11 दिसंबर को भारत और उज़्बेकिस्तान ने एक वर्चुअल शिख़र वार्ता का आयोजन किया जिसका मक़सद दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों को और मज़बूत करना था. शिखर वार्ता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उज़्बेक राष्ट्रपति शवकत मिर्ज़ियोयेव ने कई मुद्दों पर चर्चा की. साझा बयान के मुताबिक़ शिखर वार्ता में जिन मुद्दों पर बात हुई उनमें द्विपक्षीय निवेश संधि पर जल्द अंतिम फ़ैसला, कोविड-19 महामारी और आतंकवाद के ख़तरे का मुक़ाबला करने के लिए आतंकियों के सुरक्षित पनाहगाह और उनके नेटवर्क और फंडिंग चैनल को “ख़त्म” करना शामिल हैं. भारत ने इस बात की भी पुष्टि की कि उज़्बेकिस्तान में बुनियादी ढांचे, सूचना तकनीक और सीवरेज ट्रीटमेंट के विकास के लिए उसने 448 मिलियन डॉलर लाइन ऑफ क्रेडिट की सुविधा दी है. दोनों देशों ने साइबर सुरक्षा, डिजिटल तकनीक और नवीकरणीय ऊर्जा के लिए नौ समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए. दोनों देशों ने समूचे क्षेत्र की स्थिरता, व्यापार में बढ़ोतरी और सुरक्षा के लिए अफ़ग़ानिस्तान में चल रही शांति प्रक्रिया पर भी चर्चा की.
अमेरिका-ईरान तनाव की वजह से अनिश्चितता के बावजूद भारत चाबहार बंदरगाह को कितना महत्व देता है, इसका अंदाज़ा इस परियोजना को फंड के आवंटन से लगाया जा सकता है
बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी में कामयाबी
उज़्बेकिस्तान न सिर्फ़ ख़ुद चारों तरफ़ समुद्र से विहीन देश है बल्कि उसके सभी पड़ोसी भी समुद्र विहीन हैं. ऐसे में उज़्बेकिस्तान ने ईरान में भारत द्वारा विकसित सामरिक रूप से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह में काफ़ी दिलचस्पी दिखाई. ईरान, भारत और उज़्बेकिस्तान 14 दिसंबर को चाबहार बंदरगाह के साझा इस्तेमाल को लेकर पहली त्रिपक्षीय बैठक में भी शामिल हुए. ये बैठक उस वक़्त हुई जब ऐसी ख़बरें आ रही थीं कि अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनका प्रशासन परमाणु मुद्दे पर ईरान के साथ फिर से बातचीत करेगा. तीनों देशों ने यूरोशिया की कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए इस क्षेत्र के बुनियादी ढांचे को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. भारत फिलहाल चाबहार में एक टर्मिनल चला रहा है. अमेरिका ने भी ट्रंप प्रशासन द्वारा ईरान पर आर्थिक पाबंदी के बावजूद भारत को सीमित छूट और लिखित भरोसा दिया है. अमेरिका-ईरान तनाव की वजह से अनिश्चितता के बावजूद भारत चाबहार बंदरगाह को कितना महत्व देता है, इसका अंदाज़ा इस परियोजना को फंड के आवंटन से लगाया जा सकता है. 2020-21 में भारत ने इस परियोजना के लिए 100 करोड़ रुपये का आवंटन किया जबकि इससे पिछले वर्ष में आवंटन 45 करोड़ रुपये था. भारत ने चाबहार के ज़रिए विशाल यूरेशिया के क्षेत्र तक पहुंचने की भी कोशिश की है.
उज़्बेकिस्तान चाबहार बंदरगाह को एक अवसर के तौर पर देखता है जिसके ज़रिए वो तेल और गैस में अपने निर्यात बाज़ार का विस्तार कर सके ताकि चीन की महत्वाकांक्षा को नियंत्रण में रखा जा सके. 2018 में राष्ट्रपति मिर्ज़ियोयेव ने अफ़ग़ानिस्तान मामलों पर अपने विशेष प्रतिनिधि को एक राजनीतिक और आर्थिक प्रतिनिधिमंडल के साथ चाबहार बंदरगाह की ट्रांज़िट क्षमता देखने के लिए भेजा था. इसके अलावा उज़्बेकिस्तान ने 2011 में उज़्बेक-अफ़ग़ान सीमा पर मज़ार-ए-शरीफ़ और हैरातन शहर के बीच 75 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का भी निर्माण किया था. इस परियोजना के लिए एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर की मदद की थी. ईरान के द्वारा 75 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से 10 दिसंबर को अफ़ग़ानिस्तान और ईरान के बीच पहले रेल लिंक की शुरुआत से भी कनेक्टिविटी बढ़ी है. इन कोशिशों के अलावा भारत और उज़्बेकिस्तान- दोनों देश अशगबत समझौते से भी जुड़े हैं जो 2011 में मध्य एशिया और फारस की खाड़ी के बीच ट्रांज़िट और परिवहन कॉरिडोर बनाने के लिए किया गया था. भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच कनेक्टिविटी में धीमी लेकिन लगातार प्रगति और कई मुद्दों पर बढ़ती समानता इस द्विपक्षीय साझेदारी को मज़बूत बना रही है.
बढ़ती समानता और सामंजस्य
ऐतिहासिक तौर पर जुड़े दोनों देशों के साथ-साथ पूरे मध्य एशिया के साथ संबंधों में इस नई ताज़गी का श्रेय पूर्व सोवियत संघ के विघटन के बाद एशिया के दिल की तरफ़ भारत के रचनात्मक और सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण को जाता है. 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उज़्बेकिस्तान का दौरा किया और “भारत के लिए इस क्षेत्र के सामरिक महत्व को सबसे आगे” रखा. उन्होंने मध्य एशिया के साथ भारत की साझेदारी को बढ़ावा देने और प्राचीन सामाजिक-आर्थिक और परंपरागत संबंधों को मज़बूत करने के लिए सामंजस्यपूर्ण रणनीति अपनाई. आतंकवाद दोनों देशों के लिए साझा ख़तरा है. ऐसे में दोनों देशों ने आतंकवाद के ख़िलाफ़ एक ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप की स्थापना के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए. साथ ही रक्षा और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने के लिए भी तैयार हुए. यहां तक कि सबसे अलग-थलग रहने वाले उज़्बेकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति इस्लाम करीमोव ने भी भारत के साथ संबंधों को मज़बूती देने को विदेश नीति का बड़ा लक्ष्य बनाया. द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिए उज़्बेक राष्ट्रपति मिर्ज़ियोयेव ने 2018 के साथ-साथ 2019 में भी भारत का दौरा किया और इस दौरान व्यापार, पर्यटन, उज़्बेकिस्तान से यूरेनियम के आयात, तकनीक और इनोवेशन को लेकर कई समझौतों पर दस्तख़त किए. यहां तक कि 2020 में भी, जब दुनिया गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रही थी, 28 अक्टूबर को वर्चुअल भारत-मध्य एशिया संवाद हुआ जिसमें अफ़ग़ानिस्तान भी शामिल था. भारत ने मध्य एशिया के पांच देशों के लिए एक अरब डॉलर की लाइन ऑफ क्रेडिट का ऐलान किया जिसका इस्तेमाल कनेक्टिविटी बढ़ाने, ऊर्जा साझेदारी और व्यापार और वाणिज्य को मज़बूत करने के लिए किया जाएगा.
द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिए उज़्बेक राष्ट्रपति मिर्ज़ियोयेव ने 2018 के साथ-साथ 2019 में भी भारत का दौरा किया और इस दौरान व्यापार, पर्यटन, उज़्बेकिस्तान से यूरेनियम के आयात, तकनीक और इनोवेशन को लेकर कई समझौतों पर दस्तख़त किए.
उज़्बेकिस्तान में सुधार और चीन की तरफ़ बढ़ता अविश्वास
उज़्बेकिस्तान में इस इलाक़े की क़रीब आधी आबादी रहती है और राष्ट्रपति शवकत मिर्ज़ियोयेव की बदौलत ये तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है. राष्ट्रपति मिर्ज़ियोयेव ने सामाजिक-राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में सुधार किए जिसकी वजह से विदेशी निवेश में चार गुना बढ़ोतरी हुई है. उज़्बेकिस्तान ने राजधानी ताशकंद में 1.7 अरब डॉलर की लागत से अंतर्राष्ट्रीय कारोबार और वित्तीय केंद्र बनाना शुरू किया है. उज़्बेकिस्तान में निवेश की मांग बहुत ज़्यादा है. ऐसे में मध्य एशिया को लेकर चीन के ज़िद्दी आधिपत्य वाले बर्ताव की तरफ़ बढ़ता अविश्वास भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच संबंधों में बेहतरी के लिए मज़बूत आधार है.
चीन कई मुद्दों जैसे शिनजियांग में मानवाधिकार उल्लंघन, उज़्बेक मूल की अपनी आबादी के साथ सुलूक और दक्षिणी चीन सागर, पामीर और काराकोरम में साम्राज्यवाद की कोशिशों की वजह से मध्य एशियाई देशों के साथ-साथ दुनिया के ग़ुस्से का भी सामना कर रहा है.
महामारी की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था में मंदी को देखते हुए लुकोइल- रूस की तेल और प्राकृतिक गैस कंपनी जो उज़्बेकिस्तान से चीन को भेजी जाने वाली प्राकृतिक गैस का उत्पादन करती है- को 476.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुक़सान झेलना पड़ा क्योंकि चीन ने उज़्बेकिस्तान को मजबूर किया कि 2020 के पहले छह महीनों में वो गैस की आपूर्ति में 14 प्रतिशत की कटौती करे. इस बर्ताव ने चीन को लेकर उज़्बेकिस्तान के लोगों का अविश्वास और बढ़ाया. सेंट्रल एशियन बैरोमीटर की तरफ़ से 2020 में कराए गए एक सर्वे के मुताबिक़, उज़्बेकिस्तान की 48 प्रतिशत आबादी ऊर्जा और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में चीन के विकास का “मज़बूती से समर्थन” करती है जबकि 2019 में 65 प्रतिशत आबादी ने चीन का समर्थन किया था. चीन कई मुद्दों जैसे शिनजियांग में मानवाधिकार उल्लंघन, उज़्बेक मूल की अपनी आबादी के साथ सुलूक और दक्षिणी चीन सागर, पामीर और काराकोरम में साम्राज्यवाद की कोशिशों की वजह से मध्य एशियाई देशों के साथ-साथ दुनिया के ग़ुस्से का भी सामना कर रहा है. सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि महामारी के दौरान दूसरे देशों को चीन का कर्ज़ देना काफ़ी कम हो गया है. इस बात का भी आकलन हो रहा है कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत चीन का ग़लत निवेश पहला विदेशी कर्ज़ संकट बन सकता है. मध्य एशिया इस दोषपूर्ण बीआरआई के केंद्र में है क्योंकि बीआरआई के तहत छह आर्थिक कॉरिडोर में से दो मध्य एशिया से गुज़रते हैं.
आगे का रास्ता
साझा बयान के मुताबिक़ भारत और उज़्बेकिस्तान के बीच बढ़ा हुआ मेलजोल दो तऱफ़ा और रचनात्मक है और आने वाले वर्षों में ये नई ऊंचाई को हासिल कर सकता है जिनमें 1 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के लक्ष्य को हासिल करना भी शामिल है. लेकिन उज़्बेकिस्तान और भारत- दोनों को कुछ द्विपक्षीय क़दम उठाने होंगे जैसे तरजीही व्यापार समझौते पर बातचीत की जल्द शुरुआत क्योंकि दोनों देश ज़मीन से कनेक्टिविटी की समस्या का सामना करते हैं. उज़्बेकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (आईएनएसटीसी) में शामिल होना चाहिए. ईरान और भारत- दोनों देश आईएनएसटीसी के सदस्य हैं. ऐसे में उज़्बेकिस्तान के आने से चीज़ें, ख़ास तौर पर कनेक्टिविटी, सही दिशा में आगे बढ़ेगी.
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