ज़्यादातर देशों को एक साथ दो-दो महामारियों से मुक़ाबला करना पड़ा है: कोरोना वायरस और ग़लत जानकारी की महामारी. दोनों ही बराबर से नुक़सानदेह हैं. कोविड-19 महामारी से निपटने की राह में ग़लत जानकारी की बाढ़ को एक बड़ी समस्या माना जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस अधानोम घेब्रेयसस ने कहा है कि, ‘कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए विज्ञान और सुबूत में जनता का यक़ीन होना बेहद ज़रूरी है. इसीलिए, कोविड-19 महामारी से लोगों की जान बचाने के लिए स्वास्थ्य के उपायों के साथ-साथ, ग़लत जानकारी से निपटने के नुस्खे तलाशने भी ज़रूरी हैं. जब ग़लत जानकारी को बार बार, ख़ासतौर से प्रभावशाली लोगों द्वारा ज़ोर-शोर से दोहराया जाता है, तो बड़ा ख़तरा इस बात का होता है कि जो जानकारी सच पर आधारित होती है, उसका बहुत मामूली सा असर होता है.’
ग़लत जानकारियों की बाढ़ से निपटने के लिए दुनिया के ज़्यादातर देशों की सरकारों ने बहुत अधिक फ़ुर्ती नहीं दिखाई है. हालांकि, अब स्थिति थोड़ी बहुत सुधरी है. महामारी के पिछले दो वर्षों के दौरान राष्ट्रीय और राज्य स्तर के अधिकारियों ने बार बार सफ़ाई जारी की है, ताकि लोग अफ़वाहों और झूठी ख़बरों के झांसे में न फंसें. गूगल और फ़ेसबुक (मेटा) जैसी कंपनियां भी कोविड-19 से जुड़ी ग़लत जानकारियों का प्रचार रोकने में मदद कर रही हैं.
झूठी सूचना की महामारी से निपटने के लिए समुदाय की चिंताओं और उसके सवालों को समझना बहुत अहम है, ताकि वक़्त पर सही जानकारी मुहैया कराई जा सके.
दुनिया आज भी महामारी की गिरफ़्त में है. दिसंबर 2021 और साल 2022 के शुरुआती महीनों के दौरान सार्स कोरोना वायरस-2 का पांचवां चिंताजनक वेरिएंट (B.1.617) सामने आया. अब इसके तीन और उप-वेरिएंट BA.1; BA.2 और BA.3 की पहचान हो चुकी है. मार्च महीने में ओमिक्रॉन के XE वेरिएंट का भी पता चला. ओमिक्रॉन वेरिएंट के सामने आने के बाद दुनिया के कई देशों में महामारी की नई लहर देखी गई है. भारत में भी इसी वजह से तीसरी लहर सामने आई. हालांकि तब तक भारत में कोरोना वायरस की वैक्सीन आबादी के एक बड़े हिस्से को लग चुकी थी. इसके अलावा संक्रमण से लोगों में क़ुदरती तौर पर भी रोग से लड़ने की क्षमता विकसित हो चुकी थी. इसका नतीजा ये निकला कि भारत में तीसरी लहर का असर सीमित ही रहा. ये इसलिए भी मुमकिन हुआ क्योंकि पिछली दो लहरों से सीखे गए सबक़ के चलते, महामारी को रोकने के उपाय संस्थागत तरीक़े से अपनाए और लागू किए गए. 31 मार्च 2022 तक भारत ने महामारी की रोकथाम के लिए लागू किए गए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन क़ानून 2005 को हटा लिया था. सरकार ने मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग को छोड़कर ज़्यादातर प्रतिबंध भी हटा लिए थे. इसके साथ साथ मार्च अप्रैल 2022 में दुनिया के कई देशों में महामारी की नई लहर दर्ज की गई है; चीन में कोविड-19 का संक्रमण बड़ी तेज़ी से फैल रहा है. जिसके चलते चीन को अपने सबसे बड़े शहर शंघाई में सख़्त लॉकडाउन लगाना पड़ा. हालांकि, जनता के विरोध के चलते अब इसमें कुछ रियायतें दी जा रही हैं.
कुछ ख़ास उपाय अपनाना
साफ़ है कि दुनिया आज भी कोविड-19 महामारी का सामना कर रही है और हमें ग़लत सूचनाओं के प्रचार से निपटने के प्रयास जारी रखने होंगे. इसके लिए कुछ क़दम उठाने होंगे.
पहला तो ये कि हर देश को अपने यहां सूचना की महामारी की समीक्षा करनी होगी. उनके स्रोतों का पता लगाना होगा और इस चुनौती से निपटने के लिए असरदार उपाय करने होंगे. सूचना के दुष्प्रचार से निपटने को संचार और महामारी से निपटने की रणनीतियों का हिस्सा बनाना होगा.
दूसरी बात ये कि सोशल मीडिया कंपनियों को चाहिए कि वो ग़लत जानकारी की पहचान उजागर करने के लिए और मज़बूत व्यवस्था बनाएं. इसके अलावा जब भी कोई ग़लत मगर व्यापक स्तर पर पढ़ी और साझा की गई जानकारी सामने आए, तो उन्हें अपने यूज़र्स को बताने के बारे में भी सोचना चाहिए. ये काम कुछ हद तक शुरू भी हुआ है, मगर इसमें सुधार की अभी काफ़ी गुंजाइश है.
महामारी से मुक़ाबले में आख़िरी आदमी तक पहुंचने के लिए, झूठी जानकारी से निपटना उतना ही अहम है, जिस तरह कोविड-19 से निपटने के दूसरे उपाय. जैसे कि बड़े पैमाने पर लोगों का टीकाकर या अन्य क़दम.
तीसरा, झूठी सूचना की महामारी से निपटने के लिए समुदाय की चिंताओं और उसके सवालों को समझना बहुत अहम है, ताकि वक़्त पर सही जानकारी मुहैया कराई जा सके. किसी महामारी के दौरान सूचना कमी अक्सर ग़लत जानकारी से पूरी की जाती है. इसीलिए, जनता की बात सुनना, उनकी अहम चिताएं समझने पर रिसर्च करना और ज़रूरी उपाय करना बहुत अहम हो जाता है.
चौथा, ये बहुत ज़रूरी है कि स्वास्थ्य के पेशेवर लोग और हर विषय के जानकारों को महामारी और मौसमी बीमारियों से जुड़े जोख़िम भरे संवाद का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए. असरदार कौशल और सही प्रशिक्षण के बग़ैर वो अपनी बात सही तरीक़े से रख पाने में नाकाम रहते हैं. प्रभावशाली और भरोसेमंद विशेषज्ञों को जोखिम भरे संवाद और जनता को सलाह देने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाना चाहिए.
आख़िर में ये भी ज़रूरी है कि सभी समुदायों को सशक्त बनाया जाए और उनसे बत की जाए, जिससे कि ग़लत जानकारी का प्रसार रोका जा सके और इसके दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सके. इसके लिए आम लोगों के नेटवर्क और स्थानीय स्तर पर प्रभावशाली लोगों की मदद ली जा सकती है.
ये ज़िम्मेदारी मेडिकल और जनता की सेहत से जुड़े विशेषज्ञों की है कि वो अपनी तरफ़ से मुक्त और ईमानदार संवाद करें. वो ये मानें कि उन्हें क्या पता है और क्या नहीं मालूम है. ख़ास तौर से तब जब किसी नए रोगाणु का पता चलता है और महामारियां और दूसरे रोग फैल रहे होते हैं. ये मेडिकल समुदाय की और बड़ी ज़िम्मेदारी बन जाती है कि वो उस विषय पर बोलने से बचें जिसमें उन्हें महारत नहीं हासिल है. इसके अलावा मेडिकल समुदाय के लोगों के बीच आपस में भी इस बात की समझ होनी चाहिए कि उनके बीच से अगर कोई ग़लत जानकारी देता है, तो उसे उजागर करें.
ग़लत जानकारी की बाढ़ से निपटने की पूरी प्रक्रिया के दौरान ये भी ज़रूरी है कि स्वास्थ्य से जुड़े संवाद को उन लोगों के हिसाब से तैयार किया जाए, जिन तक अपनी बात पहुंचानी है. इसके साथ साथ ये भी सुनिश्चित करना होगा कि बात को ऐसी भाषा में कहा जाए, जो आम लोग समझते हैं और आख़िरी आदमी तक ये जानकारी पहुंच जाए. हमें ग़लत जानकारी फैलने का इंतज़ार करने के बजाय आगे बढ़कर भरोसेमंद स्रोतों से सही जानकारी दूसरों से, सही समय पर पारदर्शी तरीक़े से साझा करनी चाहिए. ग़लत जानकारी की बाढ़ का जवाब देने के लिए विज्ञान और सबूत बहुत अहम औज़ार होते हैं.
कोविड-19 महामारी के पूरे दौर में ग़लत जानकारी की बाढ़ बहुत बड़ी चुनौती बनी रही है. महामारी के दो बरस से ज़्यादा वक़्त बीत जाने के बाद आज सभी देशों के पास इस चुनौती के बारे में बेहतर जानकारी है. महामारी से मुक़ाबले में आख़िरी आदमी तक पहुंचने के लिए, झूठी जानकारी से निपटना उतना ही अहम है, जिस तरह कोविड-19 से निपटने के दूसरे उपाय. जैसे कि बड़े पैमाने पर लोगों का टीकाकर या अन्य क़दम.
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