Author : Seema Sirohi

Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

दुनिया लगातार एक द्विध्रुवीय विश्व की ओर बढ़ रही है, क्योंकि यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को दो-फाड़ कर दिया है.

भारत का ‘बहुध्रुवीय’ विश्व का लक्ष्य और ‘द्विध्रुवीय’ होती दुनिया का सच?
भारत का ‘बहुध्रुवीय’ विश्व का लक्ष्य और ‘द्विध्रुवीय’ होती दुनिया का सच?

यूक्रेन में जारी युद्ध दुनिया को वापस द्विध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर धकेल रहा है. पुराने प्रतिद्वंद्वी एक लंबे चलने वाले गतिरोध के लिए फिर से तैयार हो रहे हैं. प्रतिस्पर्धा के इस नये दौर के दूसरे और तीसरे क्रम के प्रभाव (second and third order effects) भी होंगे और भारत जैसे देशों पर लगातार अरुचिकर विकल्प का चुनाव थोपेंगे.

अमेरिका की अगुवाई वाले पश्चिमी गठबंधन सहयोगी एक उभरती रणनीति के हिस्से के रूप में रूस को अलग-थलग और कमज़ोर करने के मकसद से गोलबंद हुए हैं. यह ‘कंटेनमेंट 2.0’ है, जहां ख़ेमे की राजनीति (ब्लॉक पॉलिटिक्स) एक बार फिर सबसे आगे है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के ख़िलाफ़ अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की ज़ुबानी जंग समय के साथ कहीं आगे निकल चुकी है और अमेरिका यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति कर रहा है. बाइडेन ने पुतिन को ‘युद्ध अपराधी’, ‘ख़ूनी तानाशाह’, ‘कसाई’ कहा है और यहां तक कि उन पर जातीय नरसंहार करने का आरोप लगाया है.

एक ज़ख़्मी, कमज़ोर रूस भारत के हित में नहीं है. नयी दिल्ली मॉस्को को एशिया में एक संतुलनकारी शक्ति और बहुध्रुवीय विश्व में एक अत्यंत महत्वपूर्ण ध्रुव के रूप में देखती है.

बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, जेक सुलिवन ने हाल ही में नेशनल ब्रॉडकास्टिंग कंपनी (एनबीसी) पर बोलते हुए अमेरिकी लक्ष्यों को समझाया, ‘अंत में, हम एक मुक्त और स्वाधीन यूक्रेन, एक कमज़ोर व अलग-थलग रूस, और एक मज़बूत, ज़्यादा एकजुट, ज़्यादा दृढ़निश्चयी पश्चिम देखना चाहते हैं. हमारा विश्वास है कि ये तीनों ही उद्देश्य अब ज़्यादा दूर नहीं हैं.’

एक ‘कमज़ोर और अलग-थलग रूस’ भारत के लिए रणनीतिक तस्वीर को इस तरह से जटिल बनाता है कि नीति-निर्माता शायद इस बारे में सोचना भी नहीं चाहेंगे. सीधे-सीधे कहें, एक ज़ख़्मी, कमज़ोर रूस भारत के हित में नहीं है. नयी दिल्ली मॉस्को को एशिया में एक संतुलनकारी शक्ति और बहुध्रुवीय विश्व में एक अत्यंत महत्वपूर्ण ध्रुव के रूप में देखती है. बहुध्रुवीय विश्व के लिए भारत की प्राथमिकता भलीभांति ज्ञात है, लेकिन यूक्रेन युद्ध ने इसकी संभावना को निकट भविष्य में अगर ख़त्म नहीं, तो कम ज़रूर कर दिया है.

लड़खड़ाता रूस और पश्चिम विरोधी ध्रुव

बहुत से विश्लेषकों का जैसा अनुमान है, लड़खड़ाता रूस संभवत: चीन के ज़्यादा करीब आयेगा और उभरती द्विध्रुवीय व्यवस्था में एक पश्चिम-विरोधी ध्रुव की तरह काम करेगा. इस स्थिति में भारत के पास कम ही विकल्प बचेंगे, जो विदेश नीति में विविधीकरण की उसकी रणनीति को अनिवार्य रूप से सीमित करेगा. लेकिन परिदृश्य को दूसरी तरह से देखें, तो भारत अकेला नहीं है. ग्लोबल साउथ के कई प्रमुख देश ख़ेमे की राजनीति के नये संस्करण में धकेले जाना नहीं चाहते.

लेकिन प्रमुख पश्चिमी देश इस दिशा में अटल रूप से बढ़ते लग रहे हैं. उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नेटो) के महासचिव जेन्स स्टोल्टनबर्ग ने इसी महीने कहा कि रूस के साथ रिश्ता ‘बुनियादी तौर पर बदल’ गया है और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों का खुल्लम खुल्ला उल्लंघन कर रहे रूस के लिए ‘सार्थक संवाद’ (जिसके लिए हमने पहले कोशिश की) विकल्प नहीं है. उन्होंने जोर देकर कहा, नेटो और रूस के बीच अब कोई सहयोग अस्तित्व में नहीं है.

नेटो को नये सिरे से मिली वैधता ने अमेरिकी नेतृत्व को मज़बूत करते हुए पश्चिमी नेताओं को एक नया सैन्य और राजनीतिक मक़सद दिया है. प्रधान हितों के ख़तरे में होने पर एकता आसान है. रूस के युद्ध ने डेमोक्रेटों और रिपब्लिकनों को बाइडेन के पीछे एकजुट कर दिया है और उन्हें द्विदलीय समर्थन का एक दुर्लभ क्षण प्रदान किया है.

नेटो के विस्तार का भविष्य

नेटो के विस्तार का भविष्य एक बार फिर निकट दिख रहा है. स्वीडन और फिनलैंड गठबंधन में शामिल होने का स्पष्ट झुकाव दिखा रहे हैं और तटस्थता के अपने इतिहास का त्याग कर रहे हैं. दोनों देशों ने क्रीमिया पर रूसी क़ब्ज़े के बाद भी अपने पड़ोसी के साथ हिंसक संघर्ष से बचने के लिए उससे संवाद बनाये रखा था.

लेकिन यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने, नाटो में शामिल होने के पक्ष में बढ़ते जनमत के साथ, रणनीतिक भूदृश्य को नाटकीय ढंग से बदल दिया. अगर फिनलैंड और स्वीडन सदस्यता के लिए आवेदन करते हैं, तो नाटो के मौजूदा 30 सदस्य उनके आवेदन पर जून में मैड्रिड में होने वाली शिखर बैठक में विचार कर सकते हैं.

. नेटो को नये सिरे से मिली वैधता ने अमेरिकी नेतृत्व को मज़बूत करते हुए पश्चिमी नेताओं को एक नया सैन्य और राजनीतिक मक़सद दिया है. 

स्वाभाविक रूप से, फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने के विचार पर रूस की ओर से तीखी प्रतिक्रिया हुई है, जिसमें गंभीर सैन्य-राजनीतिक नतीजों की चेतावनी भी शामिल है. मॉस्को ने कहा कि वह ‘इस स्थिति के पुनर्संतुलन’ के लिए क़दम उठायेगा. पूर्व रूसी राष्ट्रपति, रूस की सुरक्षा परिषद के सदस्य और पुतिन के सहयोगी दिमित्री मेदवेदेव ने फिनलैंड और स्वीडन के इस दिशा में आगे बढ़ने पर तीन बाल्टिक राज्यों के क़रीब परमाणु हथियार तैनात करने की बात की.

लेकिन पश्चिम की प्रतिक्रिया भी उतनी ही तीखी है और दिन-ब-दिन और तीखी होती जा रही है. यूरोप 2022 के अंत तक रूसी गैस पर अपनी निर्भरता में दो-तिहाई की कमी करने और 2030 तक रूसी तेल व गैस के आयात को पूरी तरह ख़त्म करने के लिए कमर कस रहा है. यह पहली बार है कि एक शून्य विकल्प पर यूरोप द्वारा गंभीरता से विचार किया जा रहा है.

जर्मनी, जो रूस के साथ व्यापार और संवाद को तरजीह देता था, एक तरह की नीतिगत क्रांति से गुज़रा है. नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन को ठंडे बस्ते में डालना और रक्षा पर जीडीपी का 2 फ़ीसद खर्च करने का वादा करना सरकार के लिए रैडिकल क़दम हैं

जर्मनी, जो रूस के साथ व्यापार और संवाद को तरजीह देता था, एक तरह की नीतिगत क्रांति से गुज़रा है. नॉर्ड स्ट्रीम 2 पाइपलाइन को ठंडे बस्ते में डालना और रक्षा पर जीडीपी का 2 फ़ीसद खर्च करने का वादा करना सरकार के लिए रैडिकल क़दम हैं, लेकिन वह भी आख़िर 69 फ़ीसद मतदाताओं के समर्थन पर टिकी हुई है. पिछले साल तक ऐसा परिदृश्य सोच से परे रहा होगा.

युद्ध के आठवें सप्ताह में प्रवेश करने पर, बाइडेन प्रशासन ने 80 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सैन्य मदद की ताज़ा किस्त के एक हिस्से के रूप में हथियारों से भरे चार सैन्य मालवाहक विमान सप्ताहांत में भेजे. वाशिंगटन ने पिछले साल से यूक्रेन को तक़रीबन 2.5 अरब डॉलर सैन्य सहायता में देने का वादा किया है. उसकी यह सुनिश्चित करने की कोशिश है कि यूक्रेनी सेना के पास रूस के ख़िलाफ़ पर्याप्त हथियार हो. 13 अप्रैल को मंज़ूर किये गये नये मिलिट्री पैकेज में 200 बख़्तरबंद कार्मिक वाहन, 155 मिमी की 18 होवित्जर तोपें, 11 एमआई-17 हेलीकॉप्टर और 300 ड्रोन शामिल हैं.

अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी

अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों का यह नज़रिया लगातार पुख़्ता हो रहा है कि रूस के साथ सह-अस्तित्व और सहयोग असंभव है. रक्षा से लेकर वित्त और व्यापार तक – हर प्रमुख क्षेत्र में वे रूस के साथ अपना संपर्क सीमित करना चाहते हैं. बाइडेन प्रशासन की पहली राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (एनएसएस), जिसे पिछले साल आ जाना चाहिए था, अब रूस को वापस केंद्र में लाकर दोबारा लिखी जा रही है. एनएसएस की कल्पना चीन को प्राथमिक प्रतिद्वंद्वी और रूस को दूसरे दर्जे का ख़तरा मानकर की गयी थी, लेकिन यूक्रेन युद्ध ने इस पर दोबारा सोचने को मजबूर कर दिया.

जैसे-जैसे अमेरिका यूरोप की सुरक्षा और रूस से ख़तरों को ज़्यादा तवज्जो देते हुए अपने रणनीतिक दृष्टिकोण को नये सिरे से निर्मित करेगा, हिंद-प्रशांत रंगभूमि (इंडो-पैसिफिक थियेटर) के लिए संसाधनों के आवंटन और तवज्जो को लेकर सवाल उठेंगे, जो भारतीय सुरक्षा को सीधे प्रभावित करता है. 

जैसे-जैसे अमेरिका यूरोप की सुरक्षा और रूस से ख़तरों को ज़्यादा तवज्जो देते हुए अपने रणनीतिक दृष्टिकोण को नये सिरे से निर्मित करेगा, हिंद-प्रशांत रंगभूमि (इंडो-पैसिफिक थियेटर) के लिए संसाधनों के आवंटन और तवज्जो को लेकर सवाल उठेंगे, जो भारतीय सुरक्षा को सीधे प्रभावित करता है. अपनी चीन नीति को उजागर करने में बाइडेन प्रशासन द्वारा की जा रही देरी ने बहुतों को उलझन में डाल दिया है, ख़ासकर यह देखते हुए कि रूस का पश्चिम से अलगाव मॉस्को को बीजिंग के क़रीब धकेलता है.

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