Published on Jul 24, 2023 Updated 0 Hours ago

बायोबैंक बायोलॉजिकल रिसर्च (जैविक अनुसंधान) के लिए मौलिक डेटा होस्ट करते हैं लेकिन गवर्नेंस यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी है कि इसके नतीजे विभिन्न देशों के लोगों तक समान रूप से पहुंचें.

भारत के बायोबैंक का उभरता हुआ प्रभाव: वैश्विक गवर्नेंस की आवश्यकता को जगाता है!

बायोटेक्नोलॉजी (जैव प्रौद्योगिकी) अर्थव्यवस्था या बायोइकोनॉमी (जैव अर्थव्यवस्था) ने जीन और जेनेटिक मॉडिफिकेशन (आनुवंशिक संशोधन), स्वास्थ्य देखभाल पर इसके प्रभाव,खाद्य सुरक्षा, जैव उत्पादन आदि में इनोवेशन की अधिक समझ के साथ बाज़ार मूल्य में तेज़ी से बढ़ोतरी देखी है. जुलाई 2022 में भारत ने अपनी बायोइकोनॉमी रिपोर्ट जारी की, जो इसके विकास को रेखांकित करती है. बायोटेक्नोलॉजी क्षेत्र और इसके संचालन से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में साल 2030 तक 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर के संभावित बाज़ार मूल्य की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया है. रिपोर्ट लॉन्च करने वाले केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने आने वाले 25 वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बायो टेक्नोलॉजी की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला है. पिछले दस वर्षों में बायोटेक स्टार्ट-अप में 50 से 5,300 से अधिक की बढ़ोतरी हुई है और 2025 तक इसकी संख्या को दो गुना बढ़ाकर 10,000 से अधिक करने की क्षमता किया जाना है. यह वृद्धि बायो इकोनॉमी में रिसर्च, डेवलपमेंट, विकास और औद्योगिक भागीदारी में बढ़ोतरी का संकेत देती है.

पिछले दस वर्षों में बायोटेक स्टार्ट-अप में 50 से 5,300 से अधिक की बढ़ोतरी हुई है और 2025 तक इसकी संख्या को दो गुना बढ़ाकर 10,000 से अधिक करने की क्षमता किया जाना है. यह वृद्धि बायो इकोनॉमी में रिसर्च, डेवलपमेंट, विकास और औद्योगिक भागीदारी में बढ़ोतरी का संकेत देती है.

बायो-इकोनॉमी के क्षेत्र में रिसर्च एंड डेवलपमेंट (आरएंडडी) के लिए डेटा को तीन प्रकार के डेटा केंद्रों में संग्रहित किया जा सकता है: जैविक संसाधन केंद्र (बीआरसी), बायोरिपॉजिटरी, या बायोबैंक. इन तीनों में बायोलॉजिकल डेटा होता है, बायोबैंक आमतौर पर केवल मानव-आधारित बायोलॉजिकल डेटा (रक्त, ट्यूमर वृद्धि और डीएनए नमूने सहित) को संरक्षित रखता है. बायोरिपोजिटरी और बीआरसी पशु और पर्यावरण संबंधी डेटा को रखते हैं.

बायोबैंक गंभीर मानव रोगों के अनुसंधान एवं विकास के समाधान के लिए डेटा एकत्र करते हैं. इस प्रकार बायोबैंक दो प्रकार के हो सकते हैं: जनसंख्या-केंद्रित, जो सामान्य जनसंख्या नमूनों से जानकारी एकत्र करता है और रोग-केंद्रित, जो शोध किए जा रहे किसी विशिष्ट बीमारी या आनुवंशिक स्थिति के आधार पर जानकारी एकत्र करता है. बायोबैंक को वर्गीकृत करने का एक अन्य तरीक़ा रिसर्च को लेकर भी है जिसमें जनसंख्या बायोबैंक, बुनियादी अनुसंधान बायोबैंक, ट्रांसनेशनल स्टडी बायोबैंक, पैथोलॉजिकल स्टडी बायोबैंक और क्लिनिकल टेस्टिंग बायोबैंक शामिल हैं.

इस प्रकार, बायोबैंक स्वास्थ्य और बायोलॉजिकल रिसर्च के लिए मौलिक डेटा होस्ट करते हैं लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए गवर्नेंस की आवश्यकता होती है कि ऐसे अनुसंधान के नतीज़े विभिन्न देशों में अलग-अलग आबादी के समूहों तक समान रूप से पहुंचें.

डेटा संग्रह और बेनिफिट डिप्लॉयमेंट में असंगति

बायोबैंकिंग मेडिकल रिसर्च, उपचार और फार्मास्युटिकल इनोवेशन का अभिन्न अंग है और बायोबैंकिंग में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग अब इस क्षेत्र का एक अभिन्न अंग है. ग्लोबल बायोबैंकिंग बाज़ार के 2028 तक 69 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है.

गैर-ज़िम्मेदाराना तरीक़े से किया गया बायोबैंकिंग और बायोलॉजिकल डेटा का उपयोग भेदभाव के लिए डेटा के दुरुपयोग या अनैतिक इनोवेशन और भय फैलाने के लिए डेटा के अनुचित आरोप की आशंका पैदा करता है, जैसे कि “डिज़ाइनर बेबीज” के साथ है. हालांकि बायोलॉजिकल डेटा आउटकम ही एकमात्र जगह नहीं है जिसके लिए गवर्नेंस की आवश्यकता होती है बल्कि डेटा कलेक्शन, स्टोरेज और शेयरिंग डेटा के दुरुपयोग को बढ़ाते हैं जिनके लिए गवर्नेंस और कॉम्प्लायंस की ज़रूरत होती है.

वैश्विक स्तर पर अधिकांश बायोबैंक उत्तरी अमेरिका और यूरोप में स्थित हैं, जो दुनिया के लगभग 95 प्रतिशत बायोबैंक को कवर करते हैं. ग्लोबल साउथ अभी भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है और दुनिया के लगभग 5 प्रतिशत बायोबैंक की मेज़बानी कर रहा है. फिलहाल भारत में 340 वैश्विक बायोबैंक में से 19 पंजीकृत बायोबैंक हैं, जबकि कई अन्य को अभी तक ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ में विश्व स्तर पर मान्यता नहीं मिल पाई है.

ग्लोबल साउथ में बायोबैंक की कमी के परिणामस्वरूप हेल्थ रिसर्च, डेवलपमेंट और स्वास्थ्य पहल को लेकर की जाने वाली तैनाती में असमान प्रतिनिधित्व देखा जाता है. ग्लोबल नॉर्थ में बायोबैंक के लिए रिसर्च और फंडिंग के पूर्वाग्रह का ही नतीज़ा है कि यहां उन जेनेटिक कंडीशन्स और बीमारियों पर शोध होता है जो ग्लोबल नॉर्थ को प्रभावित करते हैं और ग्लोबल साउथ के देशों के लिए कम फ़ायदेमंद होते हैं.

वैश्विक स्तर पर अधिकांश बायोबैंक उत्तरी अमेरिका और यूरोप में स्थित हैं, जो दुनिया के लगभग 95 प्रतिशत बायोबैंक को कवर करते हैं. ग्लोबल साउथ अभी भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है और दुनिया के लगभग 5 प्रतिशत बायोबैंक की मेज़बानी कर रहा है. 

जबकि चीन, दक्षिण अफ्रीका, मेक्सिको और भारत जैसे कुछ देश बायोबैंक विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन रिसर्च और स्थापना के लिए बढ़ी हुई फंडिंग के साथ ग्लोबल साउथ के ज़्यादा प्रतिनिधित्व करने की आवश्यकता बनी हुई है. इसके अलावा ग्लोबल नॉर्थ के स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करते समय ग्लोबल साउथ से नमूनों का उपयोग करने के नतीज़ों में भी विसंगति है. इसके अलावा, स्पष्ट ‘रिटर्न ऑन रिज़ल्ट’ नीतियों की कमी के कारण, ग्लोबल साउथ में बायोबैंक से निकाले गए डेटा के लाभों को समान रूप से साझा नहीं किया जाता है. इससे ग्लोबल साउथ बायोबैंक, शोधकर्ताओं और ग्लोबल नॉर्थ में बायोलॉजिकट डेटा का उपयोग करने वाले संगठनों के बीच अविश्वास पैदा होता है.

सार्स-कोविड 19 के दौरान भी इसी तरह का परिणाम देखा गया था, जिसमें अनुसंधान स्रोतों और वैक्सीन निर्माण को लेकर जानकारी साझा करने और तैनाती के बीच भारी असमानता थी. अगस्त 2021 में कोरोना महामारी के बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दक्षिण अफ्रीकी सरकार के साथ मिलकर केप टाउन में पहला वैश्विक वैक्सीन-निर्माण केंद्र बनाया. हालांकि मॉडर्ना और फ़ाइज़र जैसे निजी क्षेत्र की कंपनियों की अपनी जानकारी को संरक्षित करने की इच्छा ने वैक्सीन निर्माण में योगदान करने के लिए अफ्रिजेन (केप टाउन में निर्मित वैक्सीन उत्पादन के लिए ज़िम्मेदार बायोटेक फर्म) की क्षमता को कम कर दिया. इसने वैश्विक वैक्सीन निर्माण पर अफ्रीका की निर्भरता की प्रवृत्ति को बनाए रखा, जबकि यह अफ्रीका महाद्वीप के भीतर खपत होने वाले टीकों का केवल 1 प्रतिशत ही मैन्युफैक्चर करता है.

परिणामों में इन असमानताओं से बचने के लिए, बायोबैंकिंग क्षेत्र को अकादमिक और औषधीय अनुसंधान, सरकारी आउटरीच और निजी क्षेत्र की भागीदारी को मिलाते हुए नॉर्म बिल्डिंग (मानदंड-निर्माण) और ग्लोबल लेवल के गवर्नेंस में ज़्यादा से ज़्यादा ग्लोबल साउथ की भागीदारी की आवश्यकता है. बायोबैंकिंग के लिए ऐसे वैश्विक दिशानिर्देश बनाने में ग्लोबल साउथ बायोबैंक और स्वास्थ्य संगठनों की ज़रूरत होगी और ग्लोबल नॉर्थ बायोबैंक, स्वास्थ्य संगठन और शोधकर्ताओं को उनके शोध में उपयोग किए गए डेटा के स्रोतों के प्रति ज़्यादा से ज़्यादा ज़वाबदेह बनाया जाएगा.

बायोबैंकिंग और डेटा शेयरिंग के लिए वैश्विक सम्मेलन

वर्तमान में, बायोलॉजिकल डेटा के कुछ पहलुओं को वैश्विक डेटाबेस और दिशानिर्देश नज़रअंदाज़ कर देते हैं. उदाहरण के लिए, ग्लोबल एलायंस फॉर जीनोमिक हेल्थ, बायोबैंकिंग और बायोमॉलिक्यूलर रिसोर्सेज रिसर्च इन्फ्रास्ट्रक्चर, इंटरनेशनल हैपमैप प्रोजेक्ट और इंटरनेशनल कैंसर जीनोम कंसोर्टियम जैसे संगठनों ने इनोवेशन का प्रचार करने के लिए नैतिक डेटा साझाकरण और बायोबैंक से डेटा तक वैश्विक पहुंच को प्रोत्साहित करने के लिए डेटाबेस और दिशानिर्देश स्थापित किए हैं.

इसके अलावा यह सुनिश्चित करने के लिए कि ग्लोबल साउथ को अनुसंधान परिणामों तक बराबर की पहुंच हासिल है, बायोलॉजिकल डायवर्सिटी (जैविक विविधता) सम्मेलन के तहत नागोया प्रोटोकॉल बायोपाइरेसी, इसके प्रभावों और समान लाभ साझा करने की आवश्यकता को रेखांकित करता है. यह प्रोटोकॉल निरंतर जैविक विविधता और मानव जीवन वृद्धि के लिए बायोटेक्नोलॉजी इनोवेशन की उपयोगिता को प्रोत्साहित करता है. निजी क्षेत्र के लिए भी, आईएसओ 20387 के तहत अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन ने बायोबैंक डेटा इकट्ठा करने और बनाए रखने के लिए प्रथाओं की रूपरेखा तैयार की है.

हालांकि, ये दिशानिर्देश और डेटाबेस लागू करने योग्य नहीं हैं और इसके लिए संबंधित देशों और संगठनों की स्वैच्छिक भागीदारी की आवश्यकता होती है. इसके अलावा, नेशनल स्टैंडर्ड और ग्लोबल कॉम्प्लायंस में महत्वपूर्ण अंतर न्यायसंगत डेटा और शेयरिंग स्टैंडर्ड, अनुसंधान में रोड़े, बायोपाइरेसी और निजी क्षेत्र की भागीदारी की आवश्यकता को नज़रअंदाज़ करते हैं. इस क्षेत्र में ग्लोबल गवर्नेंस में सदस्यों के अधिकारों, डेटा साझाकरण मानकों, डेटा होस्टिंग और संग्रह में बाधाओं को एड्रेस करने और अनुसंधान और आपातकाल में निजी क्षेत्र की भागीदारी को परिभाषित करने की आवश्यकता है.

भारत और बायोबैंकिंग प्रैक्टिस

भारतीय बायोइकोनॉमी रिपोर्ट लॉन्च में बायोबैंक का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है. रिपोर्ट बढ़ती हुई बायोइकोनॉमी में रिसर्च के एक महत्वपूर्ण टूल के रूप में “बायो-आईटी” को रेखांकित करती है. जबकि बायो-आईटी में सहज या स्पष्ट रूप से बायोबैंक शामिल नहीं है, भारत में बायोबैंकिंग और डेटा शेयरिंग को नज़रअंदाज़ करने के लिए अन्य दिशानिर्देश हैं.

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने डीबीटी को बनाए रखने के लिए दिशानिर्देशों में बायोबैंकिंग, एथिकल डेटा स्टोरेज, डेटा शेयरिंग और बेनिफिट शेयरिंग करने के लिए सबसे बेहतर प्रैक्टिस की रूपरेखा तैयार की है – बायोबैंक और समूह, डेटा एक्सचेंज के माध्यम से रिसर्च इनोवेशन को बढ़ावा देना (बायोटेक – प्राइड गाइडलाइन्स)और इंसानों से जुड़े बायोमेडिकल और स्वास्थ्य अनुसंधान के लिए राष्ट्रीय नैतिक दिशानिर्देश तैयार करना.

ये दस्तावेज़ वित्तीय सहायता के महत्व और मानव-उपयुक्त स्वास्थ्य देखभाल में इनोवेशन करने की देश की काबिलियत को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भर मॉडल में कोविड-19 महामारी जैसी आपात स्थितियों के लिए तैयार करने के लिए बायोबैंक की नैतिक निगरानी की आवश्यकता को भी कवर करते हैं.

भारत ग्लोबल गवर्नेंस की वकालत करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है. इस तरह के दिशानिर्देश तैयार करने और एक निगरानी प्राधिकरण की स्थापना से ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के बीच विसंगति को दूर करने में मदद मिल सकती है.

भारत ग्लोबल गवर्नेंस की वकालत करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है. इस तरह के दिशानिर्देश तैयार करने और एक निगरानी प्राधिकरण की स्थापना से ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नॉर्थ के बीच विसंगति को दूर करने में मदद मिल सकती है. हाल के वर्षों में भारत ने कोविड-19 वैक्सीन विकास, तैनाती और कूटनीति में अपनी भागीदारी के साथ ख़ुद को स्वास्थ्य सेवा में एक वैश्विक नेतृत्व देने वाले देश के रूप में स्थापित किया है. इसके अलावा भारत, बायोबैंकिंग के लिए ग्लोबल साउथ डायनेमिक्स में अपने अनुभव और स्वास्थ्य जानकारी और डेटा निर्यात करने के इतिहास के साथ, ग्लोबल साउथ के लिए प्रासंगिक बीमारियों को प्राथमिकता देने, बायोपाइरेसी को रोकने की आवश्यकता पर जोर डालने और नियम स्थापित करने और ग्लोबल साउथ के साथ इसका बेनिफिट शेयरिंग की आवश्यकता में भी बेहतर योगदान दे सकता है.क्वॉड्रिलैटरल  अलायंस और जी20 प्रेसीडेंसी जैसे बहुपक्षीय संगठनों में अपनी भागीदारी के साथ भारत के पास एक वैश्विक मंच भी फिलहाल उपलब्ध है.

भारत क्वाड के साथ अपने सहयोग से 2022 तक 70 से अधिक देशों में अपने वैक्सीन उत्पादन और तैनाती को बढ़ाने में सक्षम था. इसी तरह भारत ने जी20 प्लेटफार्मों पर अपनी वैक्सीन कूटनीति का हवाला देते हुए एक ग्लोबल वैक्सीन रिसर्च कोलैबोरेटिव की तात्कालिकता का सुझाव दिया है. ग्लोबल डिप्लोमेसी में भारत की पहुंच का समर्थन करने वाले इन प्लेटफार्म के साथ, यह बायोबैंकिंग और डेटा साझाकरण के लिए वैश्विक शासन संरचना बनाने में प्रेरित करने और सहायता करने के लिए अपने राष्ट्रीय नियमों का विस्तार कर सकता है. इस तरह, शोधकर्ताओं और बायोबैंक के बीच विश्वास की किसी भी दूरी को पाटा जा सकता है और ग्लोबल साउथ में फंडिंग के लिए बेनिफिट शेयरिंग और प्रोत्साहन को बढ़ावा देने के लिए एक सिस्टम बनाया जा सकता है.

निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि भारत बायोबैंकिंग के गवर्नेंस की इस आवश्यकता का नेतृत्व कर रहा है और ग्लोबल साउथ का प्रतिनिधित्व साइंटिफिक रिसर्च, इक्वीटेबल हेल्थकेयर, पारस्परिक बेनिफिट शेयरिंग की प्रगति को बढ़ावा देगा और इन क्षेत्रों के सामने आने वाली हेल्थकेयर से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करेगा.

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