Author : Purnendra Jain

Published on Jan 15, 2024 Updated 0 Hours ago

स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के लिए जापान की प्रतिबद्धता और बदलते वैश्विक सामरिक वातावरण को लेकर उसके आकलन ने उसे एक नई पथ प्रदर्शक रणनीति के लिए प्रेरित किया है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र को जापान से मिली नई सुरक्षा सहायता!

मौजूदा समय में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्र में जापान एक तमाशबीन बनकर नहीं रह गया है. जापान अब सक्रिय तौर पर कई देशों के साथ रक्षा सहयोग को बढ़ावा दे रहा है, रक्षा सहयोग स्थापित कर रहा है और उसने एक नया कार्यक्रम शुरू किया है जिसके तहत विकासशील देशों को सुरक्षा सहायता प्रदान करता है. 

जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की मनीला यात्रा के दौरान 3 नवंबर 2023 को जापान ने फिलीपींस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस समझौते के तहत जापान ने सैन्य उपकरण की सप्लाई के लिए आधिकारिक सुरक्षा सहायता (OSA) के इस्तेमाल से 600 मिलियन येन का वादा किया. ये सैन्य उपकरण फिलीपींस की सुरक्षा और दुश्मनों से मुकाबले की क्षमता में बढ़ोतरी करेंगे. दो हफ्ते के बाद जापान ने बांग्लादेश के साथ इसी तरह के एक समझौते पर दस्तखत किए जिसके ज़रिए OSA के तहत 575 मिलियन येन का वादा किया गया

इसी तरह जापान और एसोसिएशन ऑफ साउथ-ईस्ट एशियन नेशंस (आसियान) के बीच संबंधों के 50 साल पूरा होने के मौके पर आयोजित टोक्यो शिखर सम्मेलन के दौरान 16 दिसंबर 2023 को जापान ने OSA के तहत मलेशिया को 400 मिलियन येन मुहैया कराने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. जापान ने मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए चौथा और अंतिम समझौता इसके दो दिन बाद फिजी के साथ किया जिसके तहत 400 मिलियन येन का वादा किया गया. 

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के विकासशील देशों को सैन्य अनुदान सहायता प्रदान करना जापान की एक नई योजना है जो अप्रैल 2023 में तैयार की गई. वित्तीय वर्ष 2023-24 में जापान ने इस योजना के लिए 2 अरब येन का आवंटन किया है.

नई दिशा

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के विकासशील देशों को सैन्य अनुदान सहायता प्रदान करना जापान की एक नई योजना है जो अप्रैल 2023 में तैयार की गई. वित्तीय वर्ष 2023-24 में जापान ने इस योजना के लिए 2 अरब येन का आवंटन किया है. वैसे तो शुरुआत में ये योजना सीमित संख्या में छोटे देशों के लिए ही है लेकिन ये जापान के द्वारा विदेशी सेनाओं की मदद नहीं करने की लंबी समय से चली आ रही नीति के मामले में एक नई दिशा का प्रतीक है. इस बात की संभावना है कि आने वाले वर्षों में इस कार्यक्रम के लिए बजट में बढ़ोतरी होगी और इसके तहत कुछ और देशों की मदद की जाएगी. इसका कारण ये है कि जापान ने अगले पांच वर्षों में अपना रक्षा बजट बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है. रक्षा बजट का एक छोटा हिस्सा OSA को आगे बढ़ाएगा.  

वैसे तो OSA और ODA (आधिकारिक विकास सहायता)- दोनों ही जापान के विदेश मामलों के मंत्रालय के तहत आते हैं लेकिन दोनों के बीच अंतर है. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के एक सदस्य के रूप में जापान विकासशील देशों की सहायता करने वाला एक बेहद महत्वपूर्ण देश रहा है. ये दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद से ही चला आ रहा है जब ODA कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी. OECD के शुरुआती आंकड़ों से संकेत मिलता है कि 2022 में जापान तीसरी सबसे बड़ा मददगार देश था और उसने विकासशील देशों की मदद के लिए लगभग 17 अरब अमेरिकी डॉलर खर्च किए. जापान के शांतिवादी संविधान और बहुत अधिक नियंत्रण लागू होने की वजह से वो सैन्य सहायता से बचता रहा है. उसने अपना ODA बजट सिर्फ गैर-सैन्य उद्देश्यों जैसे कि लोगों की सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा और शांति स्थापित करने के लिए आवंटित किया. 

जापान ने सैन्य सहायता मुहैया कराने की दिशा में नया नीतिगत फैसला बदलते वैश्विक सामरिक वातावरण और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सैन्य संतुलन में परिवर्तन की समीक्षा के बाद लिया है. चीन की बढ़ती सैन्य दादागीरी, उत्तर कोरिया की बार-बार की धमकी, यूक्रेन में युद्ध और स्वतंत्र एवं खुले इंडो-पैसिफिक के लिए जापान की प्रतिबद्धता ने जापान को इस नई पथ प्रदर्शक रणनीति के लिए प्रेरित किया है. जापान ने अपने संविधान में शांति के मानदंड, जो सैन्य गतिविधियों से मना करता है, को बदले बिना कुशलतापूर्वक इस नई दिशा को अपनाया है. इसके लिए नया कानून लाया गया है जो जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का समर्थन करता है. 2013 और 2022 में जारी दो दस्तावेज़ों में जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के बारे में बताया गया है. 

जापान ने 2013 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) और 2015 के विकास सहयोग चार्टर के बाद रणनीतिक रूप से ODA का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. इसे कुछ लोग सुरक्षा को सहायता का रूप देने या सुरक्षा उद्देश्य के लिए ODA मुहैया कराना मानते हैं. 2013 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का पालन करते हुए 2015 के चार्टर ने ‘शांति के लिए सक्रिय योगदान’ वाक्य को शामिल किया जिसके तहत जापान ने विकासशील देशों को ‘क्षमता निर्माण’ के लिए समर्थन देना शुरू कर दिया. नए चार्टर के तहत क्षेत्रीय शांति, कानून के शासन और समुद्री संप्रभुता को बरकरार रखने के लिए आवश्यक समर्थन मुहैया कराने की शुरुआत हुई. इनमें वियतनाम एवं फिलीपींस को निगरानी नौका (सर्विलांस बोट) की सप्लाई और इंडोनेशिया, मलेशिया एवं म्यांमार को क्षमता निर्माण के लिए सहायता शामिल हैं. 2015 के चार्टर के पहले भी जापान ने इंडोनेशिया को तीन गश्ती नाव की सप्लाई की. इसके लिए जापान ने 2003 के ODA चार्टर के तहत स्वीकृत आतंकवाद और समुद्री डकैती (पाइरेसी) से मुकाबले के लिए अनुदान सहायता का इस्तेमाल किया.

सामरिक साझेदारी

जिन चार देशों ने 2023 में नई OSA के तहत सेना से जुड़ी सहायता हासिल की है वो इंडो-पैसिफिक में ‘समान विचार वाले’ देश हैं और वो सामरिक रूप से महत्वपूर्ण जगह में स्थित हैं. साथ ही वो जापान के सुरक्षा हितों और विदेश नीति के उद्देश्यों के लिए अहम हैं और हर देश चीन की तरफ से गंभीर सामरिक चुनौतियों का सामना कर रहा है.  

उदाहरण के लिए, मलेशिया दक्षिण चीन सागर में चीन के क्षेत्रीय अधिकारों के दावे का विरोध करता है. मलेशिया के विशेष आर्थिक क्षेत्र में चीन के जहाज़ों के घुसने के साथ जापान ने चीन को रोकने के लिए मलेशिया का समर्थन करने का फैसला लिया है. हिंद महासागर और पूर्वी एशिया को जोड़ने वाली मलेशिया की सामरिक स्थिति समुद्री परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है. इसके अलावा दोनों देशों ने अपने संबंधों को ‘व्यापक सामरिक साझेदारी’ के स्तर तक बढ़ा दिया है. माना जाता है कि जापान की सैन्य सहायता से मलेशिया की सुरक्षा क्षमता और महत्वपूर्ण समुद्री रास्ते की निगरानी में सुधार होगा. 

हिंद महासागर और पूर्वी एशिया को जोड़ने वाली मलेशिया की सामरिक स्थिति समुद्री परिवहन के लिए महत्वपूर्ण है. इसके अलावा दोनों देशों ने अपने संबंधों को ‘व्यापक सामरिक साझेदारी’ के स्तर तक बढ़ा दिया है.

इसी तरह समुद्री रास्तों की रक्षा के लिए फिलीपींस अहम है. इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि क्षेत्रीय सुरक्षा एवं स्थिरता बरकरार रखने के लिए फिलीपींस महत्वपूर्ण है. इसका मुख्य कारण जापान की यो सोच है कि इंडो-पैसिफिक में यूक्रेन जैसी स्थिति पैदा हो सकती है यानी ताइवान पर चीन का संभावित आक्रमण. फिलीपींस की सत्ता में राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस जूनियर के आने के बाद से जापान ने फिलीपींस के साथ अपने रक्षा और दूसरे संबंधों में बढ़ोतरी की है. पारस्परिक पहुंच के समझौते (RAA) पर वर्तमान में बातचीत चल रही है और जब इस पर हस्ताक्षर होंगे तो आसियान के किसी सदस्य के साथ जापान का ये पहला RAA होगा.  

OSA के तहत बांग्लादेश को इंडो-पैसिफिक के एक महत्वपूर्ण हिस्से बंगाल की खाड़ी में निगरानी और समुद्री सुरक्षा के लिए चार गश्ती नाव मिलेगी. ध्यान देने की बात है कि हाल के वर्षों में बांग्लादेश ODA के तहत जापान की सबसे ज़्यादा मदद हासिल करने वाले देशों में से एक रहा है. जापान की सोच में चीन का फैक्टर भी एक अहम भूमिका निभाता है. ‘फिजी के आसपास के समुद्र और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बनाए रखने और उसमें बढ़ोतरी’ के लिए फिजी को भी पेट्रोल बोट मिलेगी. दक्षिण प्रशांत में जैसे-जैसे चीन का असर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे जापान ODA और अब OSA के साथ इसे कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा है.  

फिलहाल मौजूदा समय में 20 मिलियन अमेरिकी डॉलर के छोटे बजट से OSA कम महत्वपूर्ण बना हुआ है लेकिन इस योजना का विस्तार होने की संभावना है. जापान की सरकार अप्रैल 2024 में शुरू होने वाले अगले वित्त वर्ष में OSA हासिल करने के लिए दो अन्य संभावित ‘समान विचार वाले देशों’ के तौर पर वियतनाम और जिबूती के साथ बातचीत कर रही है. नवंबर में जापान ने वियतनाम के साथ अपने संबंधों को बढ़ाते हुए इसे ‘व्यापक सामरिक साझेदारी’ का रूप दिया और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में मज़बूती आई है, ख़ास तौर पर आर्थिक क्षेत्र में क्योंकि जापान की कई कंपनियां वियतनाम में निवेश कर रही हैं. इसके अलावा दक्षिण चीन सागर में चीन के साथ वियतनाम का विवाद चल रहा है. दूसरी तरफ पूर्व अफ्रीका में जिबूती समुद्री डकैती के ख़िलाफ़ जापान के रक्षा कर्मियों के लिए एक अस्थायी अड्डे की मेज़बानी करता है. ये अड्डा चीन की मौजूदगी के विरुद्ध एक जवाबी ताकत (काउंटरफोर्स) के तौर पर काम करता है. 

OSA के प्रावधान के पीछे जापान का एक व्यापक एजेंडा भी हो सकता है. जापान लंबे समय से दूसरे देशों को सैन्य सामानों का निर्यात करने की कोशिश कर रहा है, इसमें भारत को एंफिबियन एयरक्राफ्ट का निर्यात शामिल है.

OSA के प्रावधान के पीछे जापान का एक व्यापक एजेंडा भी हो सकता है. जापान लंबे समय से दूसरे देशों को सैन्य सामानों का निर्यात करने की कोशिश कर रहा है, इसमें भारत को एंफिबियन एयरक्राफ्ट (ज़मीन के साथ-साथ पानी में चलने वाला एयरक्राफ्ट) का निर्यात शामिल है. लेकिन इस तरह की डील करने में जापान की कंपनियों को अभी तक सफलता नहीं मिली है. ये संभव है कि, जैसा कि एक विश्लेषक का कहना है, OSA से मिली जानकारी और सबक का इस्तेमाल बड़े पैमाने के रक्षा उपकरण के ट्रांसफर में किया जा सकता है. इसके लिए जापान बुनियादी ढांचे की बड़ी परियोजनाओं जैसे कि भारत में बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट में किए गए कर्ज़ के समझौते जैसी व्यवस्था का उपयोग कर सकता है. 

पूर्णेंद्र जैन एडिलेड यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट ऑफ एशियन स्टडीज़ में एमेरिटस प्रोफेसर हैं. 

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