Published on Feb 01, 2022 Updated 0 Hours ago

तीन ध्रुवों वाली दुनिया मौजूदा दो-ध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में ठोस और ज़रूरी सुधार साबित होगी.

अंतरराष्ट्रीय संबंध: भारत-नेटो परिषद और तीन ध्रुवों वाली दुनिया

ये लेख इंडिया@75: एस्पिरेशंस, एंबिशंस, एंड एप्रोचेज़ सीरीज़ का हिस्सा है.


कोविड-19 के बाद का संक्षिप्त विचार

इस लेख में भारत और पश्चिम के बीच गुणात्मक रूप से व्यापक पैमाने के तालमेल की सामरिक ज़रूरत को रेखांकित किया गया है. दुनिया पर कोविड-19 की मार पड़ने से पहले ही इसका मसौदा तैयार कर प्रकाशन के लिए सपुर्द कर दिया गया था. हालांकि महामारी और उससे जुड़े घटनाक्रमों के बीच ये रिपोर्ट और उसकी जानकारियां और भी ज़्यादा प्रासंगिक हो गई हैं. इस बीच ईयूइंडिया स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप: रोडमैप टू 2025 के तहत यूरोपीय संघ (ईयू) और भारत के बीच ईयूभारत संयुक्त कार्यकारी समूह में सहयोग का ब्योरा दिया गया है. कारोबार को बढ़ावा देने और स्वच्छता और फाइटोसेनिटरी (कृषि उत्पादों के निरोग और स्वच्छता) से जुड़े उपायों (SPS) की रुकावटों और व्यापार के रास्ते की तकनीकी बाधाओं (TBT) को दूर करने का लक्ष्य भी इसमें शामिल है. इसके अलावा  फ़ार्मास्यूटिकल्स, बायोटेक्नोलॉजी और मेडिकल उपकरणों को लेकर स्थापित भारतईयू साझा कार्य समूह के ज़रिए फ़ार्मास्यूटिकल्स और मेडिकल उपकरणों में नियामक वार्ताओं को जारी रखने की बात भी कही गई है. साथ ही ख़ासतौर से कोविड-19 महामारी के साथ जोड़कर स्वास्थ्य सुरक्षा और महामारी से जुड़े संकटों के लिए तैयार रहने और उसके हिसाब से प्रतिक्रिया जताने के लिए मिलकर काम करने का इरादा जताया गया है. ये तमाम क़वायदें पूरी शिद्दत से साबित करती हैं कि भारत और पश्चिमी जगत के बीच का तालमेल वैश्विक लोकतंत्र के लिए निहायत ज़रूरी है. इसके साथ ही नेटोभारत परिषद सामरिक मोर्चे को पाटने का काम करता है

30 साल पहले बर्लिन की दीवार के ढहने के बाद उम्मीद की गई थी कि दुनिया द्विध्रुवीय व्यवस्था से एकध्रुवीय व्यवस्था में बदल जाएगी. हालांकि, मौजूदा भूराजनीतिक हक़ीक़तों से लगता है कि ज़्यादातर मसलों पर दुनिया दो ध्रुवों में बंटी है. हालांकि, ये विभाजन उतना सख़्त नहीं है. पश्चिमी ध्रुव की धुरी वॉशिंगटन-ब्रुसेल्स और नेटो/ईयू पर टिकी है. दूसरी ओर पूर्वी ध्रुव मॉस्को-बीजिंग के आसरे है. वैसे धीरे-धीरे ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका) और शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के हिसाब से इसका ढांचा तैयार हो रहा है.

भारत किस ओर क़दम बढ़ा रहा है?

इस संदर्भ में सवाल खड़ा होता है कि- भारत किस ओर क़दम बढ़ा रहा है ?[1] भारत की विरासत गुट-निरपेक्ष आंदोलन (NAM) के संस्थापक की रही है. साथ ही भारत पी5 (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों) में शामिल होने की हसरत रखता है. इन तमाम हक़ीक़तों के मद्देनज़र भारत को लीक से हटकर उपायों की ज़रूरत होगी. अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार के पास इस दिशा में क़दम उठाने की सोच, क़ाबिलियत और अवसर मौजूद हैं. भारत ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य होने के साथ-साथ 2017 से SCO का भी सदस्य है. ये भारत की गुट-निरपेक्ष परंपरा से परे है. देश के अंतरिक्ष और परमाणु कार्यक्रमों का निरंतर विकास दुनिया के एक संवेदनशील हिस्से में भारत के महाशक्ति बनने की ओर बढ़ते क़दमों का सबूत है. इतना ही नहीं भारत को आधिकारिक रूप से “परमाणु शक्ति” के तौर पर पहचाना जाने लगा है.

अपने आकार के अनुपात का किरदार बनने के लिए भारत ख़ुद को “तीसरे भू-ध्रुव” के तौर पर पेश कर सकता है. इस मकसद को पूरा करने के लिए भारत को नेटो के साथ नियमित और नज़र आने वाली वार्ता प्रक्रिया के साथ जुड़ना चाहिए. 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. अपने आकार के अनुपात का किरदार बनने के लिए भारत ख़ुद को “तीसरे भू-ध्रुव” के तौर पर पेश कर सकता है. इस मकसद को पूरा करने के लिए भारत को नेटो के साथ नियमित और नज़र आने वाली वार्ता प्रक्रिया के साथ जुड़ना चाहिए. ग़ौरतलब है कि नेटो दुनिया में लोकतंत्र की दूसरी सबसे बड़ी इकाई है. इस दिशा में एक अहम क़दम के तौर पर पहले भारत-नेटो परिषद (INC) को परिचर्चा के मंच के तौर पर औपचारिक जामा पहनाए जाने की दरकार है. इस मंच पर द्विपक्षीय एजेंडे और मानवता के लिए बेहतर भविष्य पर विचार-मंथन किया जा सकेगा. INC को सिर्फ़ दोनों पक्षों के लिए अवसर के तौर पर नहीं बल्कि तर्क और औचित्य की बुनियाद पर खड़ा किया जाना चाहिए. भारत और नेटो के सभी सदस्यों की कुल आबादी दुनिया की जनसंख्या के एक तिहाई के बराबर है. दोनों ही पक्ष एक समान मूल्य साझा करते हैं और उनकी हिफ़ाज़त में दोनों का हित है. दूसरी ओर सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों के साथ-साथ प्रतिस्पर्धियों और संभावित ख़तरों को लेकर दोनों की चिंताएं भी साझा हैं. सहयोग के दूसरे मसलों में पर्यावरण (उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव समेत), ऊर्जा (परमाणु समेत), अंतरिक्ष, साइबर क्षेत्र और 5जी शामिल हैं.

दोनों पक्षों के जुड़ाव के बड़े मायने

10 साल पहले अटलांटिक क्लब ने INC की स्थापना किए जाने का विचार पहली बार सामने रखा था. उस वक़्त ये विचार सिरे नहीं चढ़ पाया. बहरहाल नई दिल्ली, ब्रुसेल्स और वॉशिंगटन के हाल के घटनाक्रमों से पता चलता है कि भारत और पश्चिमी जगत के हालात अब बदल गए हैं. ऐसे में एक नया अवसर दिखाई दे रहा है. दोनों पक्षों के जुड़ाव के बड़े मायने होंगे. इसके ज़रिए लोकतांत्रिक दुनिया 2 अरब लोगों की साझा क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल कर सकेगी. साथ ही औद्योगिक क्षमताओं और संसाधनों समेत दुनिया का एक बड़ा भू-भाग एक साझा मंच पर आ जाएगा.

INC के गठन से भारत को पी5 के तीन देशों के साथ रिश्ते सुधारने में मदद मिलेगी. बाक़ी के दो सदस्यों (रूस और चीन) के साथ भारत पहले से ही ब्रिक्स के ज़रिए जुड़ा हुआ है. लिहाज़ा भारत पी5 के हरेक देश के साथ अलग-अलग सुरक्षा इंतज़ामों की स्थापना से जुड़ी अनोखी पहल कर सकता है. 

INC के गठन से भारत को पी5 के तीन देशों के साथ रिश्ते सुधारने में मदद मिलेगी. बाक़ी के दो सदस्यों (रूस और चीन) के साथ भारत पहले से ही ब्रिक्स के ज़रिए जुड़ा हुआ है. लिहाज़ा भारत पी5 के हरेक देश के साथ अलग-अलग सुरक्षा इंतज़ामों की स्थापना से जुड़ी अनोखी पहल कर सकता है. इससे भारत वास्तविक रूप से तीसरे भू-ध्रुव में बदल जाएगा. साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता को लेकर भारत की दावेदारी और मज़बूत हो जाएगी. दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र और अतीत के गुट-निरपेक्ष आंदोलन में भारत का समर्थन करने वाले ताक़तवर गुटों में नेटो को नई राजनीतिक मज़बूती और भरोसा हासिल करने में मदद मिलेगी. 2021 में ऑकस के गठन से हिंद और प्रशांत महासागरों में वैश्विक लोकतंत्रों में तालमेल की ज़रूरतों का एक और दमदार सबूत सामने आया है. क्वॉड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वॉड) में भारत की मौजूदगी आगे चलकर भारत के लिए ऑकस की सदस्यता हासिल करने की सीढ़ी बन सकती है.

यूरोपीय संघ का स्थान?

इस समीकरण में यूरोपीय संघ का क्या स्थान है? फ़िलहाल बताया जाता है कि भारत के साथ अमेरिकी सैनिक अभ्यासों की तादाद अमेरिका के नेटो सहयोगियों के साथ होने वाले अभ्यासों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा हैं. फ़रवरी 2020 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को 3 अरब डॉलर के बराबर अमेरिकी फ़ौजी साज़ोसामानों की बिक्री का एलान किया था. ज़ाहिर है भारत और अमेरिका के रक्षा संबंध नेटो के दायरे के बाहर भी तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ रहे हैं. साफ़ है कि भारत के साथ रक्षा जुड़ावों के लिए नेटो के मंच की दरकार वास्तव में गठजोड़ के यूरोपीय भागीदारों और ईयू को है. लिहाज़ा कामयाबी से INC के गठन के लिए यूरोपीय संघ के नेतृत्व की नेटो को लेकर दृढ़ प्रतिबद्धता की दरकार है.

निश्चित रूप से INC का गठन समग्र तरीक़े से किया जाना चाहिए. इस सिलसिले में पाकिस्तान या चीन या किसी भी अन्य पक्ष के साथ टकराव नहीं होना चाहिए.   

निश्चित रूप से INC का गठन समग्र तरीक़े से किया जाना चाहिए. इस सिलसिले में पाकिस्तान या चीन या किसी भी अन्य पक्ष के साथ टकराव नहीं होना चाहिए. इन तमाम पक्षों के साथ पश्चिमी जगत को संपर्क के दूसरे तौर-तरीक़ों की ज़रूरत होगी. भारत और पश्चिम दोनों एक-दूसरे के सबसे मज़बूत और भरोसेमंद साथी बन सकते हैं. तीन ध्रुवों वाली दुनिया (जिनमें से 2 समान सोच वाले लोकतंत्र हैं) मौजूदा दो-ध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में ठोस और ज़रूरी सुधार साबित होगी.


[1] Literally, “Where are you marching, India?”

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Authors

Angel Apostolov

Angel Apostolov

Dr. Angel Apostolov is a PhD in modern history and specializes in NATO-Russia relations and Europe-Asia geopolitics.

Read More +
Solomon Passy

Solomon Passy

Dr. Solomon Passy is Bulgarian Foreign Minister (200105) and founding president of the Atlantic Club of Bulgaria.

Read More +