हाल के दिनों में हिंद महासागर क्षेत्र कई तरह के बदलावों का गवाह बना हुआ है. इतना ही नहीं इस क्षेत्र में लगातार जारी वर्चस्व की जंग और बाहरी शक्तियों की अपनी मौजूदगी का अहसास कराने की कोशिशों के चलते इस क्षेत्र में तमाम तरह की खींच-तान पैदा हो गई हैं. यह क्षेत्र कई अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों जैसे पाइरेसी, स्मगलिंग, अवैध तरीके से मछली पकड़ने समेत समुद्री जलस्तर का बढ़ना, कुदरती आपदा और मैरिटाइम आतंकवाद जैसी समस्याओं से इन दिनों दो चार हो रहा है. ऐसे में इन चुनौतियों के लिए सक्रिय रूप से मैरिटाइम नीतियां और प्रतिक्रिया की आवश्यकता है. लिहाज़ा हिंद महासागर क्षेत्र में एक ताक़तवर शक्ति के तौर पर भारत के लिए यह ख़ासतौर पर ज़रूरी है कि वह नौसेना क्षमताओं को विकसित कर इस क्षेत्र में मैरिटाइम वातावरण को सुनिश्चित करे.
इस कोशिश में भारतीय नौसेना ने सक्रिय रूप से हिंद महासागर क्षेत्र के तटवर्ती इलाकों में क्षमता विकसित करने के लिए एक जैसी मानसिकता रखने वाले देशों के साथ संबंध जोड़े हैं. इसका मकसद सामुहिक मैरिटाइम काबिलियत को विकसित करना है जिससे सागर (सिक्युरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन) को इस क्षेत्र में जन्म दिया जा सके. चूंकि, सामुद्रिक क्षेत्र का विशाल विस्तार पूरी दुनिया के लिए सामूहिक सीमा है लिहाज़ा यह अंतर्भूत हित का विषय है कि इस क्षेत्र में क्षमताओं को विकसित करने के लिए एक तरह की सोच रखने वाले मुल्कों के साथ सहयोग और समन्वय को बढ़ावा देना चाहिए.
दोनों क़रीबी मैरिटाइम पड़ोसियों जैसे भारत और दक्षिण अफ्रीका के लिए एक दूसरे के साथ मजबूत मैरिटाइम समझौता करने की ज़रूरत है. इसका फाय़दा यह होगा कि इस क्षेत्र में आने वाले देशों के साथ भारत मजबूत राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्ते विकसित कर सकेगा जो अफ्रीका में भारत की पहुंच को और बढ़ाएगा.
पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र(डब्ल्यूआईओआर) एक विकसित होती समुद्री सीमा है जहां पूर्वी अफ्रीकी समुद्र तटीय क्षेत्र के साथ-साथ कई अफ्रीकी हिंद महासागर द्वीप भी शामिल हैं. 2000 दशक की शुरुआत के साथ ही नए और अंतर्राष्ट्रीय मैरिटाइम सुरक्षा चुनौतियों के खड़े होने की वजह से पश्चिमी भारतीय समुद्री क्षेत्र पूरी दुनिया का ध्यान खींचने लगा. पश्चिमी भारतीय समुद्री क्षेत्र जियोस्ट्रैटजिक और जियोइकोनॉमिक दोनों ही दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण है. इस क्षेत्र में कई तरह की मरीन बॉयोडाइवर्सिटी पैदा होती है और इस समुद्री इलाके से दुनिया के कई बडे तेल के जहाज और कंटेनरों का आना जाना होता है. दशकों तक भारतीय जहाज और कारोबारियों ने पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र की सीमा को लांघा है और इस क्षेत्र के देशों के साथ मैरिटाइम कारोबार को अंजाम दिया है. इसलिए दोनों क़रीबी मैरिटाइम पड़ोसियों जैसे भारत और दक्षिण अफ्रीका के लिए एक दूसरे के साथ मजबूत मैरिटाइम समझौता करने की ज़रूरत है. इसका फाय़दा यह होगा कि इस क्षेत्र में आने वाले देशों के साथ भारत मजबूत राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्ते विकसित कर सकेगा जो अफ्रीका में भारत की पहुंच को और बढ़ाएगा.
अब तक भारत का रुख़ और चुनौतियां
तटवर्ती क्षेत्र में पड़ने वाले देशों के साथ मजबूत कारोबारी संबंधों और इस क्षेत्र को विस्तारित पड़ोसी के रूप में देखने के बावजूद पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र भारतीय मैरिटाइम सुरक्षा को लेकर बेहद कम ध्यान अपनी ओर खींच पाया है. इस क्षेत्र में भारत की संलिप्तता कुदरती तौर पर बेहद औपचारिक है और साल 2002 से ही यह एंटी पाइरेसी निरीक्षण तक सीमित है. जिसके तहत अफ्रीकी सैन्य कर्मचारियों, रक्षा अधिकारी और नागरिक कर्मचारी, जो भारतीय संस्थानों में मैरिटाइम प्रशासन, गुडविल पोर्ट कॉल्स, मॉनिटरिंग स्टेशन को विकसित करने और हाइड्रो-ग्राफिक्स सर्वे करने से जुड़े होते हैं,उन्हें ट्रेनिंग देना शामिल है.
इसके अतिरिक्त संसाधनों की सुरक्षा भी एक ऐसा विषय है जिसे लेकर पश्चिम हिंद महासागर क्षेत्र में भारत सरकार सक्रिय है. समुद्र के अंदर विशाल प्राकृतिक संसाधन संपदा की मौजूदगी के साथ-साथ मूल्यवान संसाधनों ने भी इस क्षेत्र में भारत को आकर्षित किया है. अफ्रीकी देश जैसे तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका में मूल्यवान कुदरती संसाधनों का विशाल भंडार है. यही वजह है कि कई निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने इन मुल्कों के अलग-अलग सेक्टर में निवेश किया है जिसमें खुदाई योग्य कुदरती संपदा से जुड़े सेक्टर भी शामिल हैं.
कई पश्चिमी भारतीय समुद्र तटीय इलाके के देश इंडियन ओसन रिम एसोसिएशन(आईओआरए)के सदस्य हैं तो ये इंडियन ओशियन नैवल सिम्पोजियम(आईओएनएस)में साझेदारी भी करते हैं. इस तरह का सहयोग नौसेनाओं में पारस्परिकता को बढ़ावा देता है और सामान्य नियम और मानदंड को सुनिश्चित करने में सहयोग देता है. हाल ही में भारत दो क्षेत्रीय संगठनों का ऑब्ज़र्वर बना है – द इंडियन ओशियन कमीशन (सीओआई) और ज़िबूती कोड ऑफ़ कंडक्ट (डीसीऔसी) और इसके साल 2017 के जेद्दा सुधारों में भी भारत शामिल हुआ है.
अफ्रीकी देशों के साथ भारतीय नौसेना की सक्रियता को लेकर भी कई चुनौतियां और सीमाएं हैं. पहले से ज़्यादा तक़नीकी रूप से विकसित और नेटवर्क में बेहतर भारतीय नौसेना अभी भी बज़ट की कमी से जूझ रही है. यही वज़ह है कि भारतीय नौसेना के परिलक्षित लक्ष्यों और उसकी आपूर्ति में एक बड़ा अंतर देखा जाता है.
अफ्रीकी देशों के साथ भारतीय नौसेना की सक्रियता को लेकर भी कई चुनौतियां और सीमाएं हैं. पहले से ज़्यादा तक़नीकी रूप से विकसित और नेटवर्क में बेहतर भारतीय नौसेना अभी भी बज़ट की कमी से जूझ रही है. यही वज़ह है कि भारतीय नौसेना के परिलक्षित लक्ष्यों और उसकी आपूर्ति में एक बड़ा अंतर देखा जाता है. भारत के तीनों सेनाओं में नौसेना के लिए सबसे कम बज़ट का आवंटन किया जाता रहा है. मसलन, इस साल भारत के रक्षा बज़ट(2021-2022) में भारतीय नौसेना के लिए 33,253 करोड़ रु का आवंटन किया गया जबकि भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना के लिए क्रमश: 36,481 और 53,214 करोड़ रु.का आवंटन किया गया. इतना ही नहीं भारतीय नौसेना के लिए यह भी ज़रूरी है कि वो अपने संसाधनों के आवंटन की प्रक्रिया में सुधार करे. भारतीय नौसेना के लिए यह आवश्यक है कि वह विदेशी मदद के लिए जो राशि प्राप्त कर रहा है उसे वह प्रासंगिक एजेंसियों के साथ साझा करे.
आगे की ओर बढ़ना
हिंद महासागर क्षेत्र में भारतीय नौसेना की सक्रियता का मकसद हमेशा से दोस्ताना, समावेशी और मददगार संबंधों को बढ़ावा देने का रहा है. हालांकि, साल 2000 की शुरुआत से पाइरेसी में बढ़ोतरी को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंताओं के बढ़ने और समुद्री सीमा के साथ-साथ सामुद्रिक कारोबारी रूट को सुनिश्चित करने की प्राथमिकता बढ़ती गई. इसी वजह से पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सक्रियता हाल के दिनों में ज्य़ादा बढ़ गई. अफ्रीकी क्षेत्र में अपराध के लगातार बदलते स्वरूप, कई तरह की गैर-पारंपरिक धमकियां और क्षमता को लेकर कमी की वजह से अब भारत की पश्चिमी भारतीय समुद्री क्षेत्र में सक्रियता कई तरह से बदल गई हैं. भारत लगातार इस बात पर ज़ोर दे रहा है कि वो अपने जैसी सोच रखने वाले तटीय क्षेत्र के मुल्कों के साथ आर्थिक क्षेत्र के साथ-साथ महादेशीय सीमा की रक्षा, नौसेना हार्डवेयर के हस्तानांतरण और सर्वश्रेष्ठ तरीकों को साझा करने की प्राथमिकता को शामिल कर सके.
हालांकि,पश्चिम हिंद महासागर सीमा में लंबे समय से मौजूदगी के बावजूद भारत अभी तक समुद्र तटीय मुल्कों के साथ अपने बेहतर राजनीतिक,कूटनीतिक और कारोबारी रिश्तों का फायदा नहीं उठा पाया है. जबकि अफ्रीकी देश लगातार भारत को इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि वो इस क्षेत्र में सुरक्षा मुहैया कराने की जिम्मेदारी का निर्वहन कर सके. इस लिहाज़ से भारत की सक्रियता अफ्रीकी मुल्कों की ज़रूरतों और प्राथमिकताओं के आधार पर तय की जानी चाहिए जैसा कि 2050 के अफ्रीका इंटीग्रेटेड मैरिटाइम(एआईएम)स्ट्रैटजी के तहत रेखांकित किया गया है. अफ्रीकी देशों के साथ मैरिटाइम सुरक्षा सहयोग को सख्त सुरक्षा सहयोग की नजरों से देखना अनुत्पादक भी हो सकता है.
जैसा कि भारत को जहाज़ बनाने में महारथ हासिल है तो ऐसे में अफ्रीकी मुल्कों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा पेट्रोल वेसल बनाने के लिए भारतीय शिप-बिल्डिंग कंपनियों के साथ करार किया जाना चाहिए.
इसे ध्यान में रखते हुए पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सक्रियता तीन आयामों के इर्द-गिर्द घूमना चाहिए जिसमें भारतीय नौसेना को पर्याप्त अनुभव भी हासिल है.
(1.) क्षमता में विकास करना: हाल के वर्षों में क्षमता में विकास करने संबंधी परियोजनाओं के लिए पश्चिम हिंद महासागर क्षेत्र एक प्रयोगशाला के तौर पर उभरा है जो सोमालिया आधारित पाइरेसी की घटनाओं में बढ़ोतरी का नतीजा है. क्षमता में विकास अब विकासशील सहयोग, शांति बहाली और सुरक्षा क्षेत्र में सुधारों को लेकर एक उभरता हुआ विकल्प है. पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सक्रियता की कोशिशों से क्षेत्रीय स्तर पर मैरिटाइम असुरक्षा की चुनौतियों का सामना किया जा रहा है जिससे क्षेत्रीय इलाको में टिकाऊ आर्थिक विकास के लक्ष्यों को पूरा किया जा सके. भारत ने हमेशा से मॉरिशस, शेसिल्स,मैडागास्कर और मॉज़िम्बिक जैसे देशों को सस्ते में क़र्ज़ उपलब्ध कराया है जिससे कि वो अपनी मैरिटाइम क्षमताओं को विकसित कर सकें.भारत ने इन मुल्कों को ऑफशोर पेट्रोल वेसल(ओपीवी,फास्ट इंटरसेप्टर बोट्स(एफआईबी)और डॉर्नियर डू 228 सर्विलांस एयरक्राफ्ट गिफ्ट़ किया है.
जैसा कि भारत को जहाज़ बनाने में महारथ हासिल है तो ऐसे में अफ्रीकी मुल्कों के साथ ज़्यादा से ज़्यादा पेट्रोल वेसल बनाने के लिए भारतीय शिप-बिल्डिंग कंपनियों के साथ करार किया जाना चाहिए. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मद्रास के जरिए भारत मॉरिशस और शेसेल्स जैसे मुल्कों के लिए कोस्टल मैनेजमेंट और कोस्टल इंजीनियरिंग तकनीक जैसे विषयों को लेकर पाठ्यक्रम चलाता है. इसके अतिरिक्त भारत आईयूयी फिशिंग से संबधित कानूनी प्रस्तावों, एमपीए और एलएमएमए को बचाना जैसे विषयों पर थीम आधारित सेमिनार का भी आयोजन करता रहा है. यही नहीं सोमालिया जैसे देश के लिए मछली पालन प्रबंधन जैसे विषयों पर भारत वर्कशॉप का भी आयोजन करता रहा है. ऐसी गतिविधियां ख़ासतौर पर अफ्रीकी मुल्कों के हित में है जिनकी मैरिटाइम क्षमता विकसित करने की शक्ति सीमित है. चूंकि, अफीक्री देशों को डोमेन विशेषज्ञता की बेहद ज़रूरत है लिहाज़ा भारत सेवानिवृत नौसेना और कोस्ट गार्ड्स के अधिकारियों को भेज कर नए आयाम की तलाश कर सकता है और जो अफ्रीकी नौसेना और ज़मीन पर मौजूद सैनिकों को ट्रेनिंग दे सके.
(2) सूचना को साझा करना: प्रभावी मैरिटाइम एनफोर्समेंट कैपेसिटी को प्राप्त करने के लिए मज़बूत मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस एक प्राथमिक ज़रूरत है. मैरीन सुरक्षा, मुश्किल में पड़ी जहाज़ की रक्षा करना हो, विदेशी जहाजों द्वारा अवैध कब्ज़े को नाकाम करने जैसे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मुल्कों को बहुआयामी सूचनाओं को साझा करने पर ज़ोर देना चाहिए. यह भारत और पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र के मुल्कों के लिए एक अवसर प्रदान करता है जिससे कि वो सहयोगात्मक और सामूहिक जुड़ाव पैदा कर सकें जिससे भारतीय समुद्री क्षेत्र में सामान्य ऑपरेशनल तस्वीर पैदा की जा सके और क्षेत्रीय मैरिटाइम चुनौतियों का सामना किया जा सके. हिंद महासागर में पहले से ही भारत 21 मुल्कों के साथ व्हाइट शिपिंग समझौते में शामिल है. इतना ही नहीं मैडागास्कर के रीजनल मैरिटाइम इन्फॉर्मेशन फ्यूजन सेंटर (आरएमआईएफसी) और अबू धाबी के हरमूज स्ट्रेट के यूरोपियन मैरिटाइम अवेयरनेस के लिए भारत नौसेना लाइजन अधिकारी भेजता रहा है. फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों, जिनके साथ भारत ने मैरिटाइम खुफ़िया सूचनाओं को साझा करने के लिए समझौता किया है, वह भी पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सक्रियता के लिए ज़रूरी है. हाल ही में भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में संदिग्ध गतिविधियों वाले जहाज़ों को पकड़ने के लिए सिंधु नेत्र सैटेलाइट को लॉन्च किया है. इसी प्रकार भारत भी अफ्ऱीकी मुल्कों जैसे दक्षिण अफ्रीका, केन्या, तंजानिया, मोजाम्बिक, और मेडागास्कर को भारत के इन्फॉर्मेशन फ्यूजन सेंटर में हिंद महासागर क्षेत्र((आईएफसी-आईओआऱ) के लिए लाइज़न अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए कहा है.
प्रभावी मैरिटाइम एनफोर्समेंट कैपेसिटी को प्राप्त करने के लिए मज़बूत मैरिटाइम डोमेन अवेयरनेस एक प्राथमिक ज़रूरत है. मैरीन सुरक्षा, मुश्किल में पड़ी जहाज़ की रक्षा करना हो, विदेशी जहाजों द्वारा अवैध कब्ज़े को नाकाम करने जैसे लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मुल्कों को बहुआयामी सूचनाओं को साझा करने पर ज़ोर देना चाहिए.
(3.) मानवीय मदद और आपदा राहत (एचएडीआर): भारतीय नौसेना की प्रमुख भूमिकाओं में से एक गैर पारंपरिक चुनौतियों का सामना करना है जिसे वह एचएडीआर, एनईओ और एसएआर जैसे ऑपरेशन्स के जरिए पूरा करती है. हिंद महासागर क्षेत्र और इसके परिक्षेत्र जो सूनामी, भूकंप, बाढ़ और तूफान जैसी कुदरती आपदाओं के लिए जाना जाता है ( मेडागास्कर में डियाने, मोजाम्बिक में इदाई तूफान ) और मानव निर्मित आपदा जैसे साल 2020 में एमवी वाकाशिवो से तेल निकलने की घटनाओं के लिए भारतीय नौसेना को तैयार रहने की जरूरत है. बिना इस बात की पहचान किए कि कौन सी आपदा कुदरती और कौन सी मानव निर्मित है भारत नौसेना ने अभी तक हितकारी भूमिका में ख़ुद को खड़ा किया है. और अपने समुद्रीय पड़ोसियों के हितों की रक्षा के लिए अपने संसाधनों का इस्तेमाल किया है. भारत की सागर(एसएजीएआऱ) परियोजना के तहत भारतीय नौसेना की प्राथमिक जिम्मेदारियो में से एक एचएडीआर ऑपरेशन को अंजाम देना है. कुदरती आपदा की स्थिति में अपने मिशन आधारित पैटर्न पर जहाजों को प्रभावित जगह पर भेजने से भारतीय नौसेना ने पहले प्रतिक्रिया देने वाली भूमिका अपनाई है. भारत की एचएडीआर ऑपरेशन का फायदा कई अफ्रीकी मुल्कों को हुआ है. मेडागास्कर में जब भारत ने एचएडीआर ऑपरेशन के तहत ऑपरेशन वनीला को अंजाम दिया तब इसका लाभ वहां के लोगों को पहुंचा. यहां तक कि वाकाशिवो तेल फैलाव की घटना के दौरान भी भारत ने फौरन अपनी तकनीकी टीम को ख़ास तरह के औजारों जैसे ब्लोअर, बूम्स और स्कीमर्स के साथ सबसे पहले भेजा धा जिससे समुद्र में फैले तेल को साफ किया जा सके.
पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र(डब्ल्यूआईओ)के मरीन और तटीय क्षेत्रों की पारिस्थितिकी तंत्र संसाधनों से भरे और अलग होने के बावजूद काफी कमज़ोर है. यह पूरा क्षेत्र कुदरती आपदाओं को लेकर बेहद संवेदनशील है और किसी भी तरह की कुदरती आपदा यहां की पारिस्थितिकी तंत्र को हमेशा के लिए नुक़सान पहुंचा सकती है. स्थानीय अधिकारियों के साथ ज़मीनी स्तर पर जुड़ाव के ज़रिए इस क्षेत्र में कुदरती आपदाओं के ज़ोखिम को कम किया जा सकता है. इसमें दो राय नहीं कि अब जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में विकास लगातार हो रहा है तो ऐसे में पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की सक्रियता इसके एचीएडीआर ऑपरेशन के ज़रिए भविष्य में और बढ़ेंगी.
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