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Published on Dec 16, 2022 Updated 0 Hours ago

जी20 की गतिविधियों के केंद्र में रहते हुए भारत इस दिशा में अहम योगदान दे सकता है. इसे प्रधानमंत्री मोदी के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को संचालित करने वाले सिद्धांतों की बुनियाद पर खड़ा किया जा सकता है.

G20 में ‘विकास’ के लक्ष्य को पाने के लिये, भारत देगा ‘डेटा’ को प्राथमिकता!

पिछले महीने बाली में जी20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात की प्रतिबद्धता जताई थी कि “विकास के लिए डेटा” का सिद्धांत भारत की जी20 अध्यक्षता का अटूट अंग होगा. इस सिद्धांत के प्रति भारत की वचनबद्धता और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के ज़रिए इस विचार को मज़बूत करने का नज़रिया पहले से ही स्पष्ट रहा है. भारत की अध्यक्षता में जी20 विकास कार्यकारी समूह के झंडे तले पहला आयोजन मंगलवार को मुंबई में संपन्न हुआ. इसमें “विकास के लिए डेटा: 2030 एजेंडे को आगे बढ़ाने में जी20 की भूमिका” से जुड़े मज़मून पर मंथन हुआ. भारत के जी20 शेरपा अमिताभ कांत ने बताया कि भारत अपने आकांक्षी ज़िलों में शासन-प्रशासन के साथ-साथ सार्वजनिक सेवाओं की आपूर्ति के लिए डेटा का रणनीतिक इस्तेमाल कर रहा है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि पिछले तीन वर्षों में इन तौर-तरीक़ों से ऐसे परिवर्तनकारी नतीजे सामने आए हैं जिनको हासिल करने में अन्य हालातों में छह दशकों का समय लग जाता. डेटा ने भारत में महामारी से निपटने की क़वायद के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और खाद्य सुरक्षा में नवाचार को बढ़ावा दिया है. इसके अलावा लगभग पूरी आबादी तक डिजिटल वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया को कामयाबी से पहुंचा दिया है.  

भारत की अध्यक्षता में जी20 विकास कार्यकारी समूह के झंडे तले पहला आयोजन मंगलवार को मुंबई में संपन्न हुआ. इसमें “विकास के लिए डेटा: 2030 एजेंडे को आगे बढ़ाने में जी20 की भूमिका” से जुड़े मज़मून पर मंथन हुआ.

 

एक समूह के तौर पर G20 में विकसित और विकासशील, दोनों तरह के देशों का जमावड़ा है. लिहाज़ा ये समूह सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने को लेकर वैश्विक प्रयासों की संभावित बानगी पेश करता है. SDGs की ओर प्रगति को रफ़्तार देने के लिए जी20 को 2 तरह के डेटा-संचालित हस्तक्षेपों को ज़ोरशोर से आगे बढ़ाना चाहिए: पहला, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और बिग डेटा एनालिटिक्स के प्रयोग से विरासती डेटासेट्स में नई जान फूंकते हुए डेटा को इंटेलिजेंस में बदले की क़वायद, और दूसरा, भविष्य के हिसाब से उपयोगी नए डेटासेट्स तैयार करने के लिए अत्याधुनिक और उभरती प्रौद्योगिकी (ड्रोन्स, भू-स्थानिक मैपिंग और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस समेत) का इस्तेमाल.  

पीएम मोदी का नज़रिया

दोनों क्षेत्रों में भारत दुनिया को काफ़ी कुछ मुहैया करा सकता है. भारत एक विशाल डेटा कार्यक्रम शुरू करने वाला है, जिसके हिस्से के तौर पर वो नेशनल डेटा गवर्नेंस फ़्रेमवर्क के तहत जुटाए गए गुमनाम डेटा सेट्स को AI इकोसिस्टम के साथ-साथ शोध और स्टार्टअप समुदायों के साथ साझा करेगा. इन विशालकाय डेटाबेस के इस्तेमाल से AI मॉडल्स को प्रशिक्षण दिया जाएगा, नवाचार में रफ़्तार भरी जाएगी और पहले से ज़्यादा असरदार नीतियों का निर्माण हो सकेगा. इनसे ज़मीनी स्तर पर समाधान मुहैया कराए जा सकेंगे. मई में नीति आयोग ने क्रांतिकारी क़दम उठाते हुए नेशनल डेटा एंड एनालिटिक्स प्लैटफ़ॉर्म का आग़ाज़ किया था. इसका मक़सद डेटा सेट्स को पहुंच के दायरे में लाकर और उन्हें अंतर-संपर्क के योग्य बनाकर सार्वजनिक सरकारी डेटा तक लोकतांत्रिक रूप से सबकी पहुंच सुनिश्चित कराना है. एनालिटिक्स और विज़ुअलाइज़ेशन के लिए, साथ जुड़े औज़ार मुहैया कराना भी इसके लक्ष्य में शुमार है. इस कड़ी में हरेक कार्यकम डिजिटल इंडिया को लेकर प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाता है, जिसका लक्ष्य डिजिटल तौर पर सशक्त समाज और प्रौद्योगिकी की बुनियाद पर ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है.  

इस कड़ी में हरेक कार्यकम डिजिटल इंडिया को लेकर प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाता है, जिसका लक्ष्य डिजिटल तौर पर सशक्त समाज और प्रौद्योगिकी की बुनियाद पर ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है

पूरी तरह से नए डेटासेट्स के निर्माण की क़वायद भी भारत में ज़ोरों पर है. ड्रोन्स के ज़रिए देश के भू-क्षेत्रों की बारीक़ तस्वीर खींची जा रही है और इन हवाई तस्वीरों को अन्य प्रकार के डेटा के साथ जोड़कर अद्भुत तरीक़े के विस्तृत नक़्शे तैयार किए जा रहे हैं. ड्रोन से तैयार किए जा रहे डेटा से कृषि में नई क्रांति आ रही है, साथ ही मौजूदा शहरों को स्मार्ट शहरों में बदलने में भी काफ़ी मदद मिल रही है. विश्व आर्थिक मंच के आकलन के मुताबिक ड्रोन्स की बुनियाद पर खड़ी नई डेटा अर्थव्यवस्था से भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 100 अरब अमेरिकी डॉलर का उछाल आ सकता है. साथ ही आने वाले वर्षों में तक़रीबन 5 लाख नौकरियों के अवसर तैयार होने की भी संभावना है. 

इसमें कोई शक़ नहीं है कि भारत भू-स्थानिकी के क्षेत्र में तेज़ी से विश्व नेता के तौर पर उभर रहा है. अक्टूबर में हैदराबाद में संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक सूचना कांग्रेस का आयोजन हुआ था. यहां अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने ज़ोर देकर कहा था कि भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी “समावेशन के लिए औज़ार” होने के साथ-साथ “प्रगति का वाहक” रही है और इस प्रौद्योगिकी ने विकास के तमाम क्षेत्रों में ख़ुद को सशक्तिकरण के माध्यम के तौर स्थापित कर लिया है. असलियत ये है कि इस क्षेत्र में भारत ने दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसियों को पहले से ही सहारा देना शुरू कर दिया है. वो इन मुल्कों को संचार और कनेक्टिविटी की मदद पहुंचा रहा है. 

बंधनों से आज़ाद हो डेटा

भारत और जी20 के साझीदार देश विकास के लिए डेटा पर केंद्रित गठजोड़ तैयार कर रहे हैं. इस दिशा में उन्हें कुछ प्रमुख सिद्धांतों का पालन करना चाहिए. मसलन, सभी देशों में डेटा को उनके मौजूदा बंधनों से आज़ाद कर देना चाहिए. धीरे-धीरे डेटा के बड़े से बड़े हिस्से को सार्वजनिक करते हुए आसानी से ढूंढे जाने लायक़ बना दिया जाना चाहिए. प्रभावी रूप से इस्तेमाल के लिए डेटा को सरल और ऊंची गुणवत्ता वाला और यथासमय (real time) उपलब्ध कराया जाना चाहिए. डेटा संचालनों के इर्द-गिर्द प्रयोगों और नवाचारों की संस्कृति स्थापित की जानी चाहिए. तमाम देशों को सकारात्मक रूप से डेटासेट्स के विश्लेषण के लिए ज़रूरी उपकरणों पर निश्चित रूप से निवेश करना चाहिए. परिणामों को बढ़ावा देने के लिए डेटा इकोसिस्टम में तमाम किरदारों के बीच सकारात्मक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जा सकता है.  

डेटा संप्रभुता और सुरक्षा की अनिवार्यताओं के साथ-साथ डेटा को सार्वजनिक बनाने की धारणा के बीच चतुराई भरा संतुलन स्थापित करने की ज़रूरत पड़ेगी. इससे विश्व बिरादरी को काफ़ी फ़ायदा हो सकता है.

फ़िलहाल जी20 के सामने 2 अहम ज़िम्मेदारियां है. इसके सदस्यों को संवेदनशील और ग़ैर-संवेदनशील डेटा की साझा विकसित करते हुए उसे मुकाम तक पहुंचाना होगा. इसके अलावा उन्हें ऐसे ढांचों पर विचार करना होगा जो सरहदों के आर-पार डेटा साझा करने में मददगार साबित हो सकें. हालांकि खुले भंडारों की स्थापना पर सिद्धांत रूप से सबकी सहमति है, जहां तमाम देश सार्वजनिक रूप से अहम डेटा भंडारित कर सकेंगे. बहरहाल, डेटा संप्रभुता और सुरक्षा की अनिवार्यताओं के साथ-साथ डेटा को सार्वजनिक बनाने की धारणा के बीच चतुराई भरा संतुलन स्थापित करने की ज़रूरत पड़ेगी. इससे विश्व बिरादरी को काफ़ी फ़ायदा हो सकता है. आख़िरकार जी20 के डेटा नियमनों में पारस्परिकता का विचार जोड़ना निहायत ज़रूरी है, यानी देशों को विकास से जुड़े डेटा साझा करने और उनसे फ़ायदा लेने की छूट होनी चाहिए.  

2030 क़रीब आता जा रहा है. ऐसे में विकास से जुड़े डेटा की क़वायद में जी20 के विचार-मंथनों में भारत की अध्यक्षता एक नया मोड़ साबित हो सकती है. 2019 से ही जी20 के नेता इस मज़मून की अहमियत पर लगातार ज़ोर देते आ रहे हैं. हाल ही में जापान, सऊदी अरब, इटली और इंडोनेशिया की अध्यक्षताओं में भी डिजिटलाइज़ेशन से तैयार डेटा की दौलत का भरपूर इस्तेमाल करने की ज़रूरत को स्वीकार किया गया है. डेटा की बुनियाद पर सशक्तिकरण की प्रक्रिया को मुख्यधारा का विषय बनाने के लिए सरकार से सरकार के बीच होने वाले संवादों का दायरा बढ़ाना होगा. इस क़वायद में निजी क्षेत्र, सिविल सोसाइटी, महिलाओं और युवाओं के साथ व्यवस्थागत जुड़ावों को धीरे-धीरे पूरक के तौर पर जोड़ना ज़रूरी है. G20 के रणनीतिक पटल पर भारत इसको एक अहम कारक के तौर पर शामिल कर सकता है. इस तरह पिछली उपलब्धियों और मौजूदा प्राथमिकताओं को नया आकार देकर इस समूह की नई विरासत दुनिया के सामने रखी जा सकती है. 


(ये लेख मूल रूप से हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ है).

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Authors

Samir Saran

Samir Saran

Samir Saran is the President of the Observer Research Foundation (ORF), India’s premier think tank, headquartered in New Delhi with affiliates in North America and ...

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Anirban Sarma

Anirban Sarma

Anirban Sarma is Deputy Director of ORF Kolkata and a Senior Fellow at ORF’s Centre for New Economic Diplomacy. He is also Chair of the ...

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