट खड़ा कर सकता है. 2008 के बाद से जब चीन ने समुद्री डाकुओं से निपटने के लिए एडेन की खाड़ी में पहली बार अपने युद्धपोत भेजे थे, पीपल्स लिबरेशन आर्मी की नौसेना (PLAN) की तैनाती तटीय इलाकों में कहीं अधिक बढ़ी है. इसके साथ विवादास्पद समुद्री इलाकों पर चीन के दावा करने की कोशिशें भी बढ़ी हैं. इस मामले में दक्षिण चीन सागर की मिसाल की जा सकती है. परेशानी की बात यह है कि चीन अंडरसी फीचर्स पर हक जता रहा है और वह ‘ग्रे-जोन’ ऑपरेशंस के लिए स्ट्रैटेजिक आउटपोस्ट्स बना रहा है. मलेशिया, फिलीपींस, इंडोनेशिया, वियतनाम और जापान की समुद्री सीमा में चीन की गतिविधियां जिस तरह से बढ़ी हैं, उन्हें देखकर लगता है कि वह इन देशों को डराने की कोशिश कर रहा है. वह यहां विवादास्पद समुद्री क्षेत्रों में अपना दबदबा कायम करना चाहता है. यही कारण है कि इनमें से कई देश अमेरिका के करीब हो गए हैं. उन्हें लगता है कि चीन की आक्रामकता का जवाब अमेरिका ही हो सकता है. इसी से क्षेत्र में संतुलन कायम होगा. चीन की सेना ने हिंद महासागर में भी दख़ल बढ़ाया है. वह यहां पनडुब्बियां तैनात कर रहा है और जिबूति में वह लॉजिस्टिक्स बेस भी तैयार कर रहा है.
परेशानी की बात यह है कि चीन अंडरसी फीचर्स पर हक जता रहा है और वह ‘ग्रे-जोन’ ऑपरेशंस के लिए स्ट्रैटेजिक आउटपोस्ट्स बना रहा है.
भारत की चिंता इस बात से और बढ़ी है कि चीन हिंद महासागर में सेशेल्स और मालद्वीव जैसे देशों को अपने झांसे में लेने की कोशिश कर रहा है। वह इसके लिए वहां इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहा है और उन्हें वित्तीय मदद की पेशकश भी उसने की है. दक्षिण एशिया में बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) के ज़रिये दखल बढ़ाकर चीन ने बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका और पाकिस्तान पर अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश की है. इसके लिए उसने इन देशों को हथियारों की सप्लाई तक का वादा किया है. इस बीच, हिंद महासागर में चीन की असैन्य मौजूदगी काफ़ी ज़्यादा बढ़ी है. चीन के रिसर्च करने वाले जहाज, टोही जहाज और मछली मारने वाले नावों का बेड़ा नियमित तौर पर यहां आते रहता है. इससे पता चलता है कि रणनीतिक तौर पर इस क्षेत्र के लिए चीन की क्या अहमियत है. हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों ने अपने तटीय इलाकों की सुरक्षा के लिए एक व्यापक समझौते में दिलचस्पी दिखाई है.
जो लोग ‘नियमों पर आधारित सुरक्षा व्यवस्था’ की बात करते हैं, उन्होंने मिल-जुलकर समुद्री रास्तों को खोले रखने के उपाय लागू करने को कहा है. वे तटीय क्षेत्रों में राडार चेन, सैटेलाइट सिस्टम्स और इंफॉर्मेशन फ्यूजन सेंटरों के जरिये बेहतर जानकारी रखने के हिमायती भी हैं. हिंद महासागर में भारतीय नौसेना सुरक्षा देने में अगुवा रही है और वह अलग-अलग एजेंसियों के साथ बेहतर तालमेल की भी कोशिश कर रही है. इस क्षेत्र में किसी भी स्थिति से बेहतर ढंग से निपटने के लिए उसने छोटे पार्टनरों के साथ क्षमता विकसित करने की भी बात कही है.
भारत की चिंता इस बात से और बढ़ी है कि चीन हिंद महासागर में सेशेल्स और मालद्वीव जैसे देशों को अपने झांसे में लेने की कोशिश कर रहा है। वह इसके लिए वहां इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहा है और उन्हें वित्तीय मदद की पेशकश भी उसने की है.
इन चुनौतियों के बीच और महामारी के बाद की दुनिया में काम बढ़ रहे हैं और बजट कम होता जा रहा है. ऐसे में समुद्र में मुश्किलात बढ़ रहे हैं. ऐसे में यह बताना नामुमकिन है कि हाल के बरसों में सुरक्षा उपायों को लेकर जो तेजी दिख रही थी, क्या वह भविष्य में भी जारी रह पाएगी?
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A former naval officer Abhijit Singh Visiting Fellow at ORF. A maritime professional with specialist and command experience in front-line Indian naval ships he has been ...
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