Author : Girish Luthra

Published on Aug 07, 2021 Updated 0 Hours ago

विकास पर आधारित जिस बहुआयामी सहयोग की शुरुआत क्वॉड ने की है, उसे इस क्षेत्र के दूसरे देशों को अपने यहां ऐसे घरेलू संरचनात्मक सुधारों को बढ़ावा देने वाले क़दम के तौर पर देखना चाहिए, जिनसे व्यापार, निवेश तकनीक और पूंजी के प्रवाह का सुरक्षित और बढ़ावा देने वाला बाहरी माहौल बनेगा

क्वॉड, भारत और विकास पर आधारित हिंद-प्रशांत की आपसी सहयोग वाली सुरक्षा व्यवस्था

क्षेत्र में सबके लिए सुरक्षा और विकास (SAGAR) की परिकल्पना, प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार मार्च 2015 में सामने रखी थी. इसे अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने, व्यापार और निवेश, कनेक्टिविटी, संस्कृति और समुद्रों के संसाधनों के उपयोग के एक व्यापक ढांचे के तौर पर पेश किया गया था. इस परिकल्पना की बुनियाद सुरक्षा थी, जिसमें ज़ोर आपसी सहयोग से सुरक्षा और मिले-जुले क़दमों पर था. 31 अगस्त 2017 को दूसरे हिंद महासागर सम्मेलन में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इसकी अहम ख़ूबियों के बारे में विस्तार से बताया था. उन्होंने इसकी मिसाल भारत के कलादान से म्यांमार के सित्तवे और थाईलैंड तक मल्टी मोडल परिवहन गलियारे और ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह के विकास के रूप में दी थी. सुषमा स्वराज ने ये भी कहा था कि अदन की खाड़ी में साझा गतिविधियों, हिंद महासागर क्षेत्र में भारत द्वारा मानवीय मदद और आपदा राहत (HADR) के उपाय और मालदीव, सेशेल्स और मॉरीशस के विशेष आर्थिक क्षेत्रों (EEZ) में भारतीय नौसेना की गश्त जैसे क़दम इसी विचार से जुड़े हुए हैं.

हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल

सागर परिकल्पना को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत के नज़रिए को जून 2018 में शांग्री-ला डायलॉग में सामने रखा था. इसके बाद भारत के प्रधानमंत्री ने नवंबर 2019 में 14वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल (IPOI) की शुरुआत की थी. इसका ज़ोर, ‘सुरक्षित, निश्चिंत और स्थिर समुद्री क्षेत्र’ पर था. भारत के प्रधानमंत्री ने नवंबर 2020 में आसियान और भारत के शिखर सम्मेलन में IPOI को सागर की परिकल्पना से जोड़ा था. मौजूदा महामारी के चलते पैदा हुई तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए, भारत ने IPOI के तहत सात प्रमुख लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में तेज़ी से क़दम बढ़ाया है. ये स्तंभ हैं- समुद्री सुरक्षा; समुद्री इकोलॉजी; समुद्री संसाधन; क्षमता का निर्माण और संसाधनों को आपस में साझा करना; आपदा का प्रबंधन और उसका जोखिम कम करना; विज्ञान, तकनीक और अकादेमिक सहयोग; और व्यापार, कनेक्टिविटी और समुद्री परिवहन. इनमें से हर स्तंभ को अहम और बेहद ज़रूरी माना जाता है, जो बाक़ी स्तंभों से जुड़ा हुआ है, और आख़िर में बिना संदेह इस इरादे पर आगे बढ़ना जिससे कि ये सभी पहलू, इसके पहले स्तंभ यानी समुद्री सुरक्षा को बेहतर और मज़बूत बनाएंगे और उसमें सहयोग करेंगे.

सहयोग का ये उभरता हुआ ढांचा अनूठा है. जिसमें विकास और तरक़्क़ी को बुनियादी सिद्धांत बनाकर बहुआयामी सहयोग को बढ़ावा देने की बात है, जो आगे चलकर समुद्री सुरक्षा को मज़बूती देगी. इस ढांचे में ज़ोर इस बात पर है कि सहयोग के एक मज़बूत नेटवर्क से संकट और संघर्ष की आशंकाओं को कम किया जा सकता है.

सागर की अस्पष्ट परिकल्पना पेश करने के पांच वर्षों बाद IPOI के तहत इसकी व्यापक व्याख्या तक भारत ने अपने नज़रिए, नीति और संबंधों में बहुत बड़ा बदलाव किया है. इस दौर में जियोपॉलिटिकल और वैश्विक अर्थव्यवस्था के माहौल में बहुत बड़ा बदलाव भी आया है, और इस दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र की अहमियत भी बढ़ी है. इन पांच वर्षों में कई और देशों ने भी हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर अपने नज़रिए, कोशिशों और रणनीति को सामने रखा है. इनमें से कई के विचार भारत की नीतियों से काफ़ी मेल खाते हैं. ऐसे देशों में अमेरिका, आसियान के सदस्य देश, जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और जर्मनी शामिल हैं. उम्मीद यही है कि आने वाले महीनों में इसमें और देश भी शामिल होंगे.

सहयोग का उभरता अनूठा ढांचा

इसी के समानांतर, 2017 में अपनी औपचारिक शुरुआत के साथ ही क्वॉड (भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका) ने एक व्यापक रूपरेखा पर आम सहमति को आगे बढ़ाने की कोशिश की है. क्वॉड ने, ‘नियमों पर आधारित ऐसी विश्व व्यवस्था’ को क़ायम रखने पर अपनी प्रतिबद्धता जताई है, जिसमें क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता, नियमों को मानने, पारदर्शिता, अंतरराष्ट्रीय समुद्र में आवाजाही की आज़ादी और विवादों के शांतिपूर्ण निपटारे पर ज़ोर दिया गया है. भारत और क्वॉड के अन्य देशों के बीच रक्षा सहयोग बढ़ा है और क्वॉड व अन्य प्रमुख साझीदार देशों के साथ युद्धाभ्यास पर भी विचार किया जा रहा है. जो युद्धाभ्यास अब तक हुए हैं, और आगे जिनकी योजना बनाई जा रही है, वो मूल्यवान तो साबित हुए हैं. लेकिन, अब ये समूह, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग और मदद का एक ऐसा ढांचा विकसित करना चाहता है, जो साझा मूल्यों और नियमों के सम्मान पर आधारित हों और जिनसे इकतरफ़ा और आक्रामक क़दमो को रोका जा सके. क्वॉड ने बहुत सी बेल्ट और बहुत सी सड़कों की परिकल्पना पेश की है. इसमें विकास संबंधी सहयोग, उभरती और महत्वपूर्ण तकनीकों, दुर्लभ खनिजों समेत अहम संसाधनों के प्रबंधन, इन्फ्रास्ट्रक्चर, लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं और उनसे जुड़ी व्यवस्थाओं, स्वास्थ्य सेवाओं और आपदा प्रबंधन पर ज़ोर दिया गया है. सहयोग का ये उभरता हुआ ढांचा अनूठा है. जिसमें विकास और तरक़्क़ी को बुनियादी सिद्धांत बनाकर बहुआयामी सहयोग को बढ़ावा देने की बात है, जो आगे चलकर समुद्री सुरक्षा को मज़बूती देगी. इस ढांचे में ज़ोर इस बात पर है कि सहयोग के एक मज़बूत नेटवर्क से संकट और संघर्ष की आशंकाओं को कम किया जा सकता है. इससे ये माना गया है कि आगे चलकर एक ऐसी व्यापक और सर्वमान्य रणनीति तैयार होगी, जिसे किसी भी भागीदार पर थोपने की ज़रूरत नहीं होगी. साफ़ है कि इसकी मुख्य चुनौती आदर्शवादी बातों और हक़ीक़त के बीच संतुलन बनाने की होगी और एक साझा, सुसंगत नज़रिया तो विकसित करना ही होगा. साथ ही साथ ये भी मानना पड़ेगा कि आने वाले समय में बहुत से भागीदार अपने ख़ास हितों पर आधारित विशेष नीतियां भी अपनाते रहेंगे.

अगर आपसी सहयोग से सुरक्षा की इस रणनीति से संपूर्ण समाधान नहीं हासिल होता है, तो इसे पूरक रणनीति के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे अधिक सामरिक स्थिरता और दबाव और आक्रामकता को सीमित किया जा सकता है. 

इस साल 12 मार्च को हुआ क्वॉड का पहला शिखर सम्मेलन वर्चुअल था. इसमें राष्ट्रपति जो बाइडेन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और पीएम योशिहिदे सुगा ने अच्छे आपसी तालमेल वाले बयान दिए थे, जिसमें, ‘मुक्त, स्वतंत्र, समावेशी और लचीले हिंद-प्रशांत क्षेत्र’ पर ज़ोर दिया गया था. इस दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए ठोस और व्यवहारिक क़दम उठाते हुए तीन कार्यकारी समूह- क्वॉड वैक्सीन एक्सपर्ट ग्रुप (जिसके तहत जापान और ऑस्ट्रेलिया के सहयोग से भारत में कोरोना के अमेरिकी टीके बनाए जाने हैं), क्वॉड क्रिटिकल ऐंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी वर्किंग ग्रुप (जिसकी ज़िम्मेदारी साझा हितों और मूल्यों के आधार पर अहम क्षेत्रों में डिज़ाइन, विकास, मानक तय करने और विविधता लाने के लिए काम करना होगी) और क्वॉड क्लाइमेट वर्किंग ग्रुप (इस क्षेत्र में पेरिस जलवायु समझौते को लागू करने में आपसी तालमेल के लिए) बनाने का भी एलान किया गया था. ये घोषणाएं बेहद अहम हैं, क्योंकि शिखर सम्मेलन के स्तर पर ये पहले क़दम हैं, जो एक इस क्षेत्र में साझेदारी का ढांचा विकसित करने के लिए उठाए गए हैं.

क्वॉड, सागर और IPOI के तहत कुछ अहम देशों का नज़रिया/ रणनीति आपसी सहयोग से सुरक्षा को बढ़ावा देना और सबके फ़ायदे के लिए विकास पर ज़ोर है. सहयोगात्मक सुरक्षा की परिकल्पना (या रणनीति) की जड़ें हम कूटनीतिक संबंधों के ऐतिहासिक पन्नों में तलाश सकते हैं, और ये समय के साथ साथ बदलती भी रही है. इस परिकल्पना के केंद्र में ये विचार है कि शांति का ख़याल सबको एक करता है. इसकी बहुत सी परिभाषाएं हो सकती हैं. अलग अलग व्याख्या हो सकती हैं. लेकिन, मोटे तौर पर इसका मतलब ये है कि सामरिक रूप से एक दूसरे पर निर्भर देश, साझा सहमति के आधार पर आपसी मेलजोल से काम करते हैं, ताकि ख़तरों और चुनौतियों का सामना कर सकें. हाल के वर्षों में इसमें दिलचस्पी काफ़ी बढ़ गई है, क्योंकि साझा सुरक्षा, गठबंधनों, गुटों और सुरक्षा की गारंटी की प्रासंगिकता लगातार घटती जा रही है. शीत युद्ध के दौरान प्रमुख विचार घेरेबंदी और भय से साझा सुरक्षा क़ायम करना था, जिसके तहत पलटवार के ख़तरों का एक मज़बूत सैन्य जवाब दिया जाता था. 90 के दशक की शुरुआत से राजनीतिक- सैन्य व्यवस्थाओं और माध्यमों (संधियों, आपसी विश्वास और सुरक्षा स्थागित करने वाली व्यवस्थाएं वग़ैरह) से सहयोग को बढ़ावा मिला था. इसलिए, विकास पर आधारित या विकास को आगे रखकर सहयोगात्मक सुरक्षा की परिकल्पना, तुलनात्मक रूप से नई है. उम्मीद के मुताबिक़, इस परिकल्पना पर यक़ीन रखने वाले बहुत से देश, ‘एक के ख़िलाफ़ दूसरा दांव खेलने’ की रणनीति पर चल रहे हैं. बहुत से देश ऐसे हैं, जो सुरक्षा के लिए कुछ ख़ास देशों से सहयोग करते हैं, तो व्यापार और वाणिज्य के लिए दूसरे देशों से सहयोग करते हैं. वहीं पर्यावरण की चुनौतियों से निपटने के लिए उनका तालमेल देशों के किसी अन्य समूह से होता है. ‘यथार्थवादी’ आपसी सहयोग से सुरक्षा के इस नए मॉडल को अधूरा और मायावी मानते हैं. उनका ज़ोर ऐसे सहयोग के विरोधाभासों पर होता है. हालांकि, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के मौजूदा भौगोलिक-सामरिक और आर्थिक हालात को देखते हुए, इस क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ाने के लिए कोई दूसरी वैकल्पिक रणनीति उपलब्ध नहीं है. अगर आपसी सहयोग से सुरक्षा की इस रणनीति से संपूर्ण समाधान नहीं हासिल होता है, तो इसे पूरक रणनीति के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे अधिक सामरिक स्थिरता और दबाव और आक्रामकता को सीमित किया जा सकता है. इस रणनीति से भूमंडलीकरण और संरक्षणवाद को आपस में मिलकर नुक़सानदेह बनने से भी रोका जा सकता है.

आर्थिक संवाद के लिए क्वॉड इस नज़रिए को बढ़ावा दे सकता है. इसके लिए उसे कुछ ऐसी बुनियादें तय करनी होंगी, जिनके इर्द-गिर्द मुद्दों पर आधारित साझेदारियां बुनी जा सकती हैं.

क्या क्वॉड आर्थिक संवाद के नज़रिए को बढ़ावा दे सकता है

निवेश, खपत, व्यापार, तकनीक पूंजी के प्रवाह और वित्तीय स्थिरता को ख़ास तवज्जो देने वाले विकास के एजेंडे पर आधारित सहयोग के कई मॉडल हमारे सामने हैं, और हाल के दिनों में उनके सामने कई चुनौतियां खड़ी होती देखी गई हैं. अमेरिका और चीन के आर्थिक संबंधों के सुरक्षा पर असर का तो लंबे समय से विश्लेषण होता आया है. बहुत से लोग ये मानते हैं कि इसके उम्मीद से बिल्कुल अलग नतीजे सामने आए हैं. इसी तरह चीन के साथ आर्थिक संबंध के तुलनात्मक रूप से परस्पर लाभ को लेकर काफ़ी बहस छिड़ी रही है, और इन संबंधों के सुरक्षा के माहौल पर पड़ने वाले असर को लेकर भी चिंताए जताई जाती रही हैं. बहुत से विवादित मसले, जिनमें व्यापार के स्थानीय उत्पादन और आर्थिक गतिविधियों पर पड़ने वाले असर, संबंधित देशों के साथ व्यापार संतुलन का प्रबंधन और व्यापार कर में प्रस्तावित रियायतों से राजस्व में कमी जैसे मसले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) की परिचर्चाओं के भी केंद्र में रहे हैं. हम केवल पारदर्शिता, संवाद, एक दूसरे से तालमेल और भागीदारों को होने वाले फ़ायदों को साफ़ तौर पर बताकर ही ऐसे सहयोग से जुड़ी चिंताएं दूर कर सकते हैं, और आपसी सहयोग के लिए भरोसे का माहौल बना सकते हैं. आर्थिक संवाद के लिए क्वॉड इस नज़रिए को बढ़ावा दे सकता है. इसके लिए उसे कुछ ऐसी बुनियादें तय करनी होंगी, जिनके इर्द-गिर्द मुद्दों पर आधारित साझेदारियां बुनी जा सकती हैं.

आगे की राह

नई कमज़ोरियां और लेन देन पर आधारित रिश्तों की बढ़ती चुनौतियों के लिए सहयोग को और बढ़ाने की ज़रूरत है. ऐसा सहयोग केवल आपसी तालमेल और समन्वय से ही हो सकता है. विकास पर आधारित जिस बहुआयामी सहयोग की शुरुआत क्वॉड ने की है, उसे इस क्षेत्र के देशों को ऐसी व्यवस्था के तौर पर देखना चाहिए, जो घरेलू ढांचागत बदलावों का तालमेल व्यापार, निवेश, तकनीक और पूंजी के प्रवाह के एक सुरक्षित माहौल से मेल-जोल करा सकें. विकास और सुरक्षा के लिए साझा नियमों और मूल्यों पर आधारित मज़बूत साझेदारियों और हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर एक जैसी नीतियों का लाभ उठाने से सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि को और मज़बूत करने में मदद मिलेगी और इस दिशा में की जा रही अन्य कोशिशों पर भी भरोसा बढ़ेगा. विकास पर आधारित सुरक्षा संबंधी सहयोग के इस नए विचार को आगे बढ़ाते हुए क्वॉड को ये सुनिश्चित करना होगा कि जिन वर्किंग ग्रुप का एलान किया गया है, वो तय समय पर अपना काम पूरा करें. हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग की अपनी इस मिसाल को और लोकप्रिय बनाने के लिए क्वॉड को और कोशिशें करनी चाहिए, जिससे क्वॉड के दायरे में रहकर तीन देशों और दो देशों के बीच रिश्तों को और मज़बूत बनाया जा सके. इसके साथ साथ क्वॉड को अपने से जुड़ी तमाम आशंकाओं, संदेहों और अविश्वास को दूर करने की भी कोशिश करनी चाहिए, जिससे वो इस नई व्यवस्था के ज़रिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र को वाक़ई मुक्त, स्वतंत्र और सबके लिए बना सके.

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