भले ही पाकिस्तान लंबे वक्त से अपनी नौसेना को मज़बूत और तकनीक़ी तौर पर आधुनिक और उन्नत बनाने की कोशिश कर रहा हो लेकिन सच यही है कि भारतीय नौसेना संख्या बल और तकनीक़ी क्षमता के आधार पर पाकिस्तानी नेवी से बेहतर है.
पिछले महीने भारतीय नौसेना ने अरब सागर में युद्धाभ्यास के ज़रिए अपनी सामरिक शक्ति का प्रदर्शन किया इस युद्धाभ्यास में 35 से ज्यादा विमान, दो विमान वाहक पोत, कई युद्धपोत पनडुब्बियां और अग्रिम मोर्चे पर तैनात किए जाने में सक्षम 35 युद्धक विमान भी शामिल किए गए. ये भारतीय नौसेना द्वारा किया गया अब तक का सबसे विस्तृत कहे जाने वाला युद्धाभ्यास था. इस युद्धाभ्यास की अहमियत इसलिए भी बहुत अधिक है क्योंकि हाल के वर्षों में चीन भी हिंद महासागर में खुद को मज़बूत कर रहा है.
इस युद्धाभ्यास के ज़रिए भारतीय नौसेना ने एक अहम कामयाबी भी हासिल की. नेवी काफी वक्त से भारतीय समुद्री सीमा और उससे आगे के इलाकों में भी नौसेना की समुद्री ताकत और मारक क्षमता का परीक्षण करना चाह रही थी
इस युद्धाभ्यास के ज़रिए भारतीय नौसेना ने एक अहम कामयाबी भी हासिल की. नेवी काफी वक्त से भारतीय समुद्री सीमा और उससे आगे के इलाकों में भी नौसेना की समुद्री ताकत और मारक क्षमता का परीक्षण करना चाह रही थी और इस युद्धाभ्यास से इसका भी परीक्षण हो गया लेकिन भारतीय नौसेना की इस सामरिक उपलब्धि पर खुश होने के साथ-साथ हमारे लिए ये भी अहम है कि हम इसकी तुलना पाकिस्तानी नेवी की तकनीक़ी क्षमता और उसके समुद्री बेड़े में हुई बढ़ोत्तरी से करें.
पकिस्तान द्वारा निर्माण
हालांकि पाकिस्तान द्वारा पनडुब्बियों की संख्या बढ़ाने को लेकर भारत में अक्चर चर्चा होती रहती है, लेकिन पाकिस्तान ने पिछले कुछ साल में जिस तरह अपने समुद्री सतही बेड़े में वृद्धि की है उस पर भारतीय रक्षा विशेषज्ञों की नज़र नहीं गई जबकि ये बात सभी को पता है कि पाकिस्तान भी भारतीय समुद्री सीमा के आसपास अपनी नौसेना, खासकर समुद्री सतही बेड़े की क्षमता बढ़ा रहा है.
फिलहाल पाकिस्तानी नेवी के पास 4 ज़ुल्फिकार युद्धपोत हैं, इनमें से तीन युद्धपोतों का निर्माण चीन में हुआ जबकि चौथे युद्धपोत, पीएनएस-असलत, का निर्माण पाकिस्तान में ही हुआ
उदाहरण के तौर पर जुल्फिकार युद्धपोत को ही लीजिए जिसे F-22P फ्रिगेट्स भी कहा जाता है. इसे 2009 में पाकिस्तानी नेवी में शामिल किया गया. जुल्फिकार युद्धपोत, 2200-2500 टन के उन चाइनीज़ युद्धपोत 053H3 फ्रिगेट्स की तरह हैं जिसका इस्तेमाल चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी भी करती है. ये तुगरिल-श्रेणी के युद्धपोत चीन में निर्मित 054A फ्रिगेट्स के शुरूआती संस्करण हैं. फिलहाल पाकिस्तानी नेवी के पास 4 ज़ुल्फिकार युद्धपोत हैं, इनमें से तीन युद्धपोतों का निर्माण चीन में हुआ जबकि चौथे युद्धपोत, पीएनएस-असलत, का निर्माण पाकिस्तान में ही हुआ (चित्र1 देखें) इसके लिए पाकिस्तान और चीन के बीच तकनीक़ी हस्तांतरण का समझौता हुआ था. जुल्फिकार युद्धपोतों को किसी खास भूमिका के लिए डिज़ाइन नहीं किया गया है. ये बहुआयामी, बहुउद्देशीय और मिसाइल तैनाती की क्षमता वाले ऐसे युद्धपोत हैं जिनका इस्तेमाल पनडुब्बियों के खिलाफ़ भी किया जा सकता है और सतह से सतह के युद्ध में भी ये प्रभावी हो सकते हैं. इतना ही नहीं वायुरोधी युद्धक कार्रवाई में भी जुल्फिकार युद्धपोत काम आ सकते हैं.
चित्र 1: फरवरी 2018 में सऊदी अरब की सद्भावना-सह-प्रशिक्षण यात्रा के दौरान पाकिस्तानी नौसेना जहाज पीएनएस असलत
जो क्षमताएं 2200-2500 टन के जुल्फिकार युद्धपोत में हैं. कुछ वैसी ही विशेषताएं 4000 टन के तुगरिल श्रेणी के गोपनीय युद्धपोत पीएनएस तुगरिल और पीएनएस तैमूर में भी मौजूद हैं. हालांकि, ये दोनों वॉरशिप, ज़ुल्फिकार युद्धपोत की तुलना में तकनीक़ी तौर पर बेहतर हैं साथ ही इनकी वायुरोधी मारक क्षमता भी ज़ुल्फिकार युद्धपोत से अच्छी है. पीएनएस तुगरिल और पीएनएस तैमूर को पाकिस्तानी नौसेना में 2022 में शामिल किया गया जबकि पीएनएस टीपू सुल्तान और पीएनएस शाहजहां मई 2023 में पाकिस्तानी नेवी के बेड़े में शामिल हुए.
चित्र 2: जून 2023 में एक औपचारिक यात्रा पर कोलंबो बंदरगाह पर पाकिस्तानी नौसेना का जहाज पीएनएस टीपू सुल्तान
जहां तक चीन की बात है चीन ने अपनी वायु रक्षा प्रणाली और सतह युद्ध क्षमता को और बेहतर बनाने के लिए लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल, उन्नत रडार और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम में आधुनिकतम सुधार करते हुए तुगरिल श्रेणी के युद्धपोत बनाए हैं. तुगरिल श्रेणी के ये युद्धपोत पाकिस्तानी नेवी के एमआईएलजीईएम/जिन्ना श्रेणी के लड़ाकू जलपोतों और समुद्री सीमा की निगरानी वाले जलपोतों के साथ मिलकर पाकिस्तानी नौसेना और और मज़बूत बना रहे हैं. इन पाकिस्तानी जलपोतों में ऐसे ड्रोन भी तैनात हैं, जो लंबी दूरी तक जाकर अपना काम बख़ूबी कर सकते हैं इसका फायदा ये हुआ है कि पाकिस्तानी नेवी अब सिर्फ़ अपनी तटीय समुद्री सीमा में ही नहीं बल्कि हिंद महासागर के क्षेत्र में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकती है, और युद्ध के वक्त़ दुश्मन की नौसेना को अपने समुद्री क्षेत्र में आने से रोक सकती है. अरब सागर युद्धाभ्यास
एक बार फिर लौटते हैं अरब सागर में हुई भारतीय नौसेना के युद्धाभ्यास पर, आईएनएस विक्रमादित्य और हाल ही में नेवी में शामिल किया गया आईएनएस विक्रांत इस युद्धाभ्यास के मुख्य आधार स्तंभ थे. इन दोनों ही विमानवाहक पोतों ने मिग-29K लड़ाकू विमानों एमएच 60-आर सीहॉक हेलीकॉप्टर्स कामोवा जैसे भारी हेलीकॉप्टर्स और देश में ही निर्मित हलके उन्नत हेलीकॉप्टर्स, लाइट एडवांस हेलीकॉप्टर्स, के लिए चलते-फिरते एयरपोर्ट का काम किया.
चित्र 3: इस मेगा ऑपरेशन में दो विमान वाहक, कई युद्धपोत, पनडुब्बियां और 35 से अधिक फ्रंटलाइन विमान शामिल थे.
अरब सागर में हुए इस बड़े युद्धभ्यास में दो विमानवाहक पोत, कई युद्धपोतों, पनडुब्बियों और अग्रिम मोर्चे तक जाकर मार करने वाले लड़ाकू विमान शामिल हुए. इस दौरान ये भी प्रदर्शित किया गया कि युद्धपोतों के इतने बड़े बेड़े, पनडुब्बियों और लड़ाकू विमान के होने के बावजूद ये दोनों विमानवाहक पोत ज़रूरत पड़ने पर कितनी आसानी से आपस में समन्वय बनाकर काम कर सकते हैं, और पूरी तकनीक़ी काबिलियत के साथ भारतीय समुद्री सीमा की रक्षा कर सकते हैं. इतना ही नहीं इस युद्धाभ्यास के ज़रिए भारतीय नौसेना ने भारत की उस प्रतिबद्धता को भी दोहराया कि वो राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा, क्षेत्रीय अखंडता और समुद्री सीमा में स्थिरता को बनाए रखऩे में सक्षम है. ये युद्धाभ्यास इसलिए भी अहम है क्योंकि सितंबर 2022 में आईएनएस विक्रांत को नेवी में शामिल करने के बाद ये पहला मौका है जब दोनों विमानवाहक पोतों ने एक साथ युद्धाभ्यास किया. (चित्र 4 देखें) चित्र 4: आईएनएस विक्रमादित्य और आईएनएस विक्रांत में इंडियन नेवी ने अपनी सबसे बेहतर तकनीक़ी का इस्तेमाल किया है दोनों विमानवाहक पोतों में एक जैसे लंबी दूरी तक नज़र रखने की क्षमता रखने वाले राडार, लड़ाकू विमान, सेंसर और विमानन प्रणाली लगी है.
इस युद्धाभ्यास ने इस बार पर भी मुहर लगाई कि ज़रूरत पड़ने पर भारतीय नौसेना अपने इन दोनों विमानवाहक पोतों को हिंद महासागर और इससे आगे भी संचालित कर सकता है. इतना ही नहीं अरब सागर में हुए इस युद्धाभ्यास से हमें ये भी पता चला कि अगर देश के सामने कोई चुनौती आती है, तो भारतीय नौसेना की सामरिक गतिशीलता कितनी बढ़ गई है. अब हम किसी भी चुनौती का तुरंत जवाब देने में सक्षम हो गए हैं. विमानवाहक पोतों में तैनात लड़ाकू विमानों की ताकत को भी अगर इसमें मिला दिया जाए तो ये कहा जा सकता है कि भारतीय नौसेना सिर्फ़ भारतीय समुद्री सीमा में ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी कोने में भारत के हितों की रक्षा करने में सक्षम हैं. नौसेना के प्रवक्ता विवेक मधवाल ने कहा कि भारत लगातार अपने सुरक्षा ढांचे को मज़बूत कर रहा है. और भारत की रक्षा रणनीति और क्षेत्रीय स्थिरता को बरकरार रखने में विमानवाहक पोत सबसे अहम भूमिका निभाएंगे.
निष्कर्ष
ये बात सही है कि पाकिस्तान अपने नौसैनिक बेड़े में लगातार वृद्धि कर रहा है नौसेना को आधुनिक बना रहा है. इसके बावजूद ये एक तथ्य है कि अभी भी पाकिस्तान की नौसेना उस स्तर तक नहीं पहुंच पाई है कि भारतीय नौसेना को चुनौती दे सके. पाकिस्तान जिस तरह अपनी नौसेना को तकनीक़ी तौर पर उन्नत बनाने की कोशिश कर रहा है. उस पर भारत को ध्यान देना चाहिए. लेकिन ये भी सच है कि भारतीय नौसेना ना सिर्फ संख्या की दृष्टि से पाकिस्तानी नौसेना से आगे है बल्कि भारतीय नौसेना के तकनीती और सामरिक शक्ति भी पाकिस्तान से बेहतर है और अरब सागर में हुए नौसेना के युद्धाभ्यास में ये फर्क़ साफ दिखा भी है.
पाकिस्तान भले ही अपनी नौसेना को एक बड़ी ताकत बनाने का सपना देख रहा हो लेकिन हकीकत यही है कि पाकिस्तानी नौसेना हमेशा एक ऐसी सैन्य बल रहेगी, जो सिर्फ़ आत्मरक्षा तक सीमित रहेगी.
पाकिस्तान भले ही अपनी नौसेना को एक बड़ी ताकत बनाने का सपना देख रहा हो लेकिन हकीकत यही है कि पाकिस्तानी नौसेना हमेशा एक ऐसी सैन्य बल रहेगी, जो सिर्फ़ आत्मरक्षा तक सीमित रहेगी. जिसकी भूमिका पाकिस्तान की रक्षा करना,पाकिस्तानी समुद्री सीमा को संभावित हमलों से बचाने की होगी. पाकिस्तानी नौसेना आक्रामक भूमिका निभाने की बजाए आपदा राहत, तटीय इलाकों में रहने वाले लोगों के विकास और समुद्री सीमा के लिए वैश्विक मानदंडों को बनाए रखने तक ही खुद को सीमित रखेगी. पाकिस्तानी नौसेना का काम दुश्मन को अपनी समुद्री सीमा में घुसने से रोकना और ये सुनिश्चित करना होगा कि दुश्मन को कार्रवाई के लिए उसकी समुद्री सीमा में पूरी आज़ाद ना मिले. इस काम में तुगरिल श्रेणी के उसके युद्धपोत अहम भूमिका निभाएंगे. भारत औऱ पाकिस्तानी नौसेना के तुलनात्मक अध्ययन से ये बात तो स्पष्ट हो गई कि भारत की स्थिति बेहतर है. फिर भी भारतीय नौसेना को पाकिस्तानी नौसेना पर नज़र रखनी चाहिए, क्योंकि पिछले कुछ साल से पाकिस्तानी नौसेना तटीय इलाकों और समुद्री सीमा की सुरक्षा की अपनी पारम्परिक भूमिका से कुछ आगे बढ़ते हुए हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश कर रही है. समुद्री सीमा में खुद को मज़बूत बनाने के लिए ये जरूरी है कि आपके पास पनडुब्बियां और मिसाइलों से लैस गश्ती विमान हों. पाकिस्तान पिछले कुछ वक्त से बड़ी क्षमता वाले युद्धपोतों को नौसेना में शामिल कर हिंद महासागर क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, और भारत को इससे सावधान रहने की जरूरत है.
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Dr. Aditya Bhan is a Fellow at ORF. He is passionate about conducting research at the intersection of geopolitics national security technology and economics.
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