Published on Feb 09, 2021 Updated 0 Hours ago

चूंकि मौजूदा वित्त वर्ष में शोध और विकास के लिए दिए गए कोष का एक बड़ा हिस्सा ख़र्च नहीं हो पाया है, ऐसे में सरकार अपने इन प्रयासों और उत्पादन में तेज़ी लाने के लिए इस बची हुई रकम का इस्तेमाल कर सकती है.

नई राह की तलाश में भारत का ‘रक्षा-बजट’

1 फ़रवरी को भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्त वर्ष 2021-22 के लिए प्रस्तुत किए गए बजट में रक्षा बजट के आवंटन के बारे में कोई वक्तव्य नहीं दिया गया. बजट में रक्षा बजट से जुड़े खुलासे के अभाव को प्रमुखता से महसूस किया गया. लिहाजा इसकी तह में जाकर विस्तार से इसकी समीक्षा किए जाने की ज़रूरत है.

वित्त वर्ष 2021-22 के लिए रक्षा मंत्रालय का बजट अनुमान 4,78,195.62 करोड़ रु है. पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले इसमें 1.4 फ़ीसदी की मामूली बढ़ोतरी हुई है. हालांकि महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ़्तार, स्वास्थ्य पर बढ़ते ख़र्चों, चीन के शत्रुतापूर्ण और आक्रामक रुख़ के चलते रक्षा क्षेत्र में 20,776 करोड़ रु की आपात खरीदी और करों में किसी प्रकार की बढ़ोतरी या कोविड उपकर लगाए बगैर भी रक्षा बजट में इस मामूली बढ़ोतरी को कठोर दृष्टिकोण से आंकना सही नहीं होगा. इसके ठीक विपरीत देखें तो रक्षा ख़र्च कुल बजट का 13.7 प्रतिशत है. इसमें कई अहम बदलाव भी किए गए हैं जिससे वित्तीय संसाधनों के और अधिक कुशलतापूर्ण इस्तेमाल के लिए ज़रूरी बहुप्रतीक्षित परिवर्तनों को अपनाए जाने के संकेत मिलते हैं. एक और रक्षा क्षेत्र में पेंशन के लिए बजट आवंटन में 13.4 फ़ीसदी की कमी की गई है तो वहीं दूसरी ओर रक्षा सेवाओं में पूंजीगत व्यय यानी नए उपकरणों और फ़ौज के आधुनिकीकरण के लिए होने वाले ख़र्चों में 18.75 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा किया गया है.

ऐसा लगता है कि निरपवाद रूप से इस बार रक्षा बजट का ज़ोर आधुनिकीकरण पर है. वायु सेना और नौसना के पूंजीगत व्यय में की गई भारी बढ़ोतरी से इसी बात का इशारा मिलता है. 

बजट 2020-21

(करोड़ रु. में)

बजट 2021-22

(करोड़ रु. में)

% में बदलाव
रक्षा बजट 4,71,378 4,78,195.62 1.4
रक्षा पेंशन 1,33,825 1,15,850 (-) 13.4
पूंजीगत व्यय- कुल 1,13,734 1,35,060.72 18.75
पूंजीगत व्यय- थल सेना 32,392.38 36,481.90 12.62
पूंजीगत व्यय- वायु सेना 43,281.91 53,214.77 22.95
पूंजीगत व्यय- नौसेना 26,688.28 33,253.55 24.6

ऐसा लगता है कि निरपवाद रूप से इस बार रक्षा बजट का ज़ोर आधुनिकीकरण पर है. वायु सेना और नौसना के पूंजीगत व्यय में की गई भारी बढ़ोतरी से इसी बात का इशारा मिलता है. इतना ही नहीं थल सेना के लिए भारी और मध्यम वज़न वाले नए वाहनों, नौसेना के इस्तेमाल के लिए हवाई जहाज़ों, एयरोइंजन और नौसैनिक बेड़े और वायुसेना के लिए ज़मीन पर होने वाले ख़र्चों में बढ़ोतरी की सरकारी योजना से इस बात के पूरे-पूरे संकेत मिलते हैं कि सरकार अपने पास उपलब्ध सीमित संसाधनों का देश की फ़ौज को और मज़बूत बनाने में किस प्रकार इस्तेमाल करने का इरादा रखती है. बजट में “अन्य उपकरणों’’ के मद में मिसाइलों, हवाई रक्षा तकनीक, आयुध और हथियारों आदि के लिए भी एक बड़ी रकम का आवंटन किया गया है. इसमें कोई शक नहीं है कि चीन से जारी सीमा विवाद और भौगोलिक तौर पर दो मोर्चों पर मिल रही चुनौतियों ने बजट आवंटन के पीछे की सोच को प्रभावित किया है.

हालांकि, बजट अनुमानों के अध्ययन से हमें इसके अलावा कई और अहम बातों का पता चलता है. भारतीय फ़ौज के आधुनिकीकरण और अर्जन से जुड़े प्रयासों की व्यापक दशा-दिशा जानने के लिए हमें रक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए हाल ही में उठाए गए कदमों की पड़ताल करनी पड़ेगी. इस सिलसिले में आत्मनिर्भरता और मेक इन इंडिया जैसे आह्वानों को हासिल करने के लिए किए जा रहे प्रयास सबसे अहम हैं. इन कोशिशों की दिशा में आगे बढ़ने और घरेलू रक्षा निर्माण क्षेत्र को अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद करने के मकसद से सरकार ने अगस्त 2020 में एक ‘नकारात्मक सूची’ तैयार की थी. इसके तहत चरणबद्ध तरीके से 101 प्रकार के हथियारों और सैनिक तकनीकी के आयात को रोकने की योजना है. इस सूची में एसॉल्ट रायफ़ल, हल्के मशीनगन, स्नाइपर रायफ़ल, सतह से हवा में मार करने वाली छोटी दूरी की मिसाइलों के ज़मीनी स्वरूप, समुद्री जहाज़ से प्रक्षेपित किए जानेवाले क्रूज़ मिसाइल, बुलेट प्रूफ़ जैकेट, बैलेस्टिक हेलमेट, अल्ट्रालाइट हवित्ज़र, हल्के लड़ाकू विमान और हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर शामिल हैं.

इसके साथ-साथ रक्षा मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2020-21 में पूंजीगत प्राप्ति से जुड़े बजट को घरेलू और विदेशी ख़रीद स्रोतों के दो भागों में बांट दिया है. इसके तहत घरेलू खरीद के लिए 52,000 करोड़ रु का प्रावधान किया गया. रक्षा अर्जन प्रक्रिया (डीएपी) 2020 के अंतर्गत नई खरीदों में ज़्यादा से ज़्यादा घरेलू तत्वों के अर्जन पर ज़ोर दिया गया है. रक्षा उत्पादन में देश को और अधिक स्वायत्त और स्वाबलंबी बनाने और यहां तक कि भारत को रक्षा उपकरणों का निर्यातक बनाने के रास्ते पर आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने कई और कदम उठाए हैं. इसके तहत आयुध कारखाना बोर्ड (ओएफबी) के निजीकरण की कोशिशें और रक्षा क्षेत्र में स्वचालित तौर-तरीके से होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा को 49 फ़ीसदी से बढ़ाकर 74 फ़ीसदी तक बढ़ाने जैसे उपाय शामिल हैं.

दुनिया की प्रमुख सेनाओं ने अपने मानव संसाधनों में कटौती के ज़रिए खुद को चुस्त दुरुस्त, अधिक प्रभावी, घातक और तकनीकी रूप से एकीकृत बल के तौर पर पुनर्गठित करने में सफलता पाई है. भारत ने भी इसी दिशा में पहल करने के लिए वित्तीय और कार्यात्मक आवश्यकताओं की पहचान की है.

वित्तीय संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के अलावा रक्षा प्रतिष्ठान अपने मौजूदा और भावी संपदाओं की उत्पादकता में सुधार की दिशा में प्रयास शुरू कर चुके हैं. इसके लिए फ़ौज के ढांचे में सुधार कर इसे एकीकृत थिएटर कमांडों में बदला गया है. इसके तहत साझा प्रचालन तंत्र का निर्माण किया गया है जो आयुध, रसद, ईंधन, तेल और लुब्रिकेंट्स, किराए पर लिए गए असैनिक परिवहन साधनों, हवाई इस्तेमाल की पोशाकों और तीनों सेनाओं के लिए कलपुर्जों और इंजीनियरिंग में प्रयोग होने वाले सामानों के प्रबंधन का काम देखेगा. ख़ासकर थल सेना के लिए इस एकीकरण का एक और मकसद मानव संसाधनों का नए सिरे से प्रबंधन भी है. ग़ौरतलब है कि थल सेना इस बार वेतन और भत्तों के मद में 93,7449.57 करोड़ का भारी-भरकम ख़र्च करने जा रही है. दुनिया की प्रमुख सेनाओं ने अपने मानव संसाधनों में कटौती के ज़रिए खुद को चुस्त दुरुस्त, अधिक प्रभावी, घातक और तकनीकी रूप से एकीकृत बल के तौर पर पुनर्गठित करने में सफलता पाई है. भारत ने भी इसी दिशा में पहल करने के लिए वित्तीय और कार्यात्मक आवश्यकताओं की पहचान की है.

बहरहाल, संसाधनों के और बेहतर इस्तेमाल की असीम संभावनाएं अब भी बरकरार हैं. वित्त वर्ष 2020-21 में रक्षा ख़र्चों से जुड़े पुनरीक्षित अनुमानों से स्पष्ट है कि भारत-चीन सरहद पर शत्रुता और फ़ौजी तैनाती बढ़ने के चलते आपात सैन्य खरीदी पर 20,776 करोड़ रु ख़र्च किए गए. ये ठीक है कि चीन के इस अभूतपूर्व आक्रामक बर्ताव का पहले से अंदाज़ा लगाना संभव नहीं था लेकिन चीन के नित नए पैंतरों, भारतीय नज़रिए से वास्तविक नियंत्रण रेखा के पार बुनियादी ढांचा खड़ा करने की चीन की लगातार जारी कोशिशों और भारत और चीन की सेना की क्षमताओं में भारी अंतर से चीन के फ़ायदे वाले हालात में रहने जैसे कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो भारत सरकार की चिंता बढ़ाने के लिए काफ़ी हैं. ऐसे में चीन की काट के लिए एक समग्र और प्रभावी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बनाने को प्राथमिकता दिया जाना ज़रूरी हो जाता है. आपातकालीन परिस्थितियों में महंगी रक्षा प्रणाली के अर्जन में न केवल लागत ज़्यादा आती है बल्कि एक लाभकारी घरेलू बाज़ार के अभाव में इस प्रकार की ख़रीद से देश में जमा विदेशी मुद्राएं भी देश से बाहर चली जाती है और आत्मनिर्भरता की दिशा में किए जा रहे प्रयासों में भी बाधा पहुंचती है.

15वें वित्त आयोग की एक सिफ़ारिश बेहद महत्वपूर्ण है. सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की चुनौतियों को बेहतर तरीके से पूरा करने के लिए आयोग ने “रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के आधुनिकीकरण के लिए कोष” बनाने का सुझाव दिया है. 

इसके अलावा भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के तहत भविष्य की चुनौतियों के लिए  आवश्यक युद्ध क्षमताओं से लैस नई तकनीकी पर ज़ोर दिया जाना ज़रूरी हो जाता है. प्रभावी लागत की अनुकूलता के चलते स्वार्म ड्रोन के शोध, विकास और इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इनके इस्तेमाल से दुश्मन फ़ौज की हवाई रक्षा प्रणाली और परंपरागत सैन्य संसाधनों को भारी नुकसान पहुंचाया जा सकता है. सेना दिवस परेड 2021 और एयरो इंडिया 2021 जैसे समारोहों के दौरान भारत द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों की जो झलक मिली वो भरोसा बढ़ाने वाली हैं. इस प्रणाली को अब और अधिक प्रभावी बनाए जाने की ज़रूरत है. इसके तहत ऐसी तकनीकों पर बल दिया जाना चाहिए जिनसे दुश्मन की युद्ध संबंधी इलेक्ट्रॉनिक क्षमताओं की काट मिल सके और उनकी छोटी दूरी की हवाई रक्षा मिसाइलों को छकाया जा सके. ऐसी क्षमताएं हासिल करने से हमारी फ़ौज की युद्ध की तैयारियों में निखार आएगी और उसकी घातक क्षमताओं में बढ़ोतरी होगी. चूंकि मौजूदा वित्त वर्ष में शोध और विकास के लिए दिए गए कोष का एक बड़ा हिस्सा ख़र्च नहीं हो पाया है, ऐसे में सरकार अपने इन प्रयासों और उत्पादन में तेज़ी लाने के लिए इस बची हुई रकम का इस्तेमाल कर सकती है.

इसी तरह रक्षा सामग्रियों के अर्जन से जुड़ी और अधिक प्रभावकारी नीतियां अपनाए जाने की ज़रूरत है. मिसाल के तौर पर रक्षा प्रणाली की ख़रीद के समय सबसे कम बोली को बुनियाद न बनाकर उस प्रणाली के जीवन-चक्र से जुड़ी लागत को आधार बनाने और इसी को सामान्य अभ्यास के तौर पर अपनाए जाने की ज़रूरत है. ऐसा करने पर नीति-निर्माताओं को किसी हथियार प्रणाली के बारे में फ़ैसला करते वक्त उसके लिए संसाधनों की दीर्घकालिक ज़रूरतों, उसके जीवन-काल और उसकी क्षमताओं के हिसाब से आने वाली लागत के हिसाब से समग्र रूप से मूल्यांकन में मदद मिलेगी.

इस संदर्भ में 15वें वित्त आयोग की एक सिफ़ारिश बेहद महत्वपूर्ण है. सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण की चुनौतियों को बेहतर तरीके से पूरा करने के लिए आयोग ने “रक्षा और आंतरिक सुरक्षा के आधुनिकीकरण के लिए कोष” बनाने का सुझाव दिया है. ये कोष अपने उद्देश्य के प्रति समर्पित और निश्चित समयसीमा से परे समाप्त न होने वाले स्वभाव का होगा. आयोग के मुताबिक 2021 से 2026 तक 2.38 लाख करोड़ की धनराशि से इस कोष का निर्माण किया जाना चाहिए. इस विशेष कोष का नाम “राष्ट्रीय सुरक्षा नैवेद्यम कोष” रखने का प्रस्ताव रखा गया है. इसका इस्तेमाल रक्षा सेवाओं, केंद्रीय सशस्त्र सुरक्षा बलों (सीएपीएफ) और राज्यों के पुलिस तंत्र के आधुनिकीकरण के लिए पूंजीगत निवेश के तौर पर किए जाने का प्रस्ताव है. इस कोष के एक हिस्से का उपयोग इन बलों से जुड़े जवानों के कल्याणकारी कार्यों के लिए भी किया जा सकेगा. ग़ौरतलब है कि ये कोष ना तो सालाना बजट आवंटन के बदले में होगा और न ही ये उस आवंटन का हिस्सा होगा. ये कोष वार्षिक बजट आवंटन के पूरक के तौर पर होगा. अस्तित्व में आने के बाद ये कोष इन सशस्त्र बलों की ख़रीद क्षमता को बढ़ाएगा और भारत और उसके शत्रुओं के बीच तकनीकी क्षमता के मामले में आए बड़े अंतर को कम करने में मददगार साबित होगा.

एक तरह से देखें तो हाल में जारी किए गए बजट अनुमान हमें दो सच्चाइयों से रुबरु कराते हैं. एक तरफ़ तो इसके ज़रिए अबतक उपेक्षा और लालफ़ीताशाही का शिकार रहे फ़ौज के आधुनिकीकरण के प्रति सरकार की वचनबद्धता खुलकर सामने आती है तो वहीं दूसरी ओर सीमित संसाधनों और बजट की मजबूरियों के बीच संसाधनों के आनुपातिक इस्तेमाल के प्रयासों की झलक भी मिलती है. निश्चित तौर पर अपनी ज़रूरतों के लिए ज़्यादा से ज़्यादा आर्थिक संसाधनों की उपलब्धता हमेशा ही वांछनीय होती है लेकिन कौशल, शोध, प्रतिभा और क्षमता भी समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. साफ़ तौर पर भारत की रक्षा नीति को इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपने कदम आगे बढ़ाने की ज़रूरत है.

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Authors

Harsh V. Pant

Harsh V. Pant

Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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Javin Aryan

Javin Aryan

Javin was Research Assistant with ORFs Strategic Studies Programme. His work focuses on military national and international security and Indian foreign and defence policy.

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