Author : Harsh V. Pant

Published on Nov 10, 2022 Updated 0 Hours ago

चीन के कोप और बुरी नीयत को देखते हुए ताइवान (Taiwan) के लिए आवश्यक हो चला है कि वह भारत ( India) जैसे देशों के साथ अपने संबंधों को नई ऊंचाई दे. ताइवान ने अपनी ‘न्यू साउथबाउंड पालिसी’ को नए तेवर दिए हैं.

India-Taiwan Friendship: समय की मांग है भारत-ताइवान मैत्री
हाल में ताइवान ( Taiwan) के उप-आर्थिक मंत्री चेन-चेर्न ची (Chen-Chern Chi) भारत दौरे पर आए. उनका यह दौरा भले ही उतनी चर्चा में न रहा हो, लेकिन इससे इसका महत्व कम नहीं हो जाता. उनके दौरे पर करीब 30 सहमति पत्रों यानी एमओयू पर हुए हस्ताक्षर इस दौरे के आर्थिक महत्व को बताने के लिए पर्याप्त हैं. पखवाड़ा भर पहले चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ( CCP) की कांग्रेस में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ताइवान पर बेहद आक्रामक तेवरों के कुछ दिन बाद ही ताइवानी मंत्री का भारत दौरे पर आने से इसकी रणनीतिक महत्ता भी पता चलती है.

आकार लेती परिस्थितियां

वास्तव में इस प्रकार की परिस्थितियां आकार ले रही हैं, जिनमें भारत और ताइवान स्वाभाविक साझेदार और घनिष्ठ सहयोगियों के रूप में उभर रहे हैं. इस घनिष्ठता के केंद्र में चीनी कोण महत्वपूर्ण है. चीनी राष्ट्रपति ने कम्युनिस्ट कांग्रेस में ताइवान के एकीकरण को लेकर आक्रामक रुख अपनाने के संकेत दिए और उनके भाषण से लगा कि ताइवान को लेकर उनका धैर्य अब जवाब देता जा रहा है. ऐसी आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि यदि चीन ताइवान में अतिक्रमण करने में किसी प्रकार सफल हो जाता है तो उसका अगला निशाना भारत हो सकता है. यह पहलू भी भारत और ताइवान को नजदीक ला रहा है.

ऐसी आशंका भी व्यक्त की जा रही है कि यदि चीन ताइवान में अतिक्रमण करने में किसी प्रकार सफल हो जाता है तो उसका अगला निशाना भारत हो सकता है. यह पहलू भी भारत और ताइवान को नजदीक ला रहा है. 

चेन जिस कार्यक्रम में आए, वह उद्योग संगठन फिक्की और ताइवानी संस्था चाइनीज नेशनल फेडरेशन आफ इंडस्ट्री ने आयोजित किया था. इस कार्यक्रम से द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर बहुत सकारात्मक संकेत मिले और आभास हुआ कि दोनों देश अपनी-अपनी विशेषज्ञता से एक दूसरे को लाभान्वित करना चाहते हैं. भारत इस समय ताइवानी कंपनियों के निवेश के लिए पसंदीदा ठिकाना बनता जा रहा है. बीते दिनों ताइवानी दिग्गज कंपनी फाक्सकान ने वेदांत के साथ मिलकर गुजरात में देश का पहला सेमीकंडक्टर संयंत्र लगाने की दिशा में कदम बढ़ाए. एक अन्य ताइवानी कंपनी पेगाट्रन ने भी एपल के उत्पाद बनाने से जुड़ी इकाई तमिलनाडु में शुरू की है. ताइवानी मंत्री ने कहा भी कि दोनों देशों को अपने मुक्त व्यापार समझौते यानी एफटीए को जल्द अंतिम रूप देना चाहिए. एफटीए पर गत दिसंबर से वार्ता जारी है. भले ही अभी द्विपक्षीय व्यापार करीब आठ अरब डालर के दायरे में हो, लेकिन पिछले एक साल के दौरान उसमें आई 65 प्रतिशत की तेजी यह बताने के लिए काफी है कि दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध कितनी संभावनाओं से भरे हैं.

‘न्यू साउथबाउंड पालिसी’ को नए तेवर 

चीन के कोप और बुरी नीयत को देखते हुए ताइवान के लिए आवश्यक हो चला है कि वह भारत जैसे देशों के साथ अपने संबंधों को नई ऊंचाई दे. ताइवान ने अपनी ‘न्यू साउथबाउंड पालिसी’ को नए तेवर दिए हैं. इसके अंतर्गत वह न केवल भारत, बल्कि आसियान, दक्षिण एशियाई और आस्ट्रेलिया जैसे चीनी आक्रामकता के लिहाज से संवेदनशील देशों के साथ अपने संबंधों को प्रगाढ़ बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. कुछ दिन पहले अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे पर चिढ़े चीन ने जापान के सामुद्रिक क्षेत्र तक मिसाइलें दागकर अपनी खीझ उतारी थी. फिर कम्युनिस्ट कांग्रेस में राष्ट्रपति शी ने ताइवान के एकीकरण को लेकर अपनी व्यग्रता दिखाकर इरादे जाहिर कर दिए. ऐसे में अपनी पहचान को कायम रखने के लिए ताइवान को सतर्क रहना होगा.

भारत इस समय ताइवानी कंपनियों के निवेश के लिए पसंदीदा ठिकाना बनता जा रहा है. बीते दिनों ताइवानी दिग्गज कंपनी फाक्सकान ने वेदांत के साथ मिलकर गुजरात में देश का पहला सेमीकंडक्टर संयंत्र लगाने की दिशा में कदम बढ़ाए. एक अन्य ताइवानी कंपनी पेगाट्रन ने भी एपल के उत्पाद बनाने से जुड़ी इकाई तमिलनाडु में शुरू की है.

इसमें वैश्विक समुदाय की भी जिम्मेदारी है कि वह एकजुटता दिखाकर ताइवान की ढाल बने. चूंकि सेमीकंडक्टर-इलेक्ट्रानिक्स चिप्स निर्माण में ताइवान के दबदबे से वैश्विक आपूर्ति शृंखला में उसकी खासी अहमियत है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर भी दारोमदार बढ़ जाता है कि कि वह इस छोटे से देश के हितों की रक्षा में बड़ी भूमिका निभाए. हाल में वैश्विक समुदाय की ओर से ताइवान की पीठ पर हाथ रखने संबंधी कुछ सकारात्मक संकेत मिले हैं. जैसे बाइडन प्रशासन ने चीन को अत्याधुनिक इलेक्ट्रानिक्स चिप्स की आपूर्ति को लेकर जो प्रतिबंध लगाए हैं, उससे ताइवान का कद मजबूत होगा. ऐसा इसलिए, क्योंकि चीन के पास ऐसी चिप्स निर्माण की क्षमताएं नहीं हैं. जब उसे ताइवान और अन्य अमेरिकी सहयोगी देशों से अत्याधुनिक चिप्स नहीं मिलेंगी तो उसकी विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात पर नकारात्मक असर पड़ेगा. वैसे भी चीन शून्य कोविड नीति के कारण आपूर्ति में गतिरोध झेल रहा है. ऐसे में चीन के लिए यह अमेरिकी घोषणा दोहरा झटका देने वाली होगी. इससे ताइवान को भी आसन्न चुनौतियों से निपटने में स्वयं को तैयार करने का कुछ समय मिल जाएगा.

एक समय कहा जाता था कि चीन दुनिया की हार्डवेयर शक्ति है और भारत साफ्टवेयर शक्ति. ऐसे में यदि दोनों देश साथ आ जाएं तो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर क्रांतिकारी छाप छोड़ सकते हैं. चूंकि चीन के साथ भारत के संबंध पारंपरिक रूप से असहज रहे हैं, जो कुछ समय से और तल्ख हो गए हैं, ऐसे में उस संकल्पना का साकार होना संभव नहीं. वैसे भी अब ताइवान नई हार्डवेयर महाशक्ति बन रहा है तो भारत के साथ उसकी हार्डवेयर-साफ्टवेयर वाली जुगलबंदी वैश्विक आपूर्ति शृंखला को लचीला बनाने के साथ ही विश्वसनीय भी बनाएगी. चेन के दौरे पर जिन एमओयू पर हस्ताक्षर हुए हैं, उनमें अधिकांश चिप निर्माण और हरित ऊर्जा से जुड़ी उन तकनीकों से ही संबंधित हैं, जिनमें ताइवान को महारत हासिल है. वहीं भारत को इन तकनीकों की सख्त जरूरत है. भारत में इस्तेमाल होने वाले करीब 75 प्रतिशत हैंडसेट में ताइवानी चिप्स लगी होती हैं. ऐसे में यदि देश में ही उनके निर्माण की संभावनाएं बनती हैं तो यह भारत के लिए भी लाभकारी होगा.

चेन के दौरे पर जिन एमओयू पर हस्ताक्षर हुए हैं, उनमें अधिकांश चिप निर्माण और हरित ऊर्जा से जुड़ी उन तकनीकों से ही संबंधित हैं, जिनमें ताइवान को महारत हासिल है. वहीं भारत को इन तकनीकों की सख्त जरूरत है.

नीतिगत परिवर्तन समय की मांग 

ताइवान के साथ नजदीकी भारत के लिए हर तरह से फायदेमंद होगी, पर उसके लिए भारत को भी कुछ सक्रियता दिखानी होगी. नीतिगत परिवर्तन करने होंगे ताकि उसके प्रति ताइवान का भरोसा और मजबूत हो. इसीलिए मांग उठने लगी है कि भारत ताइवान के साथ रिश्तों को लेकर चीन की चिंता छोड़ते हुए वन-चाइना पालिसी वाली नीति पर अपना रुख बदले. ताइवान न केवल आर्थिक लाभ के लिहाज से, बल्कि स्वतंत्र एवं मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र की भारतीय आकांक्षा की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.

यह लेख जागरण में प्रकाशित हो चुका है.

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Professor Harsh V. Pant is Vice President – Studies and Foreign Policy at Observer Research Foundation, New Delhi. He is a Professor of International Relations ...

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