कोविड टीकाकरण का आंकड़ा 100 करोड़ को पार कर गया है, निश्चित ही ये उल्लेखनीय कामयाबी है. हालांकि, सरकार ने दिसंबर के अंत कर देश की पूरी वयस्क आबादी को टीका देने का लक्ष्य निर्धारित किया हुआ था. लेकिन, अभी भी हम तय लक्ष्य से दूर हैं. देश में 100 करोड़ लोगों को टीके की पहली ख़ुराक देकर हमने एक बड़ा पड़ाव पार किया है. इतनी बड़ी आबादी को टीका दे पाना आसान काम नहीं था. छह से आठ महीने पहले किसी ने कल्पना नहीं की थी कि 100 करोड़ के लक्ष्य को हम दिसंबर से पहले पार कर जायेंगे.
अब लक्ष्य ज़्यादा दूर नहीं
सरकार ने जब एक अरब वयस्कों को टीका देने का लक्ष्य घोषित किया था, तात्पर्य दो अरब ख़ुराकें देने का था, तो लोग इस पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे. भले ही उस समय यह वास्तविक प्रतीत नहीं हो रहा था, लेकिन अब स्पष्ट है कि हम लक्ष्य से उतना दूर नहीं हैं, जितना चार या छह महीने पहले सोच रहे थे. भले ही दिसंबर में नहीं, लेकिन जनवरी-फरवरी तक हम उस लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं.
हाल के दिनों में राज्यवार टीके की आपूर्ति में काफी सुधार आया है. सभी राज्यों के पास पर्याप्त टीका उपलब्ध है. नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, राज्यों के टीकाकरण केंद्रों पर अभी 10.85 करोड़ ख़ुराकें बची हैं.
हाल के दिनों में राज्यवार टीके की आपूर्ति में काफी सुधार आया है. सभी राज्यों के पास पर्याप्त टीका उपलब्ध है. नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, राज्यों के टीकाकरण केंद्रों पर अभी 10.85 करोड़ ख़ुराकें बची हैं. दो-तीन हफ्ते पहले टीके की उपलब्धता तीन से चार करोड़ थी. अब बढ़कर वह 10 करोड़ से अधिक हो गयी है. अभी मांग में शिथिलता आयी है. एक-डेढ़ महीने पहले आपूर्ति को लेकर आशंका थी. अभी भारत में लगभग 75 प्रतिशत वयस्क आबादी को टीके की कम-से-कम एक ख़ुराक दी जा चुकी है. यानी 18 साल की आयु पार कर चुके हर चार में से तीन वयस्क को टीके की एक ख़ुराक मिल चुकी है. हालांकि, अभी 25 प्रतिशत आबादी टीके से वंचित है.
दूसरी ख़ुराक लेनेवालों की संख्या बढ़ी
आगे टीका लेनेवालों की संख्या कम होती जायेगी. आंकड़ों के मुताबिक 31 प्रतिशत लोगों को टीके की दोनों ख़ुराकें दी जा चुकी हैं. जनवरी में टीकाकरण की शुरुआत के बाद पहली बार बीते दो हफ्तों से देखा जा रहा है कि दूसरी ख़ुराक के रोजाना के आंकड़े पहली ख़ुराक की आंकड़ों से अधिक दर्ज हो रहे हैं, यानी दूसरी ख़ुराक लेनेवालों की संख्या बढ़ रही है. साथ ही राज्यों के पास टीके की बची हुई ख़ुराक का आंकड़ा यानी स्टॉक भी बढ़ रहा है. इससे स्पष्ट है कि टीके के लिए आगे आनेवालों की संख्या में कमी आ रही है. यदि हमें 95 करोड़ की वयस्क आबादी को दोनों ख़ुराकें मुहैया करानी है, तो जिला स्तर या उससे नीचे सामुदायिक स्तर पर लोगों को टीके के प्रति जागरूक करना पड़ेगा. इसमें स्थानीय नेतृत्व, धार्मिक नेताओं, कलाकारों, एनजीओ, स्कूलों-कॉलेजों के बच्चों की मदद ली जा सकती है.\
यदि हमें 95 करोड़ की वयस्क आबादी को दोनों ख़ुराकें मुहैया करानी है, तो जिला स्तर या उससे नीचे सामुदायिक स्तर पर लोगों को टीके के प्रति जागरूक करना पड़ेगा.
अभी तक यह प्रवृत्ति देखी गयी है कि अगर नजदीक के वैक्सीन सेंटर में टीका आता था, तो लोग खुद ही जाकर टीका लगवाते थे. अब ऐसे लोगों की संख्या कम होती जायेगी, क्योंकि 75 प्रतिशत लोग कवर हो चुके हैं. जो 25 प्रतिशत लोग बचे हैं, वे खासकर जनजातीय इलाकों, दूरदराज इलाकों के रहनेवाले लोग हैं. जो लोग स्वास्थ्य या टीकाकरण केंद्रों के पास हैं, लेकिन वैक्सीन को लेकर जागरूक नहीं हैं, उन्हें वैक्सीन मुहैया कराने की चुनौती होगी. कई लोगों को लगता है कि कोविड का संक्रमण होने पर भी उन पर असर नहीं होगा. कुछ लोग वैक्सीन के साइड इफैक्ट जैसे बुखार या दर्द की बात कर रहे हैं. कुछ लोग सोचते होंगे कि कोविड के संक्रमण और वैक्सीन का साइड इफैक्ट एक जैसा ही है, तो वैक्सीन क्यों लूं. ऐसे अतार्किक लोगों को समझाने और जागरूक करने की आवश्यकता है.
बच्चों को टीका देने की चुनौती
भारत में बच्चों की बड़ी आबादी है. उन्हें टीका देने की चुनौती होगी. लेकिन, अगर हम बीमारी की गंभीरता को देखें, तो बड़ों के मुकाबले बच्चों में इसका ख़तरा कम है. बेहतर होगा कि उन बच्चों को पहले टीका दिया जाये, जो पहले से किसी बीमारी की चपेट में हैं. जो बच्चे डायबिटीज, हार्ट या कैंसर जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं, उन बच्चों को डॉक्टर के परामर्श पर टीका दिया जाना चाहिए. देश के बाहर भी बहुत से लोग, जिन्हें अधिक ख़तरा है, वे वैक्सीन के इंतजार में हैं. अफ्रीका, दक्षिण एशिया, दक्षिण अमेरिका में बड़ी आबादी अभी वैक्सीन से वंचित है.
भारत में बच्चों की बड़ी आबादी है. उन्हें टीका देने की चुनौती होगी. लेकिन, अगर हम बीमारी की गंभीरता को देखें, तो बड़ों के मुकाबले बच्चों में इसका ख़तरा कम है. बेहतर होगा कि उन बच्चों को पहले टीका दिया जाये, जो पहले से किसी बीमारी की चपेट में हैं.
सीरो प्रीवलेंस सर्वे में स्पष्ट है कि कोविड संक्रमण वयस्कों और बच्चों में लगभग एक जैसा ही रहा है. लेकिन, बच्चों की इम्युनिटी बेहतर है. पहले हमें उन इलाकों में टीकाकरण को बढ़ाना है, जहां लोग इससे पूरी तरह से वंचित हैं. लोगों को दो तरह से प्रतिरक्षा मिलती है, पहली वैक्सीन से, दूसरी संक्रमण से. केरल और असम जैसे कुछ राज्य ऐसे हैं, जहां सीरो प्रीवलेंस कम हैं. कुछ ऐसे भी राज्य हैं, जहां टीके की उपलब्धता कम थी. ऐसे राज्यों पर फोकस करने की आवश्यकता है. इन राज्यों में बड़ी आबादी के संक्रमित होने का ख़तरा ज़्यादा है. इन जगहों पर भीड़भाड़ को रोकना होगा, साथ ही लोगों को सावधानी बरतनी होगी.
झारखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों में 65 प्रतिशत से कम आबादी का ही टीकाकरण हो पाया है. बिहार और झारखंड में 20 प्रतिशत से कम आबादी को टीके की दोनों ख़ुराकें मिल पायी हैं.
बड़ी आबादी ऐसी भी है, जिसे अभी तक सिंगल डोज भी नहीं मिल पाया है. ये आबादी बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब और पश्चिम बंगाल में है, जहां 30 से 45 प्रतिशत आबादी को टीका नहीं मिला है.
बड़ी आबादी ऐसी भी है, जिसे अभी तक सिंगल डोज भी नहीं मिल पाया है. ये आबादी बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब और पश्चिम बंगाल में है, जहां 30 से 45 प्रतिशत आबादी को टीका नहीं मिला है. इन जगहों पर फिर से संक्रमण में तेजी आ सकती है. संक्रमण की दूसरी लहर से पहले भी लोगों ने लापरवाही बरती थी, लोग सोच रहे थे कि संक्रमण दोबारा नहीं आयेगा. लेकिन, संक्रमण आया और काफी लोग इसकी चपेट में आये. हालांकि, इस बार ऐसा नहीं होगा, क्योंकि बड़ी आबादी को कम से कम टीके की एक ख़ुराक मिल चुकी है. जिन राज्यों में संक्रमण होने का ख़तरा ज़्यादा है, वहां मामले तो बढ़ सकते हैं, लेकिन मौतों की संख्या पहले जैसी नहीं होगी. हालांकि, नये वैरिएंट के उभार से हालात बदल सकते हैं. इस संभावना को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता. बहरहाल, वैक्सीन के साथ-साथ संक्रमण से बचाव के लिए सावधानी भी जरूरी है.
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