Author : ANUBHA GUPTA

Published on May 19, 2022 Updated 22 Hours ago

इंडो-पैसिफिक में अमेरिका की अगुवाई वाले बहुपक्षीय समूहों की बढ़ती मौजूदगी आसियान की महत्वपूर्ण भूमिका को चुनौती दे रही है.

क्या ऑकस (Aukus) इंडो-पैसिफिक का नया आसियान बन गया है?

अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने पिछले दिनों कहा कि इंडो-पैसिफिक क्षेत्र “इस शताब्दी की दिशा” तय करेगा. ये कोई राज़ नहीं है कि पिछले पांच वर्षों में इंडो-पैसिफिक सबसे तेज़ी से विकास करने वाला क्षेत्र बन गया है. वैश्विक आर्थिक विकास में इंडो-पैसिफिक का हिस्सा दो-तिहाई है. इसके अलावा चीन की बढ़ती युद्ध स्थिति की वजह से इंडो-पैसिफिक सुरक्षा प्रतिस्पर्धा का अखाड़ा भी बन गया है. ये नया अवसर और ख़तरा आसियान, जो पैसिफिक के समुद्री किनारे को हिंद महासागर से जोड़ने वाला क्षेत्र है, में ख़तरे की घंटी बजा रहा है. दक्षिण-पूर्व के 10 देशों के समूह आसियान का उद्देश्य एशिया-पैसिफिक में राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर सलाह (मशवरा) और सर्वसम्मति (मुफ़ाकात) से अलग-अलग देशों को एक करना है. आसियान एक क्षेत्रीय ताक़त के रूप में उभरा है. शीत युद्ध ख़त्म होने के बाद आसियान ने इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता बरकरार रखने का ज़िम्मा उठाया. क्षेत्र में सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आसियान ने सबसे महत्वपूर्ण ताक़त के रूप में काम किया. 

आसियान आज प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहा है क्योंकि क्षेत्रीय शक्तियों के संतुलन में बदलाव हो रहा है. इसकी वजह चीन का आक्रामक उदय और अमेरिका के द्वारा समान विचार वाले सहयोगी देशों के साथ नये क्षेत्रीय समूहों (क्वॉड, ऑकस, इत्यादि) के गठन से यथास्थिति बरकरार रखने की लगातार कोशिश है.

आसियान आज प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना कर रहा है क्योंकि क्षेत्रीय शक्तियों के संतुलन में बदलाव हो रहा है. इसकी वजह चीन का आक्रामक उदय और अमेरिका के द्वारा समान विचार वाले सहयोगी देशों के साथ नये क्षेत्रीय समूहों (क्वॉड, ऑकस, इत्यादि) के गठन से यथास्थिति बरकरार रखने की लगातार कोशिश है. आसियान में ये हलचल अमेरिका-चीन की प्रतिस्पर्धा और आसियान की आंतरिक कमज़ोरी का सूचक है. सितंबर 2021 में जब त्रिकोणीय सुरक्षा (सैन्य और तकनीकी) संधि यानी ऑकस की घोषणा की गई थी तो आसियान के सदस्य देशों की तरफ़ से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आई. एक तरफ़ जहां इंडोनेशिया और मलेशिया ने इस क्षेत्र में हथियारों की होड़ और ताक़त बढ़ाने को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की वहीं दूसरी तरफ़ सिंगापुर, वियतनाम, फिलीपींस इत्यादि ने ऐहतियात के साथ ऑकस का स्वागत किया. अपने स्वर्णिम युग की ऊंचाई पर आसियान को विश्वास था कि वो इस क्षेत्र की क़िस्मत को नियंत्रित करने की स्थिति में है. लेकिन ऑकस के उदय ने इंडो-पैसिफिक में आसियान की महत्वपूर्ण भूमिका के विचार में दरार को उजागर कर दिया है. 

आसियान की केंद्रीय भूमिका को समझिए 

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में आसियान की महत्वपूर्ण भूमिका की धारणा को बताने के लिए सबसे पहले आसियान के गठन और उसके विकास को प्रेरणा देने वाले कारणों को समझना चाहिए. उदाहरण के लिए, मज़बूत नेता (ली कुआन यू, सुहार्तो, महाथिर, इत्यादि), साम्यवाद का ख़तरा, आर्थिक आधुनिकीकरण (आसियान पीटीए यानी प्रीफरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट, आसियान एफटीए यानी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट, इत्यादि), क्षेत्रीय नेटवर्कों के मॉडल (आसियान क्षेत्रीय मंच, आसियान प्लस सिक्स, पूर्वी एशिया शिखर वार्ता, इत्यादि) ने एक-दूसरे पर निर्भरता के रूप में काम किया जिससे आसियान की केंद्रीय भूमिका का जन्म हुआ. ये प्रमुख उद्देश्यों और सिद्धांतों के रूप में आसियान के चार्टर में  अंकित है. ये लेख दो स्वतंत्र बातों पर ध्यान देता है यानी आर्थिक विकास और क्षेत्रीय मंचों की ग्रिड जो कि क्षेत्र की भू-राजनीति में आसियान की महत्वपूर्ण भूमिका तय करने में मददगार हैं. 

आज आसियान दुनिया में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और अनुमानों के मुताबिक़ 2030 तक चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. पिछले 50 वर्षों में आसियान ने महत्वपूर्ण मानवीय और सतत विकास की प्रगति हासिल की है, करोड़ों लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला है और शिक्षा एवं स्वास्थ्य तक पहुंच को बेहतर बनाया है. 

आसियान का आर्थिक विकास 

2019 में 3.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की संयुक्त GDP के साथ आसियान ने पिछले पांच दशकों में प्रभावशाली आर्थिक प्रगति हासिल की है. आसियान ने युद्ध के पक्ष में दलील को आर्थिक विकास के लिए दलील में बदल दिया है. आज आसियान दुनिया में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और अनुमानों के मुताबिक़ 2030 तक चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. पिछले 50 वर्षों में आसियान ने महत्वपूर्ण मानवीय और सतत विकास की प्रगति हासिल की है, करोड़ों लोगों को ग़रीबी से बाहर निकाला है और शिक्षा एवं स्वास्थ्य तक पहुंच को बेहतर बनाया है. 

पिछले कुछ वर्षों में आसियान चीन और अमेरिका के बीच आर्थिक मुक़ाबले की जगह बन गया है जिसमें चीन स्पष्ट रूप से विजेता बना है. अभी तक अमेरिका के पास इस क्षेत्र के लिए एक स्पष्ट आर्थिक दूरदर्शिता की कमी है. 2020 में आसियान-अमेरिका के बीच सामानों और सेवाओं का व्यापार क़रीब 362 अरब अमेरिकी डॉलर था और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के मामले में ये 329 अरब अमेरिकी डॉलर था जो कि 2019 के मुक़ाबले 3.2 प्रतिशत ज़्यादा था. लेकिन आसियान और चीन के बीच व्यापार में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है और ये 1991 के 9 अरब अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले 2020 में 685 अरब अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया. 2020 में ईयू को पीछे छोड़कर चीन आसियान का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया. इस क्षेत्र में चीन की आर्थिक ताक़त के जवाब में अमेरिका समान विचार वाले साझेदारों के साथ ज़्यादा मज़बूत रक्षा और सुरक्षा संबंध बना रहा है. 

क्षेत्रीय सुरक्षा संस्थानों का जाल

बड़ी शक्तियों के साथ संवाद के मंचों के ज़रिए हिस्सेदारी करके आसियान ने अपनी स्थिति को मज़बूत किया है. आसियान क्षेत्रीय मंच (एआरएफ), आसियान प्लस सिक्स, पूर्वी एशिया शिखर वार्ता (ईएएस), इत्यादि ने आसियान को शक्ति संघर्ष से दूर रखने और इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका स्थापित करने में मदद की है. 1994 में अपनी स्थापना के समय से एआरएफ साझा हित के अलग-अलग राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करने के लिए विदेश मंत्रियों का एक मंच बन गया है. इससे पारस्परिक विश्वास और भरोसे का माहौल तैयार होता है. इसी तरह 2004 से ईएएस ने ऊर्जा, वित्त, आसियान कनेक्टिविटी, इत्यादि जैसे क्षेत्रों पर ध्यान दिया है. 

आसियान में शामिल कुछ देश चीन के साथ समझौता करने की रणनीति अपना रहे हैं जैसे कि कंबोडिया और थाईलैंड. वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो अमेरिका पर ज़िम्मेदारी डाल रहे हैं. आज के समय में आसियान संगठित रूप से सामूहिक रवैया अख़्तियार करने में संघर्ष कर रहा है. 

इन मंचों ने पहली बार अर्थव्यवस्था से लेकर भू-राजनीति और सुरक्षा तक के मुद्दों की चर्चा के लिए एक संवादात्मक (इंटरएक्टिव) समावेशी मंच मुहैया कराया. लेकिन इसके बावजूद आसियान क्षेत्रीय सुरक्षा की मुख्य चिंताओं जैसे कि दक्षिणी चीन सागर में चीन की हठधर्मिता, म्यांमार में सैन्य विद्रोह, इत्यादि का समाधान करने में सफल नहीं रहा है. जो संस्थान एक समय आसियान की महत्वपूर्ण भूमिका के आधार थे, वो अब सामरिक कमज़ोरी का सामना कर रहे हैं. इंडो-पैसिफिक में नई साझेदारी की श्रृंखला 21वीं सदी में सुरक्षा चुनौतियों के संबंध में आसियान की कमज़ोरी को दिखाता है. आसियान में शामिल कुछ देश चीन के साथ समझौता करने की रणनीति अपना रहे हैं जैसे कि कंबोडिया और थाईलैंड. वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो अमेरिका पर ज़िम्मेदारी डाल रहे हैं. आज के समय में आसियान संगठित रूप से सामूहिक रवैया अख़्तियार करने में संघर्ष कर रहा है. साथ ही इंडो-पैसिफिक के लिए आसियान के दृष्टिकोण में मज़बूती नहीं है. इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा चिंताओं के संबंध में आसियान की कमज़ोर स्थिति ने अमेरिका और उसके सहयोगियों के द्वारा क्षेत्रीय पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है. 

क्या इंडो-पैसिफिक में आसियान से आगे निकल जाएगा ऑकस? 

इंडो-पैसिफिक में सुरक्षा संबंध अमेरिका आधारित द्विपक्षीय समझौतों से लेकर बहुपक्षीय आसियान के नेतृत्व वाले सहयोग तक है. पिछले कुछ वर्षों में इन दोनों दृष्टिकोणों ने एक-दूसरे की मदद की है. लेकिन आसियान के कमज़ोर होने के साथ अमेरिका के नेतृत्व वाला गठबंधन मज़बूत बन जाएगा. आसियान अमेरिका की तरफ़ से एशिया को केंद्र बिंदु बनाकर तैयार की गई रणनीति को लेकर होशियार है. ऑकस में इस बात की संभावना है कि वो आसियान की महत्वपूर्ण भूमिका में खलल डाल दे. जिन्हें जानकारी नहीं है, उन्हें बता दें कि ऑकस एक सुरक्षा समझौता है जिसका उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी की तकनीक मुहैया कराना है. ये पनडुब्बी रडार की पहुंच से दूर, तेज़ और लंबी दूरी तय करने वाली हैं. इनकी वजह से चीन के ख़िलाफ़ ऑस्ट्रेलिया की आक्रमण क्षमता मज़बूत होती है. ऑकस का उद्देश्य रक्षा और सुरक्षा क्षमताओं को मज़बूत करने के लिए तकनीक को साझा करने को बढ़ावा देना है. अमेरिका और उसके सहयोगी देशों की सुरक्षा चिंताओं को लेकर अगर आसियान ने स्पष्ट रुख़ अख्तियार नहीं  किया तो हर बीतते दिन के साथ ऑकस और मज़बूत होता जाएगा. 

आसियान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को फिर से स्थापित करने के लिए आसियान को आंतरिक और बाहरी पुनर्गठन से गुज़रना होगा. इससे आसियान 21वीं सदी की सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर सकेगा. आसियान को इस क्षेत्र में बदलते सुरक्षा माहौल से निपटने के लिए अपने बहुपक्षीय संस्थानों में नयापन लाना होगा.

निष्कर्ष

आसियान में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को फिर से स्थापित करने के लिए आसियान को आंतरिक और बाहरी पुनर्गठन से गुज़रना होगा. इससे आसियान 21वीं सदी की सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर सकेगा. आसियान को इस क्षेत्र में बदलते सुरक्षा माहौल से निपटने के लिए अपने बहुपक्षीय संस्थानों में नयापन लाना होगा. आसियान को अपने आर्थिक एकीकरण में विविधता लाने पर ध्यान देना होगा और उसे केवल चीन के नेतृत्व वाली पहल पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. लेखक अमिताभ आचार्य के शब्दों में कहें तो, “आसियान अगर नेतृत्व करने वाले के रूप में काम नहीं करता है तो उसे पूर्वी एशिया के लिए क्षेत्रीय बहुपक्षीय मंचों के एक केंद्र के तौर पर काम करना चाहिए. आसियान की हदों के बावजूद दूसरा कोई संगठन क्षेत्रीय बहुपक्षीय कूटनीति के केंद्र के रूप में इसकी भूमिका को चुनौती नहीं दे सकता है.” आसियान को इस क्षेत्र में शत्रुता, अविश्वास, विरोधी गठबंधन और सुरक्षा असमंजस का समाधान करना चाहिए. गहरा विश्वास और आसियान के साथ हिस्सेदारी इंडो-पैसिफिक में ऑकस के लिए एक अनिवार्यता बननी चाहिए, न कि एक विकल्प. 

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