स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारी बोझ से दबे 12 अफ्रीकी देशों को दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन की 18 मिलियन खुराक के आवंटन की 5 जुलाई को की गई घोषणा इस घातक बीमारी के खिलाफ लड़ाई में एक निर्णायक कदम है. सबसे ज़्यादा संकटग्रस्त क्षेत्रों में संवेदनशील बच्चों की सुरक्षा को ध्यान के केंद्र में रखते हुए अफ्रीका में मलेरिया वैक्सीनों को जारी करना- जो भारत में दवा कंपनियां भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट बनाएंगे— भारत के दवा उद्योग की उत्पादन क्षमता के अफ़्रीका भर में स्वास्थ्य तक पहुंच को विस्तार देने में महत्वपूर्ण योगदान को उजागर करता है. मलेरिया अब भी अफ्रीका में समुदायों में विनाश का कारण बना हुआ है, जिसके शिकार बहुत सारे होते हैं और मौतें भी होती हैं, ख़ास तौर पर पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए यह घातक साबित होता है. इस सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट का सामना करने के लिए तुरंत कदम उठाने की ज़रूरत है और ऐसे में पहली मलेरिया वैक्सीन के आवंटन का महत्व और अधिक ज्यादा बढ़ जाता है.
भारत में दवा उत्पादन
इस बड़ी वैश्विक पहल के, मुख्यतः भारतीय दवा निर्माताओं पर निर्भर होने के बावजूद, इसे मीडिया में वह कवरेज नहीं मिली है जो मिलनी चाहिए थी और ऐसा संभवतः हाल ही में भारत में बनी कई खांसी की दवाओं के कथित रूप से दूषित (contamination) पाए जाने के चलते हुए विरोध की वजह से हुआ. इन चिंताओं के बावजूद, भारत वैश्विक दवा निर्यात का नेतृत्व करने की स्थिति में है और दुनिया भर में उचित दर पर दवाओं और वैक्सीनों का उत्पादन करने के लिए जाना जाता है और निम्न, मध्यम आय वाले देशों को जेनरिक दवाओं की आपूर्ति करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मलेरिया के मामले में, भारत की विशेषज्ञता, बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की क्षमताएं, कम लागत में उत्पादन करने की तकनीकें RTS,S/AS01 वैक्सीन की उपलब्धता और किफायती दर को सुनिश्चित करेंगी, जिनका अभी वितरण किया जा रहा है. इसे जीएसके ने विकसित और तैयार किया है और भविष्य में इनकी आपूर्ति भारत बायोटेक द्वारा की जाएगी, जिससे सीमित स्वास्थ्य बजट वाले देशों को आशा बंधती है.
मलेरिया के मामले में, भारत की विशेषज्ञता, बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की क्षमताएं, कम लागत में उत्पादन करने की तकनीकें RTS,S/AS01 वैक्सीन की उपलब्धता और किफायती दर को सुनिश्चित करेंगी, जिनका अभी वितरण किया जा रहा है.
मलेरिया वैक्सीन को प्रभावी ढंग से अमल में लाने के लिए आधारभूत तत्व हैं सहयोग और साझेदारी है. गावी (Gavi), द वैक्सीन अलायंस (Vaccine Alliance), विश्व स्वास्थ्य संगठन (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन- WHO), और यूनिसेफ (UNICEF) जैसे संगठन वितरण प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. भारत बायोटेक जैसे भारतीय दवा निर्माता वैक्सीन की मांग और आपूर्ति के बीच की गई दूरी को कम करने में पुल का काम करते हैं, खासकर तब जब संसाधन कम हों.
दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन का अफ्रीकी देशों को आवंटन यह रेखांकित करता है कि संवेदनशील जनसंख्या की सुरक्षा और महाद्वीप में मलेरिया के बोझ को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की जा रही है. घाना, केन्या, और मलावी में मलेरिया वैक्सीन कार्यान्वयन योजना (Malaria Vaccine Implementation Programme- MVIP) के तहत 2019 से RTS,S/AS01 वैक्सीन के असर पर निगरानी रखी जा रही है. इसकी वजह से पहले से ही वैक्सीन की सुरक्षा और प्रभावशीलता के बारे में पता चल चुका है क्योंकि इससे मलेरिया के गंभीर मामलों और बच्चों की मृत्यु के मामलों में काफ़ी कमी आई है. इस कार्यक्रम की सफलता से 28 अफ्रीकी देशों की रुचि जागी है, जो वैक्सीन की पहुंच के दायरे को तुरंत बढ़ाए जाने की ज़़रूरत को रेखांकित कर रही है.
इस प्राथमिक प्रयोग में शामिल देशों के अलावा अन्य देशों तक वैक्सीन पहुंचाए जाने, अफ्रीका के दूसरे देशों को वैक्सीन की खुराकों का आवंटन मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण सफलता है. यूनिसेफ के माध्यम से गावी को उपलब्ध वैक्सीन खुराकों की आपूर्ति किए जाने ने उन समुदायों को आशा दिलाई है जो पहले मलेरिया से संबंधित बीमारी और मौत के ख़तरे से जूझ रहे थे. वैक्सीन को अपने नियमित प्रतिरक्षण कार्यक्रमों में (immunisation programmes) में शामिल कर इन देशों ने अपने स्वास्थ्य तंत्र को मज़बूत बनाया है और मलेरिया के घातक प्रभाव से अपनी जनसंख्या को सुरक्षा प्रदान की है.
मलेरिया वैक्सीन का निर्माण
इस प्रयास में भारत की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका, जो भारतीय दवा उत्पादन क्षमता से संचालित हो रही है, के बारे में कुछ भी कहना पर्याप्त नहीं होगा. दुनिया भर में दवा उत्पादन के केंद्र के रूप में विख्यात भारत की विशेषज्ञता, गुणवत्तापूर्ण निर्माण और किफ़ायती उत्पाद तैयार करने की क्षमता RTS,S/AS01 वैक्सीन के सफल उत्पादन और वितरण को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो भारत बायोटेक द्वारा तैयार की जाएगी. इसके अलावा, ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित और सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) द्वारा निर्मित R21/Matrix-M वैक्सीन के निर्माण की अनुमति मिलने की संभावना (potential prequalification) भारत के मलेरिया वैक्सीन उत्पादन को और विस्तार देती है. सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (एसआईआईपीएल) के इस प्रयास के नेतृत्वकर्ता के रूप में और बतौर लाइसेंसधारी व्यवसायीकरण की कोशिशों के चलते भारत की 200 मिलियन खुराकों के वार्षिक उत्पादन करने की प्रतिबद्धता मज़बूत होती है और वैश्विक स्वास्थ्य पहलों का समर्थन करने के देश के समर्पण को दर्शाती है, ख़ासकर मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में.
मलेरिया वैक्सीन की मांग में वृद्धि का चलन जारी रहने के चलते, जिसकी वजह से 2026 तक 40 से 60 मिलियन खुराकों और 2030 तक 80 से 100 मिलियन खुराकों की आवश्यकता होगी, आपूर्ति को बढ़ाना बेहद ज़रूरी हो जाता है. भारतीय निर्माताओं और गावी और विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच सहयोग यह सुनिश्चित करता है कि वैक्सीन उन व्यक्तियों तक पहुंचे, जिनकी इनकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. मलेरिया की पहली वैक्सीन की 18 मिलियन खुराकें अफ्रीकी देशों को आवंटित करना मलेरिया के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर की तरह है. यह इस बीमारी (मलेरिया) को खत्म करने के सतत वैश्विक प्रयासों में अंतरराष्ट्रीय सहयोग और भारत की उत्पादन क्षमता के महत्व को रेखांकित करता है.
दुनिया की अब तक की पहली मलेरिया वैक्सीन का अफ्रीकी देशों को आवंटन अंतरराष्ट्रीय संगठनों और भारतीय निर्माताओं के मिल-जुलकर किए गए प्रयासों का नतीजा है. इस प्रयास की सफलता गावी, द वैक्सीन अलायंस, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, और अन्य हितधारकों के बीच प्रभावी समन्वय पर टिकी है.
दुनिया की अब तक की पहली मलेरिया वैक्सीन का अफ्रीकी देशों को आवंटन अंतरराष्ट्रीय संगठनों और भारतीय निर्माताओं के मिल-जुलकर किए गए प्रयासों का नतीजा है. इस प्रयास की सफलता गावी, द वैक्सीन अलायंस, विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, और अन्य हितधारकों के बीच प्रभावी समन्वय पर टिकी है. इनके संगठित समर्पण से ही यह सुनिश्चित होता है कि वैक्सीन उन लोगों तक पहुंचती हैं जिन्हें इनकी सबसे ज्यादा ज़रूरत हो, ख़ासकर सीमित संसाधन वाली जगहों में, जहां मलेरिया की मार सबसे घातक है. जब दुनिया मलेरिया को उखाड़ने और संवेदनशील जनसंख्या को सुरक्षित करने के लिए आगे बढ़ रही है, तो भारतीय निर्माताओं और वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों के बीच चल रहा सहयोग सबसे महत्वपूर्ण है. साथ मिलकर, हम मलेरिया की चुनौतियों से पार पा सकते हैं और सभी के लिए एक मलेरिया-मुक्त भविष्य को हासिल कर सकते हैं.
आगे की राह
निरपेक्ष पैमाने पर रखा जाए तो भारत में भी कुछ क्षेत्रों में मलेरिया का प्रकोप पाया जाता है लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और साथ ही राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम, दोनों के अनुसार, ये “बहुत कम संक्रमण” वाली स्थिति है. इसी बीच, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मलेरिया रिसर्च (NIMR) के हाल के शोध से पता चला है कि भारत में मलेरिया की निगरानी प्रणाली कमजोर है, क्योंकि यह सिर्फ़ सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र से ही डाटा को लेती है, जिससे बीमारी के वास्तविक प्रकोप का पता नहीं चलता और इसे कम ही आंका जाता है. इस बात का दबाव लगातार बढ़ रहा है कि मलेरिया के प्रसार का मूल्यांकन निजी क्षेत्र (स्वास्थ्य) में भी किया जाए और छिपे रहे मामलों की पहचान की जाए, जैसे कि ए-सिम्पटमैटिक (asymptomatic- ऐसे लोग जिनमें बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं देते) और सबपेटेंट संक्रमण (subpatent infection- यह ऐसा संक्रमण होता है जो सूक्ष्म जांच के तरीकों से तो पकड़ में आ जाता हैं लेकिन फ़ील्ड में इस्तेमाल होने वाले तरीकों से नहीं), खासकर वन्य क्षेत्रों में. इसके अलावा, मलेरिया से होने वाली मौतों की संख्या बहुत कम है लेकिन इससे रोग की असली गंभीरता प्रतिबिंबित नहीं होती क्योंकि पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित होने के कारण गंभीर मामलों की जानकारी कम मिलती है ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्रों में. मलेरिया के मामलों के प्रसार का सटीक मूल्यांकन करने के लिए विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है.
पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच सीमित होने के कारण गंभीर मामलों की जानकारी कम मिलती है ख़ासकर ग्रामीण क्षेत्रों में. मलेरिया के मामलों के प्रसार का सटीक मूल्यांकन करने के लिए विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है.
इन वजहों से, हाल ही में प्रस्तावित मलेरिया वैक्सीन RTS,S/AS01 को भारत में लागू करने से पहले सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किए जाने की ज़रूरत है. हालांकि भारत को कम-संक्रमण वाली स्थिति के रूप में रखा गया है लेकिन देश की कमज़ोर निगरानी प्रणाली से मलेरिया के वास्तविक प्रकोप का अंदाज़़ा नहीं लग पा रहा, इसलिए निजी (स्वास्थ्य) क्षेत्र में प्राथमिकता से मलेरिया के प्रसार का मूल्यांकन करने के लिए शोध की आवश्यकता है. इसके अलावा महामारी के अध्ययन संबंधी (epidemiological) कमज़ोरियों पर ध्यान देने और भारत के ख़़ास स्थानिक क्षेत्रों में मलेरिया वैक्सीन की उपयुक्तता की पड़ताल करने की ज़रूरत है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.