21-23 जून तक भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संयुक्त राज्य अमेरिका के राजकीय दौरे पर थे, जिसे लेकर दोनों देशों में अभूतपूर्व उत्साह देखने को मिला, जहां यह मीडिया और राजनीतिक बहसों में प्रमुख रूप से छाया रहा. ज़्यादातर लोगों ने इस दौरे को द्विपक्षीय संबंधों के लिए ‘निर्णायक मोड़’ और ‘सबसे महत्त्वपूर्ण यात्रा’ कहा. ऐसा लगता है कि इस दौरे के कारण द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊर्जा और गति मिली है, और नए दृष्टिकोण को प्रस्तुत करने के साथ-साथ भविष्य के लिए नई आशा का संकेत दिया है. कुल मिलाकर, यह दौरा वर्तमान समय के लिहाज़ से प्रासंगिक कहा जा सकता है. यात्रा से पहले ही रक्षा और तक़नीकी सहयोग का मुद्दा चर्चा के केंद्र में था और यात्रा के दौरान भी इन मुद्दों पर सबसे ज्य़ादा बहस हुई. जबकि रक्षा सहयोग अभी भी भारत और अमेरीका के बीच रणनीतिक साझेदारी के लिए ‘सबसे अहम’ है, जो द्विपक्षीय संबंधों को संचालित करने वाला ‘प्रमुख क्षेत्र’ रहा है लेकिन इस बार चीज़ें कुछ अलग रहीं. आपसी सहयोग में तेज़ी से विस्तार को लेकर तात्कालिकता की भावना दिखाई दी.
भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग की शुरुआत शीत युद्ध के बाद 1990 के दशक के मध्य में हुई थी, और 21वीं सदी के पहले दशक में द्विपक्षीय रक्षा संबंधों में तेज़ी से प्रगति हुई.
रक्षा सहयोग: 1990s के दशक के मध्य से लेकर जून 2023 के संयुक्त बयान तक
भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग की शुरुआत शीत युद्ध के बाद 1990 के दशक के मध्य में हुई थी, और 21वीं सदी के पहले दशक में द्विपक्षीय रक्षा संबंधों में तेज़ी से प्रगति हुई. NSSP (नेक्स्ट स्टेप्स इन स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप), डिफेंस फ्रेमवर्क एग्रीमेंट, और डिफेंस पॉलिसी ग्रुप (DPG) एवं संबंधित समूहों के तहत संस्थागत बैठकों और समीक्षाओं का नतीजा है कि शीघ्र ही कुछ लक्ष्य हासिल कर लिए गए. रक्षा अभ्यासों, दौरों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, संवादों और कार्यशालाओं के आयोजनों की संख्या में वृद्धि हुई. डायरेक्ट कमर्शियल सेल्स (DCS) और फॉरेन मिलिट्री सेल्स (FMS), दोनों के माध्यम से अमेरिका से रक्षा खरीद की शुरुआत हुई. इस सदी के दूसरे दशक में दोनों तरफ़ से रक्षा सहयोग के विस्तार को लेकर प्रयास किए गए. डिफेंस ट्रेड एंड टेक्नोलॉजी इनिशिएटिव (DTTI), ज्वाइंट डिक्लेरेशन ऑन डिफेंस कोऑपरेशन, ‘फाउंडेशनल एग्रीमेंट्स‘ (लंबे विचार-विमर्श के बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे) और अमेरिका द्वारा भारत को “एक प्रमुख रक्षा साझेदार” घोषित करना इस दिशा में किए गए प्रमुख प्रयास थे. इन प्रयासों का उद्देश्य रक्षा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, लाइसेंसिंग और नियामक सुविधा, रक्षा व्यापार में वृद्धि, अनुसंधान भागीदारी और सह-उत्पादन और आपसी सहयोग से विकास को बढ़ावा देना था. दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों/सचिवों के बीच टू प्लस टू वार्ता की शुरुआत हुई. जबकि रक्षा खरीद में तेज़ी से वृद्धि हुई, लेकिन रक्षा तकनीक, अनुसंधान, और उत्पादन सहयोग के मामले में प्रगति धीमी रही, जिससे ये समझौते वादों में बहुत आगे लेकिन उन्हें पूरा करने में पीछे रहे हैं.
पिछले दो दशकों में, रक्षा सहयोग का मुद्दा भारत और अमेरिका के व्यापक द्विपक्षीय संबंधों के केंद्र में रहा है लेकिन छोटे और बड़े दोनों स्तरों पर आपसी सहयोग को और ज्य़ादा बढ़ावा देने में प्रमुख कारक रहा है. दोनों देश यह मानते हैं कि पहले दो दशकों की तुलना में आने वाले समय में अलग चुनौतियों का सामना करना होगा, जिसके लिए हमें समय के साथ बदलाव के लिए तैयार रहना होगा और अतीत में जो बाधाएं मौजूद रहीं, उन पर काबू पाने की ज़रूरत होगी. कुछ क्षेत्रों में मतभेदों के बावजूद, बढ़ते रक्षा और सुरक्षा संबंधों में एक चीज़ समान रही है कि पहले इनके केंद्र में हिंद महासागर था और बाद में पूरा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में इसमें शामिल हो गया है. द्विपक्षीय रक्षा और सुरक्षा संबंध क्वाड के मुख्य के सामान्य उद्देश्यों के साथ संगत हैं. पिछले दशक के आखिरी सालों से वैश्विक मुद्दों पर भी सहयोग में वृद्धि हुई है.
जून 2023 की यात्रा के बाद जारी संयुक्त बयान में इस बार पर ज़ोर दिया गया कि “आपसी सहयोग के स्तर पर हम वैश्विक हित में काम करेंगे क्योंकि हम कई बहुपक्षीय और क्षेत्रीय समूहों, विशेष रूप से क्वाड के माध्यम से सक्रिय हैं..” इस संयुक्त बयान में वैश्विक शासन और वैश्विक विकास के प्रति दोनों देशों के सहयोगात्मक दृष्टिकोण पर भी ज़ोर दिया गया. इसमें साझेदारी को और मज़बूत बनाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर भी बात की गई. सामरिक व्यापार संवाद (जिसकी यात्रा से पहले घोषणा की गई थी) के साथ प्रौद्योगिक हस्तांतरण को जोड़ा गया. रक्षा के मसले पर दिए गए बयान का शीर्षक था, ‘रक्षा साझेदारी के अगले दौर को मज़बूती प्रदान करना’. बयान में मौजूदा समस्याओं के साथ-साथ उभरते हुए ख़तरों पर भी बात की गई और कुछ देशों से पैदा होने वाले सीमा पार आतंकवाद की निंदा की.
रक्षा प्रौद्योगिकी में सहयोग
पिछले पांच या कुछेक सालों में, रक्षा क्षेत्र समेत विभिन्न क्षेत्रों में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी को लेकर जारी प्रतिस्पर्धा भू-राजनीति और भू-अर्थव्यवस्था में बहुत ज्यादा हावी है. 2022 की शुरुआत में, भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका, दोनों का ही मानना था कि DTTI फ्रेमवर्क और उससे जुड़े कार्यक्रमों की घोषणाओं के बावजूद इस क्षेत्र में इतनी धीमी प्रगति दर्ज की गई, जिसका एक प्रमुख कारण तक़नीकी सहयोग के लिए एक व्यापक ढांचे का अभाव था. जबकि रक्षा प्रौद्योगिकी में सहयोग काफ़ी कठिन है और इसकी अपनी विशिष्ट चुनौतियां हैं, लेकिन चूंकि उसका दायरा इतना सीमित है कि वर्तमान में अपने हिसाब से उसे विस्तारित नहीं किया सकता है. इसी क्रम में, मई 2022 में क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (iCET) पर एक व्यापक द्विपक्षीय पहल की घोषणा की गई, जिसकी आधिकारिक शुरुआत जनवरी 2023 में हुई. इस कार्यक्रम के उद्देश्य हैं:
i) नवाचार प्रणाली को मज़बूत बनाना
ii) रक्षा क्षेत्र में नवाचार और प्रौद्योगिक सहयोग
iii) सेमीकंडक्टरों की आपूर्ति शृंखला में लचीलापन हासिल करना
iv अंतरिक्ष
v) स्टेम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित) क्षेत्र से जुड़ी योग्यताएं
vi) अगली पीढ़ी की दूरसंचार सेवाएं
दो राष्ट्रीय सुरक्षा परिषदों द्वारा संचालित इस कार्यक्रम में कई एजेंसियों की भागीदारी है और यह विभिन्न क्षेत्रों, विभागों, एजेंसियों
व्यवसायों, अनुसंधान संगठनों और शिक्षा संस्थानों में संस्थागत जुड़ाव को सक्षम बनाता है.
LCA Mk2 कार्यक्रम के तहत भारत में 99 GE F414 जेट इंजन के निर्माण के लिए जनरल इलेक्ट्रिक और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के बीच हुए समझौता ज्ञापन (MoU) को संयुक्त बयान में “नवाचार के एक बेहतरीन उदाहरण” के तौर पर पेश किया गया. सालों की वार्ता प्रक्रियाओं और बहसों से गुजरने के बाद वर्तमान में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (ToT) के स्तर को “बेहतर” बताया गया है, हालांकि इसके बारे में सार्वजनिक रूप से कोई सूचना उपलब्ध नहीं है. AMCA कार्यक्रम के लिए जिस नए F414-INS6 इंजन का प्रोटोटाइप विकसित किया जा रहा है, उसके निर्माण और परीक्षण में भारत की कितनी भागीदारी है, इसे लेकर भी स्पष्ट जानकारी नहीं है.
भारत को अपने रक्षा प्रौद्योगिक कार्यक्रमों और तंत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार के लिए अपने प्रयासों में तेज़ी लाने की ज़रूरत है, जिसके लिए उसके पास पर्याप्त क्षमता मौजूद है.
भारत-अमेरिका के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी में सहयोग को पूरी तरह भुनाने और उसका लाभ उठाने के लिए, अमेरिकी एजेंसियों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और सहयोग से जुड़े वादों को पूरा करने के लिए एक निश्चित समयसीमा के भीतर ठोस कदम उठाने होंगे. दूसरी ओर, भारत को अपने रक्षा प्रौद्योगिक कार्यक्रमों और तंत्र में महत्त्वपूर्ण सुधार के लिए अपने प्रयासों में तेज़ी लाने की ज़रूरत है, जिसके लिए उसके पास पर्याप्त क्षमता मौजूद है. वर्तमान में, अमेरिका अपने रक्षा बजट का 13 प्रतिशत अनुसंधान एवं विकास पर खर्च करता है, जबकि भारत के लिए यह आंकड़ा महज़ 1 प्रतिशत (लगभग) है. भारत में रक्षा अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी भी बहुत कम है और DRDO द्वारा अनुसंधान एवं विकास में किए जा रहे व्यय के साथ संतुलन बनाते हुए निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा दिए जाने की ज़रूरत है. वर्तमान परिदृश्य में, विशिष्ट क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास के लिए रक्षा क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सरकार के प्रोत्साहन की ज़रूरत पड़ सकती है. रक्षा प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण से जुड़ी सीमाओं को भी पहचानने की आवश्यकता है. महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण वास्तव में उपयोगी है लेकिन इसे आखिरी समाधान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. अगर कुछ विशिष्ट (एवं संबंधित) क्षेत्रों में प्रगति हासिल करने के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का लाभ नहीं उठाया जाता है, तो एक देश तक़नीकी ज़रूरतों के लिए दूसरे देशों पर हमेशा के लिए निर्भर हो जाएगा, जहां हर बार भारी भुगतान करना होगा. इस संबंध में भारत ने एक नया दृष्टिकोण अपनाया है, जो अतीत में प्रौद्योगिक हस्तांतरण के समावेश और उसके सही उपयोग से जुड़ी गंभीर कमियों को ठीक करने का प्रयास करता है.
भारत-अमेरिका रक्षा औद्योगिक सहयोग की दिशा
यात्रा के दौरान रक्षा औद्योगिक सहयोग से जुड़ी एक नई रूपरेखा पर सहमति जताई गई ताकि उन्नत रक्षा प्रणाली के सह-विकास, साझा अनुसंधान, परियोजनाओं के प्रोटोटाइप के निर्माण और परीक्षण की क्षमता का विकास किया जा सके. भारत के सैन्य आधुनिकीकरण के लिए ज़रूरी तंत्रों के सह-विकास के लिए दोनों देश मिलकर तात्कालिक और महत्त्वपूर्ण अवसरों की पहचान करेंगे. अमेरिका विमानों और जहाजों के उचित संचालन के लिए उसके रखरखाव, मरम्मत और आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण में भारत का सहयोग करेगा. प्रमुख क्षेत्रों को ISR (इंटेलिजेंस, सर्विलांस, रिकॉनसेंस), समुद्री निगरानी, हवाई युद्ध, एयरो-इंजन, युद्ध सामग्री और गतिशीलता के रूप में दर्शाया गया है. GE-HAL समझौता ज्ञापन को इस रूपरेखा के साथ संगत पहला कार्यक्रम माना जा सकता है. हालांकि, इस रूपरेखा को ज़मीनी स्तर पर प्रभावी बनाने के लिए कुछ अन्य विशिष्ट कार्यक्रमों को शुरू करने और उन्हें लागू करने की आवश्यकता होगी.
31 MQ-9B मानव रहित हवाई विमानों की खरीद के हिस्से के रूप में (जिसे भारत में निर्मित किया जाएगा), भारत में जनरल एटॉमिक्स द्वारा रख-रखाव, मरम्मत और ओवरहाल (MRO) के लिए एक विश्व स्तर के सुविधा केंद्र की भी स्थापना की जाएगी. इस खरीद के ज़रिए ISR क्षमता को मज़बूत करने के अलावा, यह सुविधा केंद्र भारत में तेज़ी से उभरते MRO क्षेत्र और संबंधित तंत्र (रक्षा और नागरिक दोनों) को और बढ़ावा देगा.
यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका डिफेंस एक्सेलेरेशन इकोसिस्टम (INDUS-X) की घोषणा की गई, जिसका उद्देश्य रक्षा औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा देना और प्रौद्योगिकी और विनिर्माण में नवाचारों को प्रेरित करना है. आपसी सहयोग से जुड़े एक नए लक्ष्य की घोषणा की गई, जिसमें स्टार्टअप से जुड़ी संयुक्त प्रतियोगिताएं, गोलमेज कार्यक्रम, बड़ी कंपनियों और स्टार्टअप कंपनियों के बीच मेंटरशिप कार्यक्रम और एक वरिष्ठ सलाहकार समूह की स्थापना आदि शामिल हैं. INDUS-X भारत के बेहद सफ़ल रक्षा कार्यक्रम, इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (IDEX) और ‘स्प्रिंट चैलेंजेज’ (जिसका उद्देश्य नौसेना में स्वदेशी प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है) को बढ़ावा दे सकता है. इसे (स्प्रिंट चैलेंजेज) अब अंतरिक्ष क्षेत्र में भी शुरू कर दिया गया है. इसके तहत प्रमुख क्षेत्रों की दिग्गज कंपनियों और स्टार्टअप के बीच संबंध को सबसे महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है, जिससे नवाचारों को बढ़ावा देने के अवसर पैदा किए जा सकते हैं और साथ ही कई नवाचारों को बड़े प्लेटफार्मों और व्यवस्थाओं से जोड़ा जा सकता है. फिलहाल इस कार्यक्रम के लिए कोई वित्तीय प्रावधान नहीं किया गया है. दिलचस्प बात यह है कि INDUS-X की घोषणा में वैश्विक शांति, सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ावा देने के साथ-साथ एक खुले हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लिए इसके संभावित योगदान की भी बात की गई है.
यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका डिफेंस एक्सेलेरेशन इकोसिस्टम (INDUS-X) की घोषणा की गई, जिसका उद्देश्य रक्षा औद्योगिक सहयोग को बढ़ावा देना और प्रौद्योगिकी और विनिर्माण में नवाचारों को प्रेरित करना है.
संभावना है कि आने वाले समय में, INDUS-X को क्वॉड के तहत एक कार्यक्रम के तौर पर विस्तारित किया जाएगा क्योंकि इसके लिए सभी महत्वपूर्ण इकाइयां पहले से मौजूद हैं. साथ ही इसे एक उपयुक्त संक्षिप्त नाम दिया जाएगा.
आगे की दिशा
इस यात्रा के दौरान रक्षा क्षेत्र से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को नीचे संक्षेप में प्रस्तुत किया जा सकता है:
दोनों पक्षों में इस बात को लेकर सहमति है और उनकी इच्छा है कि वे अपने रक्षा साझेदारी में महत्वपूर्ण बदलाव करें और उसे और मज़बूत बनाएं ताकि उसे सदी के तीसरे दशक के रणनीतिक माहौल (जिसकी प्रकृति आज की तुलना में एकदम अलग होगी) के अनुरूप ढाला जा सके. यह स्पष्ट है कि यात्रा से पहले अच्छी खासी तैयारी की गई थी. जिन नई रूपरेखाओं और व्यवस्थाओं की घोषणा की गई है, वे बेहद महत्त्वाकांक्षी हैं और पिछले दशक में रक्षा क्षेत्र में जो बाधाएं और कमियां देखी गईं, उन्हें दूर करने का प्रयास करती हैं.
तक़नीकी सहयोग संबंधों में क्रांतिकारी बदलाव के लिहाज़ से सबसे ज्य़ादा ज़रूरी है. द्विपक्षीय संबंधों की रूपरेखा तय करने के अलावा, इसके कार्यान्वयन की गति को बढ़ाने के लिए दोनों पक्षों को आंतरिक स्तर पर सुधारों को अंजाम देना होगा. सह-विकास कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए भारत को अपनी रक्षा प्रौद्योगिकी क्षमताओं में प्रभावी ढंग से सुधार करने और प्रौद्योगिक हस्तांतरण (जिसमें निजी क्षेत्र भी शामिल है) के भरपूर दोहन की आवश्यकता होगी. अभी तक किसी बड़े सह-विकास कार्यक्रम की घोषणा नहीं की गई है, जिसे आने वाले महीनों में शुरू किए जाने की ज़रूरत है.
एयरो इंजन जैसे और कई सह-उत्पादन कार्यक्रमों की उम्मीद की जा सकती है, जिनसे दोनों पक्षों को लाभ होगा. रक्षा औद्योगिक क्षेत्र में सुधार के अलावा, इससे आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित और लचीला बनाने में काफ़ी मदद मिलेगी. रक्षा नवाचार तंत्र को आपस जोड़ना एक महत्त्वपूर्ण कदम है, इन प्रयासों के माध्यम से उन्नत क्षमताओं को उपलब्ध कराने की बात करें तो इन उद्देश्यों को हकीकत में तब्दील करने के लिए अभी और मेहनत की ज़रूरत होगी.
अगर दोनों देश तय समयसीमा के भीतर इस मंशा को मूर्त रूप देते हुए अपने लक्ष्यों को हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं, तो इससे यह यात्रा एक ऐतिहासिक दौरे में बदल जाएगी.
रक्षा उद्योग और तक़नीकी सहयोग में भारत-अमेरिका के बीच साझेदारी मौजूदा समय में भू-राजनीति और भू-अर्थव्यवस्था के कई पहलुओं को उजागर करती है. विभिन्न चैनलों के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दोनों द्वारा संचालित किए जा रहे संयुक्त कार्यक्रमों के साथ यह संगति रखता है. इनमें से कुछ कार्यक्रमों की घोषणा यात्रा के दौरान की गई, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि शायद इन्हें क्वाड के तहत ऐसी किसी व्यवस्था या तंत्र के माध्यम से संचालित किया जाएगा. इस बात को लेकर स्पष्ट स्वीकृति है कि चीन के मुकाबले रक्षा क्षेत्र में वित्तीय जोखिम में कमी लाने की अमेरिकी कवायद को सफ़ल बनाने के लिए समय की ज़रूरत होगी और ऐसा रातों-रात नहीं किया जा सकता. भारत के नज़रिए से देखें तो इस यात्रा का उद्देश्य यह बताना भी था कि दो देशों के बीच मज़बूत रक्षा साझेदारी और उनकी रणनीतिक स्वायत्तता दो एकदम विपरीत विषय नहीं हैं, बल्कि आपसी संबंध जितने परिपक्व होंगे, उतना ही इन दोनों के बीच संतुलन को बनाए रख सकते हैं.
संयुक्त बयान में जिस तरह की राजनीतिक मंशा का प्रदर्शन किया गया, उसे क्रांतिकारी कहा जा सकता है. अगर दोनों देश तय समयसीमा के भीतर इस मंशा को मूर्त रूप देते हुए अपने लक्ष्यों को हासिल करने में कामयाब हो जाते हैं, तो इससे यह यात्रा एक ऐतिहासिक दौरे में बदल जाएगी.
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