Published on Oct 17, 2022 Updated 0 Hours ago

काम-काज के दौरान काजल और साजिदा महिलाओं को टीकाकरण, स्वास्थ्य एवं पोषण के बारे में सूचना देती थीं और उन्हें MIRA के चैनल पर वीडियो दिखाकर स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े अलग-अलग मुद्दों के बारे में शिक्षित करती थीं. साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के लिए सक्षम बनाती थीं.

काजल और साजिदा ख़ान: मेवात में टेक्नोलॉजी की नायिकाएं

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हरियाणा के मेवात ज़िले का लोक कथाओं और कविताओं से सदियों पुराना नाता है. कई इतिहासकार इस बात की तरफ़ ध्यान दिलाते हैं कि मेवात के लिखित इतिहास का स्रोत लोक कथाएं और सूफ़ियों (मुस्लिम धार्मिक कवि) एवं संतों के गाने हैं. मौजूदा समय में ज़िले की दो नव युवतियां काजल (23) और साजिदा ख़ान (29) कहानी सुनाने की इस परंपरा का इस्तेमाल समाज की मदद करने में कर रही हैं लेकिन इसमें उन्होंने थोड़ा सा डिजिटल बदलाव किया है.

काजल और साजिदा दिन भर में पुन्हाना और नगीना ब्लॉक के कम-से-कम 15 घरों का दौरा करती हैं और वहां मोबाइल पर डिजिटल स्टोरीटेलिंग प्लैटफॉर्म के ज़रिए ‘प्यारा मुन्ना’ नाम की कहानी दिखाती हैं. इस कहानी में बचपन में होने वाले निमोनिया के अलग-अलग लक्षणों के बारे में बताने के साथ-साथ ये भी कहा गया है कि गांव के स्थानीय डॉक्टर के पास जाने के बदले मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य केंद्र में इलाज करवाना क्यों ज़रूरी है. 2019 से दोनों युवतियां आस-पास की महिलाओं को सूचनाएं मुहैया कराकर और मां-बच्चे के स्वास्थ्य, टीकाकरण, परिवार कल्याण और तपेदिक (टीबी) जैसी बीमारी के इलाज के लिए स्वास्थ्य केंद्रों से उन्हें जोड़कर उनकी मदद कर रही हैं.

काजल और साजिदा दिन भर में पुन्हाना और नगीना ब्लॉक के कम-से-कम 15 घरों का दौरा करती हैं और वहां मोबाइल पर डिजिटल स्टोरीटेलिंग प्लैटफॉर्म के ज़रिए ‘प्यारा मुन्ना’ नाम की कहानी दिखाती हैं. इस कहानी में बचपन में होने वाले निमोनिया के अलग-अलग लक्षणों के बारे में बताने के साथ-साथ ये भी कहा गया है कि गांव के स्थानीय डॉक्टर के पास जाने के बदले मान्यता प्राप्त स्वास्थ्य केंद्र में इलाज करवाना क्यों ज़रूरी है.

वर्तमान में मेवात को भारत सरकार के द्वारा ‘आकांक्षी ज़िले’ का दर्जा दिया गया है. सरकार ने जनवरी 2018 में आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम की शुरुआत की थी ताकि देश के अलग-अलग हिस्सों में सबसे ज़्यादा पिछड़े 112 ज़िलों में प्रगति तेज़ करके उनका कायाकल्प किया जा सके. [i] इस कार्यक्रम का हिस्सा बने दूसरे कई अन्य ज़िलों की तरह  मेवात भी बहुआयामी ग़रीबी के सूचकों की रैंकिंग में नीचे है. इन सूचकों में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर में प्रगति शामिल हैं.

साजिदा और काजल इन मुश्किल हालात के बीच समाज के दूसरे लोगों की मदद के लिए आगे बढ़ी हैं. वो ग्रामीण हरियाणा की उन 44 प्रतिशत महिलाओं में शामिल हैं जिन्होंने 10वीं या उससे ज़्यादा पढ़ाई की है [ii] और ग्रामीण मेवात की उन 34 प्रतिशत महिलाओं में से हैं जो शिक्षित हैं. [iii] साजिदा और काजल ने अंडरग्रैजुएट डिग्री पूरी की है. इसके अलावा, साजिदा ने जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी (GNM) कोर्स किया है जबकि काजल वर्तमान में ये कोर्स कर रही है.

साजिदा याद करती है कि स्कूल के दौरान उसकी क्लास में उसके अलावा सिर्फ़ एक या दो लड़कियां थीं. वो कहती है, “जब मैं स्कूल में पढ़ती थी तो मेवात में लड़कियों को खुले ढंग से घर से बाहर आने-जाने या फिर पढ़ने की इजाज़त नहीं थी. अगर मेरे पिता नहीं होते तो मेरी छह बहनों में से कोई भी आज पढ़ी-लिखी नहीं होती.” स्थानीय स्वास्थ्य विभाग में ड्राइवर साजिदा के पिता ने परिवार और समाज की परवाह नहीं करते हुए अपनी बेटियों को पढ़ाया और उन्हें अपनी अंडरग्रैजुएट डिग्री पूरी करने के लिए प्रोत्साहित किया.

वहीं चार भाई-बहनों (तीन बहन और एक भाई) में सबसे बड़ी काजल एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखती है. काजल के पिता मज़दूरी करते हैं जबकि उसकी मां घरेलू महिला हैं. लेकिन इसके बावजूद काजल के माता-पिता ने पढ़ाई के लिए उसे प्रोत्साहित किया. काजल याद करते हुए कहती है, “हम घर के काम-काज में अपनी मां की मदद करती थीं लेकिन मां ज़िद करती थी कि हम अपने खाली समय का इस्तेमाल पढ़ाई-लिखाई में करें.”

स्रोत: नेश्नल फैमिली हेल्थ सर्वे(एनएफएसएस-5), 2019–214

साजिदा और काजल के परिवार के लोगों के बीच दोस्ती थी लेकिन जब उनकी शादी हुई तो उनका संपर्क टूट गया था. लेकिन 2019 में उनकी फिर से मुलाक़ात हुई जब दोनों ने ZMQ में नौकरी के लिए आवेदन दिया. ZMQ एक ग़ैर-लाभकारी संगठन है जो आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों तक सूचना पहुंचाने के लिए तकनीक सक्षम टूल विकसित करता है.

जब साजिदा और काजल बड़ी हो रही थीं तो उनके पिता के पास बेसिक मोबाइल फ़ोन था जिनका वो शायद ही कभी इस्तेमाल कर पाती थीं. जब काजल ने कॉलेज जाना शुरू किया तो उसके पिता ने उसके लिए एक बेसिक फ़ोन ख़रीदा ताकि वो उन्हें अपने ठौर-ठिकाने के बारे में बता सके. काजल कहती है, “मेरे पिता जानना चाहते थे कि मैं सुरक्षित हूं या नहीं और समय पर घर आ रही हूं या नहीं.” दूसरी तरफ़ साजिदा ने फ़ोन तब ख़रीदा जब उसकी शादी हुई.

MIRA एक एकीकृत मोबाइल फ़ोन टूल है जो गर्भवती महिलाओं को ज़रूरी जानकारी मुहैया कराता है और उन्हें कम क़ीमत पर स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने के लिए सक्षम बनाता है. MIRA के चैनल पर कहानियां मेवाती भाषा में तैयार की जाती हैं और गर्भवती या नई-नवेली मां की स्थिति में काल्पनिक चरित्र दिखाते हैं. नव युवतियों को MIRA वर्कर के रूप में रखा जाता है और वो घरों तक जाकर महिलाओं की सेहत और बच्चों की देखभाल के बारे में जानकारी का प्रसार करती हैं. 

साजिदा और काजल हमेशा इस बात से परेशान रहती थीं कि महिलाओं की गतिविधियां और उनकी शिक्षा पर पाबंदी लगाई जाती हैं. उदाहरण के लिए, महिलाओं को उनके परिवार के मर्द उन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने की इजाज़त नहीं देते थे जिनमें बाहर के लोग शामिल होते थे. वैसे तो साजिदा का परिवार उसके समाज के दूसरे परिवारों के मुक़ाबले ज़्यादा प्रगतिशील था लेकिन ससुराल में साजिदा को इन पाबंदियों का सामना करना पड़ा. साजिदा के पति और ससुराल के दूसरे लोग नहीं चाहते थे कि गुज़र-बसर के लिए वो कोई काम करे और उन्होंने साजिदा को आगे की पढ़ाई-लिखाई से भी रोक दिया. साजिदा ने तो स्कूल में शिक्षक की नौकरी के लिए भी आवेदन दिया लेकिन उसके ससुर ने उसे ये काम नहीं करने दिया. लेकिन इसके बावजूद साजिदा ने ये तय कर लिया था कि वो अपनी शिक्षा का इस्तेमाल समाज की दूसरी महिलाओं की मदद करने में करेगी. उसने GNM कोर्स के लिए 100 रुपये की बचत भी की और बाक़ी फीस के लिए अपने पिता से मदद मांगी.

2019 में ZMQ का मौक़ा दोनों महिलाओं के लिए एक मदद के रूप में सामने आया. 2012 में ZMQ ने MIRA को लॉन्च किया था. MIRA एक एकीकृत मोबाइल फ़ोन टूल है जो गर्भवती महिलाओं को ज़रूरी जानकारी मुहैया कराता है और उन्हें कम क़ीमत पर स्वास्थ्य सेवाएं हासिल करने के लिए सक्षम बनाता है. MIRA के चैनल पर कहानियां मेवाती भाषा में तैयार की जाती हैं और गर्भवती या नई-नवेली मां की स्थिति में काल्पनिक चरित्र दिखाते हैं. नव युवतियों को MIRA वर्कर के रूप में रखा जाता है और वो घरों तक जाकर महिलाओं की सेहत और बच्चों की देखभाल के बारे में जानकारी का प्रसार करती हैं.

लेकिन MIRA वर्कर बन जाने के बाद भी साजिदा के लिए हालात आसान नहीं हुए. वो याद करती है कि अपने नवजात बच्चे के साथ वो काम करने के लिए दो किलोमीटर से ज़्यादा दूर जाती थी. इसकी वजह ये थी कि उसके ससुरालवाले और पति उसके काम-काज करने का समर्थन नहीं करते थे. लेकिन उसने फ़ैसला कर लिया था कि वो अपने घरेलू काम-काज और नौकरी से जुड़े काम-काज के बीच संतुलन बैठाएगी और उस मक़सद के लिए काम करना जारी रखेगी जिसमें उसका यकीन है. साजिदा कहती है, “मैंने अपने परिवार को साफ़ कर दिया कि मैं सिर्फ़ इस वजह से नहीं रुकने वाली हूं क्योंकि मैं औरत हूं.”

जहां तक बात काजल की है तो वो MIRA वर्कर बनने से पहले स्कूल में पढ़ाती थी. स्कूल में पढ़ाना उसके लिए एक मौक़ा था जिससे कि वो पढ़ाई-लिखाई को लेकर दूसरी महिलाओं का हौसला बढ़ा सके. काजल कहती है, “मैंने ज़्यादा-से-ज़्यादा महिलाओं को पढ़ाने का एक अवसर देखा, वहीं उपयोगी सूचना के साथ उनकी मदद भी करती थी.”

साजिदा के मुताबिक, “हम घर-घर गए, उन परिवारों से मिले और उन्हें बताया कि किस तरह महिलाएं सभी काम-काज में संतुलन बैठा सकती हैं और अपने परिवार के लिए कमा भी सकती हैं.” यही एक तरीक़ा है जिसके ज़रिए ज़्यादातर महिलाओं को ताक़तवर स्थानीय आदर्श व्यक्ति बनने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है और दूसरों को प्रेरित किया जा सकता है कि वो इसी तरह की भूमिका संभालें.

ZMQ के अधिकारियों ने टीबी, निमोनिया, कुपोषण और नवजात शिशुओं की देखभाल समेत स्वास्थ्य से जुड़ी अलग-अलग चिंताओं के बारे में साजिदा और काजल को प्रशिक्षित किया ताकि वो सही जानकारी का प्रसार कर सकें और महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों के बारे में बता सकें. MIRA के वर्करों को ज़्यादा जोखिम वाली गर्भावस्था की छानबीन और ऐप पर गर्भवती महिलाओं एवं नवजातों को रजिस्टर करने के लिए भी प्रशिक्षित किया गया ताकि उन पर निगरानी रखी जा सके और टीकाकरण की समय-सारणी के बारे में उन्हें बताया जा सके. महिलाओं को ऐप पर नोटिफिकेशन भी मिलता था ताकि उनकी स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी समय-सारणी के बारे में उन्हें सूचित किया जा सके. काजल समझाती है, “ऐप स्थानीय स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों से जुड़ा हुआ था जिससे कि उसके पास भी गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं एवं नवजात शिशुओं की संख्या का रिकॉर्ड हो.”

काम-काज के दौरान काजल और साजिदा महिलाओं को टीकाकरण, स्वास्थ्य एवं पोषण के बारे में सूचना देती थीं और उन्हें MIRA के चैनल पर वीडियो दिखाकर स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े अलग-अलग मुद्दों के बारे में शिक्षित करती थीं. साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच के लिए सक्षम बनाती थीं. ये सभी काम मोबाइल फ़ोन और टैबलेट के इस्तेमाल से होते थे. काजल और साजिदा- दोनों इस बात से सहमत हैं कि जिन महिलाओं के पास वो जाती थीं, वो उन्हें गौर से सुनती थीं क्योंकि उन्हें उनके साथ एक लगाव का अनुभव होता था. साजिदा कहती है, “मैं उन्हें अपने घर के बारे में, अपने संघर्षों के बारे में कहानी सुनाती हूं और उसके बाद उन कहानियों का इस्तेमाल MIRA के चैनल पर भी करती हूं.”

लेकिन जो महिलाएं टीकाकरण और बच्चे को जन्म देने के बाद स्वास्थ्य देखभाल में विश्वास नहीं करती हैं, उनसे अपनी बात मनवाना हमेशा आसान काम नहीं होता. ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए साजिदा अपने काम-काज की भूमिका से आगे बढ़कर मिसाल पेश करती है. उसने टीकाकरण को सुरक्षित साबित करने के लिए महिलाओं के एक समूह के सामने अपने बेटे को टीका लगवाया. साजिदा कहती है, “कुछ महिलाएं मेरी दोस्त बन गईं और इस तरह हम एक सामाजिक दायरा भी तैयार करते हैं.” लेकिन जब ये उपाय भी काम नहीं आते हैं तो साजिदा और काजल समुदाय के नेताओं की मदद लेती हैं जैसे कि पंचायत [1] या कोई धार्मिक नेता या परिवार का मुखिया.

साजिदा कहती है कि अपने समाज में ऐसी महिला को तलाशना मुश्किल काम था जो आत्मविश्वास से भरी हो और MIRA वर्कर का काम करने के लिए तैयार हो क्योंकि सामाजिक और पारिवारिक दबाव का अर्थ ये होता है कि कई  महिलाएं अपने परिवार के व्यवसाय के बाहर काम नहीं करती हैं. साजिदा के मुताबिक, “हम घर-घर गए, उन परिवारों से मिले और उन्हें बताया कि किस तरह महिलाएं सभी काम-काज में संतुलन बैठा सकती हैं और अपने परिवार के लिए कमा भी सकती हैं.” यही एक तरीक़ा है जिसके ज़रिए ज़्यादातर महिलाओं को ताक़तवर स्थानीय आदर्श व्यक्ति बनने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है और दूसरों को प्रेरित किया जा सकता है कि वो इसी तरह की भूमिका संभालें. लेकिन इसके लिए कई चुनौतियों पर जीत हासिल करनी होगी.

MIRA वर्कर के रूप में काम शुरू करने के आठ महीनों में साजिदा और काजल ने कम-से-कम 10 महिलाओं को MIRA वर्कर बनने के लिए प्रोत्साहित किया है और अभी तक 50 अन्य महिलाओं को प्रशिक्षित भी किया है. जो महिलाएं उनके संपर्क में आती हैं, उन सभी के फ़ोन पर वो ऐप इंस्टॉल कराने की कोशिश करती हैं. काजल कहती है, “जिन महिलाओं को हम प्रशिक्षण देते हैं, ज़रूरी नहीं कि वो डिजिटल मामले में जानकार हों. हम उन्हें फ़ोन के बुनियादी काम-काज के बारे में बताकर शुरुआत करते हैं और फिर उन्हें पोर्टल पर ट्रेनिंग देते हैं.” साजिदा और काजल आंगनवाड़ी वर्करb[2] और आशा वर्करc[3] के साथ भी ऐप पर कहानियां साझा करती हैं जिन्हें अपना काम-काज करते समय ये कहानियां उपयोगी लगती हैं.

साजिदा और काजल- दोनों ने इस बात पर ध्यान दिया है कि जब से उन्होंने MIRA वर्कर के रूप में काम शुरू किया है, तब से समाज के लोगों ने उन्हें ज़्यादा सम्मान देना शुरू कर दिया है. काजल कहती है, “छोटी उम्र की लड़कियों के बीच हमें मिसाल के रूप में दिखाया जाता है और समाज की महिलाएं हमसे पूछती हैं कि हमारी बेटियों को क्या पढ़ना चाहिए जिससे कि वो हमारी तरह काम कर सकें.” इसके अलावा साजिदा और काजल को 2021 में उनकी कोशिशों के लिए स्थानीय सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने भी सम्मानित किया और मार्च 2022 में टीबी को लेकर जागरुकता के संबंध में उनके काम-काज के लिए हिंदी के समाचार-पत्रों अमर उजाला और दैनिक जागरण के स्थानीय संस्करणों में भी उनके बारे में छपा.

साजिदा और काजल- दोनों इस बात पर सहमत हैं कि तकनीक ने उनकी कोशिशों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, ख़ास तौर पर कोविड-19 महामारी के दौरान. साजिदा कहती है, “महामारी के दौरान क्षेत्र में घूमने के दौरान हम एक सीमित संख्या में ही महिलाओं तक पहुंच सके. लेकिन जिन महिलाओं ने ऐप इंस्टॉल किया था, उन्होंने इसे अपनी जान-पहचान की महिलाओं के साथ साझा किया और इस तरह से जानकारी ज़्यादा महिलाओं तक पहुंच सकी.” जब लॉकडाउन की पाबंदियां थोड़ी आसान हुईं तो उन्होंने ऐप पर कहानियों के ज़रिए महिलाओं को कोविड-19 प्रोटोकॉल को लेकर जानकारी दी और साथ ही बड़े पर्दे पर एक साथ 30-40 महिलाओं को भी कहानियां दिखाईं ताकि अच्छी सेहत और प्रथाओं के बारे में सामुदायिक चर्चा शुरू की जा सके. साजिदा के अनुसार, “ये उन महिलाओं के लिए रोमांचक है जिनके पास अपना मोबाइल नहीं है लेकिन जिन बातों का सीधे उन पर असर पड़ता है, उसे लेकर उन्हें तब भी शिक्षित किया जा सकता है.”

हाल के दिनों में काजल और साजिदा ने अपने काम का विस्तार स्वास्थ्य से लेकर रोज़गार तक किया है और वो अपने समाज में महिलाओं को अपना उद्यम शुरू करने के लिए बुनियादी एवं क्षमता निर्माण करने की ट्रेनिंग दे रही हैं. यहां भी वो तस्वीरों के ज़रिए कहानी कहने का इस्तेमाल करती हैं ताकि महिलाओं को छोटे व्यावसायिक उपक्रम शुरू करने और उन्हें जारी रखने की बारीकियां समझने में मदद मिल सके.

आज साजिदा और काजल के लिए ख़ास तौर पर ख़ुशी लाने वाला दिन है क्योंकि उन्होंने अपने समाज की एक और युवा मां के लिए सुरक्षित डिलिवरी को सुनिश्चित किया है, जो अपने गर्भावस्था के दौरान सूचना पाने के लिए MIRA ऐप का इस्तेमाल करती रही है. काजल चेहरे पर मुस्कान के साथ कहती है, “हमें उम्मीद है कि तकनीक हमारे जैसी और महिलाओं को सक्षम बना सकती है जिससे कि वो चुनौतियों का सामना कर सकें और समाज में दूसरे लोगों की मदद कर सकें.”

ज़रूरी सबक़

  • तस्वीरों के ज़रिए कहानी कहने का डिजिटल तरीक़ा, जैसे कि कार्टून, पोस्टर और स्थानीय भाषाओं में वीडियो कहानियां, जागरुकता पैदा करने में प्रभावी साबित हुए हैं और कम साक्षरता वाले क्षेत्रों में इन्हें आज़माना चाहिए.
  • जिन जगहों पर लोगों के पास मातृत्व एवं बच्चों की सेहत से जुड़ी देखभाल को लेकर ठीक ढंग से जानकारी नहीं है, वहां डिजिटल माध्यमों से जागरुकता अभियान को बढ़ावा देना चाहिए और सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों के भीतर संस्थागत रूप दिया जाना चाहिए.
  • चूंकि ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के पास मोबाइल अपेक्षाकृत कम संख्या में है, ऐसे में सामुदायिक थियेटर तकनीक से महिलाओं का परिचय कराने, शिक्षा को लेकर उत्साह उत्पन्न करने एवं प्रासंगिक विषयों पर शिक्षित करने का प्रभावी तरीक़ा हो सकते हैं.

NOTES

[1] a Panchayats are village-level governing bodies in rural India.

[2] b Anganwadis are childcare centres in rural India that provide primary healthcare, preschool education, and nutritious meals to children upto 3 years of age.

[3] c Accredited Social Health Activists, or ASHAs, are trained female community health activists assigned to every village across India. They

[i] 1 “Aspirational Districts Programme,” NITI Aayog, Government of India.

[ii] 2 “India and 14 States/UTs (Phase-11) factsheets,” NFHS-5, Ministry of Health and Family Welfare, Government of India.

[iii] 3 Census of India, 2011: https://censusindia.gov.in/census.website/data/census-tables

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Contributor

Antara Sengupta

Antara Sengupta

Antara Sengupta is an Erasmus+ scholar pursuing an International Masters in Education Policies for Global Development. She is a former Research Fellow at ORF Mumbai.

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